बीआरटी: कामयाबी को लेकर फिर भी सवाल कायम
बीआरटी बकोटा साउथ कोलंबिया में बने बीआरटी की तर्ज पर बनी राजधानी में बीआरटी बनाने की योजना
विश्व के 30 से अधिक देशों ने अपनाई बीआरटी परियोजना
चीन, इंडोनेशिया व इक्वाडोर में भी शुरु हुई बीआरटी परियोजना
भारत में वर्ष 2002 में बना हाईकैपिसिटी बस काॅरीडोर की योजना का प्रारूप
यह प्रस्ताव तैयार कराने में आईआईटी के परिवहन विशेषज्ञों की रही विशेष भूमिका
अंबेडकरनगर से दिल्ली गेट तक 14.5 किलोमीटर बीआरटी बनाने का हुआ निर्णय
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने भी की बीआरटी बनाने की संस्तुति
वर्ष 2005 में मिली आर्थिक वित्तीय कमेटी की सहमति
वर्ष 2006 में निर्माण कार्य हुआ शुरु
निर्माण पर कुल लागत लगभग 200 करोड़
प्रति किलोमीटर पर अनुमानित खर्च 15 करोड़
अब तक बन कर तैयार हुआ अंबेडकर नगर से मूलचंद तक 5.6 किलोमीटर
अभी भी लगभग 9 किलोमीटर का निर्माण है अधूरा
2010 तक 7 कोरीडोर को ईएफसी की मंजूरी
मौजुदा कोरीडोर सहित कुल 7 कोरीडोर बनाने की योजना1 अंबेडकरनगर से मूलचंद 14।5 किमी2। राजेन्द्र नगर से प्रगति मैदान 8 किमी3। जामिया से तिलकनगर 28 किमी4। निजामुद्दीन से नंदनगरी 15 किमी5। मूलचंद से जहांगीरपुरी 27.5 किमी6. कोण्डली से गोकुलपुरी 14 किमी7. शास्त्राीपार्क से करावल नगर 8.5
किमी
दो अन्य कोरीडोर की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार
प्रस्तावित 7 बीआरटी पर अनुमानित खर्च 1819.10 करोड़
राष्ट्रकुल खेलों तक 7 बीआरटी की योजना
सरकार ने राष्ट्रकुल खेलों तक 7 कोरीडोर बनाने की योजना बनाई है। जिनमें एक पर काम चल रहा है तथा बाकी छह के लिए सर्वे पूरा होने के बाद सरकार की व्यय वित्त समिति ने भी 1819.10 करोड़ की मंजूरी दी है। बाकी छह कोरीडोर अंबेडकरनगर से मूलचंद तक14.5 किमी, राजेन्द्र नगर से प्रगति मैदान 8 किमी, जामिया से तिलकनगर 28 किमी, निजामुद्दीन से नंदनगरी 15 किमी, मूलचंद से जहांगीरपुरी 27.5 किमी, कोण्डली से गोकुलपुरी 14 किमी व शास्त्राीपार्क से करावल नगर 8.5 किमी बनाये जाने हैं। इनमें शास्त्राीपार्क करावलनगर कोरीडोर व मूलचंद से जहांगीर पुरी तक 27.5 किलोमीटर के लंबे कोरीडोर की तो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट भी बन कर तैयार हो चुकी है।
प्रस्तावित 7 बीआरटी पर अनुमानित खर्च 1819.10 करोड़
2020 तक क्या है योजना
2010 तक 7 बीआरटी 115.5 किलोमीटर
2011-2015 3 बीआरटी 28 किलोमीटर
2016-2020 16 बीआरटी 166.5 किलोमीटर
मौजुदा बीआरटी
हाईकैपेसिटी बस कारीडोर पर दिन भर में होते हैं 200 बसों के ढाई हजार फेरे
व्यस्त समय में प्रति घंटा लगभग 200 बसें गुजरती हैं
काॅरीडोर से जुड़े हैं 50 रूट
4 रूटों की बसें करती हैं पूरे काॅरीडोर का इस्तेमाल
पैदलयात्रियों व साईकिल सवारों के लिए अलग लेन
विकलांगों को विशेष प्राथमिकता
मौजुदा बीआरटी पर पैदल यात्रियों के लिए बने हैं 6 क्रांसिंग
प्रत्येक क्रासिंग पर तैनात हैं मार्शल
अधिकतम 180 सैकेण्ड की होगी रेड लाइट
बस स्टाॅप के लिए है कलर टोन
स्टाॅप से सट कर खड़ी होती हैं बसें
बीआरटी: कामयाबी को लेकर फिर भी सवाल कायम
बीआरटी को लेकर मुख्यमंत्राी शीला दीक्षित के इरादे ने एक बार फिर बीआरटी की प्रासंगिकता पर बहस खड़ी कर दी है। मुख्यमंत्राी भले ही बीआरटी को जारी रखने का एलान कर चुकी हैं लेकिन असली परीक्षण तो अभी भी होना है। जहां अगले दो वर्ष में 111.5 किलोमीटर के 6 बीआरटी की योजना प्रस्तावित हो वहां मात्रा 5.6 किलोमीटर बीआरटी का विवादित परीक्षण कितना उचित होगा यही बड़ा सवाल है। मुख्यमंत्राी ने मौजुदा बीआरटी के अगले हिस्से में कुछ परिवर्तन करने की बात कही है लेकिन नये परिवर्तनों के बाद भी दिल्ली में बढ़ता यातायात और छोटे वाहनों की बढ़ती संख्या क्या बीआरटी की राह नहीं रोकेगी इसे लेकर संदेह है। फिर राजधानी की सड़कों की चैडाई भी एक बड़ी समस्या है।
अप्रैल माह में जब राजधानी के पहले बस रेपिड ट्रांजिट काॅरीडोर (बीआरटी) को शुरु करने का सपना साकार हुआ तो इसकी सफलता को लेकर भी सवाल खड़े हो गये। जिस उत्साह के साथ सरकार ने बीआरटी परियोजना शुरु की थी वह उत्साह तार तार हो गया और बीआरटी को लेकर बुने गये सपने भी बिखरने लगे। राजधानी में हालांकि अंबेडकर नगर से दिल्लीगेट तक बनने वाले 14.5 किलोमीटर कोरीडोर का पूर्ण निर्माण अभी नहीं हुआ है और प्रथम चरण में अभी केवल 5.6 किलोमीटर काॅरीडोर ही बनकर तैयार हुआ है और इसी पर तमाम परीक्षण हो रहे है।
8 माह में भी खत्म नहीं हुआ परीक्षण
दिल्ली इंटीग्रेटिड मल्टी माॅडल ट्रांजिट सिस्टम (डीम्टस) की परियोजना के तहत राजधानी का पहला बस रेपिड ट्रांजिट काॅरीडोर (हाई कैपिसिटी बस काॅरीडोर) अंबेडकर नगर से दिल्ली गेट तक लगभग 14।5 किलोमीटर लंबा बनाया जाना है। लंबे समय से इस काॅरीडोर का निर्माण कार्य चल रहा है लेकिन निर्माण में लगातार हो रही देरी के चलते गत अप्रैल माह में 5.6 किलोमीटर अंबेडकर नगर से मूलचंद तक लंबा काॅरीडोर ही परीक्षण के लिए शुरु किया गया। पहले बीआरटी के 5.6 किलोमीटर कोरीडोर को 20 अप्रैल को जब परीक्षण के लिए खोला गया था तो कोरीडोर निर्माण में लगे एजेंसियों ने एक सप्ताह के भीतर ही इसका औपचारिक उद्घाटन करने की योजना बनाई थी लेकिन सामने आ रही अनेक समस्याओं के चलते आज तक इसका उद्घाटन नहीं हो सका है और इसे सफल करने के लिए रोजाना नये नये परीक्षण हो रहे हैं। बीते आठ माह में डीम्टस अपने परीक्षण पूरे नहीं कर सका है। सिग्नल,
जाम व वाहनों की संख्या है बड़ी समस्या
मौजुदा बीआरटी पर वाहनों का जाम, वाहनों की बढ़ती संख्या और सिग्नल व्यवस्था बड़ी समस्याएं हैं। कोरीडोर निर्माण में लगे विशेषज्ञों ने कोरीडोर पर जाम की स्थिति से निपटने के लिए विशेषज्ञों से सिग्नल अंतराल निर्धारित किया था लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद प्रत्येक सिग्नल पर वाहनों को नियंत्रित करना मुश्किल हो रहा है। इसका प्रमुख कारण छोटे वाहनों की भारी संख्या है। बसों को अलग लेन मिलने से जहां बस चालक और बस यात्राी तो खुश हैं लेकिन कार, स्कूटर, मोटरसाईकिल आदि छोटे वाहन चालकों के सामने प्रत्येक सिग्नल पर लंबे इंतजार की समस्या उत्पन्न हो गई है और इस इंतजार को खत्म करने का कोई रास्ता बीते आठ माह में विशेषज्ञ नहीं ढूंढ पाये हैं।
बस और छोटे वाहनों की संख्या
मौजुदा कोरीडोर पर 5.6 किलोमीटर की इस छोटी लंबाई में ही बस लेन पर दिन भर में 200 बसों के लगभग ढाई हजार फेरे लगते हैं जबकि व्यस्त समय में मात्रा आधे घंटे में ही ढाई हजार से अधिक छोटे वाहन कोरीडोर से गुजरते हैं, वाहनों की यही संख्या ही विवाद का कारण है। आलोचकों का तर्क है कि एक ओर दिन भर में बसों के ढाई हजार फेरों के लिए अलग बस लेन और दूसरी ओर मात्रा आधे घंटे में गुजरने वाले ढाई हजार वाहनों के लिए मात्रा एक लेन। अनेक परिवहन विशेषज्ञ जहां इस काॅरीडोर के समर्थन में तर्क देते रहे हैं वहीं काॅरीडोर के विरोधियों का कहना है कि इस काॅरीडोर के निर्माण से सड़कों पर वाहनों की गति तो धीमी हो ही रही है साथ ही छोटे वाहनों की लेन भी संकरी हो रही है।
अब नये परिवर्तन की तैयारी
मुख्यमंत्राी शीला दीक्षित ने मौजुदा बीआरटी के विस्तार के दौरान कुछ परिवर्तन करने व खामियों को दूर करने की बात कही है। इनमें बड़ा परिवर्तन बस लेन को बीच से हटाकर बांयी ओर लाना है। इसके अलावा सिग्नल, जाम, आदि से संबधित खामियों को भी उन्होंने दूर करने की बात कही है लेकिन बस लेन को बांयी ओर करने में सबसे बड़ा खतरा दुर्घटनाओं का है क्योंकि अक्सर पैदल यात्राी व दुपहिया सवार बांयी ओर ही चलते हैं, अलग बस लेन में दौड़ती तेज रफ्तार बसें दुर्घटनाओं का कारण हो सकती है। इसके अलावा अन्य वाहनों को दायें, बायें मुढ़ने मे ंएक बार फिर सिग्नल समय की नई समस्या सामने आ सकती है।
सवाल हैं कायम
इस काॅरीडोर की सफलता को लेकर जो सवाल इसका निर्माण शुरु होने से पहले उठ रहे थे वह आज भी कायम है, एक परीक्षण तो राजधानी की जनता देख चुकी है अब मौजुदा कोरीडोर के दूसरे चरण को भी नये परिवर्तनों के साथ जारी रखने का एलान हो ही चुका है, क्या दूसरे चरण में संबधित विभाग व सरकार की नाक बचेगी इसे लेकर कयास लगाये जा रहे है।
मौजुदा कोरीडोर से जुड़ी हैं 50 रूटों की बसें
अप्रैल माह से शुरु हुए राजधानी के पहले बस काॅरीडोर के 5।6 किलोमीटर हिस्से से 50 रूटों की 200 बसें जुड़ी हैं जो कोरीडोर के किसी न किसी हिस्से से होकर गुजरती है। अभी तक मात्रा 4 रूटों की बसें ही इस पूरे कोरीडोर का इस्तेमाल कर रही है। रूट संख्या 419, 423, 521 तथा 522 रूटों की बसें मौजुदा काॅरीडोर का पूरा इस्तेमाल कर रही है। व्यस्त समय के दौरान काॅरीडोर पर प्रति घंटा 75 से 200 बसें दौड़ती है। कोरीडोर में पैदल यात्रियों व साईकिल सवारों के लिए अलग लेन है तथा सड़क पार करने के लिए पैदल यात्रियों के लिए 6 जेब्रा कासिंग हैं जहां पर पर वर्दीधारी मार्शल तैनात किये गये हैं। बसों के लिए बनाये गये प्लेटफार्म कलर टोन पर आधरित है तथा प्लेटफार्म पर जीपीएस सुविधा भी है ताकि यात्रियों को आने वाली बस की सूचना मिल जाये।
क्या है बीआरटी
बस रेपिड ट्रांजिट एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें सड़क पर बसांे की रफ्तार को कायम रखने के लिए बसों को अलग लेन दी जाती है। बीआरटी का मुख्य मकसद सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देना तथा निजी वाहनों के प्रयोग को कम करना है। इसके पीछे परिकलपना यह है कि यदि बसें निर्विघ्न अपनी लेन में दौड़ती रहेंगी तो यात्री अपने वाहनों का प्रयोग करने के लिए गंतव्य तक जाने के लिए बसों का प्रयोग करेंगे। दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने के लिए उठाये जा रहे कदमों मैट्रो रेल, मोने रेल, ट्रामा आदि की श्रंखला में ही बीआरटी की कल्पना की गई है।
शनिवार, 20 दिसंबर 2008
बुधवार, 10 दिसंबर 2008
आखिर भाजपा क्यों नहीं जीत सकी दिल्ली का दिल
कहां हुई भूल, क्यों नहीं खिला फूल
कहीं भूल, कहीं गलती और कहीं अति आत्मविश्वास बना हार का कारण
दस वर्ष में नहीं विकसित हुआ मजबूत नेतृत्व
टिकट वितरण में हुई मनमानी
पार्षदों को टिकट न देने का निर्णय साबित हुआ गलत
जनाधार वाले स्थानीय नेताओं की हुई उपेक्षा
परिसीमन के दौरान निष्क्रियता से ही शुरु हुआ हार का सफर
संगठन चुनाव में चहेतों को बांटे पद
आम कार्यकर्ता संगठन से हुआ दूर
अनिवासियों की ताकत को नहीं समझ पाई भाजपा
पार्टी के दिग्गजों की चिंता रही सिर्फ चहेतों को जिताने पर
अनेक गलत फैसले पड़े भारी
प्रत्याशियों के पास थी कार्यकर्ताओं की कमी
स्टार प्रचारकों की सभाओं में भी उलझे रहे प्रत्याशी व कार्यकर्ता
मुद्दों का सही चयन नहीं कर पाये चुनाव मैनेजर
जनता को जोड़ने के लिए कोई बड़ा जनांदोलन नहीं चला
मुख्यमंत्री पद पर मल्होत्रा को भी स्वीकार नहीं कर पाये मतदाता
अंत तक उठते रहे बगावत के स्वर
बसपा ने ही बचाई लाज
अनाधिकृत कालोनियों को सर्टीफिकेट पडे महंगे
संजय टुटेजा
अब मंथन होगा, हार का मंथन, कहां तो शानदार जीत और सरकार बनाने के सपने और कहां शर्मनाक हार। एैसी हार जिसने भाजपा के चुनाव मैनेजरों को शर्मसार कर दिया है। पार्टी के दिग्गज आज नजरे चुरा रहे हैं, नजरें मिलाएं भी तो कैसे, आखिर अंतिम समय तक आत्मविश्वास से लबरेज जीत के नगाड़े पीटे जा रहे थे। अब कोई मुद्दो को गलत बताकर अपना बचाव कर रहा है तो कोई चुनाव प्रबंधन और टिकट वितरण को हार का जिम्मेदार मान रहा है। इन मैनेजरों के पास तो अब भी बचाव के पचास बहाने हैं लेकिन आम कार्यकता इस हार से आहत है। कार्यकर्ताओं की पीड़ा यह है कि मात्रा एक महिला शीला दीक्षित से एक पूरा संगठन हार गया। कार्यकर्ताओं की जबान परं बस एक ही सवाल है कि जब एक महिला एक पूरी पार्टी को विजयी बना सकती है तो फिर एक पूरी पार्टी और तमाम स्टार प्रचारक दिल्ली का दिल क्यों नहीं जीत सके।
अब फिर शुरुआत होगी, सत्ता के सफर की नई शुरुआत और पांच वर्ष का लंबा इंतजार। प्रदेश भाजपा के तमाम दिग्गज अब हार के मंथन और विशलेषण की बात कर रहे हैं, मंथन तो पिछली हार के बाद भी हुए थे और विशलेषण कर कमियां भी ढूंढी गई थी लेकिन फिर गलतियां हुई, फिर भीतरघात हुई, फिर मनमानी हुई और एक बार फिर निश्चित जीत के सपने भी देखे गये। सपनों को साकार करने की पहल न तो 1998 की हार के बाद शुरु हुई और न ही वर्ष 2003 की हार के बाद शुरु हुई, आज आम कार्यकर्ताओं का यही कहना है कि यदि पार्टी ने सचमुच दिल्ली का दिल जीतने की कोई पहल पिछले दस वर्षो में की होती तो निश्चित रूप से पार्टी के तमाम दिग्गज आज इस शर्मनाक हार पर शर्मसार न होते। जिन विधानसभा सीटों पर भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब रही है वहां का आम कार्यकर्ता भी पार्टी के भीतर बढ़ती सामंतवादी प्रवृति से दुखी है। एक अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ताओं की टीस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश मुख्यालय पर आज बुराड़ी की एक महिला कार्यकर्ता की आंखों में बुराड़ी की जीत पर खुशी नहीं बल्कि अपने नेताओं की मनमानी को लेकर गुस्सा और चेहरे पर टीस थी।
आम कार्यकर्ता की जबान पर जो सवाल हैं उनमें से किसी का जवाब पार्टी व इस चुनाव के मैनेजरों के पास नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष डा.हर्षवर्धन बस यह कह कर चुप हो जाते हैं कि ‘एैसी उम्मीद नहीं थी’ तो उधर चुनाव के प्रमुख मैनेजर अरुण जेटली साफगोई से हार की जिम्मेदारी ले रहे हैं लेकिन कार्यकर्ता यह पूछ रहे हैं कि क्या दिग्गजों के यह बयान पार्टी का कुछ भला कर पायेंगे। कांग्रेस की दस वर्षो की सत्ता के बावजूद न तो इनकमबैंसी का असर और न ही सरकार के प्रति जनता की नाराजगी का कोई असर। आखिर सरकार की खामियों को क्यों नहीं भुना पाई भाजपा, इसके एक नहीं अनेक कारण है और अब आम कार्यकर्ता इन्हीं कारणों का पोस्टमार्टम चाहता है।
परिसीमन से ही शुरु हो गई थी हार
विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की शुरुआत तो परिसीमन से ही हो गई थी। परिसीमन के दौरान ओपी कोहली व प्रो।विजय कुमार मल्होत्रा को परिसीमन में भाजपा की राय रखने की जिम्मेदारी पार्टी ने दी थी लेकिन 70 विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन कांग्रेस नेताओं के प्रस्ताव पर हो गया और भाजपा की ओर से प्रस्ताव तक तैयार नहीं किया गया, नतीजतन कांग्रेस के नेताओं ने विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन अपनी जीत के समीकरणों के अनुसार कराया।
