बीआरटी: कामयाबी को लेकर फिर भी सवाल कायम
बीआरटी बकोटा साउथ कोलंबिया में बने बीआरटी की तर्ज पर बनी राजधानी में बीआरटी बनाने की योजना
विश्व के 30 से अधिक देशों ने अपनाई बीआरटी परियोजना
चीन, इंडोनेशिया व इक्वाडोर में भी शुरु हुई बीआरटी परियोजना
भारत में वर्ष 2002 में बना हाईकैपिसिटी बस काॅरीडोर की योजना का प्रारूप
यह प्रस्ताव तैयार कराने में आईआईटी के परिवहन विशेषज्ञों की रही विशेष भूमिका
अंबेडकरनगर से दिल्ली गेट तक 14.5 किलोमीटर बीआरटी बनाने का हुआ निर्णय
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने भी की बीआरटी बनाने की संस्तुति
वर्ष 2005 में मिली आर्थिक वित्तीय कमेटी की सहमति
वर्ष 2006 में निर्माण कार्य हुआ शुरु
निर्माण पर कुल लागत लगभग 200 करोड़
प्रति किलोमीटर पर अनुमानित खर्च 15 करोड़
अब तक बन कर तैयार हुआ अंबेडकर नगर से मूलचंद तक 5.6 किलोमीटर
अभी भी लगभग 9 किलोमीटर का निर्माण है अधूरा
2010 तक 7 कोरीडोर को ईएफसी की मंजूरी
मौजुदा कोरीडोर सहित कुल 7 कोरीडोर बनाने की योजना1 अंबेडकरनगर से मूलचंद 14।5 किमी2। राजेन्द्र नगर से प्रगति मैदान 8 किमी3। जामिया से तिलकनगर 28 किमी4। निजामुद्दीन से नंदनगरी 15 किमी5। मूलचंद से जहांगीरपुरी 27.5 किमी6. कोण्डली से गोकुलपुरी 14 किमी7. शास्त्राीपार्क से करावल नगर 8.5
किमी
दो अन्य कोरीडोर की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार
प्रस्तावित 7 बीआरटी पर अनुमानित खर्च 1819.10 करोड़
राष्ट्रकुल खेलों तक 7 बीआरटी की योजना
सरकार ने राष्ट्रकुल खेलों तक 7 कोरीडोर बनाने की योजना बनाई है। जिनमें एक पर काम चल रहा है तथा बाकी छह के लिए सर्वे पूरा होने के बाद सरकार की व्यय वित्त समिति ने भी 1819.10 करोड़ की मंजूरी दी है। बाकी छह कोरीडोर अंबेडकरनगर से मूलचंद तक14.5 किमी, राजेन्द्र नगर से प्रगति मैदान 8 किमी, जामिया से तिलकनगर 28 किमी, निजामुद्दीन से नंदनगरी 15 किमी, मूलचंद से जहांगीरपुरी 27.5 किमी, कोण्डली से गोकुलपुरी 14 किमी व शास्त्राीपार्क से करावल नगर 8.5 किमी बनाये जाने हैं। इनमें शास्त्राीपार्क करावलनगर कोरीडोर व मूलचंद से जहांगीर पुरी तक 27.5 किलोमीटर के लंबे कोरीडोर की तो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी बन कर तैयार हो चुकी है।
प्रस्तावित 7 बीआरटी पर अनुमानित खर्च 1819.10 करोड़
2020 तक क्या है योजना
2010 तक 7 बीआरटी 115.5 किलोमीटर
2011-2015 3 बीआरटी 28 किलोमीटर
2016-2020 16 बीआरटी 166.5 किलोमीटर
मौजुदा बीआरटी
हाईकैपेसिटी बस कारीडोर पर दिन भर में होते हैं 200 बसों के ढाई हजार फेरे
व्यस्त समय में प्रति घंटा लगभग 200 बसें गुजरती हैं
काॅरीडोर से जुड़े हैं 50 रूट
4 रूटों की बसें करती हैं पूरे काॅरीडोर का इस्तेमाल
पैदलयात्रियों व साईकिल सवारों के लिए अलग लेन
विकलांगों को विशेष प्राथमिकता
मौजुदा बीआरटी पर पैदल यात्रियों के लिए बने हैं 6 क्रांसिंग
प्रत्येक क्रासिंग पर तैनात हैं मार्शल
अधिकतम 180 सैकेण्ड की होगी रेड लाइट
बस स्टाॅप के लिए है कलर टोन
स्टाॅप से सट कर खड़ी होती हैं बसें
बीआरटी: कामयाबी को लेकर फिर भी सवाल कायम
