एक्सरे : मौत बांटती जेल
ये मौत के कारागार हैं, जहां एक हजार से अधिक लोग हर साल मौत के मूंह में चले जाते हैं। कारागार की तंग कोठरियो में आजाद होने का सपना संजोने वाले बंदियों को आजादी भले न मिले लेकिन जलालत, शोषण, उत्पीड़न और मौत जरूर मिल जाती है। गाजियाबाद की डासना जेल में रहस्यमय मौत का शिकार हुए आशुतोष अस्थाना की मौत ने एक बार फिर उन सवालों को खड़ा कर दिया है जो सवाल जेलों में व्याप्त भ्रष्टाचार व खुंखार अपराधियों के वर्चस्व की कहानी बयां करते हैं। जेलों में सुधार की बात तो की जाती है और तकरीबन हर जगह बंदी सुधार के लिए तरह तरह के कार्यक्रम भी चलाये जाते हैं लेकिन आये दिन जब जेलों के भीतर कैदियों के आपसी संघर्ष, हत्याओं व रहस्यमय मौतों के किस्से सामने आते हैं तो जेलों को सुधार गृह बनाने की कवायद दम तोड़ती दिखाई देती है। जेलों के भीतर होने वाले कारनामों को लेकर जेल अधिकारियों के माथे पर बार बार कलंक लगता रहा है ओर हर कलंक को किसी न किसी मजिस्ट्रेटी जांच से धो दिया जाता है। जेलों में मौत के आंकड़े जेलों की बदहाली की कहानी कहते हैं। हालांकि जेलों में मौतों को लेकर कोई ताजा आंकड़े नहीं है लेकिन पिछले वर्ष एक स्वयं सेवी संगठन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से प्राप्त आंकड़ों को सार्वजनिक करते हुए दावा किया था कि पांच वर्षो के दौरान 7468 लोगों की भारतीय जेलों में या पुलिस हिरासत में मृत्यु हुई है। एक अनुमान के अनुसार देश में कहीं न कहीं औसतन चार लोगों की मौत प्रतिदिन जेल में या पुलिस हिरासत में हो जाती है। जेलों में जितनी भी मृत्यु होती हैं, उनकी जांच की जाती है और अधिकतर मामलों में जांच रिपोर्ट या तो सार्वजनिक ही नहीं होती, और यदि होती भी है तो उसमें बंदी की मृत्यु को स्वाभाविक मृत्यु मान लिया जाता है। बहुत कम मामले एैसे हैं जबकि जांच के बाद किसी बंदी की मृत्यु को लेकर जेल कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। यह ठीक है कि जेल के भीतर सजायाफ्ता कैदियों की बीमारी के कारण स्वाभाविक मौतें भी होती हैं लेकिन एैसी मौतों के लिए भी जेल प्रशासन की लापरवाही को माफ नहीं किया जा सकता। यह जग जाहिर है कि जेल में आम कैदियों को किस तरह का उपचार मिलता है। सुरक्षा व सुधारों की दृष्टि से देश में राजधानी की तिहाड़ जेल प्रमुख जेलों में है। इस जेल में इस वर्ष अक्टूबर तक 14 लोग मौत का शिकार हुए हैं, जेल रिकार्ड के अनुसार इन सभी की मौत बीमारी के कारण हुई है तथा आधे से अधिक कैदियों की मौत उपचार के दौरान जेल से बाहर के अस्पतालों में हुई है। इसी तरह गत वर्ष तिहाड़ जेल में कुल 13 कैदी मौत का शिकार हुए थे, जेल प्रशासन के अनुसार इनकी मौत भी बीमारी के कारण हुई।
विवादित रहा है डासना जेल का इतिहास
गाजियाबाद की डासना जेल एक बार फिर सवालों के घेरे में है। वर्ष 1997 से अब तक 93 लोग डासना जेल में मौत का शिकार हुए हैं इस वर्ष भी अब तक 9 लोग यहां मौत के मूंह में जा चुके हैं ओर जेल प्रशासन के पास सभी मौतों के लिए एक ही रटा रटाया जवाब है कि इन बंदियों की मौत बीमारियों के कारण स्वाभाविक रूप से हुई है। बहुचर्चित पीएफ घोटाले में गिरफ्तार मुख्य आरोपी आशुतोष अस्थाना की जेल में हुई रहस्यमय मौत से गाजियाबाद की डासना जेल एक बार फिर चर्चा में है। डासना जेल हमेशा ही विवादों के घेरे में रही है, कभी यह जेल फ्रन्टीयर मेल बम कांड के आरोपी शकील की मौत को लेकर कलंकित हुई तो कभी कविता चैधरी हत्याकांड के आरोपी अरविंद प्रधान की मौत को लेकर कलंकित हुई। इसके अलावा भी दर्जनों एैसी मौतों के मामले हैं जिन्हें लेकर जेल प्रशासन पर उंगली उठती रही है। फ्रन्टीयर मेल बम कांड के आरोपी शकील का शव जेल में एक खिड़की से लटका पाया गया था। जेल प्रशासन के अनुसार शकील ने अपनी ही शर्ट से फांसी लगाकर आत्महत्या की थी लेकिन जिस तरह उसका शव मिला उससे आत्महत्या की कहानी जेल प्रशासन की अपनी बनाई कहानी दिखाई दे रही थी। इसी कविता चैधरी हत्या कांड के मुख्य आरोपी अरविंद प्रधान की हत्या भी रहस्यमय परिस्थितियों में हुई। प्रधान की हत्या के बाद जो बातें जेल के भीतर से छन कर बाहर निकली थी उन पर यकीन किया जाये तो पता चलता है कि अरविंद प्रधान की हत्या की गई थी और उसे मारने के लिए खाने में कांच पीसकर खिलाया गया था। पिछले कुछ वर्षो में यहां लगभग एक दर्जन मौतें इसी तरह रहस्यमय परिस्थ्तिियों में हुई है। इनमें कमरुदद्ीन, इकबाल सिंह, जी।