बुधवार, 8 अप्रैल 2009

जूते के प्रहार से चिदंबरम नहीं, टाइटलर हुए घायल

टाइलर की उम्मीदवारी पर भारी पड़ सकता है जूता
सीबीआई की क्लीनचिट से बढ़ा आक्रोश
9 अप्रैल के अदालती फैसले पर है निगाहें

नई दिल्ली। गृहमंत्राी पी.चिदंबरम की पत्राकार वार्ता में आज जूता उछाले जाने का चिदंबरम पर तो कोई असर नहीं हुआ है अलबत्ता पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस उम्मीदवार जगदीश टाईटलर इस जूते के हमले से जरूर घायल हुए हैं। जूते का यह हमला उनकी उम्मीदवारी पर भारी पड़ सकता है। सीबीआई से क्लीनचिट के बाद टाईटलर भले ही वर्ष 84 के इस अध्याय को बंद मान चुके हों लेकिन जूते के हमले ने बोतल के जिन्न को फिर बाहर निकाल दिया है नतीजतन कांग्रेस हैरत में भी है और टाईटलर को बनाये रखने की उलझन में भी। पार्टी आलाकमान की इसी उलझन से टाइटलर की नींद उड़ गई है। अब निगाहें 9 अप्रैल को अदालत के फैसले पर है, यदि अदालत ने सीबीआई की क्लीनचिट को खारिज करते हुए मामले की जांच जारी रखने के आदेश दिये तो कांग्रेस कांग्रेस के लिए भी टाइटलर को उम्मीदवार बनाये रखना मुश्किल होगा।
गृहमंत्राी पी.चिदंबरम की पत्राकार वार्ता के दौरान आज एक सिख पत्राकार जरनैल सिंह ने अपना जूता चिदंबरम की ओर उछाल कर जिस तरह का आक्रोश दिखाया, उससे राजनीतिक हलचल बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस के लिए चुनाव की दृष्टि से भी यह जूता बड़ा झटका है। दरअसल अब तक कांग्रेस के दिग्गज भी यही मानकर चल रहे थे कि बीते 25 वर्ष में दिल्ली का आम सिख वर्ष 84 के गम को भुला चुका है और सिख संगत के जख्म भी भर गये हैं लेकिन आज की इस घटना से यह स्पष्ट हो गया है कि राजधानी के आम सिख के दिल में अभी भी आक्रोश की ज्वाला धहक रही है।
आज जो आक्रोश दिखाई दिया वह सीधे तौर पर चिदंबरम या कांग्रेस के खिलाफ नहीं था। जूता फैंकने से पूर्व पत्राकार ने टाइटलर को क्लीनचिट देने का सवाल ही उठाया था और चिदंबरम के जवाब से असंतुष्ट होकर ही उसने यह कदम उठाया। इससे स्पष्ट है कि टाइटलर को क्लीनचिट दिया जाना सिख संगत के गले नहीं उतर रहा है। हालांकि समय के साथ साथ दिल्ली का सिख समाज 84 के दंश को भुला चुका था लेकिन अब लगता है कि सिख संगत के जख्म फिर से ताजा हो गये है। जगदीश टाइटलर इन दंगों में सिखों के कत्लेआम के प्रमुख आरोपियों में शामिल थे। 25 वर्ष की लंबी जांच के बाद सिख समाज को यह उम्मीद थी कि उन्हें न्याय मिलेगा लेकिन न्याय के बजाय सिख समाज को एक साथ दो नये जख्म मिले, पहला जख्म सीबीआई के निर्णय से पहले ही कांग्रेस द्वारा उन्हें पूर्वी दिल्ली से उम्मीदवार घोषित करना और दूसरा जख्म उन्हें सीबीआई द्वारा क्लीनचिट दिया जाना था।
सीबीआई से क्लीनचिट मिलने के बाद टाइटलर तो इस अध्याय को बंद मान चुके थे लेकिन लगातार उनके विरोध में प्रदर्शन हो रहे है, यहां तक कि सिखों की सर्वोच्च संस्था एसजीपीसी भी दिल्ली के सिखों की आवाज में आवाज मिलाने दिल्ली पहुची। जो आग सिखें के दिलों में सुलग रही थी, जूता उछाले जाने की घटना ने उस आग में घी डालने का काम किया है। इस घटना के बाद जिस तरह संबधित पत्राकार को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया उससे स्पष्ट है कि चुनाव के समय कांग्रेस कोई खतरा लेने के पक्ष में नहीं है। कांग्रेस आलाकमान की ओर ेस इस तरह की खबरे भी आई हैं कि टाइटलर की उम्मीदवारी पर पुर्नविचार होगा। आज देर शाम जिस तरह टाइटलर की सभी रैलियों व बैठकों को रद्द कर दिया गया उससे टाइटलर की उम्मीदवारी निश्चित रूप से खतरे में दिखाई दे रही है। आगामी 9 अप्रैल को इस मामले की निचली कोर्ट में सुनवाई होनी है। अदालत ने यदि सीबीआई की क्लीनचिट को खारिज कर इस मामले की आगे जांच करने के आदेश दिये तो टाइटलर के लिए मुश्किल हो सकती है। राजनैतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि चुनाव से पूर्व केवल टाइटलर के टिकट को प्रतिष्ठा का सवाल बनाकर कांग्रेस आलाकमान सिखों को नाराज नहीं करेगा।