रविवार, 28 नवंबर 2010
एलजी व शीला के टकराव पर गेंद अब केन्द्र के पाले में
शीला के गर्म तेवर के बाद शीला खेमे में है खलबली
यूडी व गृहमंत्रालय पर हमला पड़ सकता है महंगा
नई दिल्ली। सर्किल रेट मुद्दे पर सरकार व एलजी के बीच शुरु हुए टकराव के बाद मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के गर्म तेवर व जवाबी हमले ने एलजी व सरकार के बीच की खाई को न केवल और चैड़ा कर दिया है बल्कि संवैधानिक अधिकारों को लेकर ऐसी बहस शुरु कर दी है जिसका जवाब अब केवल केन्द्र को देना है। शीला ने एलजी के साथ साथ केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय व गृह मंत्रालय को भी जिस तरह निशाना बनाया है वह मुख्यमंत्री को महंगा भी पड़ सकता है। शीला के गर्म तेवर से हालांकि शीला खेमा उत्साहित है लेकिन मुख्यमंत्री के नजदीकी भी शीला के हमले को केन्द्र सरकार पर हमला मान रहे हैं, यही कारण है कि किसी भी अनहोनी को लेकर उनमें खलबली मची है।
सर्किल रेट के मुद्दे पर सरकार व राजनिवास के बीच शुरु हुई लड़ाई अब दोनों ही पक्षों के लिए नाक की लड़ाई बन गई है। शीला दीक्षित द्वारा एलजी के अधिकारों को सीधी चुनौती देने तथा एक के बाद एक मिसाइलें एलजी पर दागे जाने के बाद भी राजनिवास अभी खामोश है और कोई प्रतिक्रिया राजनिवास की ओर से नहीं आई है। सर्किल रेट की फाइल दोनों बार लौटाते समय भी राजनिवास ने सरकार के संवैधानिक अधिकारों पर न तो कोई टिप्पणी की थी और न ही सरकार को कोई सीधी चुनौती दी थी। राजानिवास ने दोनों बार केवल अपने सुझाव दिये थे, बावजूद इसके शीला दीक्षित ने एलजी पर सीधा हमला किया है बल्कि एलजी के संवैधानिक अधिकारों को चुनौती देने के लिए विधानसभा को माध्यम बनाया।
केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए गठबंधन की की सरकार है और उपराज्यपाल की नियुक्ति केन्द्र ही करता है। मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपनी बात विधानसभा में इस चर्चा से पहले ही गृह मंत्रालय के समक्ष रख चुकी थी, बावजूद इसके इतनी जल्दी विधानसभा में एलजी पर सीधा हमला करने की जरूरत क्यों पड़ी और इस हमले में एलजी के साथ साथ केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय को निशाना क्यों बनाया गया, यह एक ऐसा सवाल है जिसका कई तरह से विशलेषण किया जा रहा है। राजनैतिक विशलेषक इसे शीला का केन्द्र सरकार व पार्टी आलाकमान पर सीधा हमला भी मान रहे हैं, जो मुख्यमंत्री के लिए मंहगा भी पड़ सकता है। मुख्यमंत्री खेमे के विधायक व मंत्री भी मानते हैं कि शीला ने एलजी,यूडी व गृहमंत्रालय पर हमला कर केन्द्र से सीधी लड़ाई शुरु कर दी है।
हालांकि विधानसभा में चर्चा पूर्ण राज्य को लेकर थी, इस तरह की चर्चाएं विधानसभा का हिस्सा हो सकती हैं लेकिन यदि सरकार की मंशा यदि वास्तव में दिल्ली को पूर्ण राज्य देने का होती तो सरकार विधानसभा में चर्चा कराने से पहले केबिनेट से भी यह प्रस्ताव पारित कर सकती थी, लेकिन शायद असली मंशा एलजी पर हमला करना था, यही कारण है कि इस चर्चा की शुरुआत करने वाले विधायक मुकेश शर्मा से लेकर शिक्षा मंत्री अरविन्दर सिंह लवली व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तक सभी के निशाने पर एलजी ही रहे। यहां यह भी गौरतलब है कि विधानसभा में हुई यह चर्चा पूर्व नियोजित थी और इस पर उसी दिन सवेरे केबिनेट में भी चर्चा हुई थी। सूत्रो के अनुसार केबिनेट में ही शिक्षा मंत्री अरविन्दर सिंह लवली को भी इस मुद्दे पर बोलने के लिए अधिकृत किया गया था।
अब चूंकि शीला व एलजी के बीच शुरु हुई इस लड़ाई की गूंज पूरी दिल्ली में सुनाई दे रही है, ऐसे में अब सभी केन्द्र की ओर देख रहे हैं। चूंकि एलजी केन्द्र के प्रतिनिधि हैं ऐसे में केन्द्र शीला के भाषण को पार्टी अनुशासन की सीमा में मानता है या फिर सीमा के बाहर यह भी एक बड़ा सवाल है। इतना निश्चित है कि यदि केन्द्र शीला के तेवर को सहमति देता है तो एलजी के संवैधानिक अधिकारों को लेकर एक नई तहरीर लिखी जायेगी।
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
मिनी एयरपोर्ट बनेगा नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन
नई दिल्ली। राजधानी का नई दिल्ली रेलवे स्टेशन मिनी एयरपोर्ट टर्मिनल बनेगा। नई दिल्ली से आईजीआई एयरपोर्ट जाने वाली एयरपोर्ट एक्सप्रेस-वे मेट्रो लाइन सितम्बर माह में शुरू होगी और इसका किराया 150 रुपए होगा। यह लाइन शुरू होने के बाद नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन राजधानी का पहला सिटी एयरपोर्ट टर्मिनल होगा। इस स्टेशन की एक विशेषता यह भी है कि कुल पांच फ्लोर्स में 4.30 लाख वर्ग फुट क्षेत्र में बना यह राजधानी का सबसे बड़ा मेट्रो स्टेशन होगा। एयरपोर्ट जाने वाले यात्रियों की सुविधा के लिए बनाई गई इस लाइन की खासियत यह है कि यात्रियों को एयरपोर्ट पर चेक-इन करने के झंझट से मुक्ति मिलेगी। यह ट्रेन नई दिल्ली से शुरू होगी और यहीं यात्री चेक-इन कर सकेंगे। यात्रियों का सामान संबंधित एयरलाइंस द्वारा सीधे उड़ान में भेज भेजने की व्यवस्था की जा रही है। स्टेशन पर कुल 10 एयरलाइंस के काउंटर होंगे, जहां से यात्री अपना चेक-इन कराकर बोर्डिग पास ले सकेंगे। नई दिल्ली मेट्रो स्टेशन को कुल पांच फ्लोर में बनाया जा रहा है और एयरपोर्ट की तरह ही यहां प्रस्थान व आगमन के लिए अलग-अलग मिनी टर्मिनल है। पांच फ्लोरों में दो फ्लोर आगमन व प्रस्थान भूतल से उपर बनाए जा रहे है, जबकि कानकोर्स, प्लेटफार्म व मध्यतल जमीन के नीचे बनाए गए है। राजधानी के आम मेट्रो स्टेशनों से यह लगभग तीन गुना बड़ा स्टेशन होगा। इस स्टेशन के साथ मल्टीलेवल पार्किंग भी बनाई गई है। स्टेशन के