मंगलवार, 2 सितंबर 2008

सीएनजी संकट: जेब और रोजी पर मार

लम्बी होती सी एन जी वाहनों की कतार
समस्या का कारण
पैट्रोल की बढ़ती कीमतें बढ़ा रही हैं सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी वाहनों की बढ़ती संख्या से लंबी हो रही है कतार
वाहनों क संख्या के अनुपात में नहीं हैं सीएनजी स्टेशन
सीएनज की कमी नहीं, कमी है फिलिंग संसाधनों की
भूमि न मिलने से नहीं लग रहे हैं सीएनजी स्टेशन
भूमि के लिए 40 आवेदनों में से मात्रा आधा दर्जन स्थलों का हुआ आवंटन
संसाधनों के लिए ईपीसीए से भी की मदद की गुहार
कब होगा समाधान
राजधानी में एक मेगा स्टेशन व छह नये फिलिंग स्टेशन बनाने की योजना
दिसंबर तक होगा समस्या का पूरी तरह समाधान
एनसीआर के वाहनों के लिए एनसीआर में बनेंगे सीएनजी स्टेशन
नये स्टेशन खुलने में लगेंगे अभी छह माह

अब तक हुए उपाय
मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ाने के लिए 54 हाईकैपिसिटी विदेशी कम्प्रेशर का दिया आर्डर18 कम्प्रेशर राजधानी पहुंचे
5 कम्प्रेशरों ने किया काम शुरु
अन्य कम्प्रेशर कर रहे हैं विद्युत भार की स्वीकृति का इंतजार

खपत और क्षमता
राजधानी में 13 लाख किलो सीएनजी खपत होती है प्रतिदिन
10.5 लाख किलो प्रतिदिन फिलिंग करने की है सभी स्टेशनों की क्षमता
कितने हैं सीएनजी स्टेशन
आईजीएल के स्टेशन 65पैट्रोल पम्पों पर लगे 75डीटीसी डिपो में लगे स्टेशन 23
सीएनजी स्टेशनों की संख्या है कुल 163


सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी बसें 22500
आटो रिक्शा 55000
छोटे माल वाहक वाहन 24500
एनसीआर से प्रतिदिन आने वाले सीएनजी वाहन लगभग 30 हजार
अन्य प्राइवेट वाहन 1.30 लाख


2.25 लाख प्राइवेट व सार्वजनिक वाहन प्रतिदिन भरवाते हैं सीएनजी
सीएनजी वाहनों की संख्या पिछले 2 वर्ष में
वर्ष 2005 एक लाख सीएनजी वाहन
वर्ष 2008 लगभग ढाई लाख सीएनजी वाहन
दो वर्ष में बढ़ गये 250 प्रतिशत सीएनजी यूजर्स


