सोमवार, 13 अक्तूबर 2008

चुनाव के आगाज पर ही बिखर गई उम्मीदें

आगाज तो चुनाव का था लेकिन उम्मीदें बिखर गई। इसे पार्टी की भीतरी गुटबाजी कहें या फिर कोई छोटी सी चूक कहें आखिर अनाधिकृत कालोनियों को सर्टीफिकेट बांटने की सरकार व पार्टी की एक बड़ी उपलब्धि सरकार को गौरवान्वित करने के बजाय शर्मसार कर गई। एक ओर हंगामे, मारपीट व अव्यवस्थाओं ने इस रैली को पलीता लगा दिया तो दूसरी और सोनिया के कद के अनुरूप भीड़ जुटाने मे ंभी सरकार असफल साबित हुई। छत्रासाल स्टेडियमें आज आयोजित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की रैली का आयोजन प्रदेश सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से किया गया था। इस रैली को आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था । इस रैली के माध्यम से अनाधिकृत कालोनियों के 40 लाख निवासियों के वोटों का रुख कांग्रेस की झोली की ओर करने की रणनीति सरकार ने बनाई थी और यह रैली इन कालोनियों के मुद्दे पर विपक्ष के लगातार हमलों का जवाब भी थी। पिछले दिनों अनाधिकृत कालोनी मुद्दे पर भाजपा की सफल रैली के बाद इस रैली को सफल बनाना सरकार के लिए एक चुनौती भी थी लेकिन सरकार और पार्टी आज इस चुनौती का सामना करने में विफल रही। रैली स्थल पर तमाम अव्यवस्थाएं तो थी ही साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कद के अनुरूप भीड़ का भी अभाव था। स्टेडियम को खाली देख मंच पर बैठी मुख्यमंत्राी व पार्टी के अन्य दिग्गज भी परेशान दिखाई दे रहे थे। सोनिया गांधी के पहुंचने तक स्टेडियम में कुछ भीड़ तो जुट गई लेकिन रही सही कसर किसानों के हंगामें और उसके बाद महिलाओं के साथ हुई मारपीट ने पूरी कर दी। रैली स्थल पर जिस तरह पत्राकार दीर्घा के ठीक पीछे लगभग दो दर्जन महिलाएं व पुरुष अचानक पहुंचे और सोनिया गांधी हाय हाय के नारे लगाने लगे उससे स्पष्ट था कि यह हंगामा पूर्व नियोजित था। आयोजक तथा सरकार का खुफिया तंत्रा इस हंगामे का अंदाजा लगाने में असफल रहा। रैली में प्रवेश निमंत्राण पत्रों के माध्यम से था और मजेदार बात यह थी कि हंगामा करने वाले किसानों के पास भी निमंत्राणपत्रा थे, एैसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि पार्टी में गुटबाजी के चलते ही पार्टी के ही कुछ नेताओं ने ही हंगामे का खेल करा दिया है। हालांकि पार्टी इसे विपक्ष की साजिश बता रही है लेकिन इस पूरे हंगामे के पीछे पार्टी की गुटबाजी भी साफ दिखाई दे रही है। आज की रैली में जो कुछ भी हुआ वह आगामी चुनाव की दृष्टि से पार्टी के लिए किसी भी दृष्टि से अच्छा शगुन नहीं है। रैली में जिस तरह सोनिया गांधी के आगमन तक भीड़ की इंतजार होती रही उससे आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थिति पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। कुल मिलाकर यह दिखाई दिया कि रैली का प्रबंधन किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था, यदि रैली प्रबंधन में थोड़ी भी सर्तकता बरती गई होती तो संभवतः सरकार और पार्टी को एैसी शर्मनाक स्थिति का सामना न करना पड़ता।

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