प्रस्थान टर्मिनल तक जाने व अराइवल टर्मिनल से आने के लिए यात्रियों को बैगेज ट्रालियां भी उपलब्ध कराई जाएंगी। इसके अलावा स्टेशन पर रेस्टोरेंट और खान-पान के अन्य आउटलेट्स व क्योस्क भी होंगे। यात्रियों की सुविधा के लिए स्टेशन पर पर्याप्त संख्या में एस्केलेटर व लिफ्ट के अलावा 17 ऑटोमैटिक फेयर कलेक्शन द्वार होंगे। इसके अलावा यात्रियों को उड़ान की जानकारी देने के लिए विभिन्न स्थानों पर डिस्पले बोर्ड भी होंगे। सुरक्षा की ष्टि से भी स्टेशन पर कड़े सुरक्षा प्रबंध किए जा रहे है। स्टेशन के चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरे लगे होंगे। इस लाइन पर कुल छह स्टेशन होंगे, जिनमें नई दिल्ली के अलावा शिवाजी टर्मिनल, धौलाकुआं, नेशनल हाईवे-8, आईजीआई व द्वारका सेक्टर-21 है। यह लाइन लगभग बनकर तैयार है और सभी स्टेशनों पर सभी जरूरी उपकरण लगा दिए गए है। अगले कुछ दिनों में इस लाइन पर ट्रायल रन शुरू होने की संभावना है। रिलायंस इन्फास्ट्रक्चर द्वारा बनाई जा रही इस लाइन को कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले ही सितम्बर माह में शुरू कर दिया जाएगा। यह लाइन शुरु होने के बाद नई दिल्ली से आईजीआई एयरपोर्ट पहुंचने में लगभग 20 मिनट लगेंगे। 150 20 रुपए होगा कनॉट प्लेस से एयरपोर्ट तक का किराया मिनट में नई दिल्ली से पहुंचेंगे एयरपोर्ट कुल 4.30 लाख वर्ग फुट में बना है यह मेट्रो स्टेशन, पांच फ्लोर है यहां, भूतल से ऊपर होगा आगमन व प्रस्थान रेलवे व मेट्रो का जंक्शन बनेगा नई दिल्ली स्टेशन, राजधानी का पहला सिटी एयरपोर्ट टर्मिनल होगा स्टेशन पर ही होगी चेक-इन की सुविधा, 10 एयरलाइंस कंपनियों के काउंटर होंगे यहां स्टेशन के चप्पे-चप्पे पर सीसीटीवी कैमरों से रखी जाएगी नजर, उड़ानों के समय से संबंधित डिस्पले बोर्ड भी होंगे सितम्बर में शुरू होगी नई दिल्ली- एयरपोर्ट एक्सप्रेस-वे लिंक सेवा जल्द शुरू होगा
रविवार, 4 जुलाई 2010
साहब शहर से बाहर लेकिन कार दौड़ती रही घर से आफिस
साहब शहर से बाहर लेकिन कार दौड़ती रही घर से आफिस
उद्योगायुक्त की गैरमौजूदगी में 450 किलोमीटर दौड़ी उनकी कार
आरटीआई के जवाब में हुआ इस धांधली का खुलासा
गृहमंत्राी से की उद्योगायुक्त के खिलाफ कार्रवाई की मांग
नई दिल्ली। इसे विज्ञान का चमत्कार कहें या फिर जादू लेकिन यह हकीकत है कि कमिश्नर इण्डस्ट्री लगभग एक सप्ताह की छुट्टी पर दिल्ली से बाहर रहे और उनकी सरकार कार उन्हें लेकर उनके घर से कार्यालय व सचिवालय के चक्कर लगाती रही। वास्तविकता में भले ही यह संभव न हो लेकिन उनकी सरकारी कार ने यह कारनामा कर दिखाया है। उनकी गैर मौजूदगी में उनकी कार लगभग एक सप्ताह तक 450 किलोमीटर से अधिक सड़को ंपर दौड़ी है और यह दौड़ उनके घर से कार्यालय व सचिवालय के बीच ही हुई है। इस बात का खुलासा एक आरटीआई में होने के बाद इसकी शिकायत केन्द्रीय गृह मंत्राी पी चिदंबरम से भी की गई है।
