रविवार, 10 अगस्त 2008

नई बसों की खरीद में डीटीसी को करोड़ो का चूना लगाने की तैयारी

सांठ गांठ से हो गई लोफ्लोर की दरों में 14 लाख की बढ़ोत्तरी
निगम के एक पूर्व अधिकारी कंपनियों से कर रहे हैं दलाली


दिल्ली परिवहन निगम के लिए एक हजार साधारण बसों तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में निगम को करोड़ों का चूना लगाने की तैयारी हो गई है। इस सौदे में भारी दलाली के साथ साथ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाई गई है और निगम के एक पूर्व अधिकारी इस दलाली में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। इसी रणनीति के तहत एक कम्पनी से महंगी दरों पर साधारण बसें तथा दूसरी कम्पनी से महंगी दरों पर लोफ्लोर बसें खरीदने की रणनीति बनाई गई है। निगम के एक पूर्व अधिकारी व एक मौजुदा अधिकारी इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, यही कारण है कि इस सौदे में बस निर्माता कंपनिया भी आपसी प्रतिस्पर्धा के बजाय एक दूसरे की मदद करती दिखाई दे रही हैं। दिल्ली परिवहन निगम के लिए जल्द ही एक हजार साधारण बसें तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसे खरीदी जानी हैं और दोनों ही सौंदों के लिए निविदा प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई है। यूं तो इन बसों की खरीद के लिए निगम बोर्ड बस निर्माता कम्पनियों से सौदेबाजी करता दिखाई दे रहा है लेकिन इस सौदेबाजी के पीछे असली खेल निगम के कुछ अधिकारी तथा एक पूर्व अधिकारी खेल रहे हैं। इस पूर्व अधिकारी ने हाॅल ही में निगम से त्यागपत्रा दिया है, बावजूद इसके वह इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। बताया जाता है कि 29 जुलाई को साधारण बसों की खरीद पर निर्णय लेने के लिए हुई निगम बोर्ड की बैठक से एक दिन पूर्व यह अधिकारी एक कम्पनी से दलाली के लिए चेन्नई में गये थे और कम्पनी अधिकारियों के साथ ही यहां लौटे। लोफ्लोर एवं साधारण बसों की आपूर्ति के लिए टाटा तथा अशोक लीलेैण्ड दो कम्पनीयां ही मैदान में हैं और रणनीति इस तरह की बनाई गई है साधारण बसें अशोक लीलेण्ड से खरीद ली जायें और लोफ्लोर बसें टाटा कम्पनी से खरीदी जायें। सूत्रों के अनुसार सौदे में सक्रिय अधिकारियों ने इसके लिए कम्पनियों से सांठ कर उन्हें इस प्रतिस्पर्धा के चक्कर में पड़ने के बजाय मनमानी दरो ंपर कोई एक सौदा लेने के लिए राजी भी कर लिया है। यही कारण है कि साधारण बसों के लिए टाटा ने प्रतिस्पर्धा न कर अपनी अधिकतम दरें दी हैं तथा लोफ्लोर के लिए अशोक लीलेंड भी अधिकतम दरों के साथ प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। एक हजार साधारण बसों की खरीद के लिए दी गई निविदा में टाटा कम्पनी ने 33 लाख रुपये प्रति बस तथा अशोक लीलेण्ड कम्पनी ने लगभग 27 लाख प्रति बस की दर दी है। अब से पहले भी डीटीसी ने अशोक लीलेंड से ही साधारण बसें खरीदी थी जिनकी औसत कीमत लगभग साढ़े पन्द्रह लाख थी लेकिन वर्तमान में डीटीसी ने साधारण बसों के लिए जो औसत मूल्य तय किया है वह लगभग 20 लाख है। एैसे में टाटा कम्पनी की 33 लाख कीमत से स्पष्ट है कि सांठ गांठ के तहत सौदेबाजी का नाटक कर अशोक लीलैण्ड को ही साधारण बसों का आर्डर दे दिया जायेगा। डीटीसी बोर्ड की 29 जुलाई को हुई बैठक में अशोक लीलेण्ड कम्पनी को अपनी दरें कम करने के लिए दो दिन का समय दिया गया। माना जा रहा है कि बोर्ड की आगामी बैठक में दरों में थोड़े फेरबदल के साथ अशोक लीलेण्ड को आर्डर देने पर मुहर लग जायेगी। यही रणनीति ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में बनाई गई है। यह विडंबना ही है कि जो लोफ्लोर बसें एक वर्ष पूर्व 41 लाख में खरीदी गई थी उन्हीं लोफ्लोर बसों के लिए टाटा ने लगभग 14 लाख की बढ़ोत्तरी के साथ लगभग 55 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है। अशोक लीलेंड ने लोफ्लोर के लिए लगभग 63 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है, अशोक लीलेण्ड की दरों से स्पष्ट है कि यह कम्पनी लोफ्लोर के लिए प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। अब ढाई हजार बसें खरीदी जानी हैं, और 14 लाख रुपये प्रति बस की कीमत अधिक देकर बसें खरीदी गई तो सरकार व निगम को 300 करोड़ से अधिक का चूना लगेगाा। दिल्ली परिवहन मजदूर संघ ने बसों की सौदेबाजी के पीछे हो रहे इस खेल की जांच कराने की मांग की है। निगम चेयरमैन रमेश नेगी ने किसी अधिकारी को सौदेबाजी के लिए चेन्नई भेजे जाने से इन्कार किया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई पूर्व अधिकारी अपने निजी काम से गया है तो उसकी उन्हें जानकारी नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं: