मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

मैं रहूं, ना रहूं क्रांति की मशाल की जलती रहनी चाहिए : अन्ना


मैं रहूं, ना रहूं क्रांति की मशाल की जलती रहनी चाहिए : अन्ना
                  तिहाड़ से रामलीला मैदान पहुंचे अन्ना 
अनशन में शामिल हुआ हजारों का सैलाब
     नई दिल्ली। भष्टाचार के मुद्दे पर एक नई क्रांति की मशाल लेकर अनशन पर बैठे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने कहा है कि मैं रहूं न रहूं, क्रांति की यह मशाल जलती रहनी चाहिए। उन्होंनें कहा कि यह आजादी की दूसरी लड़ाई है। अन्ना हजारे तिहाड़ जेल में 67 घंटे का अनशन करने के बाद आज दोपहर जनसैलाब के साथ रामलीला मैदान पहुंचे और राह में उन्होंने राजघाट पहुंचकर महात्मा गांधी की समाधि पर भी श्रद्धासुमन अर्पित किये। उन्होंने एलान किया कि जब तक जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं होगा तब तक वह अनशन स्थल नहीं छोड़ेंगे।
सामाजिक कार्यकर्ता आज दोपहर लगभग सवा दो बजे भारी बरसात के बीच रामलीला मैदान पहुंचे तो वहां पहले से ही जनसैलाब उनके स्वागत व समर्थन के लिए मौजूद था। मैदान में मौजूद हजारों समर्थकों का हाथ हिलाकर स्वागत करते हुए उन्होंने कहा कि यह दूसरी क्रांति की शुरुआत है और ‘मैं रहूं, ना रहूं क्रांति की इस मशाल को जलते रहना चाहिये।’ उन्होंने कहा कि जब तक जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं होगा, तब तक हम यह अनशन स्थल नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जाने के साथ ही हमें आजादी मिली, लेकिन देश से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ, अब यह आजादी की दूसरी लड़ाई है। उन्होंने कहा कि याह एक क्रांति की शुरुआत है। देश के सभी लोगों ने ये मशाल जलायी है। उन्होंने देश की जनता से आहवान किया कि क्रांति की इस मशाल को कभी बुझने नहीं दें। उन्होंने कहा कि चाहे मैं रहूं या ना रहूं मशाल जलती रहे। उन्होंने कहा कि जिस तरह जापान राख के ढेर से फिर उठ खड़ा हुआ, उसी तरह हमें भी उठना है। उन्होंने कहा कि अगर देश का युवा जाग गया तो इस देश का भविष्य उज्जवल है।
उन्होंने कहा कि हमें सिर्फ लोकपाल ही नहीं, बल्कि पूरा परिवर्तन लाना है। देश में गरीबों को न्याय मिले, ऐसा बदलाव लाना है।’ उन्होंने कहा कि जब तक जनलोकपाल विधेयक पारित नहीं होगा, तब तक वह रामलीला मैदान नहीं छोड़ेंगे। अनशन के पिछले चार दिन में उनका वजन कम हो जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि चार दिन में मेरा वजन तीन किलोग्राम कम हो गया है। लेकिन आप लोग जो आंदोलन चला रहे हैं, उससे मुझे ऊर्जा मिल रही है। उन्होंने कहा कि वजन चाहे 10 किलोग्राम भी कम क्यों नहीं हो जाये, हमारा जोश कम नहीं होगा। ्रभष्टाचार पर रोष व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि जिन गद्दारों ने इस देश को लूटा है, हम उन्हें बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि अब स्वतंत्रता के दूसरे संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है और इस संघर्ष का मकसद देश को भ्रष्टाचार से मुक्त करना है। उन्होंने अपने समर्थकों से इस आंदोलन के दौरान हिंसा न करने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाने की भी अपील की।
अन्ना हजारे हालांकि दोपहर लगभग सवा दो बजे रामलीला मैदान में पहुंचे लेकिन मैदान में उनके समर्थकों का जमावड़ा सवेरे छह बजे से ही शुरु हो गया था। अन्ना के मैदान में पहुंचने से पहले ही केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि देश के विभिन्न हिस्सों से हजारों लोग मैदान में पहुंच चुके थे और जब अन्ना मैदान में पहुंचे तो उसके बाद उनके समर्थकों का रेला मेंदान में उमड़ पड़ा। दिन में दो बार तेज बरसात हुई लेकिन बरसात के बावजूद उनके समर्थक टस से मस नहीं हुए और भीगते हुए ही अपनी अपनी जगह पर जमे रहे। मैदान में जमा लोगों में जबरदस्त उत्साह था, हर कोई हाथों में तिरंगा या पोस्टर लिए हुए था। लोगों की जबान पर बस बंदेमातरम या अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं, जैसे नारे थे। मंच से जहां देश के विभिन्न हिस्सों में ्रभष्टाचार के खिलाफ आंदोलन चला रहे कार्यकर्ता बारी बारी से संबोधन कर रहे थे वहीं युवाओं की एक टीम आजादी के तरानों व जनगीतों से लोगों में उत्साह भर रही थी। देर रात तक रामलीला मैदान में लोग डटे थे। रामलीला मैदान पर पहुंचने से पहले हज़ारे ने एक मिनी ट्रक पर सवार होकर तिहाड़ जेल से मायापुरी तक जुलूस निकाला और फिर वहां से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजलि देने राजघाट पहुंचे। उन्हें इंडिया गेट भी जाना था लेकिन वह इंडिया गेट नहीं गये।