दिल्ली के कमिशनर इण्डस्ट्री के पद पर वर्तमान में आईएएस अधिकारी चेतन बी सांघी तैनात हैं। इसके अलावा उनके पास डीएसआईआईडीसी के प्रबंध निदेशक के अलावा दिल्ली खादी विलेज बोर्ड का भी प्रभार है। उद्योग आयुक्त सांधी 15 फरवरी सोमवार को तीन दिन की छुट्टी पर हैदराबाद गये थे। इस छुट्टी की अनुमति उन्होंने मुख्य सचिव से ली थी और छुट्टी का घरेलू कारण बताया था, बाद में उन्होंने निजी कार्य का हवाला देते हुए छुट्टी को 19 फरवरी तक बढ़ा लिया। उनके छुट्टी पर जाने से दो दिन पहले 13 व 14 फरवरी को शनिवार व रविवार होने के कारण छुट्टी थी। इस प्रकार वह सात दिन छुट्टी पर रहे।
उनके छुट्टी पर रहने के बावजूद कमिशनर इण्डस्ट्री के रूप में मिली उन्हें मिली सरकारी कार संख्या डीएन 5 सीएफ 9990 सड़कों पर दौड़ती रही। कार की लाॅग बुक बताती है कि 13 फरवरी को कार दिल्ली सचिवालय से बसंतकुंज, डीएसआईआईडीसी, बसंतकुंज और फिर दिल्ली सचिवालय के बीच सवेरे 8 बजे से शाम 7 बजे तक 84 किलोमीटर दौड़ी।
15 फरवरी को जिस दिन कमिशनर इण्डस्ट्री हैदराबाद में थे, उस दिन उनकी सरकारी कार सवेरे 7.30 बजे से रात 10.30 बजे तक दिल्ली सचिवालय से बसंतकुंज उनके आवास, फिर डीएसआईआईडीसी कार्यालय, और फिर घर से होती हुई सचिवालय तक 135 किलोमीटर दौड़ी। इसके बाद 16 फरवरी को 88 किलोमीटर व 17 फरवरी को 100 किलोमीटर उनके घर से कार्यालयों के बीच उनकी कार दौड़ती रही। लागबुक के ‘दफ्तरी गाड़ी का इस्तेमाल करने वाले अधिकारी का नाम और पद’ के कालम में कमिशनर इण्डस्ट्री के रूप में ‘सी आई’ दर्शाया गया है जो यह बताता है कि कार कमिश्नर इण्डस्ट्री को लेकर दौड़ती रही।
यह सारी जानकारी डीएसआईआईडीसी ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। आरएन बरारिया नामक व्यक्ति द्वारा मांगी गई इस जानकारी का जवाब 20 मई को दिया गया है। आरटीआई का जवाब मिलने के बाद आरएन बरारिया ने कमिश्नर इण्डस्ट्री चेतन बी सांघी पर सरकारी कार का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उनकी शिकायत केन्द्रीय गृहमंत्राी पी चिदंबरम से की है।
गृहमंत्राी को भेजी गई शिकायत में कहा गया है कि कमिश्नर इण्डस्ट्री की सरकारी कार फरवरी माह के 24 दिन में 2529 किलोमीटर दौड़ी है जिससे पता चलता है कि प्रतिदिन औसतन 106 किलोमीटर उनकी कार सड़कों पर दौड़ती रही है। प्रतिदिन राजधानी के भीतर इतनी दूरी तय करने में किसी भी वाहन को 4 से 5 घंटे लगते हैं। शिकायती पत्रा में कहा गया है कि लगभग 5 घंटे अपनी कार में व्यतीत कर इण्डस्ट्री कमिश्नर एक साथ डीएसआईआईडीसी व कमिश्नर इडस्ट्री के अलावा खादी विलेज इण्डस्ट्री बोर्ड का कामकाज कैसे करते होंगे। बरारिया ने चिदंबरम को भेजे पत्रा में इसे धोखाधड़ी का मामला बताते हुए इसके लिए सीधे सीधे कमिश्नर इडस्ट्री को जिम्मेदार बताया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