तपती धूप, भीषण गर्मी ऊपर से घंटो का इंतजार। रोटी कमाने घर से निकले हैं लेकिन नहीं पता कब नम्बर आयेगा और कब सवारी मिलेगी। फिर शाम हो गई तो मालिक को किराया भी देना होगा। साब यह संकट तो रोटी का संकट हो गया है, इस तरह कतार में लगे रहेंगे तो कब कमायेंगे और क्या खायेंगे। कभी दो घंटे तो कभी चार घंटे समय की बरबादी। क्या करें, और किससे कहें। सीएनजी स्टेशनों के लंबी कतार में खड़े आटो चालकों की यह पीढ़ा उनके तनावग्रस्त व थके चेहरे ही बता देते हैं। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के तमाम सीएनजी स्टेशनों पर आटो चालक हों या फिर कार चालक सभी सीएनजी भरवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। दिन में कारों और आटो चालकों की कतार इन स्टेशनों के बाहर दिखाई देती है तो रात को ब्लूलाइन बसें कतार में दिखती हैं। लगभग एक लाख लोगों की रोजी रोटी सीएनजी पर निर्भर है। सीएनजी मिलेगी तो रोजी रोटी मिलेगी। यह तो रही आटो, टैक्सी चालकों और बस चालकों की पीढ़ा। निजी वाहन चालको ंकी पीढ़ा भी कम नहीं है। आफिस जाना हो या फिर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना हो, घर व आफिस के तमाम जरूरी कामों की तरह अब सीएनजी की कतार में इंतजार करना भी एक जरुरी काम हो गया है। निजी वाहन चालकों के सामने दो ही रास्ते हैं या तो महंगा पैट्रोल भरवाकर अपनी जेब खाली करें या फिर कतार में लग कर सीएनजी भरवायें। गनीमत है सीएनजी स्टेशनों पर निजी कारों में फिलिंग के लिए अलग मशीनें हैं अन्यथा सीएनजी भरवाने के लिए भी आफिस से छुट्टी लेनी पड़ती। सीएनजी ने राजधानी को प्रदूषण से मुक्त करने का सपना तो पूरा कर दिया लेकिन सीएनजी स्टेशनों पर लंबी होती वाहनों की कतार एक एैसी समस्या बन गई है जो आटो व बस चालकों की रोजी रोटी छीन रही है और अन्य वाहन चालकों का कीमती समय।
सीएनजी संकट का कारण
संकट सीएनजी का नहीं बल्कि सीएनजी फिलिंग का है। पैट्रोल की बढ़ती कीमतो के कारण सीएनजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है और वाहनों के अनुपात में न तो सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है और न ही मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ रही है। पिछले चार माह से सीएनजी स्टेशनो ंपर बढ़ते दबाव के बाद सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ाने व कम्प्रेशर क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम तो हुआ है लेकिन अभी उसका परिणाम आना बाकी है। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) की अपनी मजबूरियां हैं। गेल से सीएनजी की कोई कमी न होने के बावजूद आईजीएल बेबस है क्योंकि आईजीएल को नये स्टेशनों के लिए भूमि ही नहीं मिल रही है। राजधानी में सीएनजी आपूर्ति की जिम्मेदारी आईजीएल पर है और गैस अथारिटी आफ इंडिया (गेल) की ओर से आईजीएल को प्रतिदिन 2 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर सीएनजी गैस ़आवंटित है और राजधानी में सीएनजी की मौजुदा खपत 1.6 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर है। इससे स्पष्ट है कि सीएनजी की कोई कमी नहीं है और आईजीएल को खपत से ज्यादा सीएनजी आवंटित हो रही है। सीएनजी स्टेशनो ंपर वाहनों की बढ़ती कतार से इनवायरनमेंट पोलुशन प्रिवेंशन एण्ड कण्ट्रोल अथारिटी (ईपीसीए) भी चिंतित है और ईपीसीए इस संबध में आईजीएल को अपनी चिंता से अवगत भी करा चुकी है। प्रतिदिन एनसीआर से आने वाले लगभग 30 हजार निजी सीएनजी वाहन भी इस समस्या को बढ़ा रहे है।
