रोड पर राही, भाई भाई
ताकि सड़कों पर दौड़ती मौत पर लगे लगाम
यह एक जजबा है इंसानियत को जिंदा रखने का और राह चलते हर अजनबी को हमराही बनाने का। तेज रफ्तार सड़कों पर दौड़ती मौत को शिकस्त देने की एक एैसी पहल जो निर्जीव व वीरान सड़कों पर भी अजनबियों के बीच भातृत्व व प्यार का एक रिश्ता कायम कर दे। यही रिश्ता बनाने की एक अनूठी कड़ी है ‘रोड पर राही भाई भाई’। हालांकि सड़क दुर्घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए यह एक नारा व स्लोगन भर है लेकिन इस पहल ने लाखों वाहन चालकों मंे एैसा जजबा उत्पन्न किया है कि यह नारा अब सरकारी कानून, जुर्माने व सजा के डर से एक कदम आगे दिखाई देता है। इंटरनेट की फ्रेंडशिप वेबसाइटें हों या फिर एमएनसी कंपनियों की कैन्टीन में गपशप की महफिलें हों, रोड पर राही भाई भाई की गूंज यकायक अपनी ओर आकर्षित करती है। सड़कों पर दुर्घटनाएं न हों और प्रत्येक वाहन चालक सड़क पर अपने आस पास चल रहे अन्य वाहन चालकों से भी एक रिश्ता महसूस करते हुए उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं अपने ऊपर ले, यही इस अभियान की मूल भावना है। इस अभियान के पीछे न तो कोई संस्था है, न स्वैच्छिक संगठन और न ही सरकारी सहयोग, एक गृहणी भारती चड्ढा ने इस अभियान की शुरुआत की और बस सड़कों पर दुर्घटनाओं की रोजमर्रा की तकलीफों से जूझते लाखों लोग स्वयं ही परस्पर जुड़कर इस अभियान का हिस्सा बन गये। अब इस अभियान से जुड़े लोग अपने खर्च से बाकी लोगों को भी प्यार व भाईचारे के इस सफर में सहभागी बना रहे हैं। यातायात पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक वर्ष में लगभग 2000 लोग राजधानी में सड़क दुर्घटनाओं में मौत का शिकार हुए और कुल 7485 सड़क दुर्घटनाएं हुई जिनमें 17 हजार से अधिक लोग घायल हुए। तमाम कानून, जुर्माना व सजा का डर तो वाहन चालकों में स्व अनुशासन का जजबा कायम नहीं कर सका लेकिन पांच शब्दों का यह स्लोगन ‘रोड पर राही भाई भाई’ वाहन चालकों पर चमत्कारिक असर डाल रहा है और इस अभियान से जुड़ने वाले लोग इस स्लोगन के प्रति प्रतिबद्ध भी दिखाई दे रहे हैं तभी तो गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष लगभग एक हजार छोटी बड़ी सड़क दुर्घटनाओं की कमी हुई है। इस अभियान से जुड़े लोग दुर्घटनाओं में इस कमी को इस अभियान का परिणाम मानते हैं। भारती चड्ढा के मुताबिक सर्वप्रथम उन्होंने एयरपोर्ट के तमाम टैक्सी चालकों को इस नारे की मूल भावना से जोड़ा उसके बाद तो स्वपरिवर्तन की एक लहर चल निकली। चडढा कहती हैं कि जब सड़क पर चलते समय हम सभी हमराहियों से भाई का रिश्ता कायम करेंगे तो फिर अपने भाईयों की सुरक्षा की प्रतिबद्धता भी कायम होगी। इस अभियान का हिस्सा बन गये अमित के अनुसार उसकी गाड़ी में लगा यह स्टीकर उसे हमेशा यह याद दिलाता है कि सड़क पर साथ चलने वालों की सुरक्षा का वायदा उसने अपने आप से किया है। एक अन्य व्यवसायी विपिन सूरी कहते हैं कि वह दिन दूर नहीं जब सड़क पर निकलने वाले अपने बेटे की सुरक्षा से प्रत्येक मां पूरी तरह निश्चितं होगी । वह कहते हैं कि इस नारे के प्रति प्रतिबद्धता कायम करने से ही हमें सड़कों पर एैसी सुरक्षा मिलेगी।