उद्योगायुक्त की गैरमौजूदगी में 450 किलोमीटर दौड़ी उनकी कार
आरटीआई के जवाब में हुआ इस धांधली का खुलासा
गृहमंत्राी से की उद्योगायुक्त के खिलाफ कार्रवाई की मांग
नई दिल्ली। इसे विज्ञान का चमत्कार कहें या फिर जादू लेकिन यह हकीकत है कि कमिश्नर इण्डस्ट्री लगभग एक सप्ताह की छुट्टी पर दिल्ली से बाहर रहे और उनकी सरकार कार उन्हें लेकर उनके घर से कार्यालय व सचिवालय के चक्कर लगाती रही। वास्तविकता में भले ही यह संभव न हो लेकिन उनकी सरकारी कार ने यह कारनामा कर दिखाया है। उनकी गैर मौजूदगी में उनकी कार लगभग एक सप्ताह तक 450 किलोमीटर से अधिक सड़को ंपर दौड़ी है और यह दौड़ उनके घर से कार्यालय व सचिवालय के बीच ही हुई है। इस बात का खुलासा एक आरटीआई में होने के बाद इसकी शिकायत केन्द्रीय गृह मंत्राी पी चिदंबरम से भी की गई है।
दिल्ली के कमिशनर इण्डस्ट्री के पद पर वर्तमान में आईएएस अधिकारी चेतन बी सांघी तैनात हैं। इसके अलावा उनके पास डीएसआईआईडीसी के प्रबंध निदेशक के अलावा दिल्ली खादी विलेज बोर्ड का भी प्रभार है। उद्योग आयुक्त सांधी 15 फरवरी सोमवार को तीन दिन की छुट्टी पर हैदराबाद गये थे। इस छुट्टी की अनुमति उन्होंने मुख्य सचिव से ली थी और छुट्टी का घरेलू कारण बताया था, बाद में उन्होंने निजी कार्य का हवाला देते हुए छुट्टी को 19 फरवरी तक बढ़ा लिया। उनके छुट्टी पर जाने से दो दिन पहले 13 व 14 फरवरी को शनिवार व रविवार होने के कारण छुट्टी थी। इस प्रकार वह सात दिन छुट्टी पर रहे।
उनके छुट्टी पर रहने के बावजूद कमिशनर इण्डस्ट्री के रूप में मिली उन्हें मिली सरकारी कार संख्या डीएन 5 सीएफ 9990 सड़कों पर दौड़ती रही। कार की लाॅग बुक बताती है कि 13 फरवरी को कार दिल्ली सचिवालय से बसंतकुंज, डीएसआईआईडीसी, बसंतकुंज और फिर दिल्ली सचिवालय के बीच सवेरे 8 बजे से शाम 7 बजे तक 84 किलोमीटर दौड़ी।
15 फरवरी को जिस दिन कमिशनर इण्डस्ट्री हैदराबाद में थे, उस दिन उनकी सरकारी कार सवेरे 7.30 बजे से रात 10.30 बजे तक दिल्ली सचिवालय से बसंतकुंज उनके आवास, फिर डीएसआईआईडीसी कार्यालय, और फिर घर से होती हुई सचिवालय तक 135 किलोमीटर दौड़ी। इसके बाद 16 फरवरी को 88 किलोमीटर व 17 फरवरी को 100 किलोमीटर उनके घर से कार्यालयों के बीच उनकी कार दौड़ती रही। लागबुक के ‘दफ्तरी गाड़ी का इस्तेमाल करने वाले अधिकारी का नाम और पद’ के कालम में कमिशनर इण्डस्ट्री के रूप में ‘सी आई’ दर्शाया गया है जो यह बताता है कि कार कमिश्नर इण्डस्ट्री को लेकर दौड़ती रही।