समाधान की क्या है योजना
सीएनजी के इस संकट का समाधान करने के लिए आईजीएल ने 54 हाईकैपिसिटी कम्प्रेशर विदेश से आयात किये हैं जिनमें से 18 आईजीएल को प्राप्त हो चुके हैं और पांच कम्प्रेशर प्रगति मैदान आईपी इस्टेट, मैकटाफ, ओखला फेस 1, नरेला व मयूर विहार में लगाये गये हैं लेकिन बाकी 13 कम्प्रेशर अभी भी चालू होने का इंतजार कर रहे हैं, इसका प्रमुख कारण आईजीएल स्टेशनों को इन कम्प्रेशरों के मुताबिक विद्युत भार स्वीकृत न होना है। इसके अलावा समय की बचत के लिए प्रिसेट डिस्पेंसर भी लगाये जा रहे हैं। सौ से अधिक डिस्पेंसर मंगाये गये हैं। आईजीएल ने नये स्टेशन खोलने की तैयारी भी की है लेकिन भूमि उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या है, भूमि के लिए लगभग 40 आवेदनों में से मात्रा अभी तक केवल सरोजनी नगर व रोहिणी में ही भूमि आवंटित हुर्ह है। आईजीएल ने एनसीाअर से आने वाले वाहनों को एनसीआर में ही स्टेशन लगाकर सीएनजी उपलब्ध कराने की योजना बनाई है जबकि राजधानी के कंझावला में एक मेगा स्टेशन लगाये जाने के अलावा सीजीओ, मिन्टोरोड, रोहिणी फेस 2, मंगोलपुरी फेस 2, पीतमपुरा व सरोजनी नगर में नये स्टेशन लगाया जाना प्रस्तावित है। यह स्टेशन लगाने में कम से कम छह माह का वक्त लगेगा।
यूं तो होने लगेगी मारामारी
सीएनजी स्टेशनों पर कतार में लगे वाहन चालक कहते हैं कि यदि इसी तरह कतार बढ़ती रही तो सीएनजी के लिए मारामारी होने लगेगी। इन्द्रप्रस्थ स्टेशन के बाहर कतार में लगे वैशाली गाजियाबाद निवासी शील गुलाटी का कहना था कि जब तक सीएनजी स्टेशनों की संख्या नहीं बढ़ेगी संकट का समाधान नहीं होगा। वह बताते हैं कि कभी आधा घंटा तो कभी डेढ़ घंटा उन्हें कतार में लगता है। एक बड़ी कम्पनी के अधिकारी एस.शंकर कहते हैं कि उन्हें प्रतिदिन 45 मिनट सीएनजी के लिए खर्च करने पड़ते हैं। वह कहते हैं कि मौजुदा स्टेशनो ंपर मशीनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वैशाली के ही अशोक सोनी कहते हैं कि वह एक दिन के अंतराल में सीएनजी भरवाने आते हैं और लंबा इतजार करते है। वह कहते हैं कि सरकार को कुछ करना चाहिए तभी समाधान होगा। सीएनजी संकट से प्रतिदिन दो तीन घंटे कतार में लगने वाले आटो चालक सुशील कुमार का कहना है कि जितना समय सीएनजी भरवाने में लगता है उतने समय में वह दो सौ रुपये कमा सकता है लेकिन रोजाना उसे यह नुकसान सहना पड़ता है। मोतीहारी से दिल्ली में आटो चलाने आये सुरेन्द्र यादव का कहना है कि अब तो यह रोज की समस्या है, क्या करें बच्चों को रोटी खिलानी है तो लाइन में लगना ही होगा। विनोद नगर निवासी बच्चे लाल का कहना था कि उसे आज दो घंटे लाइन में हो गये हैं लेकिन अभी तक नम्बर नहीं आया है, यही स्थिति रोज होती है। उसका कहना था कि मशीने बढ़ाकर समाधान किया जा सकता है।