दस वर्ष में नहीं विकसित हुआ मजबूत नेतृत्व
दस वर्ष पूर्व प्रदेश में भाजपा सरकार के पतन के बाद भाजपा प्रदेश में कोई एैसा बड़ा नेता विकसित नहीं कर पाई जिसकी दिल्ली की आम जनता तक पकड़ हो। पार्टी के कार्यकर्ताओं को पूर्व मुख्यमंत्राी मदनलाल खुराना जैसे नेता की कमी आज भी खलती है। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज व मुख्यमंत्राी पद के उम्मीदवार प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा जैसे नेता तो हुए लेकिन इनमें से किसी भी नेता ने दिल्ली को अपना कर्मक्षेत्रा नहीं बनाया और राष्ट्रीय राजनीति में ही अपना भविष्य तलाशने की कोशिश की। पिछले पांच वर्ष में प्रदेश स्तर पर डा.हर्षवर्धन, विजय गोयल व प्रो.जगदीश मुखी अपना कद इतना ऊंचा नहीं कर सके कि वह सर्वमान्य नेता बन सकें। जनता को जोड़ने के लिए कोई बड़ा जनांदोलन भी प्रदेश भाजपा पिछले दस वर्ष में नहीं चला सकी।
प्रत्याशियों के चयन पर सवाल
विधानसभा सीटों पर भाजपा ने जो उम्मीदवार उतारे उनमे अधिकतर एैसे थे जिन्हें या तो किसी दिग्गज से दोस्ती का इनाम टिकट के रूप में मिला था या किसी को जी हजूर का ईनाम टिकट के रूप में मिला था। प्रत्याशियों के चयन हेतु गठित चयन समिति के अधिकतर सदस्य स्वयं कोई सुझाव देने के बजाय अपने टिकट के लिए स्वयं मल्होत्रा, जेटली व प्रदेश अध्यक्ष की जी हजूरी करते रहे। मल्होत्रा, जेटली और हर्षवर्धन की तिकड़ी संभावित जीत देख रही थी और अपने अधिक से अधिक चहेतों को विधानसभा में पहुंचाने की जुगत में रही।
गलत फैसले भी बने हार का कारण
भाजपा नेतृत्व अब दिल्ली में हार के मंथन के दौरान हार का दोष जिस पर भी मढ़े लेकिन हार का कारण नेतृत्व के गलत फैसले भी थे। एक बड़े वर्ग का यह भी मानना है कि मुख्यमंत्राी पद पर प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा का चयन पार्टी का गलत फैसला था तो पार्टी के ही कई नेता पार्टी द्वारा उठाये गये मुद्दों को भी गलत बताते हैं। उनका कहना है कि स्थानीय समस्याओं से जुड़े मुद्दे उठाने के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दी गई। अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में कमजोर व नये प्रत्याशी होने के कारण प्रत्याशियों के साथ आम कार्यकर्ता ही नहीं जुड़ा जिन क्षेत्रों में कार्यकर्ता सक्रिय भी हुए वहां स्टार प्रचारकों में उलझे रहे। पार्षदों को टिकट न देने का निर्णय भी पार्टी के मैनेजरों पर भारी पड़ा। यदि जीतने में सक्षम पार्षदों को टिकट दिया जाता तो स्थिति विपरीत हो सकती थी।
कहीं भूल, कहीं गलती और कहीं अति आत्मविश्वास बना हार का कारण
दस वर्ष में नहीं विकसित हुआ मजबूत नेतृत्व
टिकट वितरण में हुई मनमानी
पार्षदों को टिकट न देने का निर्णय साबित हुआ गलत
जनाधार वाले स्थानीय नेताओं की हुई उपेक्षा
परिसीमन के दौरान निष्क्रियता से ही शुरु हुआ हार का सफर
संगठन चुनाव में चहेतों को बांटे पद
आम कार्यकर्ता संगठन से हुआ दूर
अनिवासियों की ताकत को नहीं समझ पाई भाजपा
पार्टी के दिग्गजों की चिंता रही सिर्फ चहेतों को जिताने पर
अनेक गलत फैसले पड़े भारी
प्रत्याशियों के पास थी कार्यकर्ताओं की कमी
स्टार प्रचारकों की सभाओं में भी उलझे रहे प्रत्याशी व कार्यकर्ता
मुद्दों का सही चयन नहीं कर पाये चुनाव मैनेजर
जनता को जोड़ने के लिए कोई बड़ा जनांदोलन नहीं चला
मुख्यमंत्री पद पर मल्होत्रा को भी स्वीकार नहीं कर पाये मतदाता
अंत तक उठते रहे बगावत के स्वर
बसपा ने ही बचाई लाज
अनाधिकृत कालोनियों को सर्टीफिकेट पडे महंगे
संजय टुटेजा
अब मंथन होगा, हार का मंथन, कहां तो शानदार जीत और सरकार बनाने के सपने और कहां शर्मनाक हार। एैसी हार जिसने भाजपा के चुनाव मैनेजरों को शर्मसार कर दिया है। पार्टी के दिग्गज आज नजरे चुरा रहे हैं, नजरें मिलाएं भी तो कैसे, आखिर अंतिम समय तक आत्मविश्वास से लबरेज जीत के नगाड़े पीटे जा रहे थे। अब कोई मुद्दो को गलत बताकर अपना बचाव कर रहा है तो कोई चुनाव प्रबंधन और टिकट वितरण को हार का जिम्मेदार मान रहा है। इन मैनेजरों के पास तो अब भी बचाव के पचास बहाने हैं लेकिन आम कार्यकता इस हार से आहत है। कार्यकर्ताओं की पीड़ा यह है कि मात्रा एक महिला शीला दीक्षित से एक पूरा संगठन हार गया। कार्यकर्ताओं की जबान परं बस एक ही सवाल है कि जब एक महिला एक पूरी पार्टी को विजयी बना सकती है तो फिर एक पूरी पार्टी और तमाम स्टार प्रचारक दिल्ली का दिल क्यों नहीं जीत सके।
अब फिर शुरुआत होगी, सत्ता के सफर की नई शुरुआत और पांच वर्ष का लंबा इंतजार। प्रदेश भाजपा के तमाम दिग्गज अब हार के मंथन और विशलेषण की बात कर रहे हैं, मंथन तो पिछली हार के बाद भी हुए थे और विशलेषण कर कमियां भी ढूंढी गई थी लेकिन फिर गलतियां हुई, फिर भीतरघात हुई, फिर मनमानी हुई और एक बार फिर निश्चित जीत के सपने भी देखे गये। सपनों को साकार करने की पहल न तो 1998 की हार के बाद शुरु हुई और न ही वर्ष 2003 की हार के बाद शुरु हुई, आज आम कार्यकर्ताओं का यही कहना है कि यदि पार्टी ने सचमुच दिल्ली का दिल जीतने की कोई पहल पिछले दस वर्षो में की होती तो निश्चित रूप से पार्टी के तमाम दिग्गज आज इस शर्मनाक हार पर शर्मसार न होते। जिन विधानसभा सीटों पर भाजपा अपनी साख बचाने में कामयाब रही है वहां का आम कार्यकर्ता भी पार्टी के भीतर बढ़ती सामंतवादी प्रवृति से दुखी है। एक अनुशासित पार्टी के कार्यकर्ताओं की टीस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश मुख्यालय पर आज बुराड़ी की एक महिला कार्यकर्ता की आंखों में बुराड़ी की जीत पर खुशी नहीं बल्कि अपने नेताओं की मनमानी को लेकर गुस्सा और चेहरे पर टीस थी।
आम कार्यकर्ता की जबान पर जो सवाल हैं उनमें से किसी का जवाब पार्टी व इस चुनाव के मैनेजरों के पास नहीं है। प्रदेश अध्यक्ष डा.हर्षवर्धन बस यह कह कर चुप हो जाते हैं कि ‘एैसी उम्मीद नहीं थी’ तो उधर चुनाव के प्रमुख मैनेजर अरुण जेटली साफगोई से हार की जिम्मेदारी ले रहे हैं लेकिन कार्यकर्ता यह पूछ रहे हैं कि क्या दिग्गजों के यह बयान पार्टी का कुछ भला कर पायेंगे। कांग्रेस की दस वर्षो की सत्ता के बावजूद न तो इनकमबैंसी का असर और न ही सरकार के प्रति जनता की नाराजगी का कोई असर। आखिर सरकार की खामियों को क्यों नहीं भुना पाई भाजपा, इसके एक नहीं अनेक कारण है और अब आम कार्यकर्ता इन्हीं कारणों का पोस्टमार्टम चाहता है।
परिसीमन से ही शुरु हो गई थी हार
विधानसभा चुनाव में भाजपा की हार की शुरुआत तो परिसीमन से ही हो गई थी। परिसीमन के दौरान ओपी कोहली व प्रो।विजय कुमार मल्होत्रा को परिसीमन में भाजपा की राय रखने की जिम्मेदारी पार्टी ने दी थी लेकिन 70 विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन कांग्रेस नेताओं के प्रस्ताव पर हो गया और भाजपा की ओर से प्रस्ताव तक तैयार नहीं किया गया, नतीजतन कांग्रेस के नेताओं ने विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन अपनी जीत के समीकरणों के अनुसार कराया।
दस वर्ष में नहीं विकसित हुआ मजबूत नेतृत्व
दस वर्ष पूर्व प्रदेश में भाजपा सरकार के पतन के बाद भाजपा प्रदेश में कोई एैसा बड़ा नेता विकसित नहीं कर पाई जिसकी दिल्ली की आम जनता तक पकड़ हो। पार्टी के कार्यकर्ताओं को पूर्व मुख्यमंत्राी मदनलाल खुराना जैसे नेता की कमी आज भी खलती है। अरुण जेटली, सुषमा स्वराज व मुख्यमंत्राी पद के उम्मीदवार प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा जैसे नेता तो हुए लेकिन इनमें से किसी भी नेता ने दिल्ली को अपना कर्मक्षेत्रा नहीं बनाया और राष्ट्रीय राजनीति में ही अपना भविष्य तलाशने की कोशिश की। पिछले पांच वर्ष में प्रदेश स्तर पर डा.हर्षवर्धन, विजय गोयल व प्रो.जगदीश मुखी अपना कद इतना ऊंचा नहीं कर सके कि वह सर्वमान्य नेता बन सकें। जनता को जोड़ने के लिए कोई बड़ा जनांदोलन भी प्रदेश भाजपा पिछले दस वर्ष में नहीं चला सकी।
प्रत्याशियों के चयन पर सवाल
विधानसभा सीटों पर भाजपा ने जो उम्मीदवार उतारे उनमे अधिकतर एैसे थे जिन्हें या तो किसी दिग्गज से दोस्ती का इनाम टिकट के रूप में मिला था या किसी को जी हजूर का ईनाम टिकट के रूप में मिला था। प्रत्याशियों के चयन हेतु गठित चयन समिति के अधिकतर सदस्य स्वयं कोई सुझाव देने के बजाय अपने टिकट के लिए स्वयं मल्होत्रा, जेटली व प्रदेश अध्यक्ष की जी हजूरी करते रहे। मल्होत्रा, जेटली और हर्षवर्धन की तिकड़ी संभावित जीत देख रही थी और अपने अधिक से अधिक चहेतों को विधानसभा में पहुंचाने की जुगत में रही।
गलत फैसले भी बने हार का कारण
भाजपा नेतृत्व अब दिल्ली में हार के मंथन के दौरान हार का दोष जिस पर भी मढ़े लेकिन हार का कारण नेतृत्व के गलत फैसले भी थे। एक बड़े वर्ग का यह भी मानना है कि मुख्यमंत्राी पद पर प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा का चयन पार्टी का गलत फैसला था तो पार्टी के ही कई नेता पार्टी द्वारा उठाये गये मुद्दों को भी गलत बताते हैं। उनका कहना है कि स्थानीय समस्याओं से जुड़े मुद्दे उठाने के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह दी गई। अधिकतर विधानसभा क्षेत्रों में कमजोर व नये प्रत्याशी होने के कारण प्रत्याशियों के साथ आम कार्यकर्ता ही नहीं जुड़ा जिन क्षेत्रों में कार्यकर्ता सक्रिय भी हुए वहां स्टार प्रचारकों में उलझे रहे। पार्षदों को टिकट न देने का निर्णय भी पार्टी के मैनेजरों पर भारी पड़ा। यदि जीतने में सक्षम पार्षदों को टिकट दिया जाता तो स्थिति विपरीत हो सकती थी।
बुधवार, 26 नवंबर 2008
कांग्रेस के हाथ पर हाथी का पांव
सोनिया ने की जनादेश की अपील तो माया ने किया इंकलाब का एलान
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली की जनता को विकास का वास्ता तो दिया है लेकिन विकास और उपलब्धियों से सजे कांग्रेस के हाथ पर आज बसपा का हाथी जिस तरह पांव रख कर दौड़ता दिखाई दिया है उससे कांग्रेस की मुश्किले बढ़ती दिखाई दे रही हैं। आज हुई सोनिया गांधी और मायावती की रैलियां भीड़ की दृष्टि से भले ही समान रही हों लेकिन सोनिया की रैली में केवल उपलब्धियों का वास्ता, जनादेश की अपील और मतदाताओं से गुजारिश थी तो मायावती की रैली सचमुच इंकलाब का एलान थी। चुनाव प्रचार के इस अंतिम दौर में आज दो महारथी एक साथ इंकलाब करने के लिए मैदान में थे। एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बाहरी दिल्ली में हाथ उठाकर दिल्ली की जनता को विकास का वास्ता दे रही थी तो दूसरी और पूर्वी दिल्ली में हाथी पर सवार बसपा सुप्रीमों मायावती मानों कांग्रेस और भाजपा का किला भेदने आई थी। इस किले को भेदने के लिए मायावती ने अपने तरकस से अनेक तीर चलाये। आम जनता और दिल्ली से जुड़ा प्रत्येक मुद्दा मानों उनका अस्त्रा बनकर उनकी जबान पर था। प्रचार के इस दौर में कांग्रेस नेे बसपा के इन तीरों का भले ही गंभीरता से न लिया हो लेकिन बसपा के इन तीरों में आज ईवीएम मशीनों को भेदने की ताकत भी दिखाई दी। मायावती की रैली जहां दिल्ली में जगह बनाने की जुझारू कोशिश थी तो सोनिया की रैली दिल्ली में अपनी जगह बचाने की एक कवायद भर थी। सोनिया की रैली में जनता से जुड़े मुद्दे थे तो मायावती की रैली में क्रांति के स्वर थे। दोनों ही रैलियों में अनेक भिन्नताएं थी लेकिन एक समानता थी, दोनों ही रैलियों में इन पार्टियों के बाकी नेता अपने सुप्रीमों के सामने बौने दिखाई दे रहे थे। यदि रैलियों में उमड़ी भीड़ की दृष्टि से तुलना की जाये तो दोनों रैलियों में लगभग एक समान भीड़ थीे लेकिन इसके बावजूद बसपा के लिए इस रैली को उपलब्धि कहा जा सकता है क्योंकि दिल्ली में बसपा का न तो कांग्रेस की तरह कभी जनाधार रहा है और न ही संगठन की दृष्टि से भी बसपा कांग्रेस की तरह मजबूत यहां है, एैसे में कांग्रेस को चुनावी रैली में बराबर की टक्कर देकर मायावती ने निश्चित रूप से आगामी चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान देने का अहसास करा दिया है। हालांकि दिल्ली में हाथी की आहट तो निगम चुनाव में ही दिखाई देने लगी थी लेकिन सोशल इंजीनियरिंग के जिस फार्मूले को मायावती ने दिल्ली में भी अपना प्रमुख शस्त्रा बनाने की घोषणा की है उससे इतना निश्चित है कि हाथी की आहट ही कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब है।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दिल्ली की जनता को विकास का वास्ता तो दिया है लेकिन विकास और उपलब्धियों से सजे कांग्रेस के हाथ पर आज बसपा का हाथी जिस तरह पांव रख कर दौड़ता दिखाई दिया है उससे कांग्रेस की मुश्किले बढ़ती दिखाई दे रही हैं। आज हुई सोनिया गांधी और मायावती की रैलियां भीड़ की दृष्टि से भले ही समान रही हों लेकिन सोनिया की रैली में केवल उपलब्धियों का वास्ता, जनादेश की अपील और मतदाताओं से गुजारिश थी तो मायावती की रैली सचमुच इंकलाब का एलान थी। चुनाव प्रचार के इस अंतिम दौर में आज दो महारथी एक साथ इंकलाब करने के लिए मैदान में थे। एक ओर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बाहरी दिल्ली में हाथ उठाकर दिल्ली की जनता को विकास का वास्ता दे रही थी तो दूसरी और पूर्वी दिल्ली में हाथी पर सवार बसपा सुप्रीमों मायावती मानों कांग्रेस और भाजपा का किला भेदने आई थी। इस किले को भेदने के लिए मायावती ने अपने तरकस से अनेक तीर चलाये। आम जनता और दिल्ली से जुड़ा प्रत्येक मुद्दा मानों उनका अस्त्रा बनकर उनकी जबान पर था। प्रचार के इस दौर में कांग्रेस नेे बसपा के इन तीरों का भले ही गंभीरता से न लिया हो लेकिन बसपा के इन तीरों में आज ईवीएम मशीनों को भेदने की ताकत भी दिखाई दी। मायावती की रैली जहां दिल्ली में जगह बनाने की जुझारू कोशिश थी तो सोनिया की रैली दिल्ली में अपनी जगह बचाने की एक कवायद भर थी। सोनिया की रैली में जनता से जुड़े मुद्दे थे तो मायावती की रैली में क्रांति के स्वर थे। दोनों ही रैलियों में अनेक भिन्नताएं थी लेकिन एक समानता थी, दोनों ही रैलियों में इन पार्टियों के बाकी नेता अपने सुप्रीमों के सामने बौने दिखाई दे रहे थे। यदि रैलियों में उमड़ी भीड़ की दृष्टि से तुलना की जाये तो दोनों रैलियों में लगभग एक समान भीड़ थीे लेकिन इसके बावजूद बसपा के लिए इस रैली को उपलब्धि कहा जा सकता है क्योंकि दिल्ली में बसपा का न तो कांग्रेस की तरह कभी जनाधार रहा है और न ही संगठन की दृष्टि से भी बसपा कांग्रेस की तरह मजबूत यहां है, एैसे में कांग्रेस को चुनावी रैली में बराबर की टक्कर देकर मायावती ने निश्चित रूप से आगामी चुनाव में कांग्रेस को बड़ा नुकसान देने का अहसास करा दिया है। हालांकि दिल्ली में हाथी की आहट तो निगम चुनाव में ही दिखाई देने लगी थी लेकिन सोशल इंजीनियरिंग के जिस फार्मूले को मायावती ने दिल्ली में भी अपना प्रमुख शस्त्रा बनाने की घोषणा की है उससे इतना निश्चित है कि हाथी की आहट ही कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब है।
