शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

परमाणु करार पर सोनिया ने दिखाए तीखे तेवर

परमाणु करार व राष्ट्रहित के मुद्दे पर किसी के प्रमाणपत्रा की जरुरत नहीं: सोनिया
समझौते के मूड में नहीं है कांग्रेस,
चुनाव के लिए भी तैयार दिखाई दी सोनिया


संजय टुटेजा
नेल्लूर 17 जुलाई।

परमाणु करार मुद्दे पर संकट में घिरी कांग्रेस कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। यही नहीं पार्टी इस मुद्दे पर जनता के बीच जाने को भी तैयार दिखाई दे रही है। यूपीए चेयरमैन एवं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस परमाणु करार को देश के लिए लाभकारी बताते हुए वामदलों व करार का विरोध कर रहे अन्य दलों के प्रति तीखे तेवर दिखाए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि कांग्रेस को अपनी देशभक्ति, विदेश नीति एवं परमाणु करार के मुद्दे पर किसी से प्रमाणपत्रा की जरूरत नहीं है। यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी ने आज आन्ध्रपदेश के अपने दौरे के दौरान नेल्लूर के एसी सुब्बारेडडी स्टेडियम में कांग्रेस की एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए परमाणु करार मुद्दे पर पार्टी और सरकार का पक्ष रखा साथ ही यह संकेत भी दिये कि किसी भी परिणाम के लिए पार्टी तैयार है और समझौते के कतई मूड में नहीं है। अपने दौरे के दौरान कांग्रेस अध्यक्षा ने यहां प्रदेश के 1.86 करोड बीपीएल कार्ड धारकों के लिए राजीव आरोग्यश्री स्वास्थ्य योजना की शुरुआत की एवं कृष्णापट्टम बंदरगाह का उद्घाटन कर इस बंदरगाह को देश को समर्पित करने के साथ साथ आन्ध्रप्रदेश के प्रमुख नेता दामोदरन संजीवैय्या के नाम पर 800 मेगावाट के दो थर्मल प्वार प्लांट की नींव भी रखी। तपती धूप में स्टेडियम को खचाखच भरा देख कांग्रेस अध्यक्षा उत्साहित थी, जनसैलाब को देखकर उनके तेवर आक्रामक तो दिखाई दिये लेकिन उन्होंने वामदलों के प्रति कठोर शब्दों का प्रयोग करने से परहेज किया। उन्होंने अपने संबोधन में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्राी श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत का भी जिक्र किया और कांग्रेस द्वारा ही देश को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर साख प्रदान किये जाने की बात कही। उन्होने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को परमाणु कार्यक्रम दिया व स्वतंत्रा विदेश नीति दी। उन्होंने कहा कि जिस करार के जरिए हम देश में परमाणु प्लांट लगा सकते हैं और देश में आधुनिक तकनीक ला सकते हैं, उसी करार के मुद्दे पर वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। यह मुद्दा कांग्रेस व सरकार के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, यह सवाल जनता पूछ सकती है, यह करार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश को ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा चाहिए। उन्होंने कहा कि इस करार से देश के किसानों, अस्पतालों, उद्योगों व आम नागरिकों को पर्याप्त बिजली मिल सकेगी। देश में अभी कोयले व पानी से बिजली का उत्पादन हो रहा है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, मांग लगातार बढ रही है, यही कारण है कि आधुनिक परमाणु तकनीक व ईंधन की जरूरत है। जब सरकार यह तकनीक ला रही है तो सरकार को दोषी बताया जा रहा है और देश हित के खिलाफ जाने के आरोप लगाये जा रहे हैं। देश हित, परमाणु करार व स्वतंत्रा विदेश नीति पर न तो यह सरकार कोई समझौता करने वाली है और न ही कांग्रेस एैसा करेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को सर्वशक्तिमान बनाया और अब विदेश नीति, परमाणु करार ओर देश भक्ति पर कांग्रेस को किसी से प्रमाणपत्रा नहीं चाहिए। कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि कांग्रेस भेदभाव फैलानी वाली एवं नफरत फैलाने वाली राजनीति नहीं करती। कांग्रेस सभी को साथ लेकर चलने व देश को जोड़ने वाल राजनीति करती है। आज सबको जोड़ने वाली राजनीति की ही जरूरत है। भाजपा का नाम लिए बगैर भाजपा पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस उन दलों की तरह नहीं है जो नफरत फैलाने और घृणा के जरिए लोगों को बांटने की राजनीति करते हैं। उन्होंने आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्राी वाई एस राजशेखर रेड्डी की पीठ थपथपाते हुए कहा कि चार वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने आन्ध्रप्रदेश को विकास की दृष्टि से देश का नम्बर एक राज्य बना दिया है। यहां श्रमिकों, महिलाओं, किसानों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व दलितों के लिए अनेक योजनाओं की शुरुआत की गई है। उन्होने कहा कि आज देश का किसान निराश है, बेटी की शादी के लिए उसे भूमि गिरवी रखकर कर्ज लेना पडता है, कांग्रेस की इसी हालत को देखते हुए केन्द्र सरकार ने किसानों का 75 हजार करोड कर्ज माफ किया जिसका सबसे बडा लाभ आन्ध्रपदेश के किसानों को मिला। उन्होने कहा कि देश में कृषि ऋण पर ब्याज की दर 7 प्रतिशत है लेकिन आन्ध्रपेदश में यह दर 3 प्रतिशत है जिससे पता चलता है कि कांग्रेस की प्राथमिकता किसानों का हित है। उन्होंने बताया कि अनंतपुरम से शुरु की गई नेशनल रूरल इम्पाइमेंट गारंटी एक्ट की रोजगार योजना को अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने देश में 2000 से ज्यादा आबादी वाले कस्बों एवं गांवों को सडकों के जरिए शहरों से जोडने का निर्णय लिया है। उन्होंने बढती महंगाई का कारण अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल बताया। उन्होंने कहा कि यूपीए कार्यकाल में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें 35 डाल प्रति बैरल से 147 डालर प्रति बैरल होने के बावजूद कांग्रेस ने कैरोसीन की कीमत नहीं बढाई तथा रसोई गैस की दरों में भी राहत दी। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल में कई बार पेट्रोलियम पदार्थो की दरें बढाई।

गरीबों को महंगे अस्पतालों में मिलेगा निशुल्क उपचार

स्वीडन, यूके एवं यूएसए की तर्ज पर बनी राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना
सोनिया ने आन्ध्रप्रदेश के 1।86 करोड़ बीपीएल परिवारों को दिया तोहफा
एक दर्जन राज्यों ने दिखाई इस योजना में रूचि

संजय टुटेजा
नेल्लूर 18 जुलाई।
आन्ध्रप्रदेश के गरीबों के लिए यह सपना नहीं बल्कि हकीकत है। न तो अब उन्हें उपचार के अभाव में तिल तिल मौत के मूंह में जाना पड़ेगा और न ही सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाने होंगे। वह जिस निजी अस्पताल में चाहें, अपना उपचार व बड़े से बड़ा आपरेशन निशुल्क करा सकेंगे। स्वीडन, यूके एवं यूएसए की तर्ज पर इस तरह की योजना भारत में पहली बार आन्ध्रपदेश में लागू की गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस योजना के दूसरे चरण की शुरुआत कर प्रदेश के सभी1.86 करोड़ बीपीएल परिवारों को इस योजना में शामिल कर दिया है। राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की खासियत यह है कि इसमें प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार को अपनी पसंद के निजी अस्पताल में निशुल्क उपचार की सुविधा होगी। यह एक बीमा योजना है जिसका प्रीमियम गरीबों से नहीं लिया जायेगा बल्कि सरकार स्वयं प्रीमियम अदा करेगी। इस योजना में 533 किस्म की आपरेशन संबधी गंभीर व जटिल रोगों को शामिल किया गया है। छोटी से छोटी बीमारी होने पर भी गरीबों को घर बैठे ही प्राथमिक उपचार व एम्बूलेंस सुविधा हासिल हो जाये इसके लिए एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया है। इस नेटवर्क के तहत पीएचसी स्तर पर नियमित शिविर व उपचार से लेकर चिन्हित रोगियों को उनकी पसंद के अस्पतालों में बेहतर उपचार उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। मरीज को घर से अस्पताल तक लाने व उपचार के बाद घर तक छोड़ने का एम्बुलेंस खर्च भी मरीज को अदा नहीं करना पड़ेगा। सभी बीपीएल कार्ड धारकां को सफेद रंग के कार्ड प्रदान किये जा रहे हैं जिन पर उनके परिवार का फोटो व बीपीएल कार्ड का नम्बर अंकित है। यह कार्ड ही उनकी पहचान होगा और इसी कार्ड के आधार पर उन्हें कहीं भी जटिल से जटिल रोग का उपचार कराने की सुविधा होगी। इस योजना के पैनल में 300 से अधिक निजी व बड़े अस्पताल शामिल हैं। उपचार के बाद उपचार का पूरा बिल अस्पताल द्वारा बीमा कंपनी को भेजा जायेगा और रोगी से संतुष्टि के बाद ही बीमा कंपनी संबधित अस्पताल को भुगतान अदा करेगी। आन्ध्रप्रदेश में राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की शुरुआत यूं तो 1 अप्रैल वर्ष 07 में 13 जिलों में लागू की गई थी लेकिन तब यह एक प्रयोग भर था। भ्रष्टाचार की तमाम संभावनाओं को नकारते हुए इस योजना से जब गरीबों को भी निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज मिलने लगा तो इस योजना का विस्तार करने का निर्णय लिया गया। अब तक 3.86 करोड़ बीपीएल आबादी इस योजना का लाभ उठा चुकी है और इस योजना की सफलता से देश भर के लगभग एक दर्जन राज्य भी अब इसका अध्ययन कर इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आन्ध्रपदेश का यह दौरा चुनावी दौरा तो नहीं था अलबत्ता इस दौरे के दौरान प्रदेश के गरीब बीपीएल कार्ड धारक परिवारों को एक एैसी सौगात मिल गई है जो उनके लिए केवल सपना भर थी। इस तोहफे की खासियत यह है कि इसमें भ्रष्टाचार की कोई संभावना नहीं है और प्रदेश का प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार इस योजना का लाभ उठा सकेगा। निश्चित रूप से सोनिया गांधी ने प्रदेश के सभी 23 जनपदों के लिए राजीव गांधी आरोग्यश्री योजना के द्वितीय चरण की शुरुआत कर प्रदेश की गरीब जनता को सुलभ चिकित्सा का तो तोहफा दिया ही है साथ ही अपने दौरे को भी एैतिहासिक बना दिया है।