राजपथ पर उतरी अन्ना की सेना


राजपथ पर उतरी अन्ना की सेना

इंडिया गेट से जंतर मंतर तक हुआ एतिहासिक मार्च
लगभग एक लाख लोग हुए मार्च में शामिल

जन जन में दिखाई दिया अन्ना का अक्श

संजय टुटेजा

नई दिल्ली। राजधानी का राजपथ पर बुधवार की शाम ऐतिहासिक परेड का साक्षी बना। यह परेड भारतीय सेना के जवानो की नहीं बल्कि ्रभष्टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना के लिए लड़ने उतरी सेना की थी। इस सेना में पुरूष भी थे तो महिलाएं भी थी, युवा भी थे और वृद्ध भी, अपंग भी थे और नेत्रहीन भी। इस सेना के हर सैनिक में मानों अन्ना का अक्श दिखाई दे रहा था और इन सैनिकों के हर कदम पर देश भक्ति का जजबा, उत्साह और रोमांच हिलौरें ले रहा था। कहीं देश के लिए मरमिटने के सुर थे तो कहीं आजादी के तरानों की ताल। हाथों में तिरंगा लिये एक जनसैलाब के रूप में यह सेना बढ़े जा रही थी जंग के उस रास्ते पर जो जंग अन्ना हजारे ने शुरु की है।
्रभष्टाचार के खिलाफ शुरु हुई लड़ाई को जीतने के लिए राजपथ पर उतरी अन्ना की इस सेना की अगुवाई के लिए स्वयं अन्ना भले ही वहां नहीं थे लेकिन इस जनसैलाब में शामिल हर शख्स मानों स्वयं अन्ना बनकर सरकार को चुनौती दे रहा था। शाम लगभग चार बजे ही विजय चौक से इंडिया गेट की ओर अन्ना की सेना का ऐसा कारवां शुरु हुआ जो देर रात तक नहीं थमा। केवल राजपथ ही नहीं इंडिया गेट की ओर जाने वाली सभी सड़कों पर अन्ना के समर्थकों का कारवां आजादी के दीवानों की तरह मानों मर मिटने के लिए बढ़ रहा था। अन्ना के इन सैनिकों की एक खासियत यह थी कि इनके हाथों में हथियार नहीं बल्कि देश की अस्मिता का प्रतीक तिरंगा था या फिर ऐसे पोस्टर थे जिन पर लिखे नारे किसी भी ्रभष्ट व्यवस्था को शर्मसार करने के लिए काफी थे।
्रभष्टाचार से लड़ने का जुनून इस कदर था कि कहीं कोई महिला अपने दूध मुंहे बच्चों को गोद में लिए लक्ष्य की ओर कदम से कदम बढ़ा रही थी तो कहीं व्हील चेयर पर विकलांग भी इस परेड में निरंतर आगे बढ़ने दिखाई दिये। बेसाखी के सहारे चलने वाले कई अपंगो को आज शायद बैसाखी की भी जरूरत नहीं थी। इस सेना में शामिल युवा ही विकलांगों की बैसाखी बनकर उन्हें इस ऐतिहासिक आंदोलन का हिस्सा बना रहे थे। जिन लोगों ने आजादी का आंदोलन नहीं देखा उनके लिए तो यह एक नई आजादी के आंदोलन की तरह था और इस आंदोलन में शामिल लोगों को आंदोलन का हिस्सा होने पर गर्व था। इतना बड़ा जनसैलाब, फिर भी न कहीं कोई उपद्रव और न कोई जाम। इस आंदोलन में शामिल सभी लोग एक अनुशासित सिपाही की तरह आगे बढ़ रहे थे। राजपथ से इंडिया गेट और इंडिया गेट से जंतर मंतर की ओर शुरु हुआ यह मार्च देर रात तक जारी रहा। जंतर मंतर बस वंदेमातरम तथा अन्ना तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं जैसे नारों से गूंज रहा था। समाज का कोई वर्ग शायद ऐसा नहीं था जो आज के इस आंदोलन का हिस्सा नहीं था। आटो चालक हों या फिर रिक्शा चालक, इंजीनियर हों या डाक्टर, गृहणियां हों या फिर कामकाजी महिलाएं, स्कूली बच्चे हों या फिर कालेज के छात्र छात्राएं हर कोई तो आज इस आंदोलन का हिस्सा था