बुलंद इरादों की राह पर सपनों को साकार करने की चाह
बुलंद इरादों की राह पर सपनों को साकार करने की चाह
जोश भी, उत्साह भी उल्लास भी, मस्ती भी
वहां उल्लास भी है, उत्साह, मस्ती, जोश और सपनों को साकार करने का जजबा भी है। उनके घर के आंगन की हरी घास पर आज सूर्य की पहली किरण के बाद से ही शुरु हुआ उनके दिन का सफर मानों उनके बुलंद इरादों की कहानी कह रहा था। आंगन में चिड़ियों की चहचाहट और भीतर लगातार घनघनाती फोन की घंटी से बेखबर वेटिंग इन सीएम प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा शायद अपने लक्ष्य से बेखबर नहीं थे, तभी तो उनका पल पल मानों खुद ही मंजिल की ओर बढ़ रहा था। कभी चारों और से घेरे कार्यकर्ता, कभी मीडिया के सवाल और कभी बीच सड़कों पर आम जनता के साथ रोड शो, न केाई तनाव, न कोई शिकन, बस लक्ष्य की ओर बढ़ते कदम। सवेरे साढ़े छह बजे से शुरु हुए वेटिंग इन चीफ प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा के साथ इस सफर में दिन भर की दौड़ के बावजूद देर शाम तक भी मल्होत्रा के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। सुबह सवेरे की ठंडक के बीच हल्के व्ययाम व योगा के साथ जब उन्होंने दिन की शुरुआत की तो ठंड के बावजूद उनके आंगन में चुनाव की गर्मी दिखाई दे रही थी। चाय की चुस्कियों के साथ ही उन्होंने अखबारों की सुर्खियां देखी और फिर एक घंटे के भीतर ही अपने दैनिक कार्यो को पूरा कर भाजपा का यह विजय अपनी विजय के अभियान पर निकल पड़ा। पंचशील में विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता उनका इंतजार कर रहे थे, लगभग 11 बजे मल्होत्रा जैसे ही वहां पहुंचे तो वातावरण जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा। यहां उन्होंने केवल भाषण ही नहीं दिया बल्कि कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन की सीख भी दी। कार्यकर्ताओं की यह कक्षा लेकर मल्होत्रा साढ़े बारह बजे जब अपने आवास पर पहुंचे तो वहां दिल्ली का मीडिया उनके इंतजार में था। मीडिया से बातचीत का मुद्दा तो बीआरटी कारीडोर था लेकिन मीडिया ने जो भी सवाल दागे उन्होंने मीडिया को संतुष्ट करने में कसर नहीं छोड़ी। मीडिया के साथ हुई इस चर्चा के बाद उनके जहन में शायद चुनाव प्रबंधन की चुनौतियां और चुनावी मुद्दे थे, तभी तो एक नई चर्चा के लिए वह सीधे पहुंचे पार्टी नेता अरुण जेटली के पास, जहां लगभग आधे घंटे की राजनीतिक चर्चा के बाद दोपहर के भोजन के लिए एक बार फिर वह अपने आवास पर पहुंचे जहां उनकी पत्नी के साथ साथ उनकी बेटी अनुपमा भी शायद पापा के साथ लंच करने का इंतजार कर रही थी। अनुपमा ने मुस्कुराहट के साथ अपने पापा का स्वागत किया तो मल्होत्रा का चेहरा खिल उठा। दिन के दूसरे पहर में शुरु हुआ मल्होत्रा का रोड शो, एक एैसा रोड शो जिसे देखकर मल्होत्रा भी गदगद थे और उनके चाहने वाले भी गदगद। इस रोड शो की शुरुआत हुई पंचशील विहार स्थित त्रिवेणी अपार्टमेंट से। लगभग साढ़े चार बजे मल्होत्रा जब यहां पहुंचे तो 500 से अधिक लोग हाथों में फूलों के हार लिए उनके स्वागत पर मौजूद थे। मल्होत्रा एक खुली जीप में सवार हुए और यह काफिला जब आगे बढ़ा तो चारों और से मल्होत्रा जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे। कहीं छतों से महिलाएं फूल बरसा रही थी तो कहीं बुजुर्ग महिलाएं उनकी जीप के आगे आकर आशीर्वाद के हाथ उठा रही थी। पंचशील के सभी ब्लाकों में घुमते हुए वह जिस ब्लाक में भी प्रवेश करते ब्लाक के शुरु में ही वहां के कार्यकर्ता गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत करते। शाम छह बजे इस काफिले ने आर ब्लाक से खिचड़ी एक्सटेंशन में प्रवेश किया और इसके बाद जे ब्लाक सहित अन्य ब्लाकों व गुप्ता कालोनी में इस रोड शो में उनके समर्थकों की संख्या बढ़ती गई। इस बीच उत्साही कार्यकर्ताओं ने उन्हें सब्जियों से भी तोला। देर शाम कृष्णा मंदिर में उनका यह रोड शो समाप्त हुआ। इसके बाद भी उनके चेहरे पर थकान नहीं थी और वह चल दिये एक नई सभा के लिए चितरंजन पार्क। वहां चुनावी सभा के बाद 9 बजे एक बार फिर उन्होंने कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन के गुर दिये। रात दस बजे वह घर लौटे तो आज की ही तरह अगले दिन के व्यस्त शैडयूल उनकी टेबल पर था।
जोश भी, उत्साह भी उल्लास भी, मस्ती भी
वहां उल्लास भी है, उत्साह, मस्ती, जोश और सपनों को साकार करने का जजबा भी है। उनके घर के आंगन की हरी घास पर आज सूर्य की पहली किरण के बाद से ही शुरु हुआ उनके दिन का सफर मानों उनके बुलंद इरादों की कहानी कह रहा था। आंगन में चिड़ियों की चहचाहट और भीतर लगातार घनघनाती फोन की घंटी से बेखबर वेटिंग इन सीएम प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा शायद अपने लक्ष्य से बेखबर नहीं थे, तभी तो उनका पल पल मानों खुद ही मंजिल की ओर बढ़ रहा था। कभी चारों और से घेरे कार्यकर्ता, कभी मीडिया के सवाल और कभी बीच सड़कों पर आम जनता के साथ रोड शो, न केाई तनाव, न कोई शिकन, बस लक्ष्य की ओर बढ़ते कदम। सवेरे साढ़े छह बजे से शुरु हुए वेटिंग इन चीफ प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा के साथ इस सफर में दिन भर की दौड़ के बावजूद देर शाम तक भी मल्होत्रा के चेहरे पर विजयी मुस्कान थी। सुबह सवेरे की ठंडक के बीच हल्के व्ययाम व योगा के साथ जब उन्होंने दिन की शुरुआत की तो ठंड के बावजूद उनके आंगन में चुनाव की गर्मी दिखाई दे रही थी। चाय की चुस्कियों के साथ ही उन्होंने अखबारों की सुर्खियां देखी और फिर एक घंटे के भीतर ही अपने दैनिक कार्यो को पूरा कर भाजपा का यह विजय अपनी विजय के अभियान पर निकल पड़ा। पंचशील में विभिन्न संगठनों के कार्यकर्ता उनका इंतजार कर रहे थे, लगभग 11 बजे मल्होत्रा जैसे ही वहां पहुंचे तो वातावरण जिंदाबाद के नारों से गूंज उठा। यहां उन्होंने केवल भाषण ही नहीं दिया बल्कि कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन की सीख भी दी। कार्यकर्ताओं की यह कक्षा लेकर मल्होत्रा साढ़े बारह बजे जब अपने आवास पर पहुंचे तो वहां दिल्ली का मीडिया उनके इंतजार में था। मीडिया से बातचीत का मुद्दा तो बीआरटी कारीडोर था लेकिन मीडिया ने जो भी सवाल दागे उन्होंने मीडिया को संतुष्ट करने में कसर नहीं छोड़ी। मीडिया के साथ हुई इस चर्चा के बाद उनके जहन में शायद चुनाव प्रबंधन की चुनौतियां और चुनावी मुद्दे थे, तभी तो एक नई चर्चा के लिए वह सीधे पहुंचे पार्टी नेता अरुण जेटली के पास, जहां लगभग आधे घंटे की राजनीतिक चर्चा के बाद दोपहर के भोजन के लिए एक बार फिर वह अपने आवास पर पहुंचे जहां उनकी पत्नी के साथ साथ उनकी बेटी अनुपमा भी शायद पापा के साथ लंच करने का इंतजार कर रही थी। अनुपमा ने मुस्कुराहट के साथ अपने पापा का स्वागत किया तो मल्होत्रा का चेहरा खिल उठा। दिन के दूसरे पहर में शुरु हुआ मल्होत्रा का रोड शो, एक एैसा रोड शो जिसे देखकर मल्होत्रा भी गदगद थे और उनके चाहने वाले भी गदगद। इस रोड शो की शुरुआत हुई पंचशील विहार स्थित त्रिवेणी अपार्टमेंट से। लगभग साढ़े चार बजे मल्होत्रा जब यहां पहुंचे तो 500 से अधिक लोग हाथों में फूलों के हार लिए उनके स्वागत पर मौजूद थे। मल्होत्रा एक खुली जीप में सवार हुए और यह काफिला जब आगे बढ़ा तो चारों और से मल्होत्रा जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे। कहीं छतों से महिलाएं फूल बरसा रही थी तो कहीं बुजुर्ग महिलाएं उनकी जीप के आगे आकर आशीर्वाद के हाथ उठा रही थी। पंचशील के सभी ब्लाकों में घुमते हुए वह जिस ब्लाक में भी प्रवेश करते ब्लाक के शुरु में ही वहां के कार्यकर्ता गर्मजोशी के साथ उनका स्वागत करते। शाम छह बजे इस काफिले ने आर ब्लाक से खिचड़ी एक्सटेंशन में प्रवेश किया और इसके बाद जे ब्लाक सहित अन्य ब्लाकों व गुप्ता कालोनी में इस रोड शो में उनके समर्थकों की संख्या बढ़ती गई। इस बीच उत्साही कार्यकर्ताओं ने उन्हें सब्जियों से भी तोला। देर शाम कृष्णा मंदिर में उनका यह रोड शो समाप्त हुआ। इसके बाद भी उनके चेहरे पर थकान नहीं थी और वह चल दिये एक नई सभा के लिए चितरंजन पार्क। वहां चुनावी सभा के बाद 9 बजे एक बार फिर उन्होंने कार्यकर्ताओं को चुनाव प्रबंधन के गुर दिये। रात दस बजे वह घर लौटे तो आज की ही तरह अगले दिन के व्यस्त शैडयूल उनकी टेबल पर था।
शनिवार, 8 नवंबर 2008
यमुना बोली, मुझे और न करो मैली
जीवन दायिनी का जीवन संकट में
वजीराबाद से ओखला बैराज तक 22 किलोमीटर का सफर दिल्ली में तय करती है यमुना
एनसीआर में कुल 50 किलोमीटर है यमुना की लंबाई
यह है प्रदूषण का कारण
दिल्ली के विभिन्न इलाकों से 22 प्रमुख नाले गिरते हैं यमुना मेंप्रतिदिन 50 से 60 मिलियन गैलन औद्योगिक कचरा गिरता है यमुना के आंचल में
लगभग 700 गैलर घरेलू सीवेज प्रतिदिन करता है यमुना को बदरंग
1376 किलोमीटर की लंबाई में सर्वाधिक 79 प्रतिशत प्रदूषण यमुना को मिलता है दिल्ली से
प्रदूषण के लिए यमुना के भीतर होने वाली खेती भी है जिम्मेदार
दिल्ली के विभिन्न इलाकों से 22 प्रमुख नाले गिरते हैं यमुना मेंप्रतिदिन 50 से 60 मिलियन गैलन औद्योगिक कचरा गिरता है यमुना के आंचल में
लगभग 700 गैलर घरेलू सीवेज प्रतिदिन करता है यमुना को बदरंग
1376 किलोमीटर की लंबाई में सर्वाधिक 79 प्रतिशत प्रदूषण यमुना को मिलता है दिल्ली से
प्रदूषण के लिए यमुना के भीतर होने वाली खेती भी है जिम्मेदार
यमुना एक्शन प्लान भी नहीं सुधार सका यमुना की दुर्दशा
पहले चरण में दिल्ली में ही 166 करोड़ रुपये हुए यमुना की सफाई पर खर्च
दूसरे चरण में भी ५०० करोड़ से अधिक खर्च होने का है अनुमान
दूसरे चरण में भी ५०० करोड़ से अधिक खर्च होने का है अनुमान
प्रदूषण मुक्त करने की नई योजाना
यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए अब जल बोर्ड ने बनाई इंटरसेप्टर व डाइवर्जन योजनासप्लीमेंट्री ड्रेन, नजफगढ़ ड्रेन व शाहदरा ड्रेन के मुहाने पर लगेंगे ट्रीटमेंट प्लांट
तीनों ड्रेन के समानान्तर सीवेज के लिए बिछेगी पाइप लाइन
पाइप लाइन से सीवेज पहुंचेगा ट्रीटमेंट प्लांट में
ट्रीटमेंट के बाद ही पानी जायेगा यमुना में
योजना पर अमल के लिए इंजीनियर इंडिया से हुआ अनुबंध
पुराने ट्रीटमेंट प्लांटों का होगा जीर्णोद्धार
तीनों ड्रेन के समानान्तर सीवेज के लिए बिछेगी पाइप लाइन
पाइप लाइन से सीवेज पहुंचेगा ट्रीटमेंट प्लांट में
ट्रीटमेंट के बाद ही पानी जायेगा यमुना में
योजना पर अमल के लिए इंजीनियर इंडिया से हुआ अनुबंध
पुराने ट्रीटमेंट प्लांटों का होगा जीर्णोद्धार
यमुना को प्रदूषित करने वाले प्रमुख नालों से होने वाला प्रदूषण
नाला मिलियन गैलन(बीओडी)
नजफगढ़ नाला 148
मेटकाफ हाउस ५८
खैबर पास 10स्वीपर कालोनी ११०
मैगजीन रोड 240आईएसबीटी ड्रेन ११६
तांगा स्टेंड 130सिविल मिल 2१०
पावर हाउस 180डा.सेन नर्सिंग होम १७०
ड्रेन 14 16बरापुला 52महारानी बाग १०
0कालकाजी 22सरिता विहार ९४
तेखण्ड 64तुगलकाबाद 112एलपीजी प्लांट ६६
सरिता विहार पुल 39साहिबाबाद 230इन्द्रापुरी 2१०
(उक्त आंकड़े डीपीसीसी द्वारा मई 07 में लिए गये सेम्पल पर आधारित हैं)
यमुना नदी दिल्ली के करोड़ो लोगों की जीवन दायिनी है लेकिन अब देश की पुरातन परंपराओं, आस्थाओं व धार्मिक मान्यताओं की प्रतीक यमुना नदी जीवन दायिनी होकर भी स्वयं अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। करोड़ो लोगों की गंदगी, मल मूत्र, उद्योगों का कचरा और तमाम जहरीले कैमिकल अपने में समाहित करने के बाद भी यह राजधानी के आधे से अधिक लोगों की प्यास बुझा रही है। निरंतर बढ़ती गंदगी के बावजूद राजधानी को मिलने वाले पेयजल की 56 प्रतिशत पूर्ति यमुना ही करती है। लेकिन विडंबना यह है कि दिल्ली के जिन करोड़ों लोगों को यह जीवन दे रही है वही इस अभागी का जीवन लेने पर तुले हैं। यमुनौत्राी से अपने अंतिम पड़ाव तक यूं तो यमुना का सफर 1376 किलोमीटर लंबा है लेकिन राजधानी दिल्ली में यमुना 22 किलोमीटर और एनसीआर में 50 किलोमीटर सफर तय करती है। यह यमुना की कुल लंबाई का मात्रा 2 प्रतिशत है लेकिन यह दुर्भाग्य यह है कि यमुना के 1376 किलोमीटर लंबे सफर में यमुना को मिलने वाली गंदगी का 79 प्रतिशत उसे दिल्ली से मिलता है। यमुना का सफर दिल्ली में वजीराबाद बैराज से शुरु होता है और 22 किलोमीटर बाद ओखला बैराज पर खत्म होता है। इसे डाउन स्ट्रीम बोला जाता है, अप स्ट्रीम पाल्ला बैराज से शुरु होता है यह 28 किलोमीटर का सफर है। दिल्ली में प्रवेश करते ही दिल्लीवासी जहर पिलाकर मां यमुना का स्वागत करते हैं और उसके बाद तो 22 किलोमीटर के सफर में र कदम कदम पर जहर का एैसा सैलाब इसमें समाहित होता है कि यमुना की पवित्राता स्वयं पर शर्माने लगती है। प्रदूषण नियंत्राण व पर्यावरण संस्थाओं के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 60 गैलर औद्योगिक कचरा दिल्ली से यमुना में समाहित होता है और लगभग 700 मिलियन घरेलू सीवेज प्रतिदिन यमुना में समाहित होकर यमुना को गंदा नाला बना देता है। धार्मिक आस्थाएं व मान्यताएं भी यमुना के जहर में और अधिक जहर घोल रही हैं। विभिन्न पर्वो व त्यौहारों पर हजारो टन धार्मिक अनुष्ठानों की सामग्री यमुना में बहा दी जाती है जिसमें अलग अलग कैमिकल होने के कारण यमुना में जहरीले तत्वों की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है। इस स्थिति से निपटने में सामने सरकार भी बेबस है। वार्षिक पर्वो त्यौहारों पर ही नहीं बल्कि प्रतिदिन भारी मात्रा में धार्मिक अनुष्ठानों की सामग्री यमुना में प्रवाहित कर दी जाती है। यूं तो सरकार का प्रदूषण नियंत्राण विभाग नियमित रूप से यमुना जल के नमूने एकत्रा कर प्रदूषण व यमुना में फैले जहरीले तत्वों की मात्रा का परीक्षण करता है लेकिन इस परीक्षण की रिपोर्ट केवल प्रयोगशालाओं में ही पड़ी रहती है। सरकार की ओर से योजनाएं तो बनाई जाती हैं, लेकिन योजनाओं के अमल में इतने पेच होते हैं कि योजना पूरी होने से पूर्व यमुना के प्रदूषण को एक नई योजना की जरूरत होती है। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान बनाया गया, जिसमें दिल्ली में ही लगभग 160 करोड़ रुपये बहा दिये गये लेकिन स्थिति बद से बदतर हो गई है। इसके अलावा दिल्ली जलबोर्ड, डीडीए व बाढ़ नियंत्राण विभाग भी प्रतिवर्ष लगभग
