बुधवार, 6 मई 2009

उत्तर पश्चिम: समस्याओं के भंवर में फंसी दो महिलाएं

नई दिल्ली। उत्तर पश्चिम (सु।) लोकसभा सीट समस्याओं का ऐसा भंवर है जिसमें दो सशक्त महिलाएं फंस गई हैं। एक महिला अपने ही घर में परायों से घिरी है तो दूसरी महिला बाहरी होकर वहां अपनी जगह तलाश रही है। एक महिला के पास निष्ठावान कार्यकर्ताओं की फौज ,है तो दूसरी महिला के पास लंबा राजनीतिक अनुभव। एक महिला के पास लोकसत्त्ता के सबसे छोटे सदन का प्रतिनिधित्व है तो दूसरी महिला के पास देश के सर्वोच्च सदन का प्रतिनिधित्व है। एक महिला के सामने अपने ऊंचे सपनों को साकार करने का अवसर है तो दूसरी महिला के सामने अपनी प्रतिष्ठा को बचाये रखने की चुनौती है। इन दोनों ही महिलाओं का लक्ष्य तो एक है लेकिन राह जुदा है। पग पग पर खड़ी समस्याओं के भंवर में फंसी यह दोनों ही महिलाएं अब इस भंवर से निकलने के लिए किसी मजबूत सहारे को तलाश रही हैं। ' उत्तर पश्चिम (सु।) लोकसभा सीट दिल्ली के चुनावी परिदृश्य में नई लोकसभा सीट है। दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों में सर्वाधिक मतदाताओं वाली इस सीट पर कुल उम्मीदवारों की संख्या तो 16 है लेकिन मुख्य मुकाबला दो महिलाओं कांग्रेस की सांसद व उम्मीदवार कृष्णा तीरथ तथा भाजपा उम्मीदवार व मौजूदा पार्षद मीरा कांवरिया के बीच है। वैसे एक तीसरी महिला रिपब्लिकन पार्टी की गीता भी चुनाव मैदान में अपनी पहचान बनाने की कशमकश कर रही है। इन महिलाओं में कांग्रेस की कृष्णा तीरथ का ेेकद तो सांसद होने के कारण भले ही ऊंचा है लेकिन बाहरी उम्मीदवार होने के छवि ने यहां उनके कद को छोटा कर दिया है। उत्तर पश्चिमी लोकसभा क्षेत्रा में रहने वाले अधिकतर लोगों की त्रासदी यह है कि आजादी के छह दशक बाद भी यहां लोग सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी आदि मूलभूत समस्याओं से वंचित हैं। इस लोकसभा क्षेत्रा का एक चैथाई क्षेत्रा ग्रामीण है। यहां कुल 97 गांव हैं जिनमें से दो दर्जन गांवों में डाकखाना तक नहीं है और पानी तो दूर कई गांवांे में सड़कें तक नहीं हैं। एक चैथाई क्षेत्रा इस सीट में अनाधिकृत कालोनियों का है, जहां कच्ची गलियां, पेयजल की किल्लत और सीवर लाइन न होना बड़ी समस्या है। एक चैथाई क्षेत्रा पुर्नवास कालोनियों का है, इनकी अपनी समस्याएं हैं, कोई मालिकाना हक के लिए संघर्ष कर रहा है तो कोई अन्य समस्याआंे से जूझ रहा है। रोहिणी सहित लगभग एक चैथाई क्षेत्रा ही ऐसा है जहां कुछ विकास दिखाई देता है, बाकी तीन चैथाई क्षेत्रा में केवल समस्याएं ही दिखाई देती हैं, यह तीन चैथाई क्षेत्रा पानी की बूंद बूंद के लिए तरसता है। यह इस क्षेत्रा की विडंबना ही है कि यहां के दस विधानसभा क्षेत्रों में मात्रा तीन सरकारी अस्पताल हैं और मात्रा एक सरकारी कालेज। बादली में एक सरकारी अस्पताल की नींव पूर्व प्रधानमंत्राी राजीव गांधी सहित ने रखी थी और उसके बाद भी दो बार इस अस्पताल का शिलान्यास हो चुका है लेकिन आज तक यह अस्पताल नहीं बन सका है। ग्रामीण किसानों की मुआवजे की समस्या एक बड़ी समस्या है, लंबे अरसे से किसान नई दरों के अनुसार मुआवजे की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। यह सभी ऐसी समस्याएं हैं जो कांग्रेस की कृष्णा तीरथ के लिए बड़ी समस्या हैं क्योंकि पिछले दस वर्ष से दिल्ली में कांग्रेस का ही शासन है। भाजपा की मीरा कांवरियां के पास खोने को कुछ नहीं है, उनके सामने अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति का यह सुनहरा अवसर है। उनका विनम्र स्वभाव और स्वच्छ छवि उनके लिए यहां मददगार हो सकती है।

शनिवार, 2 मई 2009

तपती सड़कों पर हाथी की दौड़ करेगी हार जीत का फैसला

उत्तर पश्चिम, दक्षिण दिल्ली व उत्तर पूर्व में हाथी बना पहेली

सात में तीन सीटों पर बसपा की भूमिका महत्वपूर्ण

बसपा का जातिगत फार्मूला कर सकता है बड़ा फेरबदल

दिल्ली की तपती सड़कों पर हाथी की दौड़ जहां खत्म होगी वहीं से किसी भी प्रत्याशी के संसद पहुंचने का रास्ता शुरु होगा। प्रचण्ड गर्मी में हाथी की दौड़ निश्चित रूप से चुनावी समीकरण को बदलेगी। सात लोकसभा सीटों में तीन सीटों उत्तर पश्चिम, दक्षिणी दिल्ली तथा उत्तर पूर्व में बसपा का मदमस्त हाथी कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए पहेली बन गया है। इन तीनों ही सीटों पर बसपा की अहम भूमिका परिणाम की दिशा तय करेगी। आसमान से आग उगलती गर्मी में राजधानी में चुनावी शोर की गूंज तो पहले जैसी नहीं है अलबत्ता निगम चुनाव में दस्तक के बाद बसपा का हाथी अब हिलौरें लेकर दौड़ने लगा है। हाथी की दौड़ पर न तो मौसम का असर है और न ही कांग्रेस और भाजपा का कोई अंकुश। एैसे में यह दोनों ही दल भयभीत हैं क्योंकि कहीं न कहीं बसपा का हाथी इन दोनों ही दलों को नुकसान पहुंचायेगा। उत्तर पश्चिम, उत्तर पूर्व और दक्षिणी दिल्ली यह तीन लोकसभा सीटें एैसी हैं जहां से बहुजन समाज पार्टी को काफी उम्मीदें हैं। यहां बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी चुनाव भले ही न जीत पायें लेकिन इतना निश्चित है कि इन तीनों सीटों पर किसी भी प्रत्याशी की हार जीत बसपा ही तय करेगी। पिछले निगम चुनाव तथा विधानसभा चुनाव में भी इन तीनों ही सीटों पर बसपा को अन्य सीटों से अधिक सफलता मिली थी। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को सर्वाधिक 24.53 प्रतिशत मत दक्षिणी दिल्ली सीट पर मिले थे और इसी लोकसभा के अन्तर्गत एक विधानसभा सीट पर भी बसपा ने कब्जा किया था। निगम चुनाव में भी इस सीट से तीन वार्डो पर बसपा प्रत्याशी विजयी हुए थे। इस चुनाव में बसपा ने यहां से गुजर प्रत्याशी कंवर सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है जो जातीय दृष्टि से भी बसपा के अनुकूल है क्योंकि दक्षिणी दिल्ली सीट गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रा है, हालांकि यहां पर भाजपा ने भी गुर्जर प्रत्याशी को चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन यदि बसपा का जातीगत फार्मूला कामयाब हुआ तो इसका नुकसान भाजपा प्रत्याशी को हो सकता है। उत्तर पश्चिम लोकसभा सीट पर बसपा को विधानसभा चुनाव में 16.54 प्रतिशत मत हासिल हुए थे और निगम चुनाव की अपेक्षा बसपा के मतों में 1.68 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई थी। यहां 22 प्रतिशत अनुसूचित जाति तथा लगभग 20 प्रतिशत ओबीसी मतदाता है इनमें एक बड़ा हिस्सा बसपा का परंपरागत वोट बैंक है, पिछले निगम चुनाव में इसी सीट से बसपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन इसी सीट पर था, यही कारण है कि बसपा ने यहां पर अपनी ताकत लगा दी है, बसपा की मजबूती यहां भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस को नुकसान पहुचा सकती है। उत्तर पूर्व सीट पर पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 17.67 प्रतिशत मत मिले थे और बसपा के मतों में निगम चुनाव में मिले 13.8 मतों की अपेक्षा 3.87 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी और एक विधानसभा सीट पर भी बसपा ने कब्जा किया था। बसपा इस बार इस वृद्धि को बरकरार रखने की कोशिश में हैं। मुस्लिम बाहुल्य इस सीट पर बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी के रूप में हाजी दिलशाद को उतारा है। मुस्लिम मतदाताओं की संख्या यहां लगभग 22 प्रतिशत है, इसके अलावा ओबीसी व अनुसूचित जाति मतदाताओं की संख्या भी 30 प्रतिशत से अधिक है। बसपा यदि मुस्लिम मतदाताओं का ध्रुवीकरण कराने में कामयाब हुई तो यहां कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकती है।