यह सारी जानकारी डीएसआईआईडीसी ने एक आरटीआई के जवाब में दी है। आरएन बरारिया नामक व्यक्ति द्वारा मांगी गई इस जानकारी का जवाब 20 मई को दिया गया है। आरटीआई का जवाब मिलने के बाद आरएन बरारिया ने कमिश्नर इण्डस्ट्री चेतन बी सांघी पर सरकारी कार का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए उनकी शिकायत केन्द्रीय गृहमंत्राी पी चिदंबरम से की है।
गृहमंत्राी को भेजी गई शिकायत में कहा गया है कि कमिश्नर इण्डस्ट्री की सरकारी कार फरवरी माह के 24 दिन में 2529 किलोमीटर दौड़ी है जिससे पता चलता है कि प्रतिदिन औसतन 106 किलोमीटर उनकी कार सड़कों पर दौड़ती रही है। प्रतिदिन राजधानी के भीतर इतनी दूरी तय करने में किसी भी वाहन को 4 से 5 घंटे लगते हैं। शिकायती पत्रा में कहा गया है कि लगभग 5 घंटे अपनी कार में व्यतीत कर इण्डस्ट्री कमिश्नर एक साथ डीएसआईआईडीसी व कमिश्नर इडस्ट्री के अलावा खादी विलेज इण्डस्ट्री बोर्ड का कामकाज कैसे करते होंगे। बरारिया ने चिदंबरम को भेजे पत्रा में इसे धोखाधड़ी का मामला बताते हुए इसके लिए सीधे सीधे कमिश्नर इडस्ट्री को जिम्मेदार बताया है और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
ऐसे करते है विदेश में देश का नाम बदनाम
ये भी है एक सच
एक ब्रिटिश मीडिया में इन बच्चो को निर्माण
स्थलों पर कम करते बताया गया है
ऐसे करते हैं विदेश में देश का नाम बदानाम
e है विदेशी मीडिया की खबर का सच
देश की छवि को बिगाड़ने की कोशिश
नई दिल्ली। वहां गरीबी भी है और कठिनाईयों में जूझती जिंदगी भी है। हो सकता है कि उनकी हालत स्लम या जेजे कलस्टर में रहने वाले लोगों से भी दयनीय हो लेकिन दूध मूंहे बच्चों से कामनवेल्थ गेम परियोजना पर काम कराने की जो तस्वीर विदेशी मीडिया विश्व को दिखा रहा है उस तस्वीर के पीछे का सच विदेशी मीडिया की विश्वसनीयता को तार तार कर रहा है। इसके पीछे कभी विश्व में मीडिया के जरिए भारत की गरीबी को बेचने की मानसिकता दिखाई देती हैै तो कभी विदेशी खबरनवीसों की दिमागी खुराफात विश्व में भारत की छवि को कलंकित करती दिखाई देती है लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कहीं निर्माण में लगे श्रमिक गरीबी के चलते अपने बच्चों को स्कूल न भेज सकने कोे अभिशप्त हैं तो वहीं इसी देश में गरीब नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं की कतार भी दिखाई दे रही है। कभी कोई फिल्मकार आस्कर जीतने के लिए इस देश की अस्मत को पूरे विश्व में लुटाता है तो कभी कोई विदेशी मीडियाकर्मी मानवीयता के बहाने भारत की गरीबी को बेचने की कोशिश करता है लेकिन यह कोई आस्कर विजेता स्लम डाॅग की कहानी नहीं है कि इसके जरिए स्लम के नौनिहालों को डाॅग की तरह पेश कर आस्कर जीते जा सकें, और न ही यह विदेशी मीडिया की वह बदरंग रिर्पोट है जिसमें दूध मूंहे बच्चों को निर्माण स्थलों पर दिखाया गया है, यह वास्तव में वह सच है जो सच विदेशी मीडिया में प्रकाशित खबर की खबर तो लेता ही है साथ ही विदेशियों की भारत के बारे में बनी