आम जनता की जागरुकता जरूरी
जब तक आम जनता अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लायेगी तब तक यमुना को प्रदूशण से मुक्त नहीं किया जा सकता। आज यदि यमुना में जहर घुल रहा है तो इसका कारण आम जनता की लापरवाही अधिक है। सरकार को तो योजनाएं ही बनानी है और सरकार की योजनाओं पर काम भी शुरु हो जाता है लेकिन जब तक आम जनता का सहयोग नहीं होगा तब तक प्रदूषण कैसे खत्म होगा। सरकार की तमाम योजनाओं को आम जनता ही ठप कर रही है। यमुना दिल्ली की लाइफ लाइन है, यह दिल्लीवासियों को समझना होगा और अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। एस.ए.नकवी कन्वीनर, सिटीजन फ्रन्ट फार वाटर डेमोक्रेसी
यमुना नदी दिल्ली के करोड़ो लोगों की जीवन दायिनी है लेकिन अब देश की पुरातन परंपराओं, आस्थाओं व धार्मिक मान्यताओं की प्रतीक यमुना नदी जीवन दायिनी होकर भी स्वयं अपने अस्तित्व के लिए जूझ रही है। करोड़ो लोगों की गंदगी, मल मूत्र, उद्योगों का कचरा और तमाम जहरीले कैमिकल अपने में समाहित करने के बाद भी यह राजधानी के आधे से अधिक लोगों की प्यास बुझा रही है। निरंतर बढ़ती गंदगी के बावजूद राजधानी को मिलने वाले पेयजल की 56 प्रतिशत पूर्ति यमुना ही करती है। लेकिन विडंबना यह है कि दिल्ली के जिन करोड़ों लोगों को यह जीवन दे रही है वही इस अभागी का जीवन लेने पर तुले हैं। यमुनौत्राी से अपने अंतिम पड़ाव तक यूं तो यमुना का सफर 1376 किलोमीटर लंबा है लेकिन राजधानी दिल्ली में यमुना 22 किलोमीटर और एनसीआर में 50 किलोमीटर सफर तय करती है। यह यमुना की कुल लंबाई का मात्रा 2 प्रतिशत है लेकिन यह दुर्भाग्य यह है कि यमुना के 1376 किलोमीटर लंबे सफर में यमुना को मिलने वाली गंदगी का 79 प्रतिशत उसे दिल्ली से मिलता है। यमुना का सफर दिल्ली में वजीराबाद बैराज से शुरु होता है और 22 किलोमीटर बाद ओखला बैराज पर खत्म होता है। इसे डाउन स्ट्रीम बोला जाता है, अप स्ट्रीम पाल्ला बैराज से शुरु होता है यह 28 किलोमीटर का सफर है। दिल्ली में प्रवेश करते ही दिल्लीवासी जहर पिलाकर मां यमुना का स्वागत करते हैं और उसके बाद तो 22 किलोमीटर के सफर में र कदम कदम पर जहर का एैसा सैलाब इसमें समाहित होता है कि यमुना की पवित्राता स्वयं पर शर्माने लगती है। प्रदूषण नियंत्राण व पर्यावरण संस्थाओं के आंकड़े बताते हैं कि प्रतिदिन लगभग 60 गैलर औद्योगिक कचरा दिल्ली से यमुना में समाहित होता है और लगभग 700 मिलियन घरेलू सीवेज प्रतिदिन यमुना में समाहित होकर यमुना को गंदा नाला बना देता है। धार्मिक आस्थाएं व मान्यताएं भी यमुना के जहर में और अधिक जहर घोल रही हैं। विभिन्न पर्वो व त्यौहारों पर हजारो टन धार्मिक अनुष्ठानों की सामग्री यमुना में बहा दी जाती है जिसमें अलग अलग कैमिकल होने के कारण यमुना में जहरीले तत्वों की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती है। इस स्थिति से निपटने में सामने सरकार भी बेबस है। वार्षिक पर्वो त्यौहारों पर ही नहीं बल्कि प्रतिदिन भारी मात्रा में धार्मिक अनुष्ठानों की सामग्री यमुना में प्रवाहित कर दी जाती है। यूं तो सरकार का प्रदूषण नियंत्राण विभाग नियमित रूप से यमुना जल के नमूने एकत्रा कर प्रदूषण व यमुना में फैले जहरीले तत्वों की मात्रा का परीक्षण करता है लेकिन इस परीक्षण की रिपोर्ट केवल प्रयोगशालाओं में ही पड़ी रहती है। सरकार की ओर से योजनाएं तो बनाई जाती हैं, लेकिन योजनाओं के अमल में इतने पेच होते हैं कि योजना पूरी होने से पूर्व यमुना के प्रदूषण को एक नई योजना की जरूरत होती है। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए वर्ष 1993 में यमुना एक्शन प्लान बनाया गया, जिसमें दिल्ली में ही लगभग 160 करोड़ रुपये बहा दिये गये लेकिन स्थिति बद से बदतर हो गई है। इसके अलावा दिल्ली जलबोर्ड, डीडीए व बाढ़ नियंत्राण विभाग भी प्रतिवर्ष लगभग
आम जनता की जागरुकता जरूरी
जब तक आम जनता अपने व्यवहार में बदलाव नहीं लायेगी तब तक यमुना को प्रदूशण से मुक्त नहीं किया जा सकता। आज यदि यमुना में जहर घुल रहा है तो इसका कारण आम जनता की लापरवाही अधिक है। सरकार को तो योजनाएं ही बनानी है और सरकार की योजनाओं पर काम भी शुरु हो जाता है लेकिन जब तक आम जनता का सहयोग नहीं होगा तब तक प्रदूषण कैसे खत्म होगा। सरकार की तमाम योजनाओं को आम जनता ही ठप कर रही है। यमुना दिल्ली की लाइफ लाइन है, यह दिल्लीवासियों को समझना होगा और अपनी सोच में परिवर्तन करना होगा। एस.ए.नकवी कन्वीनर, सिटीजन फ्रन्ट फार वाटर डेमोक्रेसी
यमुना को उसके हाल पर छोड़ दें
यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के यमुना को उसके हाॅल पर छोड़ दें। बस, यमुना से छेड़छाड़ बंद हो जाये। यमुना अपनी सफाई में खुद सक्षम है। यमुना को यमुना के हाल पर छोड़ दिया जाये तो प्राकृतिक रूप से वह स्वयं अपना उपचार कर लेगी लेकिन इसमें जिस तरह गंदगी के नाले डाले जा रहे हैं उन पर रोक लगे। इसमें डाले जा रहे नाले यह सबसे बड़ा कारण है। एक सामानान्तर नाला बने और ट्रीटमेंट कर के ही पानी यमुना में मिलाया जाये। आस पास पेड़ पौधे लगा दे बजाय कंकरीट का जंगल बनाने के। प्राकृतिक जंगल जरूरी है। यमुना को साफ करने के लिए करोड़ो रूपये की योजनाओं पर तरीके से काम हो तो सुधार हो सकता है। एनएन मिश्रा, संयोजक यमुना सत्याग्रह
यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने के यमुना को उसके हाॅल पर छोड़ दें। बस, यमुना से छेड़छाड़ बंद हो जाये। यमुना अपनी सफाई में खुद सक्षम है। यमुना को यमुना के हाल पर छोड़ दिया जाये तो प्राकृतिक रूप से वह स्वयं अपना उपचार कर लेगी लेकिन इसमें जिस तरह गंदगी के नाले डाले जा रहे हैं उन पर रोक लगे। इसमें डाले जा रहे नाले यह सबसे बड़ा कारण है। एक सामानान्तर नाला बने और ट्रीटमेंट कर के ही पानी यमुना में मिलाया जाये। आस पास पेड़ पौधे लगा दे बजाय कंकरीट का जंगल बनाने के। प्राकृतिक जंगल जरूरी है। यमुना को साफ करने के लिए करोड़ो रूपये की योजनाओं पर तरीके से काम हो तो सुधार हो सकता है। एनएन मिश्रा, संयोजक यमुना सत्याग्रह
सोमवार, 13 अक्टूबर 2008
लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल
कांग्रेस के लिए मुसीबत बना नेताओं का पुत्रा मोह
एक दर्जन से अधिक नेताओं के पुत्रा टिकट की कतार में
ये ही तो हैं गुदड़ी के असली लाल
नई दिल्ली 11 अक्टूबर।
लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल, कांग्रेस के दर्जनों नेताओं को आजकल अपने लाल की लाली के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। अपने लाल को ही गुदड़ी का असली लाल बताने वाले यह नेता किसी भी तरीके से उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाने की जुगत में हैं। उम्मीदवारों के चयन में उलझी कांग्रेस के लिए नेताओं का यह पुत्रा मोह संकट बन गया है। इसके अलावा किसी नेता की पुत्रावधू और किसी की साली भी टिकट की कतार में है।
कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया शुरु होने के साथ ही कई गुदड़ी के लाल अपने पिता की विरासत और कद का सहारा लेकर विधानसभा में पहुंचने का सपना देख रहे हैं। कुछ नेता तो अपने पुत्रों को टिकट दिलाने के लिए पार्टी में अपने पुराने सम्पर्को का सहारा लेकर तार से तार जोड़ रहे हैं तो कई दिवंगत नेताओं के पुत्रा अब पिता की कुर्बानियों व सेवाओं का प्रतिफल चाहते हैं। यही नहीं कुछ नेताओं के अन्य रिश्तेदार भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं और पार्टी हाईकमान के लिए बड़ा संकट बने हुए हैं।
विधानसभा अध्यक्ष चै.प्रेम सिंह के पुत्रा प्रमोद चैधरी देवली विधानसभा क्षेत्रा से टिकट के दावेदार हैं। चै.प्रेम सिंह विधानसभा अध्यक्ष होने के साथ साथ पार्टी के अनुभवी व वरिष्ठ नेता हैं, निश्चित रूप से पार्टी उन्हें भी चुनाव लड़ायेगी, एैसे में उनके पुत्रा की दावेदारी को लेकर पार्टी पसोपश में है। पूर्व गृहमंत्राी ओम मेहता के पुत्रा राजेश मेहता कस्तूरबा नगर विधानसभा सीट से दावेदार हैं जबकि पूर्व केन्द्रीय मंत्राी बी.पी.मौर्या की पुत्राी अमूल्या मौर्या गोकुलपुरी सीट से टिकट की दावेदार हैं। पूर्व सांसद चै.दलीप सिंह के एक नही दो पुत्रा सुरेन्द्र सिंह व सुखवीर सिंह के अलावा उनकी एक पुत्रा वधू जयश्री पंवार भी टिकट की दावेदार हैं। मजे की बात यह है कि तीनों एक ही सीट जीके पार्ट 1 से टिकट मांग रहे हैं।
इसी प्रकार पूर्व सांसद भीखूराम जैन के पुत्रा नरेन्द्र भीखू राम चांदनी चैक विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं तो इसी सीट से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजमोहन शर्मा के पुत्रा विजय मोहन भी दावेदार हैं। पार्टी संकट में है किसे महत्व दे और किसे न दे। पार्टी के एक अन्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश शर्मा के पुत्रा राहुल शर्मा भी टिकट की कतार में हैं वह मालवीय नगर विधानसभा से टिकट मांग रहे हैं। पूर्व कार्यकारी पार्षद किशन स्वरूप का बेटा महेन्द्र कुमार मादीपुर सीट से दावेदार है जबकि पूर्व मंत्राी व पूर्व महापौर महेन्द्र सिंह साथी का पुत्रा गुरजीत सिंह साथी तिलक नगर व राजौरी गार्डन से दावेदारी कर रहे हैं। साथी को उम्मीद है कि पार्टी उन्हें उनके पिता की सेवाओं का प्रतिफल देगी।
पुत्रों के अलावा नेताओं के अन्य संबधी भी टिकट की लाइन में हैं। पूर्व महानगर पार्षद चै.हीरा सिंह की बेटी तथा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी डा.योगानंद शास्त्राी की साली श्रीमती सुदेश सांगवान दिल्ली कैंट या पालम विधानसभा क्षेत्रा से टिकट मांग रही हैं जबकि विधायक महाबल मिश्रा के भाई हीरा मिश्रा जनकपुरी विधानसभा क्षेत्रा से अपनी दावेदारी कर रहे हैं। कुछ पुराने नेता एैसे भी हैं जो खुद टिकट की लाइन में हैं जिनमें मैट्रोपोलोटीन काउंसिल के पूर्व स्पीकर पुरुषोत्तम गोयल अपने लिए माडल टाऊन सीट से तथा पूर्व सांसद चै.तारीफ सिंह किराड़ी विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं।
एक दर्जन से अधिक नेताओं के पुत्रा टिकट की कतार में
ये ही तो हैं गुदड़ी के असली लाल
नई दिल्ली 11 अक्टूबर।
लाली मेरे लाल की जित देखो तित लाल, कांग्रेस के दर्जनों नेताओं को आजकल अपने लाल की लाली के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। अपने लाल को ही गुदड़ी का असली लाल बताने वाले यह नेता किसी भी तरीके से उन्हें विधानसभा चुनाव का टिकट दिलाने की जुगत में हैं। उम्मीदवारों के चयन में उलझी कांग्रेस के लिए नेताओं का यह पुत्रा मोह संकट बन गया है। इसके अलावा किसी नेता की पुत्रावधू और किसी की साली भी टिकट की कतार में है।
कांग्रेस में विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की चयन प्रक्रिया शुरु होने के साथ ही कई गुदड़ी के लाल अपने पिता की विरासत और कद का सहारा लेकर विधानसभा में पहुंचने का सपना देख रहे हैं। कुछ नेता तो अपने पुत्रों को टिकट दिलाने के लिए पार्टी में अपने पुराने सम्पर्को का सहारा लेकर तार से तार जोड़ रहे हैं तो कई दिवंगत नेताओं के पुत्रा अब पिता की कुर्बानियों व सेवाओं का प्रतिफल चाहते हैं। यही नहीं कुछ नेताओं के अन्य रिश्तेदार भी टिकट की दावेदारी कर रहे हैं और पार्टी हाईकमान के लिए बड़ा संकट बने हुए हैं।
विधानसभा अध्यक्ष चै.प्रेम सिंह के पुत्रा प्रमोद चैधरी देवली विधानसभा क्षेत्रा से टिकट के दावेदार हैं। चै.प्रेम सिंह विधानसभा अध्यक्ष होने के साथ साथ पार्टी के अनुभवी व वरिष्ठ नेता हैं, निश्चित रूप से पार्टी उन्हें भी चुनाव लड़ायेगी, एैसे में उनके पुत्रा की दावेदारी को लेकर पार्टी पसोपश में है। पूर्व गृहमंत्राी ओम मेहता के पुत्रा राजेश मेहता कस्तूरबा नगर विधानसभा सीट से दावेदार हैं जबकि पूर्व केन्द्रीय मंत्राी बी.पी.मौर्या की पुत्राी अमूल्या मौर्या गोकुलपुरी सीट से टिकट की दावेदार हैं। पूर्व सांसद चै.दलीप सिंह के एक नही दो पुत्रा सुरेन्द्र सिंह व सुखवीर सिंह के अलावा उनकी एक पुत्रा वधू जयश्री पंवार भी टिकट की दावेदार हैं। मजे की बात यह है कि तीनों एक ही सीट जीके पार्ट 1 से टिकट मांग रहे हैं।
इसी प्रकार पूर्व सांसद भीखूराम जैन के पुत्रा नरेन्द्र भीखू राम चांदनी चैक विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं तो इसी सीट से कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष बृजमोहन शर्मा के पुत्रा विजय मोहन भी दावेदार हैं। पार्टी संकट में है किसे महत्व दे और किसे न दे। पार्टी के एक अन्य पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राजेश शर्मा के पुत्रा राहुल शर्मा भी टिकट की कतार में हैं वह मालवीय नगर विधानसभा से टिकट मांग रहे हैं। पूर्व कार्यकारी पार्षद किशन स्वरूप का बेटा महेन्द्र कुमार मादीपुर सीट से दावेदार है जबकि पूर्व मंत्राी व पूर्व महापौर महेन्द्र सिंह साथी का पुत्रा गुरजीत सिंह साथी तिलक नगर व राजौरी गार्डन से दावेदारी कर रहे हैं। साथी को उम्मीद है कि पार्टी उन्हें उनके पिता की सेवाओं का प्रतिफल देगी।
पुत्रों के अलावा नेताओं के अन्य संबधी भी टिकट की लाइन में हैं। पूर्व महानगर पार्षद चै.हीरा सिंह की बेटी तथा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी डा.योगानंद शास्त्राी की साली श्रीमती सुदेश सांगवान दिल्ली कैंट या पालम विधानसभा क्षेत्रा से टिकट मांग रही हैं जबकि विधायक महाबल मिश्रा के भाई हीरा मिश्रा जनकपुरी विधानसभा क्षेत्रा से अपनी दावेदारी कर रहे हैं। कुछ पुराने नेता एैसे भी हैं जो खुद टिकट की लाइन में हैं जिनमें मैट्रोपोलोटीन काउंसिल के पूर्व स्पीकर पुरुषोत्तम गोयल अपने लिए माडल टाऊन सीट से तथा पूर्व सांसद चै.तारीफ सिंह किराड़ी विधानसभा सीट से दावेदारी कर रहे हैं।