मंगलवार, 15 जुलाई 2008

अब सिख पंथ के सहारे सरकार बचाने की कोशिश

सिखों के जरिए बादल पर दबाव बनाने में जुटी कांग्रेस

सिख प्रधानमंत्राी के सम्मान के लिए पंजाब में होंगी जनसभायें

संजय टुटेजा
कांग्रेस ने अब सिख पंथ का सहारा लेकर सरकार को बचाने की कोशिश शुरु कर दी है। देश में एक सिख प्रधानमंत्राी की सरकार बचाने तथा पंथ का गौरव बनाये रखने के लिए बादल गुट के सिख सांसदों पर सिख संगत के जरिए दबाव बनाने की का प्रयास हो रहा है। इसके लिए पंजाब के प्रमुख शहरों में जनसभाएं आयोजित कर शिरोमणि अकाली दल के नेता व मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई गई है। संसद में शिरोमणि अकाली दल बादल गुट के 8 सांसद हैं। एनडीए का प्रमुख घटक होने के नाते यह माना जा रहा है कि शिरोमणि अकाली दल के सभी सांसद संसद में विश्वास मत के दौरान सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्राी व प्रमुख अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका दल एनडीए के साथ है और वह एनडीए के निर्णय का पालन करेगें। कांग्रेस को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्राी पद पर सिख समुदाय के डा।मनमोहन सिंह को पद पर बनाये रखने के लिए अकाली दल बादल या तो सरकार के समर्थन में मतदान कर सकता है या फिर अकाली दल के सांसद मतदान के दौरान संसद से अनुपस्थित रहकर सरकार की मदद कर सकते हैं लेकिन मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल के तेवर से कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। प्रकाश सिंह बादल का समर्थन हासिल करने के लिए कांग्रेस ने अब सिख समुदाय के जरिए बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई है। पंथ के सम्मान व पंथ के गौरव के मुद्दे पर बादल को घेरने की रणनीति बनाई गई है। इसके लिए सिख समाज में पार्टी के प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है कि वह बादल से अपील करने के साथ साथ पंथ की बैठकें बुलाकर पंथ को भी इस मुद्दे पर एकजुट करें ताकि बादल पर दबाव बन सके।इसी कड़ी में कल एक बड़ी सभा में कुछ संगठनों द्वारा अमृतसर में बुलाई गई है। अमृतसर की सभा के बाद मोगा व संगरुर में तथा संसद में मतदान से पूर्व चण्डीगढ़ में भी इस तरह की एक सभा बुलाई गई है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि पंजाब में सिख समाज की सिख प्रधानमंत्राी मुद्दे पर एक राय बना ली जाये तो शिरोमणि अकाली दल बादल पर दबाव डाला जा सकता है। इस दबाव में प्रकाश सिंह बादल भले ही कांग्रेस सरकार के पक्ष में मतदान न करें लेकिन यदि बादल अपने सांसदों को विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहने के निर्देश भी दें दें तो यूपीए सरकार की नैया आसानी से पार हो जायेगी।

सोमवार, 14 जुलाई 2008

अल्पसंख्यक महिलाओं में गुंजा वंदे मातरम

आल्पसंख्यक महिलाओं को वंदे मातरम का मंत्रा दे गये आडवाणी
भीड़ को देख आडवाणी सहित सभी नेता हुए गदगद
भाजपा को अछूत नहीं मानती अल्पसंख्यक महिलाये
महंगाई को लेकर कांग्रेस से दूर होती दिखाई दी
संजय टुटेजा
आज भाजपा के लिए शायद एक सुखद दिन था। अल्पसंख्यक महिलाओं के सम्मेलन में उमड़ी भीड़ ही आश्चर्यजनक नहीं थी, बल्कि पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी के स्वर में स्वर मिलाकर मुस्लिम महिलाओं का ‘भारत माता की जय’ और वंदे मातरम’ के नारे लगाना भी कम आश्चर्यजनक नहीं था। आडवाणी ने इस सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रप्रेम और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष शाहनवाज हुसैन द्वारा यहां मावलंकर सभागार में अल्पसंख्यक महिलाओं का सम्मेलन भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। सम्मेलन में उमड़ी मुस्लिम महिलाओं की भीड़ की को देखकर तो भाजपा के तमाम नेता गदगद थे ही, इस भीड़ के बहाने भाजपा नेताओं को मुसलमानों की दृष्टि में लगा अछूत का दाग मिटाने का मौका भी मिला। तमाम वक्ताओं ने मुस्लिम महिलाओं को यही समझाने का प्रयास किया कि भाजपा उनके लिए अछूत नहीं बल्कि उनकी हितैषी है। सम्मेलन में आई मुस्लिम महिलाएं भाजपा की नीतियों रीतियों से भले ही संतुष्ट हों या न हों लेकिन महिलाओं में बढ़ती महंगाई को लेकर आक्रोश था और यही आक्रोश उन्हें सम्मेलन तक खींच कर भी लाया। भाजपा के प्रति इस लगाव के बारे में जब राष्ट्रीय सहारा ने कुछ महिलाओं को कुरेदा तो रोजी रोटी, गरीबी, महंगाई आदि समस्याओं से जूझ रही इन महिलाओं का आक्रोश फूट पड़ा। बल्ली मारान निवासी रेहाना बोली ‘28 रुपये की आधा किलो दाल हो गई है अब खायें पियें या भूखे मरें, कहां जाये। ओखला निवासी वहीदा का गुस्सा इस तरह दिखाई दिया ‘जहां मर्जी तोड़ फोड़ कर देते है, न रहने देते हैं न खाने देते है, गरीबों की तो जान लेना चाहते हैं ये सरकार वाले। ये भाजपा वाले ही ठीक हैं। सम्मेलन में भाजपा के प्रधानमंत्राी पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी के प्रति महिलाओं में काफी आकर्षण दिखाई दिया। बुरका पहने एक महिला जब आडवाणी से उनका आटोग्राफ लेने बढ़ी तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे पीछे हटाया। आडवाणी ने सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पड़ाया और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। उन्होंने स्वयं महिलाओं से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगवाये। मुस्लिम महिलाओं के मुख से इस तरह के नारे सचमुच आश्चर्यजनक था। सम्मेलन के संयोजकों को भी यह अंदाजा नहीं रहा था कि इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं वहां तक पहुंचेगी इसलिए शायद सम्मेलन को एक सभागार में समेटा गया था लेकिन जितनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं सम्मेलन में पहुंची उससे इस सम्मेलन को एक सभागार में समेटना आयोजकों के लिए भी मुश्किल हो गया। हांलांकि अल्पसंख्यक मोर्चे का यह राष्ट्रीय सम्मेलन था लेकिन इसमें राजधानी दिल्ली की मुस्लिम महिलाओं की संख्या अधिक थी जिन्हें भाजपा के स्थानीय मुस्लिम नेता अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए वहां लाये थे।

शनिवार, 12 जुलाई 2008

निजीकरण की राह पर दिल्ली परिवहन निगम


आने वाली 2500 अन्य बसों की मरममत भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी
मरम्मत का कार्य निजी हाथों में देने से कर्मचारी हुए बेकार
छह डिपो किये टाटा के हवाले
अब तक खरीदी गई सभी 650 लोफ्लोर व 25 वातानुकूलित बसों के लिए हुआ है एएमसी कान्ट्रेक्ट
छह डिपो के एक हजार से अधिक कर्मचारी हुए प्रभावित
मरम्मत एग्रीमेंट के अनुसार बसों 95 प्रतिशत उपलब्धता देगी कम्पनी
12 वर्ष तक कम्पनी करेगी बसों की मरम्मत

शर्तो का पालन न करने पर है कम्पनी पर जुर्माने का प्रावधान
मरम्मत निजी हाथों में सौंपने से डीटीसी को प्रति बस 15 लाख रुपये की सालाना बचत
डीटीसी वर्कशाप में मरम्मत कराना पड़ता है महंगा
कर्मचारी संगठन हो रहे हैं लामबंद


