सोमवार, 13 अक्टूबर 2008

लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल

कांग्रेस के लिए मुसीबत बना नेताओं का पुत्रा मोह
एक दर्जन से अधिक नेताओं के पुत्रा टिकट की कतार में
ये ही तो हैं गुदड़ी के असली लाल

नई दिल्ली 11 अक्टूबर।
लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल, कांग्रेस के दर्जनों नेताओं को आजकल अपने लाल की लाली के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। अपने लाल को ही गुदड़ी का असली लाल बताने वाले यह नेता किसी भी तरीके से उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाने की जुगत में हैं। उम्मीदवारों के चयन में उलझी कांग्रेस के लिए नेताओं का यह पुत्रा मोह संकट बन गया है। इसके अलावा किसी नेता की पुत्रावधू और किसी की साली भी टिकट की कतार में है।
कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया शुरु होने के साथ ही कई गुदड़ी के लाल अपने पिता की विरासत और कद का सहारा लेकर विधानसभा में पहुंचने का सपना देख रहे हैं। कुछ नेता तो अपने पुत्रों को टिकट दिलाने के लिए पार्टी में अपने पुराने सम्पर्को का सहारा लेकर तार से तार जोड़ रहे हैं तो कई दिवंगत नेताओं के पुत्रा अब पिता की कुर्बानियों व सेवाओं का प्रतिफल चाहते हैं। यही नहीं कुछ नेताओं के अन्य रिश्तेदार भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं और पार्टी हाईकमान के लिए बड़ा संकट बने हुए हैं।
विधानसभा अध्यक्ष चै.प्रेम सिंह के पुत्रा प्रमोद चैधरी देवली विधानसभा क्षेत्रा से टिकट के दावेदार हैं। चै.प्रेम सिंह विधानसभा अध्यक्ष होने के साथ साथ पार्टी के अनुभवी व वरिष्ठ नेता हैं, निश्चित रूप से पार्टी उन्हें भी चुनाव लड़ायेगी, एैसे में उनके पुत्रा की दावेदारी को लेकर पार्टी पसोपश में है। पूर्व गृहमंत्राी ओम मेहता के पुत्रा राजेश मेहता कस्तूरबा नगर विधानसभा सीट से दावेदार हैं जबकि पूर्व केन्द्रीय मंत्राी बी.पी.मौर्या की पुत्राी अमूल्या मौर्या गोकुलपुरी सीट से टिकट की दावेदार हैं। पूर्व सांसद चै.दलीप सिंह के एक नही दो पुत्रा सुरेन्द्र सिंह व सुखवीर सिंह के अलावा उनकी एक पुत्रा वधू जयश्री पंवार भी टिकट की दावेदार हैं। मजे की बात यह है कि तीनों एक ही सीट जीके पार्ट 1 से टिकट मांग रहे हैं।
इसी प्रकार पूर्व सांसद भीखूराम जैन के पुत्रा नरेन्द्र भीखू राम चांदनी चैक विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं तो इसी सीट से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजमोहन शर्मा के पुत्रा विजय मोहन भी दावेदार हैं। पार्टी संकट में है किसे महत्व दे और किसे न दे। पार्टी के एक अन्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश शर्मा के पुत्रा राहुल शर्मा भी टिकट की कतार में हैं वह मालवीय नगर विधानसभा से टिकट मांग रहे हैं। पूर्व कार्यकारी पार्षद किशन स्वरूप का बेटा महेन्द्र कुमार मादीपुर सीट से दावेदार है जबकि पूर्व मंत्राी व पूर्व महापौर महेन्द्र सिंह साथी का पुत्रा गुरजीत सिंह साथी तिलक नगर व राजौरी गार्डन से दावेदारी कर रहे हैं। साथी को उम्मीद है कि पार्टी उन्हें उनके पिता की सेवाओं का प्रतिफल देगी।
पुत्रों के अलावा नेताओं के अन्य संबधी भी टिकट की लाइन में हैं। पूर्व महानगर पार्षद चै.हीरा सिंह की बेटी तथा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी डा.योगानंद शास्त्राी की साली श्रीमती सुदेश सांगवान दिल्ली कैंट या पालम विधानसभा क्षेत्रा से टिकट मांग रही हैं जबकि विधायक महाबल मिश्रा के भाई हीरा मिश्रा जनकपुरी विधानसभा क्षेत्रा से अपनी दावेदारी कर रहे हैं। कुछ पुराने नेता एैसे भी हैं जो खुद टिकट की लाइन में हैं जिनमें मैट्रोपोलोटीन काउंसिल के पूर्व स्पीकर पुरुषोत्तम गोयल अपने लिए माडल टाऊन सीट से तथा पूर्व सांसद चै.तारीफ सिंह किराड़ी विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं।