आडवाणी की रैली में चुनावी शंखनाद की औपचारिक गूंज
बस हो गया चुनाव का शंखनाद। चुनावी महाभारत का भाजपा की ओर से शायद यह औपचारिक शंखनाद था। भाजपा द्वारा आज आयोजित ‘विजय संकल्प रैली’ से हालांकि आम जनता दूर थी लेकिन रैली में आडवाणी की मौजुदगी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने के लिए काफी थी। रैली के माध्यम से पार्टी नेतृत्व ने विभिन्न मुद्दे उठाकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश तो की ही साथ ही पार्टी के विभिन्न नेताओं की आपसी एकता का संदेश भी कार्यकर्ताओं को दिया।
प्रदेश भाजपा द्वारा आयोजित इस विजय संकल्प रैली का आयोजन किसी बड़े मैदान में न कर वीपी हाऊस के छोटे परिसर में किया गया। इस रैली में पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया था ताकि आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें सक्रिय कर उत्साह भरा जा सके निश्चित रूप से आडवाणी की मौजुदगी से कार्यकर्ताओं का जोश और उत्साह हिलौरें ले रहा था और पार्टी अपने इस उद्देश्य में कामयाब भी दिखाई दी। रैली में न तो आम जनता की भागीदारी थी और न ही बड़ी रैलियों जैसा उत्साह और वातावरण।
हालांकि यह माना जा रहा था कि चुनाव से पूर्व पार्टी राजधानी में कोई बड़ी रैली कर चुनावी शंखनाद करेगी लेकिन जिस तरह आडवाणी की इस रैली को प्रदेश भाजपा आम जनता से नहीं जोड़ पाई उससे आडवाणी के चुनावी शंखनाद की गूंज भी औपचारिक होकर रह गई। पार्टी के भीतर ही इस रैली को सीमित स्तर पर करने को लेकर मतभेद था। कुछ नेता चाहते थे कि रैली भले ही कुछ दिन बाद हो लेकिन विशाल स्तर पर रैली की जानी चाहिए ताकि आम जनता के बीच सरकार के काले चिट्ठों की पोल खोली जा सके।
आज की यह रैली समूची पार्टी का मुख्यमंत्राी पद के उम्मीदवार प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा को समर्थन भी साबित हुई। रैली के माध्यम से यह भी संदेश देने की कोशिश की गई कि प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा की मुख्यमंत्राी पद की उम्मीदवारी पर पार्टी के सभी नेता एक राय से पार्टी के साथ हैं। रैली में जिस तरह सभी नेताओं ने दिल्ली से जुड़े मुद्दे उठाते हुए प्रदेश सरकार की नाकामियों को उजागर किया उससे यह रैली कांग्रेस व सरकार पर पहला चुनावी हमला भी साबित हुई। यहां तक कि आडवाणी ने भी दिल्ली को विश्व की सर्वोत्तम राजधानी बनाने तथा आम जनता की मूलभूत समस्याओं से संबधित मुद्दे उठाये।
प्रदेश भाजपा द्वारा आयोजित इस विजय संकल्प रैली का आयोजन किसी बड़े मैदान में न कर वीपी हाऊस के छोटे परिसर में किया गया। इस रैली में पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं को आमंत्रित किया गया था ताकि आगामी चुनाव के मद्देनजर उन्हें सक्रिय कर उत्साह भरा जा सके निश्चित रूप से आडवाणी की मौजुदगी से कार्यकर्ताओं का जोश और उत्साह हिलौरें ले रहा था और पार्टी अपने इस उद्देश्य में कामयाब भी दिखाई दी। रैली में न तो आम जनता की भागीदारी थी और न ही बड़ी रैलियों जैसा उत्साह और वातावरण।
हालांकि यह माना जा रहा था कि चुनाव से पूर्व पार्टी राजधानी में कोई बड़ी रैली कर चुनावी शंखनाद करेगी लेकिन जिस तरह आडवाणी की इस रैली को प्रदेश भाजपा आम जनता से नहीं जोड़ पाई उससे आडवाणी के चुनावी शंखनाद की गूंज भी औपचारिक होकर रह गई। पार्टी के भीतर ही इस रैली को सीमित स्तर पर करने को लेकर मतभेद था। कुछ नेता चाहते थे कि रैली भले ही कुछ दिन बाद हो लेकिन विशाल स्तर पर रैली की जानी चाहिए ताकि आम जनता के बीच सरकार के काले चिट्ठों की पोल खोली जा सके।
आज की यह रैली समूची पार्टी का मुख्यमंत्राी पद के उम्मीदवार प्रो.विजय कुमार मल्होत्रा को समर्थन भी साबित हुई। रैली के माध्यम से यह भी संदेश देने की कोशिश की गई कि प्रो. विजय कुमार मल्होत्रा की मुख्यमंत्राी पद की उम्मीदवारी पर पार्टी के सभी नेता एक राय से पार्टी के साथ हैं। रैली में जिस तरह सभी नेताओं ने दिल्ली से जुड़े मुद्दे उठाते हुए प्रदेश सरकार की नाकामियों को उजागर किया उससे यह रैली कांग्रेस व सरकार पर पहला चुनावी हमला भी साबित हुई। यहां तक कि आडवाणी ने भी दिल्ली को विश्व की सर्वोत्तम राजधानी बनाने तथा आम जनता की मूलभूत समस्याओं से संबधित मुद्दे उठाये।
चुनाव के आगाज पर ही बिखर गई उम्मीदें
आगाज तो चुनाव का था लेकिन उम्मीदें बिखर गई। इसे पार्टी की भीतरी गुटबाजी कहें या फिर कोई छोटी सी चूक कहें आखिर अनाधिकृत कालोनियों को सर्टीफिकेट बांटने की सरकार व पार्टी की एक बड़ी उपलब्धि सरकार को गौरवान्वित करने के बजाय शर्मसार कर गई। एक ओर हंगामे, मारपीट व अव्यवस्थाओं ने इस रैली को पलीता लगा दिया तो दूसरी और सोनिया के कद के अनुरूप भीड़ जुटाने मे ंभी सरकार असफल साबित हुई। छत्रासाल स्टेडियमें आज आयोजित कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की रैली का आयोजन प्रदेश सरकार के शहरी विकास विभाग की ओर से किया गया था। इस रैली को आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा था । इस रैली के माध्यम से अनाधिकृत कालोनियों के 40 लाख निवासियों के वोटों का रुख कांग्रेस की झोली की ओर करने की रणनीति सरकार ने बनाई थी और यह रैली इन कालोनियों के मुद्दे पर विपक्ष के लगातार हमलों का जवाब भी थी। पिछले दिनों अनाधिकृत कालोनी मुद्दे पर भाजपा की सफल रैली के बाद इस रैली को सफल बनाना सरकार के लिए एक चुनौती भी थी लेकिन सरकार और पार्टी आज इस चुनौती का सामना करने में विफल रही। रैली स्थल पर तमाम अव्यवस्थाएं तो थी ही साथ ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के कद के अनुरूप भीड़ का भी अभाव था। स्टेडियम को खाली देख मंच पर बैठी मुख्यमंत्राी व पार्टी के अन्य दिग्गज भी परेशान दिखाई दे रहे थे। सोनिया गांधी के पहुंचने तक स्टेडियम में कुछ भीड़ तो जुट गई लेकिन रही सही कसर किसानों के हंगामें और उसके बाद महिलाओं के साथ हुई मारपीट ने पूरी कर दी। रैली स्थल पर जिस तरह पत्राकार दीर्घा के ठीक पीछे लगभग दो दर्जन महिलाएं व पुरुष अचानक पहुंचे और सोनिया गांधी हाय हाय के नारे लगाने लगे उससे स्पष्ट था कि यह हंगामा पूर्व नियोजित था। आयोजक तथा सरकार का खुफिया तंत्रा इस हंगामे का अंदाजा लगाने में असफल रहा। रैली में प्रवेश निमंत्राण पत्रों के माध्यम से था और मजेदार बात यह थी कि हंगामा करने वाले किसानों के पास भी निमंत्राणपत्रा थे, एैसे में यह भी सवाल उठ रहा है कि पार्टी में गुटबाजी के चलते ही पार्टी के ही कुछ नेताओं ने ही हंगामे का खेल करा दिया है। हालांकि पार्टी इसे विपक्ष की साजिश बता रही है लेकिन इस पूरे हंगामे के पीछे पार्टी की गुटबाजी भी साफ दिखाई दे रही है। आज की रैली में जो कुछ भी हुआ वह आगामी चुनाव की दृष्टि से पार्टी के लिए किसी भी दृष्टि से अच्छा शगुन नहीं है। रैली में जिस तरह सोनिया गांधी के आगमन तक भीड़ की इंतजार होती रही उससे आगामी चुनाव में कांग्रेस की स्थिति पर भी सवाल खड़ा हो रहा है। कुल मिलाकर यह दिखाई दिया कि रैली का प्रबंधन किसी भी दृष्टि से उचित नहीं था, यदि रैली प्रबंधन में थोड़ी भी सर्तकता बरती गई होती तो संभवतः सरकार और पार्टी को एैसी शर्मनाक स्थिति का सामना न करना पड़ता।
मंगलवार, 2 सितंबर 2008
सीएनजी संकट: जेब और रोजी पर मार
लम्बी होती सी एन जी वाहनों की कतार
समस्या का कारण
पैट्रोल की बढ़ती कीमतें बढ़ा रही हैं सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी वाहनों की बढ़ती संख्या से लंबी हो रही है कतार
वाहनों क संख्या के अनुपात में नहीं हैं सीएनजी स्टेशन
सीएनज की कमी नहीं, कमी है फिलिंग संसाधनों की
भूमि न मिलने से नहीं लग रहे हैं सीएनजी स्टेशन
भूमि के लिए 40 आवेदनों में से मात्रा आधा दर्जन स्थलों का हुआ आवंटन
संसाधनों के लिए ईपीसीए से भी की मदद की गुहार
कब होगा समाधान
राजधानी में एक मेगा स्टेशन व छह नये फिलिंग स्टेशन बनाने की योजना
दिसंबर तक होगा समस्या का पूरी तरह समाधान
एनसीआर के वाहनों के लिए एनसीआर में बनेंगे सीएनजी स्टेशन
नये स्टेशन खुलने में लगेंगे अभी छह माह
अब तक हुए उपाय
मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ाने के लिए 54 हाईकैपिसिटी विदेशी कम्प्रेशर का दिया आर्डर18 कम्प्रेशर राजधानी पहुंचे
5 कम्प्रेशरों ने किया काम शुरु
अन्य कम्प्रेशर कर रहे हैं विद्युत भार की स्वीकृति का इंतजार
खपत और क्षमता
राजधानी में 13 लाख किलो सीएनजी खपत होती है प्रतिदिन
10.5 लाख किलो प्रतिदिन फिलिंग करने की है सभी स्टेशनों की क्षमता
कितने हैं सीएनजी स्टेशन
आईजीएल के स्टेशन 65पैट्रोल पम्पों पर लगे 75डीटीसी डिपो में लगे स्टेशन 23
सीएनजी स्टेशनों की संख्या है कुल 163
सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी बसें 22500
आटो रिक्शा 55000
छोटे माल वाहक वाहन 24500
एनसीआर से प्रतिदिन आने वाले सीएनजी वाहन लगभग 30 हजार
अन्य प्राइवेट वाहन 1.30 लाख
2.25 लाख प्राइवेट व सार्वजनिक वाहन प्रतिदिन भरवाते हैं सीएनजी
सीएनजी वाहनों की संख्या पिछले 2 वर्ष में
वर्ष 2005 एक लाख सीएनजी वाहन
वर्ष 2008 लगभग ढाई लाख सीएनजी वाहन
दो वर्ष में बढ़ गये 250 प्रतिशत सीएनजी यूजर्स
तपती धूप, भीषण गर्मी ऊपर से घंटो का इंतजार। रोटी कमाने घर से निकले हैं लेकिन नहीं पता कब नम्बर आयेगा और कब सवारी मिलेगी। फिर शाम हो गई तो मालिक को किराया भी देना होगा। साब यह संकट तो रोटी का संकट हो गया है, इस तरह कतार में लगे रहेंगे तो कब कमायेंगे और क्या खायेंगे। कभी दो घंटे तो कभी चार घंटे समय की बरबादी। क्या करें, और किससे कहें। सीएनजी स्टेशनों के लंबी कतार में खड़े आटो चालकों की यह पीढ़ा उनके तनावग्रस्त व थके चेहरे ही बता देते हैं। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के तमाम सीएनजी स्टेशनों पर आटो चालक हों या फिर कार चालक सभी सीएनजी भरवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। दिन में कारों और आटो चालकों की कतार इन स्टेशनों के बाहर दिखाई देती है तो रात को ब्लूलाइन बसें कतार में दिखती हैं। लगभग एक लाख लोगों की रोजी रोटी सीएनजी पर निर्भर है। सीएनजी मिलेगी तो रोजी रोटी मिलेगी। यह तो रही आटो, टैक्सी चालकों और बस चालकों की पीढ़ा। निजी वाहन चालको ंकी पीढ़ा भी कम नहीं है। आफिस जाना हो या फिर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना हो, घर व आफिस के तमाम जरूरी कामों की तरह अब सीएनजी की कतार में इंतजार करना भी एक जरुरी काम हो गया है। निजी वाहन चालकों के सामने दो ही रास्ते हैं या तो महंगा पैट्रोल भरवाकर अपनी जेब खाली करें या फिर कतार में लग कर सीएनजी भरवायें। गनीमत है सीएनजी स्टेशनों पर निजी कारों में फिलिंग के लिए अलग मशीनें हैं अन्यथा सीएनजी भरवाने के लिए भी आफिस से छुट्टी लेनी पड़ती। सीएनजी ने राजधानी को प्रदूषण से मुक्त करने का सपना तो पूरा कर दिया लेकिन सीएनजी स्टेशनों पर लंबी होती वाहनों की कतार एक एैसी समस्या बन गई है जो आटो व बस चालकों की रोजी रोटी छीन रही है और अन्य वाहन चालकों का कीमती समय।
सीएनजी संकट का कारण
संकट सीएनजी का नहीं बल्कि सीएनजी फिलिंग का है। पैट्रोल की बढ़ती कीमतो के कारण सीएनजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है और वाहनों के अनुपात में न तो सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है और न ही मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ रही है। पिछले चार माह से सीएनजी स्टेशनो ंपर बढ़ते दबाव के बाद सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ाने व कम्प्रेशर क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम तो हुआ है लेकिन अभी उसका परिणाम आना बाकी है। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) की अपनी मजबूरियां हैं। गेल से सीएनजी की कोई कमी न होने के बावजूद आईजीएल बेबस है क्योंकि आईजीएल को नये स्टेशनों के लिए भूमि ही नहीं मिल रही है। राजधानी में सीएनजी आपूर्ति की जिम्मेदारी आईजीएल पर है और गैस अथारिटी आफ इंडिया (गेल) की ओर से आईजीएल को प्रतिदिन 2 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर सीएनजी गैस ़आवंटित है और राजधानी में सीएनजी की मौजुदा खपत 1.6 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर है। इससे स्पष्ट है कि सीएनजी की कोई कमी नहीं है और आईजीएल को खपत से ज्यादा सीएनजी आवंटित हो रही है। सीएनजी स्टेशनो ंपर वाहनों की बढ़ती कतार से इनवायरनमेंट पोलुशन प्रिवेंशन एण्ड कण्ट्रोल अथारिटी (ईपीसीए) भी चिंतित है और ईपीसीए इस संबध में आईजीएल को अपनी चिंता से अवगत भी करा चुकी है। प्रतिदिन एनसीआर से आने वाले लगभग 30 हजार निजी सीएनजी वाहन भी इस समस्या को बढ़ा रहे है।
समाधान की क्या है योजना
सीएनजी के इस संकट का समाधान करने के लिए आईजीएल ने 54 हाईकैपिसिटी कम्प्रेशर विदेश से आयात किये हैं जिनमें से 18 आईजीएल को प्राप्त हो चुके हैं और पांच कम्प्रेशर प्रगति मैदान आईपी इस्टेट, मैकटाफ, ओखला फेस 1, नरेला व मयूर विहार में लगाये गये हैं लेकिन बाकी 13 कम्प्रेशर अभी भी चालू होने का इंतजार कर रहे हैं, इसका प्रमुख कारण आईजीएल स्टेशनों को इन कम्प्रेशरों के मुताबिक विद्युत भार स्वीकृत न होना है। इसके अलावा समय की बचत के लिए प्रिसेट डिस्पेंसर भी लगाये जा रहे हैं। सौ से अधिक डिस्पेंसर मंगाये गये हैं। आईजीएल ने नये स्टेशन खोलने की तैयारी भी की है लेकिन भूमि उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या है, भूमि के लिए लगभग 40 आवेदनों में से मात्रा अभी तक केवल सरोजनी नगर व रोहिणी में ही भूमि आवंटित हुर्ह है। आईजीएल ने एनसीाअर से आने वाले वाहनों को एनसीआर में ही स्टेशन लगाकर सीएनजी उपलब्ध कराने की योजना बनाई है जबकि राजधानी के कंझावला में एक मेगा स्टेशन लगाये जाने के अलावा सीजीओ, मिन्टोरोड, रोहिणी फेस 2, मंगोलपुरी फेस 2, पीतमपुरा व सरोजनी नगर में नये स्टेशन लगाया जाना प्रस्तावित है। यह स्टेशन लगाने में कम से कम छह माह का वक्त लगेगा।
यूं तो होने लगेगी मारामारी
