सोमवार, 2 नवंबर 2009

हम कब सीखेंगे एक शहर मे रहने की तहजीब

एक्सरे : क्या ये है एक सभ्य शहर की तहजीब

  • जगह जगह करते हैं पानी की बरबादी
    बातचीत के लहजे में आखिर क्यो है रुखापम
    आफिस हो या घर दीवारें हो गई हैं पीकदान
    सड़क पार करने का नहीं है सलीका
    फुट ओवर ब्रिज के बावजूद जान जोखिम में डालकर करते हैं सड़क पार
    अंडर पास को हमने खुद बना दिया है नशेड़ियों व भिखारियों का अड्डा
    भिखारियों को बढ़ावा देकर दे रहे हैं भिक्षावृति को प्रोत्साहन
    यहां की भिक्षावृति है विदेशियों के सामने एक बड़ा कलंक
    वाहन चालक सड़कों पर रेड लाइट जम्प करने में महसूस करते हैं गौरव
    रेड लाइट पर जेब्रा क्रासिंग से आगे गाड़ी खड़ी करने से मिलती है आत्म संतुष्टि
    सार्वजनिक स्थानों पर गंदगी फैलाने में हम हैं माहिर
    सरकारी सम्पत्ति को नष्ट करना हो गया है हमारा अधिकार
    यातायात नियमों का पालन करने में हमें होती है शर्मीन्दगीसड़कों पर पैदल चलने का भी नहीं है सलीका
    पैदल चलते वक्त महिलाओं को घूरती हैं निगाहें
    सड़कों पर मौज मस्ती के नाम पर अशलील हरकतें
    सड़कों पर जगह जगह थूकना मानों है हमारा अधिकार
    कूड़ा फैंकने के लिए आखिर क्यों उठायें कूड़ेदान तक जाने की जहमत
    सार्वजनिक स्थानों पर ध्रुमपान तो हम करेंगे ही
    बसों में ड्राइवरों, कंडक्टरों का व्यवहार है जगजाहिर
    बसों में अन्य यात्रियों से अभद्र व्यवहार में हम स्वयं भी नहीं हैं कम
    बात बात पर है झगड़ने की आदत
    बसों में महिलाओं से छेड़खानी का ढूंढते हैं बहाना
    अपने काम के प्रति नहीं होंगे जिम्मेदार
    मेट्रो, बस व ट्रेनों में चढ़ने की नहीं सीखेंगे तहजीब
    धक्का मुक्की करना अब हो गई है आदत
    स्टेशन पर ट्रेन खड़ी होने के बाद ही करेंगे ट्रेन के शौचालय का प्रयोग
    सार्वजनिक स्थानों पर शौच व लघुशंका से नहीं है गुरेज
    सार्वजनिक शौचालयों में फैलाते हैं गंदगी
    बात बात पर झूठ बोलना हो गया है दिनचर्या का हिस्सा
    सामने वाले को हरगिज नहीं देंगे तरजीह
    सामने वाले पर अपनी बात थोपना है हमारा अधिकार
    शराब पीकर वाहन चलाने में आता है मजा
    सड़कों पर स्पीड लिमिट का उल्लंघन करके ही मिलती है आत्म संतुष्टि
    पर्यावरण की चिंता हम क्यों करें, करेगी सरकार
    सड़कों के किनारे या सार्वजनिक स्थानों पर नशा करना है आदत
    अगर हम आटो व टैक्सी चालक हैं तो मनमानी दरों पर ही यात्राी को ले जायेंगे
    अपने बच्चों को भी नहीं सिखा रहे हैं सभ्य नागरिक जीवन के संस्कार
    प्राचीन धरोहरों को कर रहे हैं खुद ही नष्ट
    नदियों नहरों में ही डालेंगे अपनी समूची गंदगी

    सवाल हमारी सभ्यता की साख का

  • अब तो सवाल साख का है, ये सवाल देश की साख का है, हमारी सभ्यता की साख का है और हमारी संस्कृति की साख का है। क्या सचमुच हमारी असभ्य हरकतों ने देश की साख बचाये रखने का संकट खड़ा कर दिया है, यही एक बड़ा सवाल है जो कामनवेल्थ गेम्स की मेजबानी के लिए तैयार हो रही देश की राजधानी की आम जनता से पूछा जा रहा है। विडंबना यह है कि अब देश की साख को बचाने के लिए जनता को जगाने की तैयारी कर रही सरकार स्वयं भी सोयी है। यह ठीक है कि सिविक सेंस के लिए हमें जागना होगा लेकिन जगह जगह स्वयं कई नागरिक समस्याएं उत्पन्न करने वाली सरकार को कौन जगायेगा। सरकार सेर तो आम जनता सवा सेर, आम जनता अपनी तहजीब भूल रही है तो सरकार अपना फर्ज भूल रही है। देश की राजधानी दिल्ली की 80 प्रतिशत जनता प्रतिदिन कदम कदम पर सिविक प्राब्लम (नागरिक समस्याओं) से रूबरू होती है और अंततः इन समस्याओं का हिस्सा बनकर समस्याओं को तो विकराल बना ही रही है अपनी मानसिकता को भी ं विकृत बना रही है, यही कारण है कि अब यही विकृत मानसिकता हमारी सभ्यता के रूप में दिखाई देने लगी है। देश के गृहमंत्राी पी.चिदंबरम हों या फिर मुख्यमंत्राी शीला दीक्षित, इनका कहना है कि दिल्ली वासियों को शहरों में रहने के तौर तरीके सीखने होंगे। इनके कहने का निहितार्थ यही है कि यदि दिल्ली वासियों ने अच्छे व बडे शहरों में रहने के तौर तरीके न सीखे तो कामनवेल्थ गेम के दौरान आने वाले हजारों विदेशी मेहमानों के सामने देश व दिल्ली की छवि पर बट्टा लगेगा। यह ठीक है कि यहां का आम शहरी शैक्षिक व सामाजिक रूप से जितना सभ्य हो रहा है, व्यवहारिक रूप से उतना ही असभ्य हो रहा है, खासकर सिविक सेंस के प्रति तो मात्रा 5 से 10 प्रतिशत शहरी ही गंभीर होंगे। सामाजिक ढांचा ही इस तरह का खड़ा हो गया है कि इस ढांचे का हर प्राणी, चाहे वह नौकरशाह हो या मजदूर, चाहे वह राजनीतिज्ञ हो या व्यापारी,उद्यमी, क्लर्क हो या अफसर, डाक्टर हो या मरीज सभी तो कदम कदम पर अपनी असभ्यता को प्रकट कर ही देते है तभी तो अब दिल्ली वासियों को एटीकेट व एटीटयूड सिखाने की बात की जा रही है। यह हमारी आदत हो गई है कि जिस काम के लिए हमें मना किया जायेगा, उसे करने में हमें गौरव हासिल होता है। जहां लिखा होगा थूकना मना है, हम वहीं थूकेंगे, सड़कों पर नो पार्किंग के बोर्ड लगे होंगे और हम उनके सामने ही अपना वाहन पार्क करेंगे। सड़कें, ट्रेन, बस, रिक्शा, टैक्सी, आटो, अस्पताल, हैल्थ केयर सेंटर, खेल मैदान, होटल, रेस्टोरेंट, क्लब, स्कूल कालेज हर जगह हम खुद इस तरह की अस्भ्यता के शिकार भी होते हैं और इस तरह की असभ्यता प्रदर्शित भी करते हैं। दिल्ली में सिविक समस्याएं बढ़ रही हैं तो इसका एक बड़ा कारण यह भी है, इसके लिए दोषी कौन यह एक ऐसा सवाल है कि पहले मुर्गी या पहले अंडा। जवाब सीधा और सरल है वह यह कि आम जनता हो या सरकार में बैठे लोग सभी की सिविक समझदारी, सकारात्मक सोच तथा समाज, शहर व व्यक्तियों के लिए जिम्मेदारी कम हो रही है।


    क्या कहते हैं चिदंबरम
  • कामनवेल्थ गेम के दौरान बाहर से आने वाले मेहमानों पर अपने व्यवहार से अच्छा प्रभाव डालने के लिए दिल्ली के लोगों को अपनी बुरी आदतें बदलनी होंगी, तभी हम उन्हें प्रभावित कर सकते है। देश भर से लोग दिल्ली आते हैं, हम उन्हें दिल्ली आने से रोक नहीं सकते लेकिन अगर वह दिल्ली आते हैं तो उन्हें दिल्ली के प्रति खुद को व्यवहारिक बनाना होगा। दिल्ली के लोगों को एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय शहर के नागरिकों की तरह व्यवहार करना चाहिए।
  • मजबूरी भी है नगरीय तहजीब का उल्लंघन

