- गलत मानते हैं जमीन को वापिस लेना
- सभी धर्मो व धार्मिक मान्यताओं का आदर हो
- आजाद सरकार ने दिया साम्प्रदायिक ताकतो ंको मुद्दा
संजय टुटेजा
नई दिल्ली 4 जुलाई।
अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा दी गई जमीन का भले ही हुरियत और वहां के अन्य संगठनों ने विरोध किया हो लेकिन मुस्लिम उलेमा और बुद्धिजीवी इस विरोध को उचित नहीं मानते। एक बार जमीन आवंटित कर वापस लेने को वह सरकार का गलत कदम बताते हैं। उनका कहना है कि जम्मू कश्मीर सरकार ने जमीन वापिस लेकर साम्प्रदायिक ताकतो को राजनीति करने का मौका दे दिया है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा जमीन आवंटित किये जाने से जो आग कश्मीर की वादियों में अलगाववादी ताकतों व हुरियत आदि संगठनों द्वारा लगाई जा रही थी वही आग अब जमीन वापस लिए जाने के बाद देश भर में फैलती दिखाई दे रही है। विभिन्न मुस्लिम उलेमा व बुद्धिजीवी इसके लिए जम्मू कश्मीर सरकार को तो दोषी मानते ही हैं साथ ही केन्द्र सरकार के रवैये से भी नाखुश हैं। उनका कहना है कि तीर्थ यात्रियों जमीन उपलब्ध कराने में कोई हर्ज नहीं है और इस जमीन को लेकर किया गया विरोध किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। जामिया मिल्लिया में इस्लामिक स्टडीज के विभागाध्यक्ष प्रो.अख्तर उल वासे का कहना है कि इस तरह के मसलों पर बवाल नहीं होना चाहिए। यदि कोई सुविधा धर्म स्थलों या तीर्थ यात्रियों को दी जाती है तो उसका विरोध नहीं होना चाहिए सभी की धार्मिक भावनाओं का आदर करते हुए यह कार्य सर्वसम्मति से किए जाने चाहिएं। उन्होंने कहा कि धर्म को राजनीति से परे रखना चाहिए तथा धर्मगुरुओं को बैठाकर इस तरह के मसलांे का समाधान निकाला जाना चाहिए ताकि धर्म उन्माद का जरिया न बन सके। कुछ बुद्धिजीवियों ने जहां बेबाकी से अपनी राय व्यक्त की वही कुछ बुद्धिजीवियों व उलेमाओं ने अपना नाम न छापने की शर्त पर अपनी राय दी। फतेहपुरी शाही मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम का कहना है कि यह सरकार व श्रद्धालुओं का मामला है और यात्रियों को हर हाल में सुविधा मिलनी ही चाहिए। प्रत्येक धर्मस्थल व धर्म से जुड़े लोगों की बात सुनी जाये और इस तरह के मुद्दों पर साम्प्रदायिकता फैलाना कतई उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि एक बार अमरनाथ श्राइन बोर्ड को जमीन देने का फैसला ले लिया गया था तो फिर जमीन वापिस नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एैसे मामलों पर राजनीति करना शर्मनाक है। जमीअतुल-उलेमा-ए-हिन्द के सचिव मौलाना अब्दुल हमीद नौमानी ने कहा कि जम्मू कश्मीर सरकार ने जमीन वापस लेकर भाजपा व साम्प्रदायिक ताकतों को एक मुद्दा दे दिया है। उन्होंने इस पूरे मामले में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल एस.के.सिन्हा की भूमिका को गलत बताया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने जमीन देने का विरोध किया वह भी देश में शांति व अमन नहीं चाहते। यह एक धार्मिक मामला है और धार्मिक भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। एक बार जमीन देकर वापस लेना कतई उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि तीर्थ यात्राी केवल तीर्थ यात्रा के लिए वहां जाते हैं उनका मकसद वहां स्थायी रूप से रहना नहीं है एैसे में जमीन देने का विरोध कतई नहीं होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि सरकार को इस मामले का समाधान करना चाहिए। दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष कमाल फारूकी कहते हैं कि कश्मीर के हालात सुधर रहे थे एैसे में वहां की सरकार को कोई एैसा काम नहीं करना चाहिए था जिसे हालात बिगड़े। उन्होंने कहा कि अमरनाथ यात्रा के लिए अग जगह दे भी दी गई तो हुरियत व वहां के संगठनों को बवाल नहीं करना चाहिए था। अब अगर वापस ले ली गई है तो भी इस मुद्दे पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। उन्होंने का कि सभी का मकसद कश्मीर के हालात को सुधारना हो , इस तरह के मुद्दे पर राजनीति न हो।
1 टिप्पणी:
aapka ye paryas accha laga
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