संजय टुटेजा
दिल्ली परिवहन निगम धीरे धीरे निजीकरण के रास्ते पर बढ़ रहा है। निगम के के लिए खरीदी गई 650 लोफ्लोर बसों व 25 वातानुकूलित बसों की मरम्मत का कार्य भी बस निर्माता कम्पनी टाटा को सौंपे जाने के बाद अब जल्द ही खरीदी जाने वाली अन्य लगभग ढाई हजार बसों की मरम्मत भी इसी तर्ज पर निजी हाथों में सौंपे जाने की तैयारी है। पहली खेप में खरीदी गई बसों की मरम्मत के लिए निगम ने अपने छह डिपो भी टाटा को सौंप दिये हैं जिससे कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ रहा है। दिल्ली परिवहन निगम के पास लगभग छह हजार तकनीकी कर्मचारी हैं जो बसों की मरमम्त आदि के लिए निगम की कार्यशालाओं में तैनात हैं। इसके अलावा प्रत्येक कार्यशाला में एक रिकवरी वैन व एक स्टोर वैन भी है। बसों की मरम्मत के लिए पर्याप्त कर्मचारी व तमाम संसाधन होने के बावजूद दिल्ली परिवहन निगम नई आने वाली बसों की मरम्मत का कार्य पूरी तरह निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। निगम ने पहली खेप के रूप में 525 लोफ्लोर बसों की खरीद का आर्डर दिया था जिसे बढ़ाकर बाद में 650 कर दिया गया। यह सभी बसें टाटा मोटर से खरीदी गई हैं और इसी कम्पनी के साथ ही इन बसों की मरम्मत का भी 12 वर्ष का एग्रीमेंट किया गया है। मरम्मत की राशि प्रति बस प्रति किलोमीटर के हिसाब से निश्चित है। मतलब जितने किलोमीटर बस चलेगी उसी अनुपात में मरम्मत करने वाली कम्पनी की आय भी बढ़ेगी। पहले वर्ष मरम्मत की यह राशि प्रति किलोमीटर 1।60 रुपये है जो प्रत्येक वर्ष बढ़ते हुए 12 वें वर्ष में बढ़कर 12 रुपये प्रति किलोमीटर हो जायेगी। नतीजतन 12 वें वर्ष में निगम की बस के एक किलोमीटर चलने पर 12 रुपये मरम्मत कर्ता कम्पनी को भुगतान मिलेगा। आगामी राष्ट्रकुल खेलों से पूर्व निगम के बेड़े में 2500 अन्य लोफ्लोर व सेमी लोफ्लोर बसें शामिल होनी है। निगम का प्रबंधन निगम के बेड़े में आने वाली सभी बसों की मरम्मत का कार्य निर्माता कम्पनी को ही देने के पक्ष में है और इसकी तैयारी की जा रही है। निगम के इस रूख को देखते हुए कर्मचारी संगठनों में रोष है और कर्मचारी संगठन भी आंदोलन के मूड में हैं। दिल्ली परिवहन मजदूर सेघ के महामंत्राी रामचन्द्र होलम्बी कहते हैं कि सरकार धीरे धीरे निगम को बेच रही है। कर्मचारियों के हितों की उपेक्षा की जा रही है और निजी कंपनियों को काम सौंप कर कर्मचारियों को बेकार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भविष्य में खरीदी जाने वाली बसों की मरममत की दर भी बढ़ायी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि निगम ने यह रवैया न बदला तो बड़ा आंदोलन होगा।

छह डिपो किये टाटा के हवाले
दिल्ली परिवहन निगम ने निगम के बेड़े में शामिल हो रही नई लोफ्लोर बसों व वातानुकूलित बसों की मरम्मत के लिए अपने छह डिपो अगले 12 वर्ष के लिए टाटा मोटर के हवाले कर दिये हैं। डीटीसी द्वारा पहले चरण में खरीदी गई 650 लोफ्लोर बसों में से अब तक 411 बसें निगम को प्राप्त हो चुकी हैं। इन बसों की मरमम्त के लिए राजधानी के चारो दिशाओं में छह डिपो टाटा को दिये गये हैं। इन डिपो में सुभाष पैलेस डिपेा, हरिनगर नगर द्वितीय डिपो, मायापुरी डिपो, हसनपुर डिपो, सुखदेव विहार डिपो तथा रोहिणी प्रथम डिपो शामिल हैं। इन डिपो में तैयार निगम के तकनीकी कर्मचारियों को वहां से अन्य डिपो में स्थानान्तरित कर दिया है। डीटीसी के पास कुल लगभग 6000 एैसे कर्मचारी हैं जो कार्यशालाओं में तैनात हैं, इनमें से लगभग एक हजार कर्मचारी उन डिपो में कार्यरत थे जो टाटा को दिये गये हैं। भले ही इन सभी कर्मचारियों को अन्य डिपो में भेज दिया गया है लेकिन इनमें अधिकतर खाली हैं क्योंकि सभी डिपो में मरम्मत कर्मचारी पहले से ही तैनात हैं।

मरम्मत निजी हाथों में देने से घाटा होगा कम: नेगी
दिल्ली परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक रमेश नेगी का कहना है कि मरम्मत निजी हाथों में देने से निगम को नुकसान नहीं बल्कि फायदा है। निगम के प्रबंध निदेशक श्री नेगी का कहना है कि निगम में तकनीकी कर्मचारियों के वेतन तथा वर्कशाप के अन्य खर्चो को देखा जाये तो प्रति किलोमीटर प्रति बस औसतन 8 रुपये किलोमीटर खर्च आता है लेकिन मरम्मत का कार्य बस आपूर्ति करने वाली कम्पनी को ही देने से यह औसत खर्च 5।45 पैसे प्रति बस प्रति किलोमीटर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि इस हिसाब से निगम को एक बस पर लगभग डेढ़ लाख की बचत मरम्मत में प्रति वर्ष होगी और 12 वर्षो में एक बस पर 15 लाख रुपये की मरम्मत खर्च में बचत निगम को होगी। उन्होंने बताया कि निर्माता कम्पनी को ही मरम्मत का कार्य देने से एक फायदा यह होगा कि 95 प्रतिशत बसें हमेशा बिल्कुल ठीक होंगी क्योंकि एग्रीमेंट के अनुसार कम्पनी 95 प्रतिशत बसों की उपलब्धता निगम को देगी, एैसा न करने पर निगम उस कम्पनी पर जुर्माना कर सकता है। उन्होंने बताया कि निगम कर्मचारियों द्वारा मरम्मत होने पर अधिकतर बड़ी संख्या में बसों की मरम्मत समय पर नहीं हो पाती क्योंकि अनेक बार स्टोर में सामान नहीं होता और सामान खरीदने की प्रक्रिया लंबी होने के कारण खरीद में देरी हो जाती है जिससे बसें खराब होकर डिपो में खड़ी रहती हैं।

रविवार, 6 जुलाई 2008

लंका में आज भी स्थित हैं रामायाण कालीन स्थान

शोध में प्रमाणिक साबित हुई हैं रामायणकालीन घटनाएं
अशोक वाटिका में होगा रामकथा का आयोजन
नई दिल्ली 5 जुलाई।
करोड़ो लोगों के आस्था के प्रतीक भगवान राम के अस्तित्व को लेकर भले ही सवाल उठाये जाते रहे हों लेकिन लंका में आज भी रामायण कालीन स्थान मौजूद हैं और शोध में उक्त स्थानों पर रामायणकालीन घटनाएं प्रमाणिक साबित हुई हैं। एैसे ही एक स्थान ‘अशोक वाटिका’ पर एक भव्य मंदिर के निर्माण के बाद अब वहां श्रीराम कथा का आयोजन किया जा रहा है।
श्रीलंका में रामायण कालीन स्थानों के शोध में लगी विश्व स्तरीय 22 शोधार्थियों की टीम ने अपने शोध में न केवल रामायण कालीन अशोक वाटिका, सीता माता के अग्नि परीक्षा के स्थान, विभिषण के राज्याभिषेक का स्थान, रावण के गुप्त भूमिगत मार्ग आदि अनेक प्राचीन स्थानों का पता लगाया है बल्कि वहां रामायण कालीन घटनाओं के प्रमाण भी जुटाये हैं। इस टीम के प्रमुख सदस्य अशोक कैथ ने श्रीलंका में किये गये शोध से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि शोध को प्रमाणिक करने में जर्मन सरकार का उन्हें विशेष सहयोग रहा है।
उन्होंने बताया कि शोध के दौरान उन्हें वह स्थान भी मिला है जहां से रावण पुष्पक विमान से उड़ान भरता था, इसके अलावा वह पर्वत जहां रावण का शव अंतिम दर्शन के लिए रखा गया था, वह स्थान जहां श्री हनुमान जी द्रोण पर्वत से संजीवनी लेने गये तो आते समय उस संजीवनी का कुछ भाग जहां गिरा वह स्थान आज भी वहां है। उन्होंने बताया कि रावण के पुराने किले के अवशेष माता सीता द्वारा स्थापित विश्व का एक मात्रा शिवलिंग आदि अनेक स्थान एैसे हैं जो रामायण काल से जुड़े हैं। उन्होंने कहा कि अब तक कुल 51 स्थान खोजे गये हैं उनका शोध अभी भी जारी है तथा अनेक अन्य स्थानों की भी खोज की जा रही है।
उन्होंने श्रीलंका के साथ सांस्कृति आदान प्रदान की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि शोध के दौरान खोजी गई अशोक वाटिका में एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है जहां 25 अगस्त से 30 अगस्त तक श्री रामकथा का निमंत्राण त्रिवेणी सेवा मिशन के कथाकार भाई अजय को दिया गया है। इस दौरान धर्मयात्रा महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मांगेराम गर्ग ने कहा कि रामायणकालीन तीर्थ स्थानों के मिलने के बाद अब उन स्थानों पर भी तीर्थयात्रा की शुरुआत होगी और इस यात्रा में अनेक संत, महात्मा व तीर्थ यात्राी शामिल होंगे।

शनिवार, 5 जुलाई 2008

हाईप्रोफाइल होता सेक्स कारोबार

संजय टुटेजा

व्हाइट स्किन, रेड स्किन, ब्लैक स्किन के अलग अलग हैं दाम
मोबाइल और इंटरनेट से होता है सम्पर्क
पोर्न वेबसाइटस के जरिए अपने नेटवर्क को मजबूत बनाते हैं दलाल