  • दिल्ली की जनता को विश्व स्तरीय नगरीय जीवन की तहजीब सिखाने की कवायद पर तो बहस हो रही हैै लेकिन जो लोग नगरीय जीवन की तहजीब में स्वयं को बांधे रखना चाहते हैं उनके सामने भी तहजीब के इस दायरे को तोड़ने की कई मजबूरियां है। यह वह वर्ग है जो तहजीब सीखने से पहले अपनी मजबूरियों का हल चाहता है। दरअसल ऊंची इमारतों व आकर्षक फ्लाईओवरों ने भले ही दिल्ली के चेहरे को चमकदार बना दिया हो लेकिन जिस तरह पिछले पांच दशक में दिल्ली का बेढंगा विकास हुआ है उसने एैसी बदरंग दिल्ली बनाई है कि इसमें रंग भरने में लंबा समय लगेगा। जिस राजधानी में लगभग 1600 अनाधिकृत कालोनियां हों और हजारों झुग्गी झौपड़ियां व कलस्टर हों उस दिल्ली के आम नागरिक को नगरीय जीवन की तहजीब होगी इसकी कल्पना करना भी निरर्थक है। अनाधिकृत कालोनियांे का दौरा करने पर पता चलता है कि वर्षो से वहां कोई कूड़ेदान सरकारी स्तर पर नहीं है। सड़क या नाले नालियां ही उनके कूड़ेदान है, नतीजतन सड़कों पर कूड़ा डालना उनकी आदत हो गई है। पेयजल लाइन न होने के कारण जल निगम की पाइप लाइन को बीच में काटकर अपनी प्यास बुझाना उनकी मजबूरी है चाहे इसके बदले काटे गये स्थान से महीनों तक पानी बेकार बहता रहे क्योंकि उनके सरोकार पानी की बरबादी से ज्यादा अपनी प्यास से जुड़े हैं। जिन क्षेत्रों में वर्षो से कोई स्कूल तक नहीं है उस क्षेत्रा के बच्चों से एटीकेट व एटीटयूट की उम्मीद कैसे की जा सकती है, आखिर एैसे क्षेत्रों के बच्चों की एक पीढ़ी अब नयी पीढ़ी को जन्म दे रही है। आज इन क्षेत्रों से जन्म लेने वाली नई पीढ़ी पर नगरीय जीवन की तहजीब बिगाड़ने का आरोप भले ही लगाया जाये लेकिन असली गुनाहगार तो वह लोग हैं जिन्होंने अपने राजनैतिक स्वार्थो के लिए इस पौध को खड़ा किया है।
  • कहीं अहम तो कहीं गर्वानुभूति कराती है तहजीब का उल्लंघन

  • सिविक सेंस यानि नगरीय तहजीब को तोड़ने में कहीं व्यक्ति का अहम प्रमुख भूमिका निभाता है तो कहीं नियम तोड़ने में होने वाली गर्वानुभूति इसका कारण बनती है। दिल्ली की कथित हाई क्लास सोसायटी के लोगों में एक बड़ा वर्ग एैसा है जो नियमों का उल्लंघन करना अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानता है। हाई क्लास सोसायटी के लोगों की पहुंच भी ऊंची होती है और उनके भीतर खुद को औरों से अलग दिखने की इच्छा भी हिलौरें लेती है। ऊंची पहुंच का फायदा उठाकर ही वह नियम तोड़ते हैं और यह उनकी आदत बन जाती है। यातायात पुलिस के एक बड़े अधिकारी ने बातचीत में यह स्वीकार किया कि दिन भर उनके कार्यालय में सैंकड़ों फोन ऊंची पहंुच व ऊंचे रसूख वाले लोगों के मात्रा इसलिए आते हैं क्योंकि बीच सड़क में यातायात पुलिस ने उन्हें नियम के उल्लंघन मे ंपकड़ लिया है। चालान से बचने और संबधित यातायात पुलिसकर्मी को अपना रसूख दिखाने के लिए वह तत्काल फोन घूमाते है। इनमें एक बड़ी संख्या तो ऐसे लोगों की भी होती है जो सीधे सीधे यातायात पुलिसकर्मी को उसकी वर्दी उतरवाने की धमकी तक दे देते है। बड़े घरों के रईसजादे जब बाईक लेकर सड़कों पर उतरते हैं तो बाइक की रफ्तार, बीच सड़क में स्टंट और रेड लाइट जंप करना उनके लिए आम बात होती है। विडंबना तो यह है कि पकड़े जाने पर उन्हें चालान का भी कोई भय नहीं होता और यातायात पुलिस कर्मी के पहुंचने से पहले ही वह अपनी जेब से चालान के जुर्माने की राशि हाथ मे लेकर लहराने लगते हैं। दक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में अक्सर इस तरह के बाइक सवारों को देखा जा सकता है जो जानबूझ कर नियमों का उल्लंघन करते हैं। एैसा कर उन्हें गर्व की अनुभूति होती है।
  • सजा कम होना भी है एक बड़ा कारण