बीआरटी को लेकर मुख्यमंत्राी शीला दीक्षित के इरादे ने एक बार फिर बीआरटी की प्रासंगिकता पर बहस खड़ी कर दी है। मुख्यमंत्राी भले ही बीआरटी को जारी रखने का एलान कर चुकी हैं लेकिन असली परीक्षण तो अभी भी होना है। जहां अगले दो वर्ष में 111.5 किलोमीटर के 6 बीआरटी की योजना प्रस्तावित हो वहां मात्रा 5.6 किलोमीटर बीआरटी का विवादित परीक्षण कितना उचित होगा यही बड़ा सवाल है। मुख्यमंत्राी ने मौजुदा बीआरटी के अगले हिस्से में कुछ परिवर्तन करने की बात कही है लेकिन नये परिवर्तनों के बाद भी दिल्ली में बढ़ता यातायात और छोटे वाहनों की बढ़ती संख्या क्या बीआरटी की राह नहीं रोकेगी इसे लेकर संदेह है। फिर राजधानी की सड़कों की चैडाई भी एक बड़ी समस्या है।
अप्रैल माह में जब राजधानी के पहले बस रेपिड ट्रांजिट काॅरीडोर (बीआरटी) को शुरु करने का सपना साकार हुआ तो इसकी सफलता को लेकर भी सवाल खड़े हो गये। जिस उत्साह के साथ सरकार ने बीआरटी परियोजना शुरु की थी वह उत्साह तार तार हो गया और बीआरटी को लेकर बुने गये सपने भी बिखरने लगे। राजधानी में हालांकि अंबेडकर नगर से दिल्लीगेट तक बनने वाले 14.5 किलोमीटर कोरीडोर का पूर्ण निर्माण अभी नहीं हुआ है और प्रथम चरण में अभी केवल 5.6 किलोमीटर काॅरीडोर ही बनकर तैयार हुआ है और इसी पर तमाम परीक्षण हो रहे है।
8 माह में भी खत्म नहीं हुआ परीक्षण
दिल्ली इंटीग्रेटिड मल्टी माॅडल ट्रांजिट सिस्टम (डीम्टस) की परियोजना के तहत राजधानी का पहला बस रेपिड ट्रांजिट काॅरीडोर (हाई कैपिसिटी बस काॅरीडोर) अंबेडकर नगर से दिल्ली गेट तक लगभग 14।5 किलोमीटर लंबा बनाया जाना है। लंबे समय से इस काॅरीडोर का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन निर्माण में लगातार हो रही देरी के चलते गत अप्रैल माह में 5.6 किलोमीटर अंबेडकर नगर से मूलचंद तक लंबा काॅरीडोर ही परीक्षण के लिए शुरु किया गया। पहले बीआरटी के 5.6 किलोमीटर कोरीडोर को 20 अप्रैल को जब परीक्षण के लिए खोला गया था तो कोरीडोर निर्माण में लगे एजेंसियों ने एक सप्ताह के भीतर ही इसका औपचारिक उद्घाटन करने की योजना बनाई थी लेकिन सामने आ रही अनेक समस्याओं के चलते आज तक इसका उद्घाटन नहीं हो सका है और इसे सफल करने के लिए रोजाना नये नये परीक्षण हो रहे हैं। बीते आठ माह में डीम्टस अपने परीक्षण पूरे नहीं कर सका है। सिग्नल,
जाम व वाहनों की संख्या है बड़ी समस्या
मौजुदा बीआरटी पर वाहनों का जाम, वाहनों की बढ़ती संख्या और सिग्नल व्यवस्था बड़ी समस्याएं हैं। कोरीडोर निर्माण में लगे विशेषज्ञों ने कोरीडोर पर जाम की स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञों से सिग्नल अंतराल निर्धारित किया था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद प्रत्येक सिग्नल पर वाहनों को नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है। इसका प्रमुख कारण छोटे वाहनों की भारी संख्या है। बसों को अलग लेन मिलने से जहां बस चालक और बस यात्राी तो खुश हैं लेकिन कार, स्कूटर, मोटरसाईकिल आदि छोटे वाहन चालकों के सामने प्रत्येक सिग्नल पर लंबे इंतजार की समस्या उत्पन्न हो गई है और इस इंतजार को खत्म करने का कोई रास्ता बीते आठ माह में विशेषज्ञ नहीं ढूंढ पाये हैं।
बस और छोटे वाहनों की संख्या