  • बड़ी कोठियां, फार्म हाऊस और बड़े होटल हैं एशगाह
  • टुरिस्ट वीजा पर आती हैं विदेशी कालगर्ल
  • उजबेकिस्तान, अजरबेजान, रशिया, नेपाल व भूटान से काल गर्ल लाते हैं ट्रेवल एजेंट
  • दलालों से होता है मासिक कान्ट्रेक्ट
  • बदला है दलालों का भी रूप रंग, दलाल भी हैं हाई प्रोफाइल
  • मंहगी कारों से होती है कालगर्ल की डिलिवरी
  • बातचीत में भी होता है फर्राटेदार अंग्रेजी का प्रयोग
  • नये ग्राहकों को जल्दी नहीं मिलती एण्ट्री
  • दलालों का है बड़ा नेटवर्क
  • बड़े उद्योगपति और बड़ी कंपनियों के अधिकारी है नियमित ग्राहक
  • चलता है साथ साथ नशे का कारोबार भी
  • पुलिस से बचने के लिए बदले पुराने तौर तरीकेपुलिस के सामने भी हैं कई मुश्किलें
संजय टुटेजा
नई दिल्ली 1 सितंबर।
हाईप्रोफाइल होती राजधानी में अब सेक्स का कारोबार भी हाईप्रोफाइल हो रहा है। इस हाईप्रोफाइल सेक्स कारोबार में दलालों, कालगर्ल और ग्राहकों के बीच संपर्क का माध्यम अब मोबाइल और इंटरनेट है। इस धंधे के दलाल भी बड़ी कंपनियों के एक्जक्यूटिव सरीखे हाईप्रोफाइल हैं और इन दलालों का नेटवर्क केवल राजधानी तक ही सीमित नहीं बल्कि देश के तमाम शहरों में दलालों के तार हैं। महंगी कारों के माध्यम से कालगर्ल की डिलीवरी करने वाले यह दलाल ग्राहक की मांग पर किसी भी शहर में देशी व विदेशी कालगर्ल उपलब्ध कराने में सक्षम हैं। ब्लेक स्किन, व्हाइट स्किन और रेड स्किन आदि हर तरह का स्वाद ग्राहकों को कीमत देने पर उपलब्ध होता है। राजधानी में गली मौहल्लों से सिमट कर यह धंधा अब बड़ी कोठियांे, फार्म हाऊस और बड़े होटलों तक पहुंच गया है। मौज मस्ती और अय्याशी के लिए अब किसी रेडलाइट एरिया या किसी पतली गली के किसी कोठे पर जाने की जरूरत नहीं, बस मोबाइल पर एक काॅल और इंटरनेट पर एक क्लिक में मन चाही कालगर्ल उपलब्ध है। हालांकि मजदूर वर्ग, ड्राईवर वर्ग व लोप्रोफाइल लोगों के लिए अब भी रेडलाइट एरिया की गलियां खुली हैं लेकिन सेक्स के खेल में डूब रहे हाईप्रोफाइल लोगों ने इस धंधे को भी हाईप्रोफाइल बना दिया है। अब तक सेक्स के इस कारोबार में गरीब व मजबूर लड़कियों की तादाद ही देखी जाती थी लेकिन अब इस कारोबार में न केवल विदेशी लड़कियां भी शामिल हैं बल्कि माडल, कालेज गर्ल और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की महत्वाकांक्षा रखने वाली मध्यमवर्ग की लड़कियों की संख्या बढ़ रही है। पिछले दिनों विदेशी कालगर्ल के एक राकेट का पर्दाफाश कर आधा दर्जन विदेशी कालगर्ल को पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी के अनुसार अब कालगर्ल और दलालों की पहचान मुश्किल हो गई है क्योंकि दलालों और कालगर्ल की वेशभूषा, पहनावा व भाषा हाईप्रोफाइल है और उनका काम करने का ढंग भी पूरी तरह सुरक्षित है। पुलिस सूत्रों के अनुसार राजधानी में उज्बेकिस्तान, अजरबेचान व रशिया से ट्रेवल एजेंटों के माध्यम से टुरिस्ट वीजा पर लड़कियां आती हैं और बड़े उद्योगपतियों, अधिकारियों व विदेशी मेहमानों की मांग पूरी करती हैं। कालगल्र्स और दलालों का नेटवर्क दो स्तरों पर है, एक अत्यंत हाईप्रोफाइल है जिसमें माडल, फेशनेबल, फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली और आधुनिक वेशभूषा पहनने वाली कालगर्ल शामिल हैं और दूसरा नेटवर्क महाराष्ट्र, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, नेपाल और भूटान से लाई गई लड़कियों का है। ग्राहक की मांग के अनुसार ही कालगर्ल उपलब्ध कराई जाती है। कालगर्ल को भुगतान भी अब मासिक वेतन या फिर कान्ट्रेक्ट के आधार पर किया जाता है। अमूमन बिहार नेपाल, भूटान, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल आदि से लाई जाने वाली लड़कियों को दो से तीन लाख रुपये में छह माह के ठेके पर लाया जाता है जबकि हाईप्रोफाइल कालगर्ल को लाख से दो लाख रुपये प्रति माह की निश्चित रकम दलाल की ओर से अदा की जाती है।समूचा कारोबार इंटरनेट या मोबाइल से ही चलता है और किसी भी ग्राहक को दलाल या कालगर्ल का पता नहीं दिया जाता। जगह की व्यवस्था करने का रिस्क दलाल अब कतई नहीं लेते, ग्राहक को स्वयं करनी होती है, और किसी भी नये ग्राहक को कालगर्ल की डिलीवरी नहीं दी जाती। ग्राहक को एक निश्चित स्थान पर कालगर्ल की डिलीवरी किसी मंहगी कार के माध्यम से कर दी जाती है और फिर वहां से ग्राहक अपने वाहन से ही कालगर्ल को मनचाहे स्थान पर ले जाता है। अमूमन यह स्थान बड़े होटल, बड़ी कोठियां या फिर फार्महाऊस होते हैं। सभी दलालों और कालगर्ल के नियमित ग्राहक हैं और दलाल नियमित ग्राहकों के पास ही कालगर्ल भेजना पसंद करते हैं। यह दलाल इंटरनेट की पोर्न वेबसाइटों के जरिए एक दूसरे से सम्पर्क साध कर अपने नेटवर्क को मजबूत बनाते हैं। नार्थजोन के पुलिस उपायुक्त देवेश चंद श्रीवास्तव के अनुसार कालगर्ल सीधी डील नहीं करती और दलाल भी केवल विश्वसनीय डील ही करते हैं, किसी भी कीमत पर किसी नये ग्राहक से डील नहीं की जाती, पुराने सम्पर्क के आधार पर ही डील की जाती है। यही कारण है कि पुलिस की पकड़ से बाहर रहते हैं। उन्होंने बताया कि दलालों के अपने कोडवर्ड हैं जिनका इस्तेमाल कर वह ग्राहकों से बातचीत करते हैं। वह कहते हैं कि दलालों और कालगल्र्स का ट्रेंड बदल जाने के कारण ही पुलिस को इन तक पहुंचने के लिए मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

व्हीस्की का शौक, नशा ही नहीं स्टेटस भी

संजय टुटेजा

राजधानी के मध्यम वर्ग में बढ़ता व्हीस्की का शौक

  • वर्ष में 70 लाख क्रेट व्हीस्की पीकर झूमे दिल्ली वासी
  • जुलाई और नवंबर माह में हुई सर्वाधिक बिक्री
  • इक्नाॅमी रेंज की व्हीस्की है पहली पसंद
  • रम, जिन, स्काॅच, वोडका और ब्रांडी फीके हैं व्हीस्की के सामने
  • डायरेक्टर ब्लैक, रायल स्टेग, बलंडर प्राइड, टीचर और ब्लैक डाॅग के प्रति है दीवानगी
  • औसतन 250 रुपये प्रति बोतल कीमत की व्हीस्की बिकती है सर्वाधिक
  • जेब देखकर ब्रांड चुनते हैं व्हीस्की के शौकीन
  • सर्दी हो या गर्मी मौसम का मोहताज नहीं है व्हीस्की का नशा
    महंगी और आयातित व्हीस्की से दस गुना अधिक बिकती है देसी ब्रांड
  • 42.8 प्रतिशत तक होता है व्हीस्की में एल्कोहल

चीपर रेंज के ब्रांड
  • कीमत ब्रांड100 रुपये: 24 क्रेट, स्टड, हीरो न.1सर्वाधिक पंसद: 24 क्रेट ब्रांड

इक्नाॅमी रेंज के ब्रांड
  • 140-150 रुपये ः बोनी, बिन्नी,एवरीडे गोल्ड सर्वाधिक पसंद: बिन्नी
  • 180 रुपये ः बैग पाइपर, एरेस्ट्रोक्रेट, डायरेक्टर, 8 पीएम सर्वाधिक पसंद : डायरेक्टर ब्रांड
  • 200 से 250 रुपये: डायरेक्टर स्पेशल ब्लैक,एरेस्ट्रोक्रेट प्रीमियम (एसीपी), मैकडाॅल, व्हाइट चारों ब्रांड हैं शौकीनों की पसंद
  • 250 से 300 रुपये: रेड नाइट, मास्ट स्ट्रोक, रायल स्टैग, रोयल मिस्ट सर्वाधिक पसंद : रायल स्टैग
  • 400 से 500 रुपये: रायल चेेलेंज (आरसी), सिग्नेचर, बलंडर प्राइडसर्वाधिक पसंद ः बलंडर प्राइड, रायल चेलेंज
  • 500 से 600 रुपये : एंटी क्यूटी, रेयर, एंटी क्यूटी ब्लू, हैग,
  • जेब के हिसाब से करते हैं चुनाव
  • 800 से 900 रुपये: वेट 69, ओल्ड स्मगलर,
  • 900 से 1000 रुपये: टीचर, हडंर्ड पाइपर, ब्लैक एण्ड व्हाइट,, ब्लैक डाॅग 8 यो, ग्लेन ड्रमोंड,सर्वाधिक पसंद : ग्लेन ड्रमोंड
  • 1500 रुपये: टीचर्स 50

आयातित ब्रांड
  • 3960 ः जाॅनी वाकर गोल्डन लेबल
  • 3500 रुपये : ग्लेन फाॅरक्लैस इसमें होती है एल्कोहल की मात्रा अधिक
  • 2800 रुपये डलमोर
  • 2700 रुपये जूरा, व्हाइट एण्ड मैके
  • 2290 जानीवाकर ब्लैक लेबल
  • 1250 रुपये फेमस ग्राॅस
  • 1220 रुपये जानीवाकर रेड लेबल