सीएनजी स्टेशनों पर कतार में लगे वाहन चालक कहते हैं कि यदि इसी तरह कतार बढ़ती रही तो सीएनजी के लिए मारामारी होने लगेगी। इन्द्रप्रस्थ स्टेशन के बाहर कतार में लगे वैशाली गाजियाबाद निवासी शील गुलाटी का कहना था कि जब तक सीएनजी स्टेशनों की संख्या नहीं बढ़ेगी संकट का समाधान नहीं होगा। वह बताते हैं कि कभी आधा घंटा तो कभी डेढ़ घंटा उन्हें कतार में लगता है। एक बड़ी कम्पनी के अधिकारी एस.शंकर कहते हैं कि उन्हें प्रतिदिन 45 मिनट सीएनजी के लिए खर्च करने पड़ते हैं। वह कहते हैं कि मौजुदा स्टेशनो ंपर मशीनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वैशाली के ही अशोक सोनी कहते हैं कि वह एक दिन के अंतराल में सीएनजी भरवाने आते हैं और लंबा इतजार करते है। वह कहते हैं कि सरकार को कुछ करना चाहिए तभी समाधान होगा। सीएनजी संकट से प्रतिदिन दो तीन घंटे कतार में लगने वाले आटो चालक सुशील कुमार का कहना है कि जितना समय सीएनजी भरवाने में लगता है उतने समय में वह दो सौ रुपये कमा सकता है लेकिन रोजाना उसे यह नुकसान सहना पड़ता है। मोतीहारी से दिल्ली में आटो चलाने आये सुरेन्द्र यादव का कहना है कि अब तो यह रोज की समस्या है, क्या करें बच्चों को रोटी खिलानी है तो लाइन में लगना ही होगा। विनोद नगर निवासी बच्चे लाल का कहना था कि उसे आज दो घंटे लाइन में हो गये हैं लेकिन अभी तक नम्बर नहीं आया है, यही स्थिति रोज होती है। उसका कहना था कि मशीने बढ़ाकर समाधान किया जा सकता है।
समस्या का कारण
पैट्रोल की बढ़ती कीमतें बढ़ा रही हैं सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी वाहनों की बढ़ती संख्या से लंबी हो रही है कतार
वाहनों क संख्या के अनुपात में नहीं हैं सीएनजी स्टेशन
सीएनज की कमी नहीं, कमी है फिलिंग संसाधनों की
भूमि न मिलने से नहीं लग रहे हैं सीएनजी स्टेशन
भूमि के लिए 40 आवेदनों में से मात्रा आधा दर्जन स्थलों का हुआ आवंटन
संसाधनों के लिए ईपीसीए से भी की मदद की गुहार
कब होगा समाधान
राजधानी में एक मेगा स्टेशन व छह नये फिलिंग स्टेशन बनाने की योजना
दिसंबर तक होगा समस्या का पूरी तरह समाधान
एनसीआर के वाहनों के लिए एनसीआर में बनेंगे सीएनजी स्टेशन
नये स्टेशन खुलने में लगेंगे अभी छह माह
अब तक हुए उपाय
मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ाने के लिए 54 हाईकैपिसिटी विदेशी कम्प्रेशर का दिया आर्डर18 कम्प्रेशर राजधानी पहुंचे
5 कम्प्रेशरों ने किया काम शुरु
अन्य कम्प्रेशर कर रहे हैं विद्युत भार की स्वीकृति का इंतजार
खपत और क्षमता
राजधानी में 13 लाख किलो सीएनजी खपत होती है प्रतिदिन
10.5 लाख किलो प्रतिदिन फिलिंग करने की है सभी स्टेशनों की क्षमता
कितने हैं सीएनजी स्टेशन
आईजीएल के स्टेशन 65पैट्रोल पम्पों पर लगे 75डीटीसी डिपो में लगे स्टेशन 23
सीएनजी स्टेशनों की संख्या है कुल 163
सीएनजी वाहनों की संख्या
सीएनजी बसें 22500
आटो रिक्शा 55000
छोटे माल वाहक वाहन 24500
एनसीआर से प्रतिदिन आने वाले सीएनजी वाहन लगभग 30 हजार
अन्य प्राइवेट वाहन 1.30 लाख
2.25 लाख प्राइवेट व सार्वजनिक वाहन प्रतिदिन भरवाते हैं सीएनजी
सीएनजी वाहनों की संख्या पिछले 2 वर्ष में
वर्ष 2005 एक लाख सीएनजी वाहन
वर्ष 2008 लगभग ढाई लाख सीएनजी वाहन
दो वर्ष में बढ़ गये 250 प्रतिशत सीएनजी यूजर्स
तपती धूप, भीषण गर्मी ऊपर से घंटो का इंतजार। रोटी कमाने घर से निकले हैं लेकिन नहीं पता कब नम्बर आयेगा और कब सवारी मिलेगी। फिर शाम हो गई तो मालिक को किराया भी देना होगा। साब यह संकट तो रोटी का संकट हो गया है, इस तरह कतार में लगे रहेंगे तो कब कमायेंगे और क्या खायेंगे। कभी दो घंटे तो कभी चार घंटे समय की बरबादी। क्या करें, और किससे कहें। सीएनजी स्टेशनों के लंबी कतार में खड़े आटो चालकों की यह पीढ़ा उनके तनावग्रस्त व थके चेहरे ही बता देते हैं। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के तमाम सीएनजी स्टेशनों पर आटो चालक हों या फिर कार चालक सभी सीएनजी भरवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे है। दिन में कारों और आटो चालकों की कतार इन स्टेशनों के बाहर दिखाई देती है तो रात को ब्लूलाइन बसें कतार में दिखती हैं। लगभग एक लाख लोगों की रोजी रोटी सीएनजी पर निर्भर है। सीएनजी मिलेगी तो रोजी रोटी मिलेगी। यह तो रही आटो, टैक्सी चालकों और बस चालकों की पीढ़ा। निजी वाहन चालको ंकी पीढ़ा भी कम नहीं है। आफिस जाना हो या फिर बच्चों को स्कूल छोड़ने जाना हो, घर व आफिस के तमाम जरूरी कामों की तरह अब सीएनजी की कतार में इंतजार करना भी एक जरुरी काम हो गया है। निजी वाहन चालकों के सामने दो ही रास्ते हैं या तो महंगा पैट्रोल भरवाकर अपनी जेब खाली करें या फिर कतार में लग कर सीएनजी भरवायें। गनीमत है सीएनजी स्टेशनों पर निजी कारों में फिलिंग के लिए अलग मशीनें हैं अन्यथा सीएनजी भरवाने के लिए भी आफिस से छुट्टी लेनी पड़ती। सीएनजी ने राजधानी को प्रदूषण से मुक्त करने का सपना तो पूरा कर दिया लेकिन सीएनजी स्टेशनों पर लंबी होती वाहनों की कतार एक एैसी समस्या बन गई है जो आटो व बस चालकों की रोजी रोटी छीन रही है और अन्य वाहन चालकों का कीमती समय।
सीएनजी संकट का कारण
संकट सीएनजी का नहीं बल्कि सीएनजी फिलिंग का है। पैट्रोल की बढ़ती कीमतो के कारण सीएनजी वाहनों की संख्या बढ़ रही है और वाहनों के अनुपात में न तो सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ रही है और न ही मौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढ़ रही है। पिछले चार माह से सीएनजी स्टेशनो ंपर बढ़ते दबाव के बाद सीएनजी स्टेशनों की संख्या बढ़ाने व कम्प्रेशर क्षमता बढ़ाने की दिशा में काम तो हुआ है लेकिन अभी उसका परिणाम आना बाकी है। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) की अपनी मजबूरियां हैं। गेल से सीएनजी की कोई कमी न होने के बावजूद आईजीएल बेबस है क्योंकि आईजीएल को नये स्टेशनों के लिए भूमि ही नहीं मिल रही है। राजधानी में सीएनजी आपूर्ति की जिम्मेदारी आईजीएल पर है और गैस अथारिटी आफ इंडिया (गेल) की ओर से आईजीएल को प्रतिदिन 2 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर सीएनजी गैस ़आवंटित है और राजधानी में सीएनजी की मौजुदा खपत 1.6 मिलियन स्टेण्डर्ड क्यूबिक मीटर है। इससे स्पष्ट है कि सीएनजी की कोई कमी नहीं है और आईजीएल को खपत से ज्यादा सीएनजी आवंटित हो रही है। सीएनजी स्टेशनो ंपर वाहनों की बढ़ती कतार से इनवायरनमेंट पोलुशन प्रिवेंशन एण्ड कण्ट्रोल अथारिटी (ईपीसीए) भी चिंतित है और ईपीसीए इस संबध में आईजीएल को अपनी चिंता से अवगत भी करा चुकी है। प्रतिदिन एनसीआर से आने वाले लगभग 30 हजार निजी सीएनजी वाहन भी इस समस्या को बढ़ा रहे है।
समाधान की क्या है योजना
सीएनजी के इस संकट का समाधान करने के लिए आईजीएल ने 54 हाईकैपिसिटी कम्प्रेशर विदेश से आयात किये हैं जिनमें से 18 आईजीएल को प्राप्त हो चुके हैं और पांच कम्प्रेशर प्रगति मैदान आईपी इस्टेट, मैकटाफ, ओखला फेस 1, नरेला व मयूर विहार में लगाये गये हैं लेकिन बाकी 13 कम्प्रेशर अभी भी चालू होने का इंतजार कर रहे हैं, इसका प्रमुख कारण आईजीएल स्टेशनों को इन कम्प्रेशरों के मुताबिक विद्युत भार स्वीकृत न होना है। इसके अलावा समय की बचत के लिए प्रिसेट डिस्पेंसर भी लगाये जा रहे हैं। सौ से अधिक डिस्पेंसर मंगाये गये हैं। आईजीएल ने नये स्टेशन खोलने की तैयारी भी की है लेकिन भूमि उपलब्ध न होना एक बड़ी समस्या है, भूमि के लिए लगभग 40 आवेदनों में से मात्रा अभी तक केवल सरोजनी नगर व रोहिणी में ही भूमि आवंटित हुर्ह है। आईजीएल ने एनसीाअर से आने वाले वाहनों को एनसीआर में ही स्टेशन लगाकर सीएनजी उपलब्ध कराने की योजना बनाई है जबकि राजधानी के कंझावला में एक मेगा स्टेशन लगाये जाने के अलावा सीजीओ, मिन्टोरोड, रोहिणी फेस 2, मंगोलपुरी फेस 2, पीतमपुरा व सरोजनी नगर में नये स्टेशन लगाया जाना प्रस्तावित है। यह स्टेशन लगाने में कम से कम छह माह का वक्त लगेगा।
यूं तो होने लगेगी मारामारी
सीएनजी स्टेशनों पर कतार में लगे वाहन चालक कहते हैं कि यदि इसी तरह कतार बढ़ती रही तो सीएनजी के लिए मारामारी होने लगेगी। इन्द्रप्रस्थ स्टेशन के बाहर कतार में लगे वैशाली गाजियाबाद निवासी शील गुलाटी का कहना था कि जब तक सीएनजी स्टेशनों की संख्या नहीं बढ़ेगी संकट का समाधान नहीं होगा। वह बताते हैं कि कभी आधा घंटा तो कभी डेढ़ घंटा उन्हें कतार में लगता है। एक बड़ी कम्पनी के अधिकारी एस.शंकर कहते हैं कि उन्हें प्रतिदिन 45 मिनट सीएनजी के लिए खर्च करने पड़ते हैं। वह कहते हैं कि मौजुदा स्टेशनो ंपर मशीनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। वैशाली के ही अशोक सोनी कहते हैं कि वह एक दिन के अंतराल में सीएनजी भरवाने आते हैं और लंबा इतजार करते है। वह कहते हैं कि सरकार को कुछ करना चाहिए तभी समाधान होगा। सीएनजी संकट से प्रतिदिन दो तीन घंटे कतार में लगने वाले आटो चालक सुशील कुमार का कहना है कि जितना समय सीएनजी भरवाने में लगता है उतने समय में वह दो सौ रुपये कमा सकता है लेकिन रोजाना उसे यह नुकसान सहना पड़ता है। मोतीहारी से दिल्ली में आटो चलाने आये सुरेन्द्र यादव का कहना है कि अब तो यह रोज की समस्या है, क्या करें बच्चों को रोटी खिलानी है तो लाइन में लगना ही होगा। विनोद नगर निवासी बच्चे लाल का कहना था कि उसे आज दो घंटे लाइन में हो गये हैं लेकिन अभी तक नम्बर नहीं आया है, यही स्थिति रोज होती है। उसका कहना था कि मशीने बढ़ाकर समाधान किया जा सकता है।
कांग्रेस के डेढ़ दर्जन विधायकों की टिकट पर सवाल
देना होगा जवाब निगम चुनाव की हार का
अपनी करतूतों से पार्टी को संकट में डालने वाले भी नप सकते हैं
निगम चुनाव में एक भी वार्ड नहीं जितवा पाये कई विधायक
कांग्रेस के लगभग डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायकों को विधानसभा चुनाव में पुनः प्रत्याशी बनाये जाने पर पार्टी के भीतर ही सवाल उठाये जा रहे हैं। यह विधायक एैसे हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा के एक भी वार्ड में कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं जितवा सके हैं। इन विधायकों से अब पूछा जायेगा कि उनके क्षेत्रों में पार्टी की इतनी दुर्गति क्यों हुई और विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के दावे का आधार क्या है। इसके अलावा समय समय पर अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने वाले विधायकों पर भी गाज गिर सकती है। पार्टी हाईकमान ने एैसे सभी विधायकों की सूची तैयार कर ली है। आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी हाईकमान किसी भी कीमत पर निगम चुनाव की पुनरावृत्ति नहीं चाहता, यही कारण है कि प्रत्याशियों के चयन में भी पूरी सावधानी बरती जा रही है और केवल चुनाव में विजय हासिल करने में सक्षम उम्मीदवारों को ही चुनाव मैदान में उतारे जाने की रणनीति बनाई जा रही है लेकिन पार्टी हाईकमान की दुविधा यह है कि डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायक एैसे हैं जिनके क्षेत्रों में निगम चुनाव के दौरान पार्टी को सभी वार्डो में करारी हार का सामना करना पड़ा। यह विधायक एक भी वार्ड में पार्टी प्रत्याशी की जीत नहीं करा सके, जिससे अब इनकी अपनी जीत पर भी सवाल लगा है।इन विधायकों में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व रोहतास नगर के विधायक रामबाबू शर्मा, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी व मालवीय नगर के विधायक डा।योगानंद शास्त्राी और राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा व आर.के.पुरम से विधायक बरखा सिंह भी शामिल हैं। इनके अलावा नरेला विधानसभा क्षेत्रा के विधायक चरण सिंह कंडेरा, बुराड़ी के विधायक जिले सिंह, तिमारपुर के विधायक सुरेन्द्र पाल सिंह बिटटू, बवाना के विधायक सुरेन्द्र कुमार, परिसीमन में नई सीट बनी मुंडका से दावेदार व नांगलोई के विधायक विजेन्द्र सिंह, शकूर बस्ती के विधायक डा.एस.सी.वत्स, माडल टाऊन के विधयक कुंवर करण सिंह, राजौरी गार्डन के विधायक रमेश लांबा, विकासपुरी के विधायक मुकेश शर्मा, नई सीट बनी बिजवासन से दावेदार व महीपालपुर के विधायक विजय सिंह लोचव, महरौली के विधायक व अब छतरपुर सीट से दावेदार बलराम तंवर, विश्वास नगर के विधायक नसीब सिंह व गोण्डा सीट से विधायक भीष्म शर्मा एैसे विधायक हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा से एक भी सीट पार्टी की झोली में नहीं डलवा सके। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उक्त सभी विधायक दावेदार हैं लेकिन पार्टी हाईकमान के कुछ नेताओं ने इन सभी विधायकों की दावेदारी पर सवाल लगा दिया है। पार्टी के केन्द्रीय हाईकमान का कहना है कि यदि यह सभी दावेदार अपनी जीत का दावा कर रहे हैं तो उन्हें अपनी दावेदारी से पहले यह भी बताना चाहिए कि यदि उनकी अपने क्षेत्रा में पकड़ है तो फिर निगम चुनाव में उनके क्षेत्रो ंसे पार्टी का सूपड़ा ही साफ क्यों हो गया। इसके अलावा विकास पुरी के विधायक मुकेश शर्मा एवं शकूर बस्ती के डा.एस.सी.वत्स पर एक अन्य आरोप अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने का भी है। मुकेश शर्मा ने बिजली बिलों के मुद्दे पर सचिवालय पर भीख मांग कर सरकार को कठघरे में खड़ा किया था तो डा.एस.सी.वत्स ने अपनी ही सरकार के खिलाफ रिर्पोट देकर सरकार की छीछालेदारी कराई थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल के मुताबिक चुनाव में उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया जायेगा जो जीतने में सक्षम होंगे तथा पार्टी के प्रति वफादार होंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई विधायक इस योग्यता को पूरा नहीं करेगा तो उनसे पूछा जायेगा कि चुनाव में उनकी जीत का आधार क्या है। उन्होंने बताया कि इस बारे में निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी को ही करना है।
अपनी करतूतों से पार्टी को संकट में डालने वाले भी नप सकते हैं
निगम चुनाव में एक भी वार्ड नहीं जितवा पाये कई विधायक