कांग्रेस के डेढ़ दर्जन विधायकों की टिकट पर सवाल

देना होगा जवाब निगम चुनाव की हार का
अपनी करतूतों से पार्टी को संकट में डालने वाले भी नप सकते हैं
निगम चुनाव में एक भी वार्ड नहीं जितवा पाये कई विधायक


कांग्रेस के लगभग डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायकों को विधानसभा चुनाव में पुनः प्रत्याशी बनाये जाने पर पार्टी के भीतर ही सवाल उठाये जा रहे हैं। यह विधायक एैसे हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा के एक भी वार्ड में कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं जितवा सके हैं। इन विधायकों से अब पूछा जायेगा कि उनके क्षेत्रों में पार्टी की इतनी दुर्गति क्यों हुई और विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के दावे का आधार क्या है। इसके अलावा समय समय पर अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने वाले विधायकों पर भी गाज गिर सकती है। पार्टी हाईकमान ने एैसे सभी विधायकों की सूची तैयार कर ली है। आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी हाईकमान किसी भी कीमत पर निगम चुनाव की पुनरावृत्ति नहीं चाहता, यही कारण है कि प्रत्याशियों के चयन में भी पूरी सावधानी बरती जा रही है और केवल चुनाव में विजय हासिल करने में सक्षम उम्मीदवारों को ही चुनाव मैदान में उतारे जाने की रणनीति बनाई जा रही है लेकिन पार्टी हाईकमान की दुविधा यह है कि डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायक एैसे हैं जिनके क्षेत्रों में निगम चुनाव के दौरान पार्टी को सभी वार्डो में करारी हार का सामना करना पड़ा। यह विधायक एक भी वार्ड में पार्टी प्रत्याशी की जीत नहीं करा सके, जिससे अब इनकी अपनी जीत पर भी सवाल लगा है।इन विधायकों में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व रोहतास नगर के विधायक रामबाबू शर्मा, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी व मालवीय नगर के विधायक डा।योगानंद शास्त्राी और राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा व आर.के.पुरम से विधायक बरखा सिंह भी शामिल हैं। इनके अलावा नरेला विधानसभा क्षेत्रा के विधायक चरण सिंह कंडेरा, बुराड़ी के विधायक जिले सिंह, तिमारपुर के विधायक सुरेन्द्र पाल सिंह बिटटू, बवाना के विधायक सुरेन्द्र कुमार, परिसीमन में नई सीट बनी मुंडका से दावेदार व नांगलोई के विधायक विजेन्द्र सिंह, शकूर बस्ती के विधायक डा.एस.सी.वत्स, माडल टाऊन के विधयक कुंवर करण सिंह, राजौरी गार्डन के विधायक रमेश लांबा, विकासपुरी के विधायक मुकेश शर्मा, नई सीट बनी बिजवासन से दावेदार व महीपालपुर के विधायक विजय सिंह लोचव, महरौली के विधायक व अब छतरपुर सीट से दावेदार बलराम तंवर, विश्वास नगर के विधायक नसीब सिंह व गोण्डा सीट से विधायक भीष्म शर्मा एैसे विधायक हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा से एक भी सीट पार्टी की झोली में नहीं डलवा सके। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उक्त सभी विधायक दावेदार हैं लेकिन पार्टी हाईकमान के कुछ नेताओं ने इन सभी विधायकों की दावेदारी पर सवाल लगा दिया है। पार्टी के केन्द्रीय हाईकमान का कहना है कि यदि यह सभी दावेदार अपनी जीत का दावा कर रहे हैं तो उन्हें अपनी दावेदारी से पहले यह भी बताना चाहिए कि यदि उनकी अपने क्षेत्रा में पकड़ है तो फिर निगम चुनाव में उनके क्षेत्रो ंसे पार्टी का सूपड़ा ही साफ क्यों हो गया। इसके अलावा विकास पुरी के विधायक मुकेश शर्मा एवं शकूर बस्ती के डा.एस.सी.वत्स पर एक अन्य आरोप अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने का भी है। मुकेश शर्मा ने बिजली बिलों के मुद्दे पर सचिवालय पर भीख मांग कर सरकार को कठघरे में खड़ा किया था तो डा.एस.सी.वत्स ने अपनी ही सरकार के खिलाफ रिर्पोट देकर सरकार की छीछालेदारी कराई थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल के मुताबिक चुनाव में उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया जायेगा जो जीतने में सक्षम होंगे तथा पार्टी के प्रति वफादार होंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई विधायक इस योग्यता को पूरा नहीं करेगा तो उनसे पूछा जायेगा कि चुनाव में उनकी जीत का आधार क्या है। उन्होंने बताया कि इस बारे में निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी को ही करना है।

असुरक्षित नोनिहल कोन रखे ख्याल

  • स्कूलों की असुरक्षा: अभिभावकों का बढ़ता भय
    राजधानी के स्कूलों में सुरक्षित नहीं हैं बच्चे
    लचीले सरकारी नियमों की खुलकर उड़ती हैं धज्जियां
    स्कूलों में सुरक्षा के लिए कठोर नियमों व कानून का है अभाव
    कभी मौत तो कभी अन्य दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं छात्रा छात्राएं
    स्कूल प्रशासन का रवैया रहता है लापरवाह
    स्कूलों के भीतर ही बढ़ रही हैं मारपीट, छेड़छाड़ की घटनाएं
    कई स्कूलों में दुष्कर्म की घटनाओं से हुआ शिक्षा जगत शर्मसार
    स्वीमिंग पुलों पर नहीं है लाइफ गार्ड की व्यवस्था
    अनुशासन के नाम पर मनमानी करते हैं स्कूल प्रशासन
    शिक्षकों द्वारा अमानवीय ढंग से मारपीट पर भी उठते रहे है
    अनेक स्कूलों में नहीं हैं सुरक्षा गार्ड
    बच्चों की सुरक्षा के मापदंड पूरे नहीं करते हैं अनेक स्कूल
    स्कूलों में नहीं है चारदिवारी
    शौचालयों में लगी रहती हैं अशलील तस्वीरें
    स्कूलों में परिवहन की उचित व्यवस्था होने से दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं मासूम बच्चे
    कई स्कूलों के भवन हैं जर्जर, अक्सर होते रहे हैं हादसे
    स्कूलों में अवसाद का शिकार होकर कई बच्चे कर चुके है आत्महत्या
    सीबीएसई के निर्देश के बावजूद स्कूलों में नहीं हैं काउंसलर
    अभिभावक संघों की राय के सुझावों की होती है उपेक्षा