    नई दिल्ली 9 मई।
इसे दिन भर की थकान मिटाने का बहाना कहें या फिर जमाने का चढ़ता रंग, व्हीस्की का जादू हर वर्ग में सर चढ़ कर बोल रहा है, अब इस रंग में अपनी शाम को रंगीन बनाना आम बात हो गई है, जैसी जेब वैसा ब्रांड, जाम से जाम टकराने के लिए व्हीस्की के शौकीन अब डांस पार्टियों के मोहताज नहीं, न बार की जरूरत और न क्लब की चाहत, शाम होते ही खुदबखुद महफिल सज जाती है। इन महफिलों की शान बन गई व्हीस्की अब शौकीनों के लिए लत या शौक ही नहीं बल्कि स्टेटस सिंबल भी है। लत और स्टेटस के नशे में पिछले एक वर्ष में ही लगभग 70 लाख क्रेट व्हीस्की की बोतलें महफिलों और पार्टियों की शान बन गई।
व्हीस्की का नशा, अब केवल लत या शौक ही नहीं बल्कि स्टेटस बन रहा है। केवल डांस पार्टी, बर्थ डे पार्टी, मैरिज पार्टी में झूमने वाली व्हीस्की की बोतलें अब बार या दुकानों से निकल कर मध्यम वर्गीय परिवारों के फ्रिज में पहुंच रही हैं। कोई थकान मिटाने के बहाने व्हीस्की की बोतल खोलता है तो कोई पार्टियों में थिरकने की चाहत लेकर इस नशे में डूबता है। एक बड़ा वर्ग एैसा भी है जो अपनी मित्रा मंडली में अपना स्टेटस बनाने लिए लिए व्हीस्की का सेवन अपनी शान समझता है। आबकारी विभाग के आंकड़े बताते हैं कि व्हीस्की की मांग पूरा वर्ष रहती है। सर्दी हो या गर्मी या फिर सावन की बहार, व्हीस्की की मांग हर मौसम में रहती है। पिछले वर्ष के आंकड़े बताते हैं कि जहां भीषण गर्मी में जुलाई माह मे इकनाॅमी रेंज की 250 रुपये कीमत वाली व्हीस्की के 314668 क्रेट बिके तथा सर्दी के मौसम में नवंबर माह में भी 330344 क्रेट बिके। लगभग यही अनुपात इससे महंगी व्हीस्की का भी है, इससे पता चलता है कि व्हीस्की की मांग पर मौसम का कोई खास असर नहीं होता। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष में सबसे ज्यादा बिक्री इक्नाॅमी रेंज की 250 रुपये की कीमत वाली व्हीस्की की हुई इस वर्ग के लगभग 34 लाख क्रेट बिके जबकि मीडियम कीमत में 250 से 400 रुपये वाली व्हीस्की के लगभग 4 लाख क्रेट बिके। प्रीमियम वर्ग में 400 से 600 रुपये वाली व्हीस्की के लगभग पौने दो लाख क्रेट जबकि 600 रुपये से अधिक स्काॅच ब्रांड के मात्रा लगभग 40 हजार क्रेट बिके। इन आंकड़ों से पता चलता है कि मध्यम वर्ग में व्हीस्की का जुनून ज्यादा है। ब्रांडी के लगभग 10 हजार क्रेट, जिन के लगभग 14 हजार क्रेट तथा रम के लगभग 50 हजार क्रेट बिके।
व्हीस्की की ट्रेडिंग करने वाली एक कम्पनी के सेल्स एक्जक्यूटिव तरूण लांबा बताते हैं कि व्हीस्की के शोकीन लोगों में डायरेक्टर ब्लैक, रायल स्टेग, बलंडर प्राइड, टीचर व ब्लैक डाॅग का आकर्षण ज्यादा है। वह बताते हैं कि अधिेकतर ग्राहक 250 रुपये तक की कीमत की शराब ही पसंद करते हैं। व्हीस्की के प्रति इस जुनून को भुनाने के लिए अब बड़ी कंपनियां अंतराष्ट्रीय सितारों के जरिए अपने ब्रांड का प्रचार कर रही हैं।
इसी हफ्ते प्रमुख ब्रांड ब्लेक डाॅग 8 यो ने अपने प्रचार के लिए राजधानी में अंतराष्ट्रीय गायक स्टीफन कबाकोस को बुलाकर उनका शो आयोजित किया। उनके इस शो के बाद अन्य कंपनियां भी अपने ब्रांड के प्रचार की रणनीति बनाने में लगी हैं। उच्च मध्यम वर्ग में व्हीस्की के आकर्षण को देखते हुए अब कंपनियां भी इस वर्ग को लुभाने का प्रयास कर रही हैं।

शरीर की भूख में पति पत्नी के रिश्ते हुए तार तार


शाम को रंगीन करने के लिए होता वाइफ स्वेपिंग का खेल

  • पत्नी की अदला बदली के इस खेल का बढ़ रहा है चलन
  • निरंतर बढ़ रहे हैं वाइफ स्वेपिंग क्लब
  • इंटरनेट है वाइफ स्वेपिंग का बड़ा बाजार
  • होटल, फार्म हाऊस व गेस्ट हाऊस में होती हैं पार्टियां
  • उच्च धनाड्य वर्ग में स्टेटस सिम्बल है वाइफ स्वेपिंग
  • मल्टी नेशनल कंपनियों के कर्मचारी, इंजीनियर, डाक्टर हैं इस खेल के शौकीन
  • अब महिलाएं भी स्वेच्छा से शामिल होने लगी हैं इस खेल में
  • रिश्तो की प्राथमिकता हुई खत्मनैतिकता का हो रहा है ह्रास
  • टूट रहे हैं सामाजिक नियम,
  • मनोचिकित्सकों की राय में ये है मानसिक रोग
    इस खेल में नहीं होता पुलिस या छापे का डर

क्लब में शामिल होने के लिए हैं ये जरूरी शर्ते

  • क्लब का सदस्य शादीशुदा होना जरूरी
  • सदस्यता से पूर्व पति व पत्नी दोनों का एचआईवी टेस्ट है जरूरी
  • आयु 20 से 30 वर्ष के बीच हो
  • उच्च वर्ग से होना चाहिए दम्पत्ति
  • पहली मुलाकात में नहीं होगी अदला बदली
  • अदला बदली से पहले होती हैं दो तीन साधारण मुलाकातें
  • बर्थ कण्ट्रोल की जिम्मेदारी होगी महिला पर


इस खेल में हैं अनेक खतरे

  • साथी की पत्नी से बन जाते हैं भावनात्मक संबध
  • पति पत्नी के बीच बढ़ने लगती है दूरियां
  • यौन रोग का रहता है खतरा
  • परिवार में रुचि हो जाती है कम
  • बच्चों की नजर में सम्मान होता है कम

संजय टुटेजा
नई दिल्ली 22 मई।
उनके लिए न सात फेरों की कोई मर्यादा है और न ही सामाजिक नियमों व नैतिकता का कोई डर। बस यौन पिपासा और भोजन की तरह रोजाना नये नये स्वाद चखने की प्रवृति में होने लगा है पत्नियों की ही अदला बदली का खेल। इस खेल में अब पत्नियां भी स्वेच्छा से शामिल होने लगी है और अपने पतियों के साथ साथ स्वयं भी अदला बदली का मजा ले रही हैं। उच्च धनाड्य वर्ग में वाइफ स्वेपिंग नाम से प्रचलित इस खेल के शौकीन लोगों में बड़े चिकित्सक और इंजीनियर भी शामिल हैं और मल्टी नेशनल कंपनियों में लाखों का वेतन पाने वाले मैनेजर भी। इंटरनेट इस खेल के शौकीन लोगों को आपस में मिलाने का एक सशक्त माध्यम बन गया है।
वाइफ स्वेपिंग यानी पत्नियों की अदला बदली को समाज के सभ्य नागरिक भले ही हेय दृष्टि से देखें लेकिन उच्च धनाढ्य लोगों का एक बड़ा वर्ग इसे जिंदगी को जीने का अपना ढंग मानता है और इस खेल में कुछ भी गलत नहीं देखता। अब तो वाइफ स्वेपिंग के लिए रोजाना पार्टियां और मौज मस्ती आम बात हो गई है। एक दशक पूर्व तक भारत में पत्नियों की अदला बदली के बारे में कल्पना भी नहीं की जाती थी लेकिन पिछले कुछ वर्षो में ही यह खेल केवल महानगरों में ही नहंीं बल्कि छोटे शहरों में भी खेला जाने लगा है।
राजधानी और आस पास के नगरों में इस वर्ग के अनेक एैसे क्लब हैं जो नियमित रूप से प्रति सप्ताह या प्रति पखवाड़े मिलकर पार्टियां आयोजित करते हैं और पत्नियों की अदला बदली कर अपनी शाम को रंगीन करते हैं। इस तरह की पार्टियांे में शराब और संगीत के अलावा अशलील चुटकलों का भी दौर चलता है और फिर लाटरी निकालकर पत्नियों का चुनाव किया जाता है। कुछ पार्टियों में पत्नियों का चुनाव करने के लिए कार की चाबियों को एक बाउल में डाल दिया जाता है और फिर आंखे बंद करके सभी बारी बारी से कार की चाबियां उठाते हैं, जिसके हिस्से में जिस सदस्य की कार की चाबी आती है, वह उसी सदस्य की पत्नी के साथ रात बिताता है। इसके अलावा पत्नियों को चुनने के कुछ अन्य तरीके भी अपनाये जाते हैं। इस तरह की पार्टियां या तो फार्म हाऊसों या फिर बड़े होटलों या गैस्ट हाऊसों में आयोजित की जाती हैं। कहीं से कोई शिकायत न मिलने के कारण पुलिस भी कोई कार्रवाई करने में असमर्थ होती है।
पुरुषों की यौन पिपासा से शुरु हुए खेल में अब उनकी पत्नियां भी रुचि लेने लगी हैं। दक्षिणी दिल्ली निवासी एक प्रमुख चिकित्सक की पत्नी नीतू (परिवर्तित नाम) बताती है कि शादी के तीन माह बाद उसके पति उसे इस तरह की एक पार्टी में ले गये। पार्टी के बाद रात्रि में उसके कमरे में जब पति के स्थान पर पति का दोस्त आया तो वह हैरान रह गई, बाद में उसी दोस्त से उसे पता चला कि उसका पति उस दोस्त की पत्नी के साथ दूसरे कमरे में है, इसका विश्वास दिलाने के लिए दोस्त ने अपने मोबाइल में अपनी पत्नी और उसके पति का एक फोटो भी मस्ती करते हुए दिखाया। नीतू के अनुसार जब पति को ही बुरा नहीं लगता तो फिर वह क्या कर सकती है, इसलिए अब वह भी इन पार्टियों का मजा लेती है। समाजशास्त्राी व मनोचिकित्सक इसे मानसिक रोग तथा रिश्तों की गंभीरता में आ रही गिरावट का नतीजा मानते हैं।
प्रमुख मनोवैज्ञानी व समाजशास्त्राी डा.अरुणा ब्रुटा के अनुसार समाज की प्रवृति बदल रही है और सभी रिश्ते अब अपने फायदे के लिए बनाये जा रहे हैं, न तो रिश्तो की कोई गंभीरता है और न ही मर्यादा है। सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए जो मूल जरूरत है वही समाप्त हो रही है नतीजतन सामाजिक नियम टूट रहे हैं और इन्सान जानवर बनता जा रहा है। डा.ब्रूटा के अनुसार जो काम पहले चोरी छिपे होते थे वह खुले आम होने लगे है जिसके नतीजे निश्चित रुप से खतरनाक होंगे। वह कहती हैं कि यह एक प्रकार का मनोरोग है जिसमें व्यक्ति का अपनी इन्द्रियों पर नियंत्राण समाप्त हो जाता है।