  • राजधानी के लोगों में सिविक सेंस न होने का एक बड़ा कारण नियम तोड़ने या नगरीय तहजीब का उल्लंघन करने पर सजा कम होना भी है। या तो इनफोर्समेंट एजेंसियां काम ही नहीं करती, यदि काम भी करती हैं तो सजा इतनी कम होती है कि उसका कुछ प्रभाव नहीं होता। कुछ समय पहले ही सार्वजनिक स्थानों पर धु्रमपान पर रोक लगा दी गई थी, जिसे लेकर मीडिया ने भी काफी प्रचार किया था लेकिन आज स्थिति यह है कि इस कानून के कोई मायने नहीं है। यातायात नियमों के उल्लंघन के मामले में पुलिस कुछ कठोर जरूर है लेकिन वहां चालान की राशि इतनी कम है कि चालान का कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी तरह सड़कों के किनारे खड़े होकर लघु शंका करने जैसी हरकतें हों या फिर सड़कों पर पैदल चलने की तहजीब, इन मुद्दों को न तो यह सब करने वाले गंभीरता से लेते हैं और न ही शासन की सिविक एजेंसियां गंभीरता से लेती हैं। दिल्ली को साफ रखने की बात तो की जाती है लेकिन सड़कांें पर चलते समय थूकना, फास्ट फूड के खाली रैपर फंैंकना, कोल्ड ड्रिंक के खाली टीन के छोटे ड्रम फेंकना आम बात है। पार्को की स्थिति तो इससे भी दयनीय है, लोग पार्क में घूमने जाते हैं और गंदगी फैलाकर वापस लौटते हैं लेकिन विडंबना यह है कि उन्हें सबक सिखाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की जाती। दीवारों पर पोस्टर प्रतिबंधित करने के लिए नया डिफेसमेंट एक्ट बना लेकिन पोस्टर लगाने, दीवारे पोतने के आरोप में कभी किसी को बड़ी सजा की खबर सुनाई नहीं दी, ऐसे में एैसे कानून का औचित्य ही लोगों की नजर में नहीं रहता। कानून का उल्लंघन करने वाले भी इस बात को जानते हैं कि उन्हें सजा मिलना तो दूर उनकी इस गलती को गंभीरता से भी कोई नहीं लेगा। मेट्रो स्टेशनों पर मेट्रो में सवार होने की तहजीब सिखाने के लिए डीएमआरसी प्रशासन लगातार न केवल स्टेशनों पर फिल्मों का प्रदर्शन कर रहा है बल्कि प्रमुख स्टेशनों पर गार्ड भी तैनात किये गये हैं बावजूद इसके जब ट्रेन आती है तो ट्रेन से उतरने वाले यात्रियों व सवार होने वाले यात्रियों में गुत्थमगुत्था रोजाना होती है और इस दौरान महिलाओं को तो अक्सर छेड़छाड़ का शिकार भी होना पड़ता है लेकिन बावजूद इसके एैसी गुत्थमगुत्था करने वालों पर कोई बड़ा जुर्माना कभी नहीं हुआ। यह स्थिति सभी विभागों से संबधित नियमों के उल्लंघन पर लागू हो रही है और विभागों के अधिकारी स्वयं ऐसे नियमों का उल्लंघन करते देखे जाते हैं।
  • स्कूलों में नहीं है नगरीय तहजीब सिखाने का पाठयक्रम