    दिल्ली पब्लिक स्कूल मथुरा रोड के 13 वर्षीय मासूम छात्रा मोहम्मद नादिर की रहस्यमय मौत और उससे पूर्व दिल्ली पब्लिक स्कूल आर.के.पुरम की छात्रा पुष्पांजलि की मौत ने राजधानी के स्कूलों में छात्रा छात्राओं की सुरक्षा पर एक एैसा सवाल खड़ा कर दिया है जिससे अभिभावक भयभीत दिखाई देने लगे है। यह भय केवल डीपीएस या फिर डीपीएस की तरह ही जाने माने व बड़े स्कूलों से ही नहीं बल्कि स्कूल गली मौहल्ले के हों या फिर सरकारी व निजी स्कूलों में भी यह भय दिखाई देता है। कभी स्कूल के शिक्षकों द्वारा छात्रा छात्राओं के साथ की गई निमर्मतापूर्वक पिटाई तो कभी कक्षा में लगातार उपेक्षा से अवसाद की ओर बढ़ते छात्रा। कभी शिक्षकों द्वारा ही मासूम छात्राओं से अशलील हरकतें तो कभी दुष्कर्म की अमानवीय हरकत। यह मामले एैसे हैं जो मौजुदा शिक्षा व्यवस्था को ही कठघरे में खड़े कर रहे हैं। स्कूलों में दुर्घटनाओं, मारपीट, छेड़छाड़ दुष्कर्म व अशलील हरकतों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में ही राजधानी में दो दर्जन से अधिक एैसे मामले हो चुके हैं और आधा दर्जन से अधिक छात्रा छात्राएं अपनी जान गवां चुके हैं। इसके अलावा स्कूल में परोसे गये अवसाद के कारण आधा दर्जन छात्रा छात्राएं आत्महत्या भी कर चुके हैं। स्कूलों का प्रशासन अनुशासन के नाम पर छात्रा छात्राओं पर इतना दबाव बना देता है कि अधिकतर बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते है।
    स्कूलों में नहीं है उचित परिवहन व्यवस्था स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए कोई सटीक परिवहन व्यवस्था न होने के कारण बच्चे अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होते रहे हैं। हालांकि सरकार ने बच्चों को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए स्कूली वैन नीति बनाई है लेकिन अधिकतर स्कूलों के पास पार्किंग की जगह न होने से स्कूली वैन बीच सड़क पर ही बच्चों को उतारती हैं और छुट्टी के बाद बीच सड़क से ही बच्चों को बैठाया जाता है जिससे सड़क दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है।
    सुरक्षा के लिए है कठोर नियमो ंका अभाव राजधानी में सरकारी व निजी स्कूलों के लिए सरकार की ओर से सुरक्षा के कठोर नियमों का अभाव है। जो नियम हैं वह भी अत्यंत लचीले हैं ओर स्कूल प्रशासन अक्सर लचीले नियमों का भी पालन करते दिखाई नहीं देते। नियमासाुन सभी स्कूलों में गेटमैन होना चाहिए तथा सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था होने के साथ साथ चारदिवारी भी होनी चाहिए लेकिन अधिकतर स्कूलों में न तो सुरक्षा गार्ड हैं और न ही गेट मैन। सरकारी स्कूलों का तो अत्यंत बुरा हाल है। वहां तो भवन ही जर्जर है। पिछले दिनों ही एक स्कूल भवन की दीवार गिर जाने से तीन बच्चे बुरी तरह घायल हो गये थे। सरकारी स्कूलों में मिड डे मील परोसे जाने के दौरान अनेक बच्चे स्वयं ही स्कूल से निकल कर घरों तक पहुंच जाते हैं लेकिन स्कूल प्रबंधन द्वारा इसका संज्ञान नहीं लिया जाता।