कांग्रेस के लगभग डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायकों को विधानसभा चुनाव में पुनः प्रत्याशी बनाये जाने पर पार्टी के भीतर ही सवाल उठाये जा रहे हैं। यह विधायक एैसे हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा के एक भी वार्ड में कांग्रेस प्रत्याशी को नहीं जितवा सके हैं। इन विधायकों से अब पूछा जायेगा कि उनके क्षेत्रों में पार्टी की इतनी दुर्गति क्यों हुई और विधानसभा चुनाव में उनकी जीत के दावे का आधार क्या है। इसके अलावा समय समय पर अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने वाले विधायकों पर भी गाज गिर सकती है। पार्टी हाईकमान ने एैसे सभी विधायकों की सूची तैयार कर ली है। आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी हाईकमान किसी भी कीमत पर निगम चुनाव की पुनरावृत्ति नहीं चाहता, यही कारण है कि प्रत्याशियों के चयन में भी पूरी सावधानी बरती जा रही है और केवल चुनाव में विजय हासिल करने में सक्षम उम्मीदवारों को ही चुनाव मैदान में उतारे जाने की रणनीति बनाई जा रही है लेकिन पार्टी हाईकमान की दुविधा यह है कि डेढ़ दर्जन मौजुदा विधायक एैसे हैं जिनके क्षेत्रों में निगम चुनाव के दौरान पार्टी को सभी वार्डो में करारी हार का सामना करना पड़ा। यह विधायक एक भी वार्ड में पार्टी प्रत्याशी की जीत नहीं करा सके, जिससे अब इनकी अपनी जीत पर भी सवाल लगा है।इन विधायकों में प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व रोहतास नगर के विधायक रामबाबू शर्मा, प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्राी व मालवीय नगर के विधायक डा।योगानंद शास्त्राी और राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा व आर.के.पुरम से विधायक बरखा सिंह भी शामिल हैं। इनके अलावा नरेला विधानसभा क्षेत्रा के विधायक चरण सिंह कंडेरा, बुराड़ी के विधायक जिले सिंह, तिमारपुर के विधायक सुरेन्द्र पाल सिंह बिटटू, बवाना के विधायक सुरेन्द्र कुमार, परिसीमन में नई सीट बनी मुंडका से दावेदार व नांगलोई के विधायक विजेन्द्र सिंह, शकूर बस्ती के विधायक डा.एस.सी.वत्स, माडल टाऊन के विधयक कुंवर करण सिंह, राजौरी गार्डन के विधायक रमेश लांबा, विकासपुरी के विधायक मुकेश शर्मा, नई सीट बनी बिजवासन से दावेदार व महीपालपुर के विधायक विजय सिंह लोचव, महरौली के विधायक व अब छतरपुर सीट से दावेदार बलराम तंवर, विश्वास नगर के विधायक नसीब सिंह व गोण्डा सीट से विधायक भीष्म शर्मा एैसे विधायक हैं जो निगम चुनाव के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्रा से एक भी सीट पार्टी की झोली में नहीं डलवा सके। आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उक्त सभी विधायक दावेदार हैं लेकिन पार्टी हाईकमान के कुछ नेताओं ने इन सभी विधायकों की दावेदारी पर सवाल लगा दिया है। पार्टी के केन्द्रीय हाईकमान का कहना है कि यदि यह सभी दावेदार अपनी जीत का दावा कर रहे हैं तो उन्हें अपनी दावेदारी से पहले यह भी बताना चाहिए कि यदि उनकी अपने क्षेत्रा में पकड़ है तो फिर निगम चुनाव में उनके क्षेत्रो ंसे पार्टी का सूपड़ा ही साफ क्यों हो गया। इसके अलावा विकास पुरी के विधायक मुकेश शर्मा एवं शकूर बस्ती के डा.एस.सी.वत्स पर एक अन्य आरोप अपने कारनामों से पार्टी व सरकार को संकट में डालने का भी है। मुकेश शर्मा ने बिजली बिलों के मुद्दे पर सचिवालय पर भीख मांग कर सरकार को कठघरे में खड़ा किया था तो डा.एस.सी.वत्स ने अपनी ही सरकार के खिलाफ रिर्पोट देकर सरकार की छीछालेदारी कराई थी। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल के मुताबिक चुनाव में उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट दिया जायेगा जो जीतने में सक्षम होंगे तथा पार्टी के प्रति वफादार होंगे। उन्होंने कहा कि यदि कोई विधायक इस योग्यता को पूरा नहीं करेगा तो उनसे पूछा जायेगा कि चुनाव में उनकी जीत का आधार क्या है। उन्होंने बताया कि इस बारे में निर्णय स्क्रीनिंग कमेटी को ही करना है।
असुरक्षित नोनिहल कोन रखे ख्याल
- स्कूलों की असुरक्षा: अभिभावकों का बढ़ता भय
राजधानी के स्कूलों में सुरक्षित नहीं हैं बच्चे
लचीले सरकारी नियमों की खुलकर उड़ती हैं धज्जियां
स्कूलों में सुरक्षा के लिए कठोर नियमों व कानून का है अभाव
कभी मौत तो कभी अन्य दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं छात्रा छात्राएं
स्कूल प्रशासन का रवैया रहता है लापरवाह
स्कूलों के भीतर ही बढ़ रही हैं मारपीट, छेड़छाड़ की घटनाएं
कई स्कूलों में दुष्कर्म की घटनाओं से हुआ शिक्षा जगत शर्मसार
स्वीमिंग पुलों पर नहीं है लाइफ गार्ड की व्यवस्था
अनुशासन के नाम पर मनमानी करते हैं स्कूल प्रशासन
शिक्षकों द्वारा अमानवीय ढंग से मारपीट पर भी उठते रहे है
अनेक स्कूलों में नहीं हैं सुरक्षा गार्ड
बच्चों की सुरक्षा के मापदंड पूरे नहीं करते हैं अनेक स्कूल
स्कूलों में नहीं है चारदिवारी
शौचालयों में लगी रहती हैं अशलील तस्वीरें
स्कूलों में परिवहन की उचित व्यवस्था होने से दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं मासूम बच्चे
कई स्कूलों के भवन हैं जर्जर, अक्सर होते रहे हैं हादसे
स्कूलों में अवसाद का शिकार होकर कई बच्चे कर चुके है आत्महत्या
सीबीएसई के निर्देश के बावजूद स्कूलों में नहीं हैं काउंसलर
अभिभावक संघों की राय के सुझावों की होती है उपेक्षा
दिल्ली पब्लिक स्कूल मथुरा रोड के 13 वर्षीय मासूम छात्रा मोहम्मद नादिर की रहस्यमय मौत और उससे पूर्व दिल्ली पब्लिक स्कूल आर.के.पुरम की छात्रा पुष्पांजलि की मौत ने राजधानी के स्कूलों में छात्रा छात्राओं की सुरक्षा पर एक एैसा सवाल खड़ा कर दिया है जिससे अभिभावक भयभीत दिखाई देने लगे है। यह भय केवल डीपीएस या फिर डीपीएस की तरह ही जाने माने व बड़े स्कूलों से ही नहीं बल्कि स्कूल गली मौहल्ले के हों या फिर सरकारी व निजी स्कूलों में भी यह भय दिखाई देता है। कभी स्कूल के शिक्षकों द्वारा छात्रा छात्राओं के साथ की गई निमर्मतापूर्वक पिटाई तो कभी कक्षा में लगातार उपेक्षा से अवसाद की ओर बढ़ते छात्रा। कभी शिक्षकों द्वारा ही मासूम छात्राओं से अशलील हरकतें तो कभी दुष्कर्म की अमानवीय हरकत। यह मामले एैसे हैं जो मौजुदा शिक्षा व्यवस्था को ही कठघरे में खड़े कर रहे हैं। स्कूलों में दुर्घटनाओं, मारपीट, छेड़छाड़ दुष्कर्म व अशलील हरकतों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले एक वर्ष में ही राजधानी में दो दर्जन से अधिक एैसे मामले हो चुके हैं और आधा दर्जन से अधिक छात्रा छात्राएं अपनी जान गवां चुके हैं। इसके अलावा स्कूल में परोसे गये अवसाद के कारण आधा दर्जन छात्रा छात्राएं आत्महत्या भी कर चुके हैं। स्कूलों का प्रशासन अनुशासन के नाम पर छात्रा छात्राओं पर इतना दबाव बना देता है कि अधिकतर बच्चे अवसाद का शिकार हो जाते है।
स्कूलों में नहीं है उचित परिवहन व्यवस्था स्कूलों में बच्चों को लाने के लिए कोई सटीक परिवहन व्यवस्था न होने के कारण बच्चे अक्सर दुर्घटनाओं का शिकार होते रहे हैं। हालांकि सरकार ने बच्चों को दुर्घटनाओं से बचाने के लिए स्कूली वैन नीति बनाई है लेकिन अधिकतर स्कूलों के पास पार्किंग की जगह न होने से स्कूली वैन बीच सड़क पर ही बच्चों को उतारती हैं और छुट्टी के बाद बीच सड़क से ही बच्चों को बैठाया जाता है जिससे सड़क दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है।
सुरक्षा के लिए है कठोर नियमो ंका अभाव राजधानी में सरकारी व निजी स्कूलों के लिए सरकार की ओर से सुरक्षा के कठोर नियमों का अभाव है। जो नियम हैं वह भी अत्यंत लचीले हैं ओर स्कूल प्रशासन अक्सर लचीले नियमों का भी पालन करते दिखाई नहीं देते। नियमासाुन सभी स्कूलों में गेटमैन होना चाहिए तथा सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था होने के साथ साथ चारदिवारी भी होनी चाहिए लेकिन अधिकतर स्कूलों में न तो सुरक्षा गार्ड हैं और न ही गेट मैन। सरकारी स्कूलों का तो अत्यंत बुरा हाल है। वहां तो भवन ही जर्जर है। पिछले दिनों ही एक स्कूल भवन की दीवार गिर जाने से तीन बच्चे बुरी तरह घायल हो गये थे। सरकारी स्कूलों में मिड डे मील परोसे जाने के दौरान अनेक बच्चे स्वयं ही स्कूल से निकल कर घरों तक पहुंच जाते हैं लेकिन स्कूल प्रबंधन द्वारा इसका संज्ञान नहीं लिया जाता।
क्या कहते है स्कूल प्रबंधक
- लोनी रोड स्थित सिद्धार्थ इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल के मैनेजर शशीकांत भारती ने बताया कि स्कूल भी समाज का ही एक हिस्सा है। जब समाज में चारो तरफ अपराधिक वारदातें हो रही हों तो स्कूल भी इससे बच नहीं सकते। हालांकि स्कूल प्रशासन बच्चों को सुरक्षात्मक माहौल देने की भरपूर कोशिश करते हैं लेकिन कई बार कुछ घटनाएं पढ़ने-सुनने को मिल ही जाती हैं। उन्होंने बताया कि पहले की तुलना में बच्चे अब ज्यादा हिंसक होते जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी है कि स्कूल प्रशासन हर छोटी बात की खबर रखे तथा आवश्यक्ता पड़ने पर बच्चों को हिंसा के दुरगामी परिणामों को विस्तार से बताए। मयूर विहार फेज-3 स्थित विद्या बाल भवन के प्रधानाचार्य सतवीर शर्मा ने दुर्घटनाओं के संबंध में बताया कि स्कूलों में सुरक्षा गार्ड की व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। कई स्कूलों में सुरक्षा के पूरे उपाय नहीं होते, जिसके कारण छात्र-छात्राएं दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा शिक्षकों द्वारा छात्रों के उत्पीड़न पर सतवीर ने बताया कि रेगुलर टीचर पूरी तरह से ट्रेन्ड होते हैं। इसके अलावा उच्च शिक्षा प्राप्त होने के कारण बच्चों के साथ दुव्र्यवहार और उत्पीड़न नहीं करते हैं। छात्रों को प्रताड़ित करने का कार्य ठेके पर रखे जाए शिक्षक करते हैं, जो न तो टेªन्ड होते हैं और ना ही उच्च शिक्षा प्राप्त। कई स्कूल कम वेतन देने की लालच में इन्हें रख लेते हैं, जिसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है। दिलशाद गार्डन के ग्रीनफिल्ड पब्लिक स्कूल के उप-प्रधानाचार्य एसके शर्मा ने कहा कि छात्रों द्वारा आत्महत्या व हिंसा की घटनाओं के लिए छात्रा कम और वतावरण और अभिभावक ज्यादा दोषी हैं। किसी के पास बच्चों के साथ वक्त बिताने व उनकी समस्याएं सुनने का समय नहीं है। जिसके कारण ऐसी घटनाएं घटित हो रही हैं। इंद्रप्रस्थ विस्तार स्थित नेशनल विक्टर पब्लिक स्कूल के चेयरमैन वीपी पांचाल ने बताया कि अब तो लोग घरों में भी सुरक्षित नहीं रह गए हैं, स्कूलों की बात कौन करे। वैसे स्कूल प्रशासन सदैव बच्चों की सुरक्षा के लिए सजग रहता है लेकिन छात्र कब क्या कर दे इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता। सिद्धार्थ इंटरनेशनल स्कूल के अभिभावक-शिक्षक संघ के सदस्य रमाकान्त ने बताया कि अभिभावक-शिक्षक संघ इन घटनाओं को रोकने में महत्ती भूमिका निभा सकता है। प्रत्येक स्कूल के फीस से लेकर बच्चों की सुरक्षा तक पर निर्णय लेने में अभिभावक-शिक्षक संघ का विशेष योगदान होता है। अगर यह समस्याओं को सही तरीके से स्कूल प्रशासन के सामने उठाएं तो बहुत हद तक इन पर रोक लग सकती है।
24 जनवरी 2008- पचास से ज्यादा स्कूलों के प्रधानाचार्यों ने केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्राी रेणुका चैधर से मुलाकात की। इसमें इस बात पर रजामंदी जताई गई कि शिक्षकों और अभिभावकों का एक कोर ग्रुप बनाया जाए, जो छात्रों की स्कूलों में सुरक्षा पर नजर रख सके। इसके साथ ही हेल्पलाइन बनाने पर भी विचार किया गया।
16 मार्च 2008-सीबीएसई ने देशभर के सरकार व पब्लिक स्कूलों को एक फुल टाइम काउंसेलर रखने का आदेश दिया। जो छात्रों की समस्याओं का निराकरण कर सके। - घटनाएं
25 फरवरी 2008-मंडावली में बारहवीं की छात्रा ने जान दी।
8 मार्च 2008-सोनिया विहार में ग्यारहवीं के छात्र ने जान दी।
13 मार्च 2008-गोकुलपुर में ग्यारहवीं के छात्र ने आत्महत्या की।
26 मार्च-कोंडली स्थित दिनकर नेशनल पब्लिक स्कूल की कक्षा दस की छात्रा रिंकी कौशिक को शिक्षक की पिटाई के कारण जान गवानी पड़ी। 3 नवंबर को स्कूल में पढ़ाते समय स्कूल के शिक्षक ने उसे डंडे से सिर पर मार दिया था। उसके बाद रिंकी को अस्पताल में भर्ति किया गया। जहां वह कोमा में चली गई और 26 मार्च को उसकी मौत हो गई।
21 अप्रैल 2008- मंडावली निवासी रोहित कुमार यादव शकरपुर स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय को स्कूल से गायब। 21 अप्रैल को अपहरण का मामला शकरपुर थाने में दर्ज।
28 जुलाई-मंडावली स्थित नगर निगम प्राथमिक विद्यालय की चारदीवारी गिरने से तीन छात्र गंभीर रूप से घायल।
मुख्यमंत्राी के दावेदारों को चुनौती साबित हुई गोयल की रैली
दिग्गजों को दिखा दी अपनी ताकत
रैली तो एक बहाना भर थी, असल मकसद तो आला कमान को अपनी ताकत दिखाना था। निश्चित रूप से रामलीला मैदान में आज हुई रैली के माध्यम सेे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्राी विजय गोयल पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाने में कामयाब हुए है। उनकी यह रैली भाजपा में मुख्यमंत्राी पद के दावेदारों के लिए भी एक चुनौती साबित हुई है।ं अनाधिकृत कालोनी महासंघ के तत्वाव्धान में हुई यह रैली हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ थी लेकिन गोयल ने इस रैली के माध्यम से एक तीर से अनेक निशाने एक साथ साध लिए हैं। इस रैली के माध्यम से उन्होंने जहां पार्टी के दोनों दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी व राजनाथ सिंह को अपनी ताकत व मैनेजमेंट क्षमता से अवगत करा दिया वहीं कांग्रेस पर निशाना साधने के साथ साथ अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी में ही अपने विरोधियों पर भी निशाना साध दिया है। रैली के माध्यम से उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्राी पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत किया है और इस पद के अन्य दावेदारों को भी परेशानी में डाल दिया है। उन्होंने यह जता दिया है कि मुख्यमंत्राी पद के लिए उनकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। समय समय पार्टी से अलग निजी स्तर पर आंदोलनात्मक कार्यक्रम आयोजित करने के कारण गोयल हमेशा प्रदेश पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के आंखों की किरकिरी रहे हैं और यह नेता गोयल के एैसे कार्यक्रमों में शामिल होने से भी परहेज करते रहे हैं लेकिन आज की रैली में आडवाणी व राजनाथ की मौजुदगी के कारण एैसे नेताओं को भी बेमन से ही सही रैली में आना पड़ा। रैली का आहवान भाजपा की ओर से नहीं किया गया था लेकिन रैली में उमड़ी भीड़ देखकर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी इतने गदगद हुए कि उन्होंने भी रैली का श्रेय पार्टी को देने का प्रयास किया। उन्होंने विजय गोयल की ओर इशारा करते हुए कहा कि भाजपा ने ही इस नवयुवक को रैली की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने मंच से कहा कि उन्हें इस रैली में इतनी भीड़ उमड़ने की कल्पना नहीं थी। यह सर्वविदित है कि रैली के आयोजन में प्रदेश भाजपा का कोई योगदान नहीं था और न ही जिला व मंडल स्तर पर इस रैली को सफल बनाने की कोई कोशिश प्रदेश भाजपा द्वारा की गई थी लेकिन फिर भी तपती धूप में विजय गोयल लोगों की भारी भीड़़ इस रैली में जमा करने में कामयाब हुए। रैली की तारीफ आडवाणी ने भी की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह रैली देखकर अच्छा लगा। कुल मिलाकर गोयल ने जिस तरह आज अपना वर्चस्व दिखाया है उससे पार्टी हाईकमान को भी अब मुख्यमंत्राी पद के दावेदार की घोषणा करने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