  • आम जनता को नगरीय तहजीब सिखाने की बातें तो अक्सर की जाती हैं लेकिन इसमें सबसे बड़ी खामी हमारी शिक्षा व्यवस्था में इस तरह का कोई पाठयक्रम न होना भी है। स्कूलों में शैक्षिक विकास पर तो बल दिया जाता है लेकिन दैनिक जीवन व नगर से जुड़ी जरूरी बातों को अक्सर उपेक्षित रखा जाता है। राजधानी दिल्ली को अब विश्वस्तरीय नगर बनाने की बात की जा रही है और विश्व के अन्य देशों से इसकी तुलना भी की जाने लगी है नतीजतन इस तुलना में दिल्ली अन्य देशों के नगरों से पीछे दिखाई देती है, इसका प्रमुख कारण वहां के लोगों की नगरीय तहजीब यानि सिविक सेंस है। दरअसल विदेशियों में इस तरह की सिविक सेंस का एक बड़ा कारण उनकी शिक्षा व्यवस्था है। वहां के किसी छोटे स्कूल का छात्रा भी इस तहजीब में बंधा दिखाई देता है क्योंकि स्कूल में शिक्षा के साथ साथ आम नागरिक जीवन के पहलुओं को भी सिखाया पढ़ाया जाता है। राजधानी में शिक्षा व्यवस्था की सबसे बड़ी खामी यह है कि शिक्षा व्यवस्था भी सरकार और एमसीडी में बंटी है और पाठयक्रम इन दोनों का ही नहीं है। यहां के स्कूलों में सीबीएसई पाठयक्रम लागू है, निजी स्कूलों में भी अधिकतर स्कूलों में सीबीएसई पाठयक्रम लागू है, सीबीएसई के स्तर पर भी अपने पाठयक्रम में सिविक सेंस से जुड़ी शिक्षा देने की कोई गंभीर पहल कभी नहीं हुई है। सरकार और निगम तो अपने स्कूलों के प्रति आंखे मूंदे रहते ही हैं, जबकि निजी स्कूलों का आलम यह है कि उनकी निगाहें पाठयक्रम से ज्यादा स्कूल की छवि व उसके परीक्षा परिणाम पर ज्यादा होती हैं नतीजतन नागरिक जीवन से जुड़े पहलू अनछुए रह जाते हैं।

शहरी विकास मंत्राी डा.ए.के.वालिया से बातचीत

लोग दिल्ली को समझें अपना घर: वालिया

कामनवेल्थ गेम के मद्देनजर दिल्ली वालों को एटीकेट सिखाने व उनका एटीटयूट सुधारने की भी बात की जा रही है क्या दिल्ली वालों का एटीटयूट ठीक नहीं ?
कामनवेल्थ गेम देश के स्वाभिमान व सम्मान से जुड़े हैं, आखिर यह देश का मामला है, विदेशी मेहमानों के साथ कोई छेड़छाड़, अभद्र व्यवहार जैसी घटनाएं होंगी तो इसका गलत प्रभाव पड़ेगा। जहां जहां भी खेल होते हैं वहां विदेशी मेहमानों की सहायता के लिए स्वयसेवकों की फौज बनाई जाती है, यहां भी एैसी फोज तैयार हो तथा आम जनता को भी शिक्षित करना होगा।

लोगों को शिक्षित करने के जो प्रयास हो रहे हैं क्या वह काफी हैं ?
युद्ध स्तर पर काम करना होगा। हम खेल से जुड़ी परियोजनाओं पर तो बल दे रहे हैं लेकिन इस तरफ अभी ध्यान नहीं दिया गया है। अब समय आ गया है कि लोगों को शिक्षित करें ताकि खेलों के दौरान विदेशी मेहमानों के सामने दिल्ली व देश की बेहतर छवि प्रस्तुत हो।

दिल्ली की जनता में एटीटयूट व एटीकेट की कमी का क्या कारण है?