क्या कहते है स्कूल प्रबंधक

  • लोनी रोड स्थित सिद्धार्थ इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के मैनेजर शशीकांत भारती ने बताया कि स्कूल भी समाज का ही एक हिस्सा है। जब समाज में चारो तरफ अपराधिक वारदातें हो रही हों तो स्कूल भी इससे बच नहीं सकते। हालांकि स्कूल प्रशासन बच्चों को सुरक्षात्मक माहौल देने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन कई बार कुछ घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिल ही जाती हैं। उन्होंने बताया कि पहले की तुलना में बच्चे अब ज्यादा हिंसक होते जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि स्कूल प्रशासन हर छोटी बात की खबर रखे तथा आवश्यक्ता पड़ने पर बच्चों को हिंसा के दुरगामी परिणामों को विस्तार से बताए। मयूर विहार फेज-3 स्थित विद्या बाल भवन के प्रधानाचार्य सतवीर शर्मा ने दुर्घटनाओं के संबंध में बताया कि स्कूलों में सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। कई स्कूलों में सुरक्षा के पूरे उपाय नहीं होते, जिसके कारण छात्र-छात्राएं दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा शिक्षकों द्वारा छात्रों के उत्पीड़न पर सतवीर ने बताया कि रेगुलर टीचर पूरी तरह से ट्रेन्ड होते हैं। इसके अलावा उच्च शिक्षा प्राप्त होने के कारण बच्चों के साथ दुव्र्यवहार और उत्पीड़न नहीं करते हैं। छात्रों को प्रताड़ित करने का कार्य ठेके पर रखे जाए शिक्षक करते हैं, जो न तो टेªन्ड होते हैं और ना ही उच्च शिक्षा प्राप्त। कई स्कूल कम वेतन देने की लालच में इन्हें रख लेते हैं, जिसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। दिलशाद गार्डन के ग्रीनफिल्ड पब्लिक स्कूल के उप-प्रधानाचार्य एसके शर्मा ने कहा कि छात्रों द्वारा आत्महत्या व हिंसा की घटनाओं के लिए छात्रा कम और वतावरण और अभिभावक ज्यादा दोषी हैं। किसी के पास बच्चों के साथ वक्त बिताने व उनकी समस्याएं सुनने का समय नहीं है। जिसके कारण ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं। इंद्रप्रस्थ विस्तार स्थित नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल के चेयरमैन वीपी पांचाल ने बताया कि अब तो लोग घरों में भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं, स्कूलों की बात कौन करे। वैसे स्कूल प्रशासन सदैव बच्चों की सुरक्षा के लिए सजग रहता है लेकिन छात्र कब क्या कर दे इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। सिद्धार्थ इंटरनेशनल स्कूल के अभिभावक-शिक्षक संघ के सदस्य रमाकान्त ने बताया कि अभिभावक-शिक्षक संघ इन घटनाओं को रोकने में महत्ती भूमिका निभा सकता है। प्रत्येक स्कूल के फीस से लेकर बच्चों की सुरक्षा तक पर निर्णय लेने में अभिभावक-शिक्षक संघ का विशेष योगदान होता है। अगर यह समस्याओं को सही तरीके से स्कूल प्रशासन के सामने उठाएं तो बहुत हद तक इन पर रोक लग सकती है।


    24 जनवरी 2008- पचास से ज्यादा स्कूलों के प्रधानाचार्यों ने केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्राी रेणुका चैधर से मुलाकात की। इसमें इस बात पर रजामंदी जताई गई कि शिक्षकों और अभिभावकों का एक कोर ग्रुप बनाया जाए, जो छात्रों की स्कूलों में सुरक्षा पर नजर रख सके। इसके साथ ही हेल्पलाइन बनाने पर भी विचार किया गया।
    16 मार्च 2008-सीबीएसई ने देशभर के सरकार व पब्लिक स्कूलों को एक फुल टाइम काउंसेलर रखने का आदेश दिया। जो छात्रों की समस्याओं का निराकरण कर सके।