रैली तो एक बहाना भर थी, असल मकसद तो आला कमान को अपनी ताकत दिखाना था। निश्चित रूप से रामलीला मैदान में आज हुई रैली के माध्यम सेे भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्राी विजय गोयल पार्टी आलाकमान को अपनी ताकत दिखाने में कामयाब हुए है। उनकी यह रैली भाजपा में मुख्यमंत्राी पद के दावेदारों के लिए भी एक चुनौती साबित हुई है।ं अनाधिकृत कालोनी महासंघ के तत्वाव्धान में हुई यह रैली हालांकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ थी लेकिन गोयल ने इस रैली के माध्यम से एक तीर से अनेक निशाने एक साथ साध लिए हैं। इस रैली के माध्यम से उन्होंने जहां पार्टी के दोनों दिग्गज नेताओं लालकृष्ण आडवाणी व राजनाथ सिंह को अपनी ताकत व मैनेजमेंट क्षमता से अवगत करा दिया वहीं कांग्रेस पर निशाना साधने के साथ साथ अप्रत्यक्ष रूप से पार्टी में ही अपने विरोधियों पर भी निशाना साध दिया है। रैली के माध्यम से उन्होंने विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्राी पद के लिए अपनी दावेदारी को मजबूत किया है और इस पद के अन्य दावेदारों को भी परेशानी में डाल दिया है। उन्होंने यह जता दिया है कि मुख्यमंत्राी पद के लिए उनकी उपेक्षा करना आसान नहीं होगा। समय समय पार्टी से अलग निजी स्तर पर आंदोलनात्मक कार्यक्रम आयोजित करने के कारण गोयल हमेशा प्रदेश पार्टी के कई प्रमुख नेताओं के आंखों की किरकिरी रहे हैं और यह नेता गोयल के एैसे कार्यक्रमों में शामिल होने से भी परहेज करते रहे हैं लेकिन आज की रैली में आडवाणी व राजनाथ की मौजुदगी के कारण एैसे नेताओं को भी बेमन से ही सही रैली में आना पड़ा। रैली का आहवान भाजपा की ओर से नहीं किया गया था लेकिन रैली में उमड़ी भीड़ देखकर पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी इतने गदगद हुए कि उन्होंने भी रैली का श्रेय पार्टी को देने का प्रयास किया। उन्होंने विजय गोयल की ओर इशारा करते हुए कहा कि भाजपा ने ही इस नवयुवक को रैली की जिम्मेदारी सौंपी थी। उन्होंने मंच से कहा कि उन्हें इस रैली में इतनी भीड़ उमड़ने की कल्पना नहीं थी। यह सर्वविदित है कि रैली के आयोजन में प्रदेश भाजपा का कोई योगदान नहीं था और न ही जिला व मंडल स्तर पर इस रैली को सफल बनाने की कोई कोशिश प्रदेश भाजपा द्वारा की गई थी लेकिन फिर भी तपती धूप में विजय गोयल लोगों की भारी भीड़़ इस रैली में जमा करने में कामयाब हुए। रैली की तारीफ आडवाणी ने भी की। उन्होंने कहा कि उन्हें यह रैली देखकर अच्छा लगा। कुल मिलाकर गोयल ने जिस तरह आज अपना वर्चस्व दिखाया है उससे पार्टी हाईकमान को भी अब मुख्यमंत्राी पद के दावेदार की घोषणा करने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
शनिवार, 30 अगस्त 2008
सवालों के घेरे में है मासूम नादिर की मौत
मासूम नादिर
स्कूल प्रशासन की भूमिका दिखाई दे रही है संदिग्ध
दिल्ली पब्लिक स्कूल के छात्रा मासूम नादिर की मौत सवालों के घेरे में है। स्कूल परिसर के भीतर हुई इस मौत के मामले में स्कूल प्रशासन भी संदेह के घेरे में दिखाई दे रहा है। हालांकि यह कहा जा रहा है कि नादिर की मौत स्वीमिंग पुल में डूब कर हुई लेकिन इतने विख्यात स्कूल में एक मासूम बच्चा स्वीमिंग पुल तक कैसे पहुंच गया और यदि बच्चा स्वीमिंग पुल तक पहुंच भी गया तो उस दौरान लाइफ गार्ड, सुरक्षा गार्ड व कोच उसे क्यों नहीं बचा सके। यही सवाल इस मासूम के परिवार को ही नहीं बल्कि पुलिस को भी कुरेद रहे हैं। सराय काले खां स्थित हरिजन बस्ती निवासी रईस अहमद के 13 वर्षीय मासूम पुत्रा नादिर उर्फ नादुर को स्कूल की वैन शाम लगभग छह बजे शाही अस्पताल लेकर पहुंची। उस समय तक नादिर की मौत हो चुकी थी। उसकी मौत के बाद स्कूल प्रशासन ने उसके परिवार को तो खबर कर सीधे अस्पताल बुलाने के बजाय स्कूल में बुलाया जहां बताया गया कि नादिर की तबीयत खराब है। उसके परिजनों को अस्पताल पहुंच कर ही नादिर की मौत का पता चला लेकिन यह मौत कैसे हुई यह बताने वाला उसे वहां कोई नहीं था। स्कूल के जो कर्मचारी उसे अस्पताल लेकर आये उन्होंने उसे बताया कि नादिर की मौत स्कूल के स्वीमिंग पुल में डूब कर हुई है। राजधानी में अपनी अलग पहचान रखने वाले डीपीएस परिसर के भीतर छात्रा की डूब कर मौत हो जाने की बात न तो पुलिस के गले उतर रही है और न ही उसके परिजन इस पर विश्वास कर रहे हैं। यही कारण है कि पुलिस इस मामले में हत्या की आशंका को देखते हुए भी अपनी जांच कर रही है। नियमानुसार प्रत्येक स्वीमिंग पुल पर बचाव के लिए लाइफ गार्ड नियुक्त होने के अलावा कोच नियुक्त होता है लेकिन नादिर को नहीं बचाया जा सका। जिस समय घटना हुई उस समय स्कूल के सुरक्षा गार्ड, स्वीमिंग पुल पर रहने वाले लाइफ गार्ड व कोच कहां थे और उसे बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। बताया जा रहा है कि स्वीमिंग पुल के चारों तरफ बाउण्ड्री है और छोटे बच्चे का उस बाउण्ड्री को पार कर वहां तक पहुंचना मुश्किल है फिर मात्रा 13 वर्ष का मासूम स्वीमिंग पुल तक कैसे पहुंचा। उसके पिता ने उसे साढ़े चार बजे स्कूल के गेट पर एक्सट्रा क्लास के लिए छोड़ा, उसके बाद वह क्लास में गया या नहीं, इस बारे में भी पुलिस प्रशासन अभी चुप है। यदि क्लास में गया तो क्लास बीच में छोड़ कर वह स्वीमिंग पुल की तरफ कैसे बढ़ गया। शिक्षा व अनुशासन के लिए प्रख्यात इस स्कूल में जब एक छात्रा क्लास से गायब हो गया तो इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया। यह सब एैसे सवाल हैं जिनके जवाब में अभी स्कूल प्रशासन मौन है। स्कूल के भीतर इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद देर रात तक स्कूल प्रशासन का कोई अधिकारी न तो अस्पताल में मौजूद था और न ही नादिर के घर कोई पहुंचा। मीडिया ने जब स्कूल जाकर स्कूल प्रशासन का पक्ष जानना चाहा तो वहां मौजूद सुरक्षा गार्डो ने स्कूल का गेट खोलने से ही इन्कार कर दिया। स्कूल प्रशासन न तो बात करने को तैयार है और न ही नादिर की मौत के कारणों को स्पष्ट कर रहा है।
स्कूल प्रशासन की भूमिका दिखाई दे रही है संदिग्ध
दिल्ली पब्लिक स्कूल के छात्रा मासूम नादिर की मौत सवालों के घेरे में है। स्कूल परिसर के भीतर हुई इस मौत के मामले में स्कूल प्रशासन भी संदेह के घेरे में दिखाई दे रहा है। हालांकि यह कहा जा रहा है कि नादिर की मौत स्वीमिंग पुल में डूब कर हुई लेकिन इतने विख्यात स्कूल में एक मासूम बच्चा स्वीमिंग पुल तक कैसे पहुंच गया और यदि बच्चा स्वीमिंग पुल तक पहुंच भी गया तो उस दौरान लाइफ गार्ड, सुरक्षा गार्ड व कोच उसे क्यों नहीं बचा सके। यही सवाल इस मासूम के परिवार को ही नहीं बल्कि पुलिस को भी कुरेद रहे हैं। सराय काले खां स्थित हरिजन बस्ती निवासी रईस अहमद के 13 वर्षीय मासूम पुत्रा नादिर उर्फ नादुर को स्कूल की वैन शाम लगभग छह बजे शाही अस्पताल लेकर पहुंची। उस समय तक नादिर की मौत हो चुकी थी। उसकी मौत के बाद स्कूल प्रशासन ने उसके परिवार को तो खबर कर सीधे अस्पताल बुलाने के बजाय स्कूल में बुलाया जहां बताया गया कि नादिर की तबीयत खराब है। उसके परिजनों को अस्पताल पहुंच कर ही नादिर की मौत का पता चला लेकिन यह मौत कैसे हुई यह बताने वाला उसे वहां कोई नहीं था। स्कूल के जो कर्मचारी उसे अस्पताल लेकर आये उन्होंने उसे बताया कि नादिर की मौत स्कूल के स्वीमिंग पुल में डूब कर हुई है। राजधानी में अपनी अलग पहचान रखने वाले डीपीएस परिसर के भीतर छात्रा की डूब कर मौत हो जाने की बात न तो पुलिस के गले उतर रही है और न ही उसके परिजन इस पर विश्वास कर रहे हैं। यही कारण है कि पुलिस इस मामले में हत्या की आशंका को देखते हुए भी अपनी जांच कर रही है। नियमानुसार प्रत्येक स्वीमिंग पुल पर बचाव के लिए लाइफ गार्ड नियुक्त होने के अलावा कोच नियुक्त होता है लेकिन नादिर को नहीं बचाया जा सका। जिस समय घटना हुई उस समय स्कूल के सुरक्षा गार्ड, स्वीमिंग पुल पर रहने वाले लाइफ गार्ड व कोच कहां थे और उसे बचाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया। बताया जा रहा है कि स्वीमिंग पुल के चारों तरफ बाउण्ड्री है और छोटे बच्चे का उस बाउण्ड्री को पार कर वहां तक पहुंचना मुश्किल है फिर मात्रा 13 वर्ष का मासूम स्वीमिंग पुल तक कैसे पहुंचा। उसके पिता ने उसे साढ़े चार बजे स्कूल के गेट पर एक्सट्रा क्लास के लिए छोड़ा, उसके बाद वह क्लास में गया या नहीं, इस बारे में भी पुलिस प्रशासन अभी चुप है। यदि क्लास में गया तो क्लास बीच में छोड़ कर वह स्वीमिंग पुल की तरफ कैसे बढ़ गया। शिक्षा व अनुशासन के लिए प्रख्यात इस स्कूल में जब एक छात्रा क्लास से गायब हो गया तो इसका संज्ञान क्यों नहीं लिया गया। यह सब एैसे सवाल हैं जिनके जवाब में अभी स्कूल प्रशासन मौन है। स्कूल के भीतर इतनी बड़ी घटना हो जाने के बावजूद देर रात तक स्कूल प्रशासन का कोई अधिकारी न तो अस्पताल में मौजूद था और न ही नादिर के घर कोई पहुंचा। मीडिया ने जब स्कूल जाकर स्कूल प्रशासन का पक्ष जानना चाहा तो वहां मौजूद सुरक्षा गार्डो ने स्कूल का गेट खोलने से ही इन्कार कर दिया। स्कूल प्रशासन न तो बात करने को तैयार है और न ही नादिर की मौत के कारणों को स्पष्ट कर रहा है।
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
उफनते जल सैलाब में ठहर गई जिंदगी
फोटो अनिल सिन्हा
जीवन तो बच गया लेकिन नहीं बचा सके जीने का सामान
500 से अधिक लोग अभी तक फंसे हैं पानी में
महिलायें, बच्चे व वृद्ध छह दिन से छतों पर डाले हुए हैं डेरा
नही है उफनते पानी से निकलने का कोई रास्ता
गांव में दिखाई देता है तबाही का मंजर
रोटी को भी मोहताज हैं पानी में फंसे लोग
o दो हजार से अधिक लोग हैं बाढ़ से प्रभावित
मदद के लिए भेजी गई नौकाएं बनी मौज मस्ती का साधन
संजय टुटेजा
नई दिल्ली,
यमुना का जलस्तर बढ़ने के बाद यमुना के खादर में बसे उस्मानपुर के लोगों की जिंदगी मानों जल सैलाब में ठहर गई है। इनकी जिंदगी तो बच गई लेकिन जीने का सामान वह नहीं बचा सके हैं। स्थिति यह है कि आज छठे दिन भी लगभग 500 महिलाएं, बच्चे व वृद्ध उफनते पानी के बीच में फंसे हैं और छतों पर डेरा डालकर अपनी जान बचाए हुए हैं। चैतरफा उफनते पानी से घिरा कोई भूख प्यास से बिलबिला रहा है तो कोई बीमारी में दवा के लिए तड़प रहा है। स्वतंत्राता दिवस की सुबह जब देश आजादी के गीत गा रहा था और देश के प्रधानमंत्राी डा।मनमोहन सिंह लालकिले की प्राचीर से गरीबों के विकास के दावे कर रहे थे, ठीक उसी समय राजधानी में यमुना के खादर में बसे उस्मानपुर गांव में यमुना के जल सैलाब ने एैसा तांडव किया कि यहां बसें दो हजार से अधिक लोग बेघर हो गये। किसी ने किनारों की ओर भाग कर जान बचाई तो और जो भाग नहीं सकते थे उन्होंने छतों पर चढ़कर जान बचाई। आज छह दिन बाद यमुना के जल स्तर में मामूली कमी तो आई है लेकिन यह गांव अभी भी जलमग्न है और गांवों में छतों पर बैठे बच्चे, महिलाएं व वृद्ध चारो तरफ मदद के लिए देख रहे है। राष्ट्रीय सहारा ने आज नौका से इस गांव में हुई तबाही का जायजा लिया तो पूरा गांव जलमग्न दिखाई दिया। न तो गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता था और न ही इन्हें मदद पहुंचाने के लिए कोई सरकारी हाथ वहां दिखाई दिया। छतो ंपर बैठे लोग बेघर होकर अपनी बरबादी का मंजर देख रहे थे और मदद की गुहार करते दिखाई दे रहे थे। कुछ परिवार अभी भी पानी में तैर रहे अपने सामान को समेटने का प्रयास कर रहे थे। अपने घरों की छतो ंपर बैठे लोगों का वहां से किनारे तक आना आज भी नामुमकिन था। कोई प्यास बुझाने के लिए पानी मांगता दिखाई दिया तो कोई पेट की आग बुझाने के लिए रोटी मांग रहा था। बाढ़ बचाव दल की आधा दर्जन नोकाएं पीड़ितों तक कोई मदद पहुंचाने के बजाय वहां मौज मस्ती का साधन दिखाई दी, कुछ प्रभावी लोग इन नौकाओं पर बैठकर नौकायन का आनंद ले रहे थे। गांव की ही एक छत से आवाज लगाकर मुखराम ने बताया कि उसके परिवार की एक महिला बिरजेश तीन दिन से बीमार है और दवा के अभाव में वह लगातार तड़प रही है। आरएमएल में कार्यरत श्रीपाल ने बताया कि उसके घर का सभी सामान पानी में बह गया है, और परिवार की महिलाएं व बच्चे छत पर हैं।ला लोगांे में राहत कार्यो को लेकर रोष था। उन्होंने बताया कि राहत के नाम पर केवल यमुना के किनारे कुछ टैण्ट लगा दिये गये हैं जिनमें कुछ झुग्गी वासियों ने डेरा डाल लिया है जबकि आज भी पानी के बीच फंसे लोगों के पास न तो खाद्य सामग्री पहुंचाई जा रही है और न ही कोई अन्य मदद की जा रही है।
जीवन तो बच गया लेकिन नहीं बचा सके जीने का सामान
500 से अधिक लोग अभी तक फंसे हैं पानी में
महिलायें, बच्चे व वृद्ध छह दिन से छतों पर डाले हुए हैं डेरा
नही है उफनते पानी से निकलने का कोई रास्ता
गांव में दिखाई देता है तबाही का मंजर
रोटी को भी मोहताज हैं पानी में फंसे लोग
o दो हजार से अधिक लोग हैं बाढ़ से प्रभावित
मदद के लिए भेजी गई नौकाएं बनी मौज मस्ती का साधन
संजय टुटेजा
नई दिल्ली,
यमुना का जलस्तर बढ़ने के बाद यमुना के खादर में बसे उस्मानपुर के लोगों की जिंदगी मानों जल सैलाब में ठहर गई है। इनकी जिंदगी तो बच गई लेकिन जीने का सामान वह नहीं बचा सके हैं। स्थिति यह है कि आज छठे दिन भी लगभग 500 महिलाएं, बच्चे व वृद्ध उफनते पानी के बीच में फंसे हैं और छतों पर डेरा डालकर अपनी जान बचाए हुए हैं। चैतरफा उफनते पानी से घिरा कोई भूख प्यास से बिलबिला रहा है तो कोई बीमारी में दवा के लिए तड़प रहा है। स्वतंत्राता दिवस की सुबह जब देश आजादी के गीत गा रहा था और देश के प