मंगलवार, 7 जुलाई 2009

यहां आसानी से पूरी होती है समलैगिक साथी की तलाश

लगभग दो दर्जन स्थान हैं समलैगिकों के अड्डे

  • क्लबों, बार, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक में होती है साप्ताहिक पार्टियां
    पिछले 10 वर्ष से लगातार बढ़ रही है समलैंगिक प्रवृति
    पिछले छह वर्ष में बढ़ा है समलैंगिकता का चलन
    समलैगिकों में 16 से 30 वर्ष आयु वर्ग के लोगों की संख्या अधिक
    दक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में होती हैं साप्ताहिक पार्टियों का चलन
    इंटरनेट के जरिए ढूंढते हैं पसंद के साथी
    स्कूल व कालेज व हास्टल में रहने वाले छात्रा छात्राओं में भी बढ़ रही है यह प्रवृति
    अप्राकृतिक संबधों को गलत नहीं मानते समलैंगिक

नई दिल्ली। उनके लिए प्यार का अहसास भी अलग है और यौन संतुष्टि की परिभाषा भी अलग है। समलिंगी साथी के आकर्षण का सामीप्य ही उन्हें चरम सुख प्रदान करता है तभी तो चढ़ती उम्र में वह एक ऐसी हमराही की तलाश करते हैं जो तलाश उन्हें आम आदमी से कुछ अलग करती है। इंटरनेट पर फ्रेन्डशिप साइटें न केवल इनकी तलाश को पूरा कर रही है बल्कि एक एक कर अब यह वर्ग क्लबों के रूप में भी संगठित हो रहा है। इन क्लबों में मनपसंद साथी तो मिलता ही है साथ साथ ऐसा सकून भी जो इनके लिए तमाम सुखों से ऊपर है। इनके लिए इनके संबध न तो अप्राकृतिक हैं और न ही सामाजिक मर्यादा के खिलाफ हैं। समलैंिगकता के विरोधी भले ही इसे मानसिक विकृति कहें लेकिन समलैंिगक संबधों पर उन्हें गर्व है। राजधानी के उच्च वर्ग व उच्च मध्यम वर्ग के अलावा स्कूल कालेजों में समलिंगी संस्कृति दिन प्रतिदिन फल फूल रही है। इंटरनेट पर सैंकड़ों ऐसी साइटें हैं जो इन्हें अपना मनपसंद साथी खोजने में मदद करती हैं, यही नहीं दक्षिणी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली में समलैंगिक वर्ग ने अपने समूह, संगठन व क्लब भी बना लिए है और किसी निश्चित स्थान पर नियमित रूप से एकत्रा होकर न केवल यह मौज मस्ती करते हैं बल्कि समलैंिगक रिश्तों पर खुल कर परिचर्चा भी करते हैं। जानकारी के अनुसार राजधानी में लगभग दो दर्जन ऐसे स्थान हैं जहां यह लोग नियमित रूप से मिलते हैं। पिछले दस वर्ष में राजधानी में समलिंगी संस्कृति ज्यादा विकसित हुई है। समलैगिकों को लामबंद करने में इस दिशा में कार्य कर रहे स्वैच्छिक संगठन नाज फाउण्डेशन तथा वाॅइस अगेन्सट 377 ने भी प्रमुख भूमिका निभाई है। एक अन्य संस्था हमराही भी पिछले लंबे समय से समलैगिंकों के लिए कार्य करती रही है। इंटरनेट की फ्रेन्डशिप साइटों, फेसबुक, ओरकुट, हाई 5, टैग्ड, व्यान आदि में जहां ें समलैंिगक साथी को आसानी से खोजा जा सकता है वहीं कुछ वेबसाइटें भी समलैंगिकों को उनका मनपसंद साथी खोजने में मदद करती है। कुछ साइटों में तो समलैगिंकों के लिए अलग चैटिंग रूम भी उपलब्ध है। जानकारी के अनुसार राजधानी में चाणक्य पुरी स्थित एक निश्चित स्थान पर पिछले लगभग पांच वर्ष से समलैगिंक वर्ग द्वारा नियमित रूप से साप्ताहिक पार्टी का आयोजन किया जाता है। रात्रि 9 बजे से शुरु होने वाली यह पार्टी देर रात तक चलती है। काल सेंटरों में कार्यरत युवा, मल्टी नेशनल कंपनियों के एक्जक्यूटिव स्तर के कर्मचारियों के अलावा कुछ स्वैच्छिक संगठनों के कार्यकर्ता भी इन पार्टियों में दिखाई देते हैं। इसके अलावा स्कूल कालेजों के होस्टलों में भी समलैंिगक वर्ग ने अपने छोटे छोटे समूह बना रखे हैं और इन समूहों में वह अक्सर राजधानी के कुछ पार्को में मौज मस्ती के लिए जाते हैं। नेहरु पार्क, पीवीआर साकेत, सेन्ट्रल पार्क, जनकपुरी डिस्ट्रिक पार्क,चिराग दिल्ली, धौलाकुआं, इंडिया गेट, इन्द्रप्रस्थ पार्क व बस अड्डे आदि समलैगिंक युगलों के मनपसंद स्थान है। इसके अलावा पार, पब, रेस्टोरेंट व डिस्कोथेक भी इनके मिलने के अड्डे हैं। समलैगिंकों को अपने संबधों पर न तो कोई पछतावा है और न ही वह शर्मसार हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय के बाद तो वह गौरवान्वित हैं। कानूनी मान्यता मिलने के बाद अब इनकी कोशिश अपने रिश्तों को सामाजिक मान्यता दिलाने की है। समलैगिकों की लड़ाई लड़ रहे वाॅाइस अगेन्सट 377 के सुमित कहते हैं कि कानून से बड़ी चीज सामाजिक मानसिकता है, अब समाज को भी अपनी मानसिकता बदलनी होगी तभी समलैंिगकों के गौरव व आत्मसम्मान में बढोत्तरी होगी।

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