  • घटनाएं
    25 फरवरी 2008-मंडावली में बारहवीं की छात्रा ने जान दी।
    8 मार्च 2008-सोनिया विहार में ग्यारहवीं के छात्र ने जान दी।
    13 मार्च 2008-गोकुलपुर में ग्यारहवीं के छात्र ने आत्महत्या की।
    26 मार्च-कोंडली स्थित दिनकर नेशनल पब्लिक स्कूल की कक्षा दस की छात्रा रिंकी कौशिक को शिक्षक की पिटाई के कारण जान गवानी पड़ी। 3 नवंबर को स्कूल में पढ़ाते समय स्कूल के शिक्षक ने उसे डंडे से सिर पर मार दिया था। उसके बाद रिंकी को अस्पताल में भर्ति किया गया। जहां वह कोमा में चली गई और 26 मार्च को उसकी मौत हो गई।
    21 अप्रैल 2008- मंडावली निवासी रोहित कुमार यादव शकरपुर स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय को स्कूल से गायब। 21 अप्रैल को अपहरण का मामला शकरपुर थाने में दर्ज।
    28 जुलाई-मंडावली स्थित नगर निगम प्राथमिक विद्यालय की चारदीवारी गिरने से तीन छात्र गंभीर रूप से घायल।

मुख्यमंत्राी के दावेदारों को चुनौती साबित हुई गोयल की रैली

दिग्गजों को दिखा दी अपनी ताकत

रैली तो एक बहाना भर थी, असल मकसद तो आला कमान को अपनी ताकत दिखाना था। निश्चित रूप से रामलीला मैदान में आज हुई रैली के माध्यम सेे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्राी विजय गोयल पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाने में कामयाब हुए है। उनकी यह रैली भाजपा में मुख्यमंत्राी पद के दावेदारों के लिए भी एक चुनौती साबित हुई है।ं अनाधिकृत कालोनी महासंघ के तत्वाव्धान में हुई यह रैली हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ थी लेकिन गोयल ने इस रैली के माध्यम से एक तीर से अनेक निशाने एक साथ साध लिए हैं। इस रैली के माध्यम से उन्होंने जहां पार्टी के दोनों दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी व राजनाथ सिंह को अपनी ताकत व मैनेजमेंट क्षमता से अवगत करा दिया वहीं कांग्रेस पर निशाना साधने के साथ साथ अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी में ही अपने विरोधियों पर भी निशाना साध दिया है। रैली के माध्यम से उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्राी पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत किया है और इस पद के अन्य दावेदारों को भी परेशानी में डाल दिया है। उन्होंने यह जता दिया है कि मुख्यमंत्राी पद के लिए उनकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। समय समय पार्टी से अलग निजी स्तर पर आंदोलनात्मक कार्यक्रम आयोजित करने के कारण गोयल हमेशा प्रदेश पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के आंखों की किरकिरी रहे हैं और यह नेता गोयल के एैसे कार्यक्रमों में शामिल होने से भी परहेज करते रहे हैं लेकिन आज की रैली में आडवाणी व राजनाथ की मौजुदगी के कारण एैसे नेताओं को भी बेमन से ही सही रैली में आना पड़ा। रैली का आहवान भाजपा की ओर से नहीं किया गया था लेकिन रैली में उमड़ी भीड़ देखकर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी इतने गदगद हुए कि उन्होंने भी रैली का श्रेय पार्टी को देने का प्रयास किया। उन्होंने विजय गोयल की ओर इशारा करते हुए कहा कि भाजपा ने ही इस नवयुवक को रैली की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने मंच से कहा कि उन्हें इस रैली में इतनी भीड़ उमड़ने की कल्पना नहीं थी। यह सर्वविदित है कि रैली के आयोजन में प्रदेश भाजपा का कोई योगदान नहीं था और न ही जिला व मंडल स्तर पर इस रैली को सफल बनाने की कोई कोशिश प्रदेश भाजपा द्वारा की गई थी लेकिन फिर भी तपती धूप में विजय गोयल लोगों की भारी भीड़़ इस रैली में जमा करने में कामयाब हुए। रैली की तारीफ आडवाणी ने भी की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह रैली देखकर अच्छा लगा। कुल मिलाकर गोयल ने जिस तरह आज अपना वर्चस्व दिखाया है उससे पार्टी हाईकमान को भी अब मुख्यमंत्राी पद के दावेदार की घोषणा करने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।