शुक्रवार, 4 जुलाई 2008

हुरियत के विरोध को उचित नहीं मानते मुस्लिम बुद्धिजीवी व उलेमा

  • गलत मानते हैं जमीन को वापिस लेना
  • सभी धर्मो व धार्मिक मान्यताओं का आदर हो
  • आजाद सरकार ने दिया साम्प्रदायिक ताकतो ंको मुद्दा

संजय टुटेजा
नई दिल्ली 4 जुलाई।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा दी गई जमीन का भले ही हुरियत और वहां के अन्य संगठनों ने विरोध किया हो लेकिन मुस्लिम उलेमा और बुद्धिजीवी इस विरोध को उचित नहीं मानते। एक बार जमीन आवंटित कर वापस लेने को वह सरकार का गलत कदम बताते हैं। उनका कहना है कि जम्मू कश्मीर सरकार ने जमीन वापिस लेकर साम्प्रदायिक ताकतो को राजनीति करने का मौका दे दिया है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा जमीन आवंटित किये जाने से जो आग कश्मीर की वादियों में अलगाववादी ताकतों व हुरियत आदि संगठनों द्वारा लगाई जा रही थी वही आग अब जमीन वापस लिए जाने के बाद देश भर में फैलती दिखाई दे रही है। विभिन्न मुस्लिम उलेमा व बुद्धिजीवी इसके लिए जम्मू कश्मीर सरकार को तो दोषी मानते ही हैं साथ ही केन्द्र सरकार के रवैये से भी नाखुश हैं। उनका कहना है कि तीर्थ यात्रियों जमीन उपलब्ध कराने में कोई हर्ज नहीं है और इस जमीन को लेकर किया गया विरोध किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। जामिया मिल्लिया में इस्लामिक स्टडीज के विभागाध्यक्ष प्रो.अख्तर उल वासे का कहना है कि इस तरह के मसलों पर बवाल नहीं होना चाहिए। यदि कोई सुविधा धर्म स्थलों या तीर्थ यात्रियों को दी जाती है तो उसका विरोध नहीं होना चाहिए सभी की धार्मिक भावनाओं का आदर करते हुए यह कार्य सर्वसम्मति से किए जाने चाहिएं। उन्होंने कहा कि धर्म को राजनीति से परे रखना चाहिए तथा धर्मगुरुओं को बैठाकर इस तरह के मसलांे का समाधान निकाला जाना चाहिए ताकि धर्म उन्माद का जरिया न बन सके। कुछ बुद्धिजीवियों ने जहां बेबाकी से अपनी राय व्यक्त की वही कुछ बुद्धिजीवियों व उलेमाओं ने अपना नाम न छापने की शर्त पर अपनी राय दी। फतेहपुरी शाही मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि यह सरकार व श्रद्धालुओं का मामला है और यात्रियों को हर हाल में सुविधा मिलनी ही चाहिए। प्रत्येक धर्मस्थल व धर्म से जुड़े लोगों की बात सुनी जाये और इस तरह के मुद्दों पर साम्प्रदायिकता फैलाना कतई उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि एक बार अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का फैसला ले लिया गया था तो फिर जमीन वापिस नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एैसे मामलों पर राजनीति करना शर्मनाक है। जमीअतुल-उलेमा-ए-हिन्द के सचिव मौलाना अब्दुल हमीद नौमानी ने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार ने जमीन वापस लेकर भाजपा व साम्प्रदायिक ताकतों को एक मुद्दा दे दिया है। उन्होंने इस पूरे मामले में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एस.के.सिन्हा की भूमिका को गलत बताया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने जमीन देने का विरोध किया वह भी देश में शांति व अमन नहीं चाहते। यह एक धार्मिक मामला है और धार्मिक भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। एक बार जमीन देकर वापस लेना कतई उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि तीर्थ यात्राी केवल तीर्थ यात्रा के लिए वहां जाते हैं उनका मकसद वहां स्थायी रूप से रहना नहीं है एैसे में जमीन देने का विरोध कतई नहीं होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले का समाधान करना चाहिए। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष कमाल फारूकी कहते हैं कि कश्मीर के हालात सुधर रहे थे एैसे में वहां की सरकार को कोई एैसा काम नहीं करना चाहिए था जिसे हालात बिगड़े। उन्होंने कहा कि अमरनाथ यात्रा के लिए अग जगह दे भी दी गई तो हुरियत व वहां के संगठनों को बवाल नहीं करना चाहिए था। अब अगर वापस ले ली गई है तो भी इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने का कि सभी का मकसद कश्मीर के हालात को सुधारना हो , इस तरह के मुद्दे पर राजनीति न हो।

मस्ती, उन्माद और ऊर्जा की चाह में बहकते कदम

राजधानी में प्रति वर्ष अनुमानित 500 करोड़ का होता है नशे का कारोबार
पब, रेव पार्टियां और डिस्को थिक हैं नशेड़ियों के अड्डे
दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है रेव पार्टियों का चलनसभी नशीली दवांए,
अर्धनग्न बालाएं और संगीत की धूने हैं रेव पार्टियों का आकर्षण
रेव पार्टियों में मनमोहन व्यंजनों की तरह परोसी जाती हैं नशीली दवाईयां
एक ही थाली में होती हैं सभी दवाईया, सभी चुनते हैं अपनी अपनी पसंद की दवा
पिछले कुछ वर्षो से बढ़ा है रेव पार्टियों का चलन
फार्म हाऊसों व गुप्त स्थानों पर होती हैं पार्टियां
बड़े अमीरजादों के लिये हैं ये पसंदीदा पार्टियां
नशे के सेवन पर न तो शर्मसार होते हैं न नशे का सेवन गलत मानते हैं इसके आदी
बड़े व्यवसायियों या फिर बड़े वेतन पाने वालों के लिए शौक और आदत है नशे का सेवन
नशीली दवाइयों का भारत है बड़ा बाजार
स्मगलिंग के लिए भी भारत है एक ट्रांजिट कैम्प
भारत से भी अनेक देशों को होती है स्मगलिंग
अधिकतर दवाओं की आपूर्ति होती है विदेशों से
स्मगलिंग के धंधे में नाइजीरियन नागरिकों की संख्या ज्यादा
इन नशीले पदार्थो की ज्यादा पड़ती है लत
हीरोइन, कोकीन, एक्सटेसी, हैश, एलएसडी, कोडीन, आइस, एफड्राइन, मारीजुआना, हशीश,कैथामिन, चरस, नार्फेन, लुफ्रिजेसिक, एलएसडी एसिड, एमडीएमए,
बीपीओं में ज्यादा है चरस का चलन


एक नजर घातक नशीले पदार्थो पर
कोकीन: यह एक सफेद पाउडर जैसी होती है जो कोका के पेड़ से निकाला जाता है। कोकीन को कोक, कैंडी, आइस, ब्लो व सी नामों से भी जाना जाता है।
कीमत: 3 से 6 हजार रुपये प्रति ग्रामचरम सीमा: कोकीन का सेवन करने वाला इसके सेवन के बाद स्वयं को ऊर्जावान, आत्मविश्वासी महसूस करता है।
खतरा: कोकीन का ज्यादा सेवन करने से ह्रदय घात का खतरा रहता है, तथा धीरे धीरे डिप्रेशन के साथ साथ आत्महत्या की ओर कदम बढ़ने लगते हैं।

क्सटेसी: यह एक प्रकार का सेंथेटिक रसायन है जो फिनोलेथीलेमाइन नामक रसायन से बनता है। इसे एमडीएमए, एक्स,एक्सटीसी व आदम नाम से भी जाना जाता है।
कीमत: 300 से 500 रुपये प्रति ग्रामसेवन का तरीका: सिगरेट में डालकर धुम्रपान या इंजेक्शन
चरम सीमा: इसके सेवन से लगभग 5 से 6 घंटे तक सेवन करने वाले को नशा रहता है और वह स्वयं को अलग दुनिया में मस्त महसूस करता है।खतरा: इसके ज्यादा सेवन से यादाश्त कमजोर हो जाती है तथा दिमाग पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है।

एसिड: यह एक प्रकार का लिक्विड नशीला पदार्थ है जिसे लाइसर्जिक एसिड कहा जाता हैऔर यह सीआईडी, ब्लोटर, शुगर क्यूब, एलएसडी नामों से भी जाना जाता है
कीमत: 150 रुपये से 200 रुपये प्रति खुराक
सेवन का तरीका: जीभ पर बूंदे डालकर या फिर किसी तरल पदार्थ के साथ
नशे में अनुभूति: एसिड का नशा एक घंटे में अपनी चरम स्थिति पर पहुंचता है और 5 से 6 घंटे तक बना रहता है। इस दौरान सेवन करने वाला उन्मादी होने के साथ साथ मस्ती अनुभव करता है।