मानसिकता को भी प्रदर्शित करता है। किसी भी स्वाभिमानी भारतीय के लिए दिल को कचोटनी वाली खबर यह है कि लंदन के एक अखबार मेल आनलाइन ने निर्माण स्थलो ंपर खेलते बच्चों की तस्वीरों के जरिए अपनी रिपोर्ट में यह बताने की कोशिश की थी कि भारत में कामनवेल्थ परियोजनाओं पर दूध मूंहे बच्चों से भी काम कराया जा रहा है, लेकिन इस खबर का सच यह है कि निर्माण मजदूरों की कालोनियों में इन नौनिहालों के लिए एैसे क्रेच चलाये जा रहे हैं जहां उन्हें आहार भी दिया जाता है, शिक्षा भी दी जाती है और बचपन का लाड प्यार भी। मोबाइल क्रेच नामक एक स्वैच्छिक संस्था तो इंदिरागांधी स्टेडियम, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, शिवाजी स्टेडियम, इंदिरागांधी स्टेडियम, सिरी फोर्ट तथा खेल गांव में कार्य कर रहे मजदूर परिवारों के बच्चों के लिए पांच क्रेच चला रही है। हमने एक क्रेच में जाकर वहां की तस्वीर देखी निर्माण में लगी महिला मजदूरों का इन क्रेच के प्रति उत्साह भी देखा। स्टेडियम के निकट ही बसी अस्थायी लेबर कालोनी में कभी आसाम के रंगिया निवासी दीप लाल अपनी 3 वर्षीय बच्ची कंचन व बेटे पंकज को गोद में लेकर क्रेच की ओर बढ़ता दिखाई देता है तो कभी महिला मजदूर सुजिता, कुमुदनी, हस्ता व पूजा अपने बच्चों को लेकर क्रेच की ओर बढ़ती दिखाई देती है। वह बताती हैं कि सवेरे 9 बजे वह क्रेच में अपने बच्चों को लेकर जाती हैं ओर शाम 5 बजे काम से वापस लौटने के बाद बच्चों को वहां से लेते हुए घर पहुंचती है। इस क्रेच में बच्चों के लिए वह सब कुछ उपलब्ध कराने की कोशिश की गई है जिसे उसकी जरूरत है। दो बार नाश्ता व दोपहर में खाना दिये जाने के अलावा क्रेच में नियुक्त शिक्षिकाएं मनोयोग से इन बच्चों की देखभाल करने के साथ साथ प्राथमिक शिक्षा भी उपलब्ध कराती है। मोबाइल क्र्रेच की निदेशक मृदला बजाज के मुताबिक सभी पांच क्रेच में निर्माण मजदूरों के 400 से 500 प्रतिदिन लाये जाते हैं जिन्हे उनके माता पिता वहां छोड़कर मजदूरी करने जाते है।
देश की छवि को बिगाड़ने की कोशिश
नई दिल्ली। वहां गरीबी भी है और कठिनाईयों में जूझती जिंदगी भी है। हो सकता है कि उनकी हालत स्लम या जेजे कलस्टर में रहने वाले लोगों से भी दयनीय हो लेकिन दूध मूंहे बच्चों से कामनवेल्थ गेम परियोजना पर काम कराने की जो तस्वीर विदेशी मीडिया विश्व को दिखा रहा है उस तस्वीर के पीछे का सच विदेशी मीडिया की विश्वसनीयता को तार तार कर रहा है। इसके पीछे कभी विश्व में मीडिया के जरिए भारत की गरीबी को बेचने की मानसिकता दिखाई देती हैै तो कभी विदेशी खबरनवीसों की दिमागी खुराफात विश्व में भारत की छवि को कलंकित करती दिखाई देती है लेकिन तस्वीर का एक दूसरा पहलू यह भी है कि अगर कहीं निर्माण में लगे श्रमिक गरीबी के चलते अपने बच्चों को स्कूल न भेज सकने कोे अभिशप्त हैं तो वहीं