मौजुदा कोरीडोर पर 5.6 किलोमीटर की इस छोटी लंबाई में ही बस लेन पर दिन भर में 200 बसों के लगभग ढाई हजार फेरे लगते हैं जबकि व्यस्त समय में मात्रा आधे घंटे में ही ढाई हजार से अधिक छोटे वाहन कोरीडोर से गुजरते हैं, वाहनों की यही संख्या ही विवाद का कारण है। आलोचकों का तर्क है कि एक ओर दिन भर में बसों के ढाई हजार फेरों के लिए अलग बस लेन और दूसरी ओर मात्रा आधे घंटे में गुजरने वाले ढाई हजार वाहनों के लिए मात्रा एक लेन। अनेक परिवहन विशेषज्ञ जहां इस काॅरीडोर के समर्थन में तर्क देते रहे हैं वहीं काॅरीडोर के विरोधियों का कहना है कि इस काॅरीडोर के निर्माण से सड़कों पर वाहनों की गति तो धीमी हो ही रही है साथ ही छोटे वाहनों की लेन भी संकरी हो रही है।
अब नये परिवर्तन की तैयारी
मुख्यमंत्राी शीला दीक्षित ने मौजुदा बीआरटी के विस्तार के दौरान कुछ परिवर्तन करने व खामियों को दूर करने की बात कही है। इनमें बड़ा परिवर्तन बस लेन को बीच से हटाकर बांयी ओर लाना है। इसके अलावा सिग्नल, जाम, आदि से संबधित खामियों को भी उन्होंने दूर करने की बात कही है लेकिन बस लेन को बांयी ओर करने में सबसे बड़ा खतरा दुर्घटनाओं का है क्योंकि अक्सर पैदल यात्राी व दुपहिया सवार बांयी ओर ही चलते हैं, अलग बस लेन में दौड़ती तेज रफ्तार बसें दुर्घटनाओं का कारण हो सकती है। इसके अलावा अन्य वाहनों को दायें, बायें मुढ़ने मे ंएक बार फिर सिग्नल समय की नई समस्या सामने आ सकती है।
सवाल हैं कायम
इस काॅरीडोर की सफलता को लेकर जो सवाल इसका निर्माण शुरु होने से पहले उठ रहे थे वह आज भी कायम है, एक परीक्षण तो राजधानी की जनता देख चुकी है अब मौजुदा कोरीडोर के दूसरे चरण को भी नये परिवर्तनों के साथ जारी रखने का एलान हो ही चुका है, क्या दूसरे चरण में संबधित विभाग व सरकार की नाक बचेगी इसे लेकर कयास लगाये जा रहे है।
मौजुदा कोरीडोर से जुड़ी हैं 50 रूटों की बसें
अप्रैल माह से शुरु हुए राजधानी के पहले बस काॅरीडोर के 5।6 किलोमीटर हिस्से से 50 रूटों की 200 बसें जुड़ी हैं जो कोरीडोर के किसी न किसी हिस्से से होकर गुजरती है। अभी तक मात्रा 4 रूटों की बसें ही इस पूरे कोरीडोर का इस्तेमाल कर रही है। रूट संख्या 419, 423, 521 तथा 522 रूटों की बसें मौजुदा काॅरीडोर का पूरा इस्तेमाल कर रही है। व्यस्त समय के दौरान काॅरीडोर पर प्रति घंटा 75 से 200 बसें दौड़ती है। कोरीडोर में पैदल यात्रियों व साईकिल सवारों के लिए अलग लेन है तथा सड़क पार करने के लिए पैदल यात्रियों के लिए 6 जेब्रा कासिंग हैं जहां पर पर वर्दीधारी मार्शल तैनात किये गये हैं। बसों के लिए बनाये गये प्लेटफार्म कलर टोन पर आधरित है तथा प्लेटफार्म पर जीपीएस सुविधा भी है ताकि यात्रियों को आने वाली बस की सूचना मिल जाये।
क्या है बीआरटी
बस रेपिड ट्रांजिट एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सड़क पर बसांे की रफ्तार को कायम रखने के लिए बसों को अलग लेन दी जाती है। बीआरटी का मुख्य मकसद सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना तथा निजी वाहनों के प्रयोग को कम करना है। इसके पीछे परिकलपना यह है कि यदि बसें निर्विघ्न अपनी लेन में दौड़ती रहेंगी तो यात्री अपने वाहनों का प्रयोग करने के लिए गंतव्य तक जाने के लिए बसों का प्रयोग करेंगे। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए उठाये जा रहे कदमों मैट्रो रेल, मोने रेल, ट्रामा आदि की श्रंखला में ही बीआरटी की कल्पना की गई है।
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