दिल्ली का विकास योजनाबद्ध नहीं हुआ है और यहां की आबादी में भी बड़ी आबादी माइग्रेटिड है। बाहर से लोग आते हैं और जहां जगह मिलती है वहां बसेरा बना लेते हैं। न तो मूलभूत सुविधाएं वहां तक पहुंच पाती हैं और न ही शिक्षा। सरकार अब प्रयास कर रही है, जेजे कलस्टर निवासियों को फ्लैट दिये जा रहे हैं ताकि उनके रहन सहन का स्तर ऊंचा हो, अनाधिकृत कालोनियों को भी नियमित कर वहां सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। जनसंख्या का दबाव भी एक बडी समया है।

ेकामनवेल्थ गेम को देखते हुए दिल्ली के लोगों की सिविक सेंस को आप किस रूप में देखते है ?
सिविक सेंस एक बड़ी समस्या है, इसे निश्चित रूप से सुधारना होगा, इसके लिए नये नियम व कानून भी बनाये जाने की जरूरत है। विदेशों में यदि सिविक सेंस है तो वहां भी धीरे धीरे सुधार हुआ है, वहां नियम तोड़ने पर सजा का प्रावधान भी कड़ा है। सजा के दबाव से भी जागरुकता उत्पन्न होती है।

कड़े नियम कानून बनाने की दिशा में सरकार ने क्या किया है ?
सरकार ने अपनी तरफ से पहल की है। जगह जगह दीवारों पर पोस्टर आदि रोकने के लिए अपना डिफेंसमेंट एक्ट बनाकर कड़ी सजा के प्रावधान किये। अब अपना आबकारी एक्ट बनकर तैयार है जिसमें सड़कों के किनारे शराब का सेवन करने पर कड़ी सजा का प्रावधान है।

दो एक्ट बना देने से कितनी सफलता मिल सकती है ?
सरकार के हाथ बंधे हैं, एमसीडी एक्ट में भी बड़े संशोधन की जरूरत है, लेकिन दिल्ली सरकार के अधीन एमसीडी न होने के कारण सरकार कुछ कर सकने में सक्षम नहीं है। हम कानून नहीं बना सकतंे। छोटे छोटे काम के लिए भी केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय व गृह मंत्रालय में जाना पड़ता है और बहुत धीमी गति से काम आगे बढ़ते है। निश्चित रूप से काफी सुधार की जरूरत है।

जनता में क्या खामियां देख रहे हैं ?
इसे खामियां नही कहेंगे, जागरुकता की कमी कहेंगे। लोग अपने घर का कूड़ा सड़क पर डालते हैं या फिर नाले में डाल देते हैं जिससे सड़को ंपर गंदगी होती है, नाले व सीवर लाइन जाम हो जाती हैं और फिर उन्हीं लोगों को समस्या होती है, यही उन्हें समझना होगा। जनता को समझना होगा कि दिल्ली उनकी अपनी है, और अपनी दिल्ली को साफ सुथरा उन्हें रखना है, जनता को समझना होगा कि यहां की सम्पत्ति उनकी अपनी सम्पत्ति है जिसे नुकसान न पहुचंाया जाये। लोग दिल्ली को अपना घर समझें और जिस तरह अपने घर को रखते है उसी तरह दिल्ली को सहेज कर रखें।

जनता को जागरुक करने के लिए सरकारी स्तर पर क्या प्रयास किये गये हैं ?
सरकार समय समय पर जागरुकता अभियान चलाती रही है। होली पर प्राकृतिक रंगों से होली खेलने का अभियान छेड़ा गया तो दीपावली पर पटाखों से प्रदूषण न फैलाने के अभियान चलाये जो काफी सफल रहे।
सिविक सेंस से संबधित दिल्ली की बड़ी समस्या आप क्या देखते हैं ?
सबसे बड़ी समस्या सेनीटेशन और जलभराव की है, इसका कारण यही है कि लोग अपने घर का कूडा कूड़ेदार में डालने के प्रति जागरूक नहीं। कूड़ा नालियों में फंसने के कारण ही जलभराव की स्थिति उत्पन्न होती है। दूसरी बड़ी समस्या प्रदूषण है जिसके लिए सरकार ने लगातार गंभीर पहल कर सभी सार्वजनिक वाहनों को सीएनजी में परिवर्तित किया है और प्रदूषण कम करने के अभियान चलाये हैं।

बिजली व पानी की फिजूल खर्जी भी एक बड़ी समस्या है क्योंकि दिल्ली की बढ़ती आबादी के लिए यूं भी बिजली पानी की कमी महसूस की जा रही है, इस पर क्या कहेंगे ?
बिजली पानी की फिजूलखर्जी एक बड़ी समस्या है लेकिन इससे बड़ी समस्या बिजली चोरी व लीकेज के कारण बेकार होने वाला पानी है। इसे रोकने की जरूरत है।

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