इसी देश में गरीब नौनिहालों का भविष्य संवारने के लिए स्वैच्छिक संस्थाओं की कतार भी दिखाई दे रही है। कभी कोई फिल्मकार आस्कर जीतने के लिए इस देश की अस्मत को पूरे विश्व में लुटाता है तो कभी कोई विदेशी मीडियाकर्मी मानवीयता के बहाने भारत की गरीबी को बेचने की कोशिश करता है लेकिन यह कोई आस्कर विजेता स्लम डाॅग की कहानी नहीं है कि इसके जरिए स्लम के नौनिहालों को डाॅग की तरह पेश कर आस्कर जीते जा सकें, और न ही यह विदेशी मीडिया की वह बदरंग रिर्पोट है जिसमें दूध मूंहे बच्चों को निर्माण स्थलों पर दिखाया गया है, यह वास्तव में वह सच है जो सच विदेशी मीडिया में प्रकाशित खबर की खबर तो लेता ही है साथ ही विदेशियों की भारत के बारे में बनी मानसिकता को भी प्रदर्शित करता है। किसी भी स्वाभिमानी भारतीय के लिए दिल को कचोटनी वाली खबर यह है कि लंदन के एक अखबार मेल आनलाइन ने निर्माण स्थलो ंपर खेलते बच्चों की तस्वीरों के जरिए अपनी रिपोर्ट में यह बताने की कोशिश की थी कि भारत में कामनवेल्थ परियोजनाओं पर दूध मूंहे बच्चों से भी काम कराया जा रहा है, लेकिन इस खबर का सच यह है कि निर्माण मजदूरों की कालोनियों में इन नौनिहालों के लिए एैसे क्रेच चलाये जा रहे हैं जहां उन्हें आहार भी दिया जाता है, शिक्षा भी दी जाती है और बचपन का लाड प्यार भी। मोबाइल क्रेच नामक एक स्वैच्छिक संस्था तो इंदिरागांधी स्टेडियम, जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम, शिवाजी स्टेडियम, इंदिरागांधी स्टेडियम, सिरी फोर्ट तथा खेल गांव में कार्य कर रहे मजदूर परिवारों के बच्चों के लिए पांच क्रेच चला रही है। हमने एक क्रेच में जाकर वहां की तस्वीर देखी निर्माण में लगी महिला मजदूरों का इन क्रेच के प्रति उत्साह भी देखा। स्टेडियम के निकट ही बसी अस्थायी लेबर कालोनी में कभी आसाम के रंगिया निवासी दीप लाल अपनी 3 वर्षीय बच्ची कंचन व बेटे पंकज को गोद में लेकर क्रेच की ओर बढ़ता दिखाई देता है तो कभी महिला मजदूर सुजिता, कुमुदनी, हस्ता व पूजा अपने बच्चों को लेकर क्रेच की ओर बढ़ती दिखाई देती है। वह बताती हैं कि सवेरे 9 बजे वह क्रेच में अपने बच्चों को लेकर जाती हैं ओर शाम 5 बजे काम से वापस लौटने के बाद बच्चों को वहां से लेते हुए घर पहुंचती है। इस क्रेच में बच्चों के लिए वह सब कुछ उपलब्ध कराने की कोशिश की गई है जिसे उसकी जरूरत है। दो बार नाश्ता व दोपहर में खाना दिये जाने के अलावा क्रेच में नियुक्त शिक्षिकाएं मनोयोग से इन बच्चों की देखभाल करने के साथ साथ प्राथमिक शिक्षा भी उपलब्ध कराती है। मोबाइल क्र्रेच की निदेशक मृदला बजाज के मुताबिक सभी पांच क्रेच में निर्माण मजदूरों के 400 से 500 प्रतिदिन लाये जाते हैं जिन्हे उनके माता पिता वहां छोड़कर मजदूरी करने जाते है।
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