आडवाणी की रैली में चुनावी शंखनाद की औपचारिक गूंज

बस हो गया चुनाव का शंखनाद। चुनावी महाभारत का भाजपा की ओर से शायद यह औपचारिक शंखनाद था। भाजपा द्वारा आज आयोजित ‘विजय संकल्प रैली’ से हालांकि आम जनता दूर थी लेकिन रैली में आडवाणी की मौजुदगी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए काफी थी। रैली के माध्यम से पार्टी नेतृत्व ने विभिन्न मुद्दे उठाकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश तो की ही साथ ही पार्टी के विभिन्न नेताओं की आपसी एकता का संदेश भी कार्यकर्ताओं को दिया।
प्रदेश भाजपा द्वारा आयोजित इस विजय संकल्प रैली का आयोजन किसी बड़े मैदान में न कर वीपी हाऊस के छोटे परिसर में किया गया। इस रैली में पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया था ताकि आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें सक्रिय कर उत्साह भरा जा सके निश्चित रूप से आडवाणी की मौजुदगी से कार्यकर्ताओं का जोश और उत्साह हिलौरें ले रहा था और पार्टी अपने इस उद्देश्य में कामयाब भी दिखाई दी। रैली में न तो आम जनता की भागीदारी थी और न ही बड़ी रैलियों जैसा उत्साह और वातावरण।
हालांकि यह माना जा रहा था कि चुनाव से पूर्व पार्टी राजधानी में कोई बड़ी रैली कर चुनावी शंखनाद करेगी लेकिन जिस तरह आडवाणी की इस रैली को प्रदेश भाजपा आम जनता से नहीं जोड़ पाई उससे आडवाणी के चुनावी शंखनाद की गूंज भी औपचारिक होकर रह गई। पार्टी के भीतर ही इस रैली को सीमित स्तर पर करने को लेकर मतभेद था। कुछ नेता चाहते थे कि रैली भले ही कुछ दिन बाद हो लेकिन विशाल स्तर पर रैली की जानी चाहिए ताकि आम जनता के बीच सरकार के काले चिट्ठों की पोल खोली जा सके।
आज की यह रैली समूची पार्टी का मुख्यमंत्राी पद के उम्मीदवार प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा को समर्थन भी साबित हुई। रैली के माध्यम से यह भी संदेश देने की कोशिश की गई कि प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा की मुख्यमंत्राी पद की उम्मीदवारी पर पार्टी के सभी नेता एक राय से पार्टी के साथ हैं। रैली में जिस तरह सभी नेताओं ने दिल्ली से जुड़े मुद्दे उठाते हुए प्रदेश सरकार की नाकामियों को उजागर किया उससे यह रैली कांग्रेस व सरकार पर पहला चुनावी हमला भी साबित हुई। यहां तक कि आडवाणी ने भी दिल्ली को विश्व की सर्वोत्तम राजधानी बनाने तथा आम जनता की मूलभूत समस्याओं से संबधित मुद्दे उठाये।

चुनाव के आगाज पर ही बिखर गई उम्मीदें

आगाज तो चुनाव का था लेकिन उम्मीदें बिखर गई। इसे पार्टी की भीतरी गुटबाजी कहें या फिर कोई छोटी सी चूक कहें आखिर अनाधिकृत कालोनियों को सर्टीफिकेट बांटने की सरकार व पार्टी की एक बड़ी उपलब्धि सरकार को गौरवान्वित करने के बजाय शर्मसार कर गई। एक ओर हंगामे, मारपीट व अव्यवस्थाओं ने इस रैली को पलीता लगा दिया तो दूसरी और सोनिया के कद के अनुरूप भीड़ जुटाने मे ंभी सरकार असफल साबित हुई। छत्रासाल स्टेडियमें आज आयोजित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की रैली का आयोजन प्रदेश सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से किया गया था। इस रैली को आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था । इस रैली के माध्यम से अनाधिकृत कालोनियों के 40 लाख निवासियों के वोटों का रुख कांग्रेस की झोली की ओर करने की रणनीति सरकार ने बनाई थी और यह रैली इन कालोनियों के मुद्दे पर विपक्ष के लगातार हमलों का जवाब भी थी। पिछले दिनों अनाधिकृत कालोनी मुद्दे पर भाजपा की सफल रैली के बाद इस रैली को सफल बनाना सरकार के लिए एक चुनौती भी थी लेकिन सरकार और पार्टी आज इस चुनौती का सामना करने में विफल रही। रैली स्थल पर तमाम अव्यवस्थाएं तो थी ही साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कद के अनुरूप भीड़ का भी अभाव था। स्टेडियम को खाली देख मंच पर बैठी मुख्यमंत्राी व पार्टी के अन्य दिग्गज भी परेशान दिखाई दे रहे थे। सोनिया गांधी के पहुंचने तक स्टेडियम में कुछ भीड़ तो जुट गई लेकिन रही सही कसर किसानों के हंगामें और उसके बाद महिलाओं के साथ हुई मारपीट ने पूरी कर दी। रैली स्थल पर जिस तरह पत्राकार दीर्घा के ठीक पीछे लगभग दो दर्जन महिलाएं व पुरुष अचानक पहुंचे और सोनिया गांधी हाय हाय के नारे लगाने लगे उससे स्पष्ट था कि यह हंगामा पूर्व नियोजित था। आयोजक तथा सरकार का खुफिया तंत्रा इस हंगामे का अंदाजा लगाने में असफल रहा। रैली में प्रवेश निमंत्राण पत्रों के माध्यम से था और मजेदार बात यह थी कि हंगामा करने वाले किसानों के पास भी निमंत्राणपत्रा थे, एैसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि पार्टी में गुटबाजी के चलते ही पार्टी के ही कुछ नेताओं ने ही हंगामे का खेल करा दिया है। हालांकि पार्टी इसे विपक्ष की साजिश बता रही है लेकिन इस पूरे हंगामे के पीछे पार्टी की गुटबाजी भी साफ दिखाई दे रही है। आज की रैली में जो कुछ भी हुआ वह आगामी चुनाव की दृष्टि से पार्टी के लिए किसी भी दृष्टि से अच्छा शगुन नहीं है। रैली में जिस तरह सोनिया गांधी के आगमन तक भीड़ की इंतजार होती रही उससे आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थिति पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। कुल मिलाकर यह दिखाई दिया कि रैली का प्रबंधन किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था, यदि रैली प्रबंधन में थोड़ी भी सर्तकता बरती गई होती तो संभवतः सरकार और पार्टी को एैसी शर्मनाक स्थिति का सामना न करना पड़ता।