जी.हसन, नूर हसन, गुरुजन सिंह व ठाकुर सिंह एैसे नाम हैं जो जेल प्रशासन की पोल खोलने के लिए काफी है। डासना जेल में पिछले तीन वर्षो में होने वाली मौतों का आंकड़ा देखें तो पता चलता है कि वर्ष 2006 में यहां आठ लोग मौत का शिकार हुए जबकि वर्ष 2007 में 9 लोग मौत का शिकार हुए और वर्ष 2008 में 4 लोग मौत का शिकार हुए। जेल प्रशासन के अनुसार यह सभी मौतें बीमारी के कारण या अन्य कारणों से हुई स्वाभाविक मौतें थी।
आखिर क्या है अस्थाना की मौत का सच
गाजियाबाद की डासना जेल में बंद 23 करोड़ के पीएफ घोटाले के आरोपी आशुतोष अस्थाना की मौत का सच दबाने की तमाम कोशिशों के बावजूद जेल प्रशासन की लापरवाही सच बयां कर रही है। जेल प्रशासन के लिए भले ही वह आम कैदी हो लेकिन एक प्रमुख घोटालें में तीन दर्जन जजों का नाम लेने वाला कैदी वास्तव में आम कैदी नहीं बल्कि खास कैदी था । आखिर अस्थाना के बयानों पर ही न्यायपालिका की भी साख टिकी थी। उसकी मौत पर जेल प्रशासन भले ही खुद को पाक साफ बता रहा हो लेकिन जिस कैदी की जान को खतरा हो और वह जेल प्रशासन व एसएसपी से भी बचाव की गुहार कर चुका हो, उसकी सुरक्षा में लापरवाही क्यों बरती गई। इसका कोई जवाब जेल प्रशासन के पास नहीं है। डासना जेल में बंद आशुतोष अस्थाना एक हाईप्रोफाइल केस का आरोपी थी और उसे अपनी हत्या की आशंका भी थी। डासना जेल के पुराने इतिहास को देखते हुए अब यह संदेह होना लाजिमी है कि उसकी मौत स्वाभाविक मौत नहीं बल्कि हत्या थी। गाजियाबाद में हुए करोड़ो के पीएफ घोटाले के आरोपी आशुतोष ने इस मामले में 36 जजों के शामिल होने का बयान दिया था, उनके इस बयान के बाद पूरी न्यायपालिका में न केवल हड़कंप मचा था बल्कि न्यायपालिका की साख पर भी संकट दिखाई दे रहा था, ऐसे में उसकी हत्या की आशंका स्वाभाविक है क्योंकि उसी के बयानों पर कई प्रमुख लोगों का भविष्य व साख टिकी थी। तभी तो स्वयं आशुतोष को अपनी हत्या का डर सता रहा था और वह लगातार अपने इस डर से जेल प्रशासन को भी अवगत करा रहा था। अस्थाना द्वारा बार बार चेताये जाने के बावजूद जेल प्रशासन ने जेल में न तो आशुतोष को उच्च सुरक्षा वार्ड में रखा गया और न उसकी देखभाल की कोई व्यवस्था की। आखिर जेल प्रशासन का रवैया इतना लापरवाहीपूर्ण क्यों रहा, यह एक बड़ा सवाल है। यह लापरवाही तब भी जारी रही जब गत 6 फरवरी को कैदियों ने उस पर हमला किया था। अस्थाना ही नहीं बल्कि अस्थाना का परिवार भी लगातार कोर्ट और पुलिस में से इस बात की शिकायत कर रहा था कि उसे मार दिया जायेगा। आशुतोष अस्थाना ने अपने वकील के जरिए 15 फरवरी 2009 को गाजियाबाद कोर्ट को पत्र लिखकर बताया था कि 6 फरवरी को अदालत में लाने के बाद कैदियों ने उसपर हमला किया था। बाद में 7 मार्च को उसने कोर्ट के साथ-साथ एसएसपी गाजियाबाद को भी जान से खतरे की बात बताई। प्रदेश के आईजी जेल स्वयं यह मान चुके हैं कि अस्थाना को जेल में खतरा था तथा कुछ कैदियों ने उसकी पिटाई भी की थी। जेल सूत्रा बताते हैं कि उसकी एक बार नहीं बल्कि दो बार कैदियों ने पिटाई की और वह अपने साथी कैदियों से भी अपनी हत्या की आशंका व्यक्त करता था। बावजूद इसके जेल प्रशासन ने उसे जेल में सुरक्षा प्रदान नहीं की जिसका नतीजा वही हुआ जो इससे पूर्व कविता चैधरी हत्या कांड के आरीपी अरविंद प्रधान के साथ हुआ। अस्थाना रहस्यमय मौत का शिकार हो गया। उसकी मौत के रहस्य से पर्दा भले ही न उठ पाये लेकिन परिस्थितियां इस बात का गवाह है कि उसकी मौत सामान्य मौत नहीं थी।
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