स्पीड: यह एमफीटामाइन नामक केमिकल से बनती है तथा इसे मैथ, क्रेस्टल, क्रेन्क व ग्लास नाम से भी जाना जाता है।
कीमत: 5 से 10 रुपये प्रति गोलीसेवन का तरीका: यह अधिकतर गोली के रुप में ली जाती है, कुछ लोग इसका इंजेक्शन लगवाते हैं तथा कुछ गोली पीसकर धूम्रपान के जरिए इसका सेवन करते हैं।

क्या कहता है कानून
नशीली दवाओं के खिलाफ पुलिस की नारकोटिक शाखा तथा केन्द्र के नाकोटिक कंट्रोल ब्यूरो द्वारा समय समय पर अभियान चलाये जाते हैं लेकिन कानून में नशीली पदार्थो की तस्करी पर कोई बड़ी सजा न होने के कारण तस्करी पर अंकुश नहीं लग पाता। नारकोटिक ड्रग्स एण्ड साइकाट्रोपिक सबटेंसिस एक्ट के तहत कोकीन व अन्य मादक पदार्थो की तस्करी पर अधिकतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है लेकिन यह सजा मादक पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करती है। यदि मात्रा कम हो और निजी उपयोग के लिए हो तो इसमें एक वर्ष की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।
दिल्ली पुलिस की नारकोटिक शाखा द्वारा बरामद नशीले पदार्थ
वर्ष 2007हिरोइन 78 किलोकोकीन 220 ग्रामअफीम 83 किलोचरस 55 किलोगांजा 66 किलोनशीली गोलियां 7500नशीले इंजेक्शन 20000

मस्ती, उन्माद और ऊर्जा की चाह में बहकते कदम

संजय टुटेजा
नई दिल्ली, 28 मार्च।
मस्ती, उन्माद, आत्मविश्वास और ऊर्जा की चाह राजधानी के युवा वर्ग को एक एैसे रास्ते पर ले जा रही है जो रास्ता भले ही सुनहरा दिखाई दे रहा है लेकिन उसका अंतिम पड़ाव गहरा अंधकार है। इसे रोजमर्रा के झंझावतों से मुक्ति का साधन कहें या फिर रईसों का शोक, युवा वर्ग नशीले पदार्थो की गिरफ्त में फंस रहे हैं, स्थिति यह है कि अब पब और डिस्को थिक से एक कदम आगे बढ़ते हुए रईसजादों का एक बड़ा वर्ग ‘रेव पार्टियों’ में मस्ती ढूंढ रहा है, जहां नशीली दवांए, अर्धनग्न बालाएं और मदमस्त संगीत की धुनें रईस जादों को परी लोक का अहसास कराती हैं। राजधानी में अवैध तरीके से नशे का कारोबार कोई नया नहीं है लेकिन अब यह कारोबार ‘रेव पार्टियों’ के जरिए होने लगा है। फार्म हाऊसों या फिर गुप्त स्थानों पर होने वाली इन पार्टियों में नशे व मस्ती के शौकीन युवा वर्ग को मस्ती भी मिलती है और नशा भी मिलता है। यह पार्टियां इस धंधे में लगे माफियाओं द्वारा आयोजित की जाती हैं और प्रत्येक प्रकार की नशीली दवा व नशीला पदार्थ इन पार्टियों में उपलब्ध होता है। इन पार्टियों में नशीली दवाएं परोसने का तरीका भी मोहक है। अर्धनग्न बालाएं हाथ में सजी धजी थाली या फिर आकर्षक ट्रे में सभी तरह की नशीली दवांए परोसती हैं और पार्टी में उपस्थित युवा वर्ग अपनी अपनी पसंद की नशीली दवा चुन कर सेवन करता रहता है। हालांकि डिस्कोथिक और पब भी नशेड़ियों के अड़्डे हैं लेकिन हाईप्रोफाइल रईस वर्ग की पहली पसंद अब रेव पार्टियां हैं। रईस वर्ग के युवाओं की पहली पसंद कोकीन का नशा है, इस वर्ग में वह युवा शामिल हैं जो बड़े उद्योगपति परिवारों से हैं या फिर उनका वेतन इतना ज्यादा है कि उनके लिए पैसे की कोई कीमत नहीं है। केवल युवा लड़के ही नहीं बल्कि युवा लड़कियां भी बड़ी संख्या में नशीली दवाओं की आदि हो गई हैं। इनमें अधिकतर युवाओं को इन नशीली दवाओं की लत कालेज में व हास्टल में पड़ती है। कोकीन की कीमत बाजार में 3 हजार से 6 हजार रुपये प्रति ग्राम तक है जो युवा इतनी महंगी कोकीन नहीं खरीद सकते वह कैथामिन नाम की नशीली दवा का उपयोग करते है, इसका नशा भी कोकीन की तरह ही होता है। इसके अलावा एक्सटेसी, एसिड, स्पीड, हेरोइन आदि एैसे नशीले पदार्थ हैं जिनका चलन नशेड़ियों में ज्यादा है। इनमें अधिकतर नशीले पदार्थ विदेशों से तस्करी के जरिए आते हैं और यहां से देश के विभिन्न शहरों में भेजे जाने के अलावा नेपाल, ब्राजील, चीन,युएसए सहित एशिया के विभिन्न देशों को इनकी तस्करी की जाती है। इनकी तस्करी में अब तक पकड़े जाने वाले विदेशियों में नाइजीरिया के नागरिक ज्यादा सामने आये हैं। अवैध कारोबार होने के कारण हालांकि इस कारोबार में प्रतिवर्ष होने वाले व्यापार का स्पष्ट ब्यौरा नही है लेकिन अनुमान है कि प्रति वर्ष राजधानी में ही नशीले पदार्थो की बिक्री का कारोबार 500 करोड़ से अधिक होता है।
नशे के कारोबार का हाॅट स्पाॅट है दिल्लीप्रति वर्ष होता है करोड़ों का कारोबारनशीले पदार्थो की तस्करी का ट्रांजिट कैम्प बन गया है दिल्लीअफगानिस्तान, म्यंमार, ब्राजील, कोलंबिया, हैती, इक्वेडोर आदि देशों से होती है तस्करीदिल्ली के रास्ते नेपाल, चीन, व एशियाई देशों को होती है तस्करीदिल्ली में हेरोइन, कोकीन, एक्सटेसी, हैश, एलएसडी, कोडीन, आईस, एफड्रइन, मारीजुआना,हशीश कैथामिन, चरस, नार्फेन, लुफ्रिजेसिक, एमडीएमएस दवांए हैं नशेड़ियों में प्रचलितकम आय वर्ग मे है स्मैक व अफीम का चलननशे के व्यापारियों का है बड़ा नेटवर्कझुग्गी झोपड़ी से लेकर रईसजादों तक फैला है तस्करों का नेटवर्क10 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक है एक बार नशा करने की कीमत

नशे के कारोबार का हाट स्पाट है दिल्ली

नशीले पदार्थो की तस्करी का ट्रांजिट कैम्प बन गया है दिल्ली
प्रति वर्ष होता है करोड़ों का कारोबार
अफगानिस्तान, म्यंमार, ब्राजील, कोलंबिया, हैती, इक्वेडोर आदि देशों से होती है तस्करी
दिल्ली के रास्ते नेपाल, चीन, व एशियाई देशों को होती है तस्करी
दिल्ली में हेरोइन, कोकीन, एक्सटेसी, हैश, एलएसडी, कोडीन, आईस, एफड्रइन, मारीजुआना,हशीश कैथामिन, चरस, नार्फेन, लुफ्रिजेसिक, एमडीएमएस दवांए हैं नशेड़ियों में प्रचलित
कम आय वर्ग मे है स्मैक व अफीम का चलन
नशे के व्यापारियों का है बड़ा नेटवर्कझुग्गी झोपड़ी से लेकर रईसजादों तक फैला है तस्करों का नेटवर्क10 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक है एक बार नशा करने की कीमत

संजय टुटेजा
नई दिल्ली 30 जून।
देश की राजधानी दिल्ली अब नशे के कारोबार का भी हाॅट स्पाॅट बन गई है। न केवल करोड़़ो रुपये के नशीले पदार्थो की खपत केवल राजधानी में ही होती है बल्कि दिल्ली के रास्ते अन्य देशों को भी नशीले पदार्थो की खपत हो रही है। इस धंधे में लगे तस्करों का नेटवर्क दिल्ली में ही नहीं बल्कि देश के अन्य नगरों से लेकर कई देशों तक फैला है। स्थिति यह है कि दिल्ली इस धंधे का ट्रांजिट कैम्प बनती जा रही है। नशे के प्रति युवा वर्ग के बढ़ते आकर्षण के साथ साथ नशे का कारोबार भी निरंतर बढ़ रहा है। यह कारोबार न केवल संगठित नेटवर्क का रूप ले चुका है बल्कि अब देश की सीमाओं को भी पार कर चुका है। न केवल अफगानिस्तान, म्यमांर, ब्राजील, नाइजेरिया, हैती आदि देशों से नशीले पदार्थो के जहर की तस्करी राजधानी में हो रही है बल्कि राजधानी के रास्ते नशीले पदार्थ कुछ अन्य देशों को भी तस्करी के जरिए भेजे जाते हैं। राजधानी के इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ही कई बार अनेक विदेशी नागरिक नशीले पदार्थो को लाते पकड़े गये हैं। देश में मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के अनेक हिस्सों में अफीम की खेती की जाती है, इस धंधे में लगे लोग उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश से यहां अफीम लाकर उससे हेरेाइन तेयार करते हैं ओर राजधानी के नशेड़ियों को इसकी आपूर्ति करने के साथ साथ अन्य महानगरों व देशों को भी भेजते हैं। राजधानी में नशे का कारोबार झुग्गी झोपड़ियों से लेकर उच्च वर्ग तक फैला है और प्रत्येक वर्ग को अपनी पसंद के नशीले पदार्थो सुगमता से उपलब्ध हो जाते हैं। नशे का शिकार लोगों में युवा वर्ग की संख्या अधिक है। मस्ती की चाह में युवा वर्ग नशे का सेवन करता है और फिर इसका आदि हो जाता है। निम्न आय वर्ग के युवा जहां अफीम व स्मैक का सेवन करने के अलावा कुछ जीवन रक्षक दवाओं का उपयोग नशे के रूप में करते हैं वहीं उच्च आय वर्ग महंगी नशीली दवाओं व नशीले पदार्थो का सेवन करता है इनमें कोकीन, एक्सटेसी, एसिड एवं स्पीड जैसे नशीले पदार्थ प्रमुख हैं। कोकीन की कीमत 3 हजार से 6 हजार रुपये प्रति ग्राम है जबकि एक्सटेसी व एसिड जैसे नशीले पदार्थ 200 से 600 रुपये की प्रति खुराक के हिसाब से उपलब्ध हो जाते हैं जबकि स्मैक की एक पुड़िया 25 रुपये से लेकर 100 रुपये तक मिलती है। इसकी कीमत इसकी क्वालिटी पर निर्भर करती है। बाजार में भारतीय स्मैक अफगानिस्तान से आने वाली स्मैक की अपेक्षा काफी सस्ती है।

क्या कहता है कानून नशीली दवाओं के खिलाफ पुलिस की नारकोटिक शाखा तथा केन्द्र के नाकोटिक कंट्रोल ब्यूरो द्वारा समय समय पर अभियान चलाये जाते हैं लेकिन कानून में नशीली पदार्थो की तस्करी पर कोई बड़ी सजा न होने के कारण तस्करी पर अंकुश नहीं लग पाता। नारकोटिक ड्रग्स एण्ड साइकाट्रोपिक सबटेंसिस एक्ट के तहत कोकीन व अन्य मादक पदार्थो की तस्करी पर अधिकतम 10 वर्ष की सजा का प्रावधान है लेकिन यह सजा मादक पदार्थ की मात्रा पर निर्भर करती है। यदि मात्रा कम हो और निजी उपयोग के लिए हो तो इसमें एक वर्ष की सजा व जुर्माने का प्रावधान है।

सेना के रिटायर्ड अधिकारी संभालेंगे डीटीसी का की कमान

निगम को घाटे से उबारने के लिए होगी नई कोशिश
480 नये अधिकारियों की डीटीसी को है जरूरत
सेना से मांगी जायेगी इच्छुक अधिकारियों की सूची
कान्ट्रेक्ट के आधार पर होगी भर्ती
sanjay tuteja
नई दिल्ली 2 जुलाई। दिल्ली परिवहन निगम को घाटे से उबारने तथा निगम की व्यवस्था को अनुशासित एवं चुस्त दुरुस्त बनाने के लिए निगम में अब सेना के सेवा निवृत अधिकारियों की नियुक्ति की जायेगी। यह नियुक्ति कान्ट्रेक्ट के आधार पर होगी। निगम प्रबंधन जल्द ही इस संबध में सेना से निगम में काम करने के इच्छुक व कर्मठ सेवा निवृत अधिकारियों की सूची मांगेगा। दिल्ली परिवहन निगम को घाटे से उबारने की तमाम कोशिशों के बावजूद निगम का घाटा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। स्थिति यह है कि निगम की प्रतिदिन की आय भी एक करोड़ 30 लाख से घटकर एक करोड़ रह गई है। इसके अलावा घाटे का ग्राफ भी बढ़ रहा है। नये वेतन आयोग के बाद निगम पर कर्मचारियों के वेतन का भी लगभग एक करोड़ रुपये अतिरिक्त बोझ बढ़ गया है। निगम की बसो को प्रति किलोमीटर आय 18 रुपये से 20 रुपये प्रति किलोमीटर औसतन है जबकि यह आय 35 से 40 रुपये औसतन प्रति किलोमीटर हो तभी डीटीसी अपने सभी खर्चे स्वयं निकाल सकती है। निगम के बेड़े में नई बसें बढ़ाये जाने के बाद नये नियुक्त होने वाले ड्राइवरों व कंडक्टरों के वेतन का बोझ भी निगम पर बढ़ जायेगा। इसके अलावा 480 नये अफसरों की नियुक्ति होनी है उनके वेतन व भत्तों का करोड़ो रुपये का आकलन किया जाये तो इस वर्ष के अंत तक निगम के सामने गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न हो सकता है। निगम को घाटे से उबारने के लिए निगम प्रबंधन ने अब नई कोशिश शुरु की है। इसके तहत सेना के सेवानिवृत अधिकारियों को निगम में महत्वपूर्ण पद सौंपने का निर्णय लिया गया है। अफसरों के 480 पदों पर नियुक्तियां होनी हैं और इनमें से लगभग आधे पदों पर सेना के अधिकारियों को लिया जायेगा। यह नियुक्ति कान्ट्रेक्ट के आधार पर होगी। इससे निगम को सेना के अधिकारियों के लंबे अनुभव का तो लाभ मिलेगा ही साथ ही स्थायी अधिकारियों की तुलना में उन्हें भुगतान भी कम करना होगा और निगम पर खर्च का बोझ कम पड़ेगा। डीटीसी के प्रबंध निदेशक रमेश नेगी के अनुसार आगामी अक्टूबर नवंबर माह तक डीटीसी को 480 नये अधिकारियों को जरूरत होगी तब तक सेना से सम्पर्क कर इच्छुक अधिकारियों का पैनल मांग लिया जायेगा जिसमें से योग्य व कर्मठ अधिकारियों का चयन कर लिया जायेगा। उन्होंने बताया कि निगम को घाटे से उबारने के अन्य उपाय भी किये जा रहे हैं।
अतिथि देवो भवः के रास्ते पर डीटीसी

यात्रियों का अतिथि की तरह सत्कार करेंगे डीटीसी के कंडक्टर

कंडक्टर होंगे अतिथि सत्कार व ग्राहक सेवा में दक्ष2200 नये कंडक्टरों की होगी भर्ती

एक पखवाड़े में शुरु हो जायेगी भर्ती प्रक्रिया

कस्टयूमर केयर व होस्पेलिटी में प्रमाणपत्रा हासिल युवाओं को दी जायेगी प्राथमिकता


नई दिल्ली 1 जुलाई। आगामी राष्ट्रकुल खेलों के दौरान राजधानी में विदेशों से आने वाले अतिथियों के सत्कार के लिए दिल्ली परिवहन निगम भी ‘अतिथि देवो भवः‘ का मंत्रा अपने कंडक्टरों को देगा। निकट भविष्य में डीटीसी के कंडक्टर बस में यात्रियों का अतिथि की तरह सत्कार करेंगे और उनकी प्रत्येक असुविधा का ख्याल भी रखेंगे। अतिथियों को निगम की बसों में कोई कठिनाई न हो इसके लिए निगम के नये कंडक्टर अब अतिथि सत्कार व ग्राहक सेवा में दक्ष होंगे। निगम में कुल 2200 नये कंडक्टर भर्ती किये जायेंगे और अतिथि सत्कार व ग्राहक सेवा में दक्ष कंडक्टरों को ही प्राथमिकता दी जायेगी। इन कंडक्टरों की भर्ती प्रक्रिया एक पखवाड़े के भीतर शुरु हो जायेगी। राजधानी में ब्लूलाइन बसों के कर्मचारियों की तरह ही दिल्ली परिवहन निगम के कर्मचारियों द्वारा भी यात्रियों से अभद्र व्यवहार की शिकायतें अक्सर यात्राी करते रहे हैं। आगामी राष्ट्रकुल खेलों के मद्देनजर दिल्ली परिवहन निगम ने निगम की बसों में कंडक्टरों की इस छवि को बदलने की तैयारी कर ली है। विदेशों से आने वाले अतिथि यहां से कोई कटु अनुभव लेकर न लौटें इसे लेकर सरकार भी गंभीर है, यही कारण है कि सार्वजनिक सेवा से जुड़े सभी विभागों में मेहमाननवाजी को खासा महत्व दिया जा रहा है। मेहमानों के लिए राजधानी की सड़कों पर लोफ्लोर बसों और वातानुकूलित बसों की दौड़ तो शुरु हो गई है। राष्ट्रकुल खेलों तक लगभग 3000 लोफ्लोर बसें यहां सड़कों पर दौड़ती दिखाई देंगी, जिनके लिए कंडक्टरों की भी आवश्यकता पड़ेगी। वर्तमान में डीटीसी के बेड़े में लगभग साढ़े तीन हजार बसें हैं जिनके अनुपात में कंडक्टरों की संख्या आवश्यकता से लगभग एक हजार अधिक है लेकिन अगले छह माह में ही लगभग एक हजार लोफ्लोर बसें निगम के बेड़े मंे शामिल हो जायेंगी जिनके लिए लगभग 2500 कंडक्टरों की आवश्यकता होगी। निगम के प्रबंध निदेशक रमेश नेगी के अनुसार छह माह बाद कंडक्टरों की कमी न हो इसके लिए एक पखवाड़े के भीतर ही नये कंडक्टरों की भर्ती प्रक्रिया शुरु कर दी जायेगी। उन्होंने बताया कि कुल 2200 कंडक्टर भर्ती किये जायेंगे और कंडक्टर के लिए आवश्यकता योग्यताओं के साथ साथ ग्राहक सेवा एवं अतिथि सत्कार में कोई प्रमाणपत्रा हासिल उम्मीदवारों को चयन में प्राथमिकता दी जायेगी। उन्होंने बताया कि राष्ट्रकुल खेलों के मद्देनजर ही कस्टयूमर केयर एवं हास्पीलिटी में प्रशिक्षण प्राप्त कंडक्टरों को प्राथमिकता देने का निर्णय लिया गया है। भर्ती की तैयारी भी शुरु हो गई है। निगम में कुल 2200 नये कंडक्टर भर्ती किये जायेंगे जिनकी भर्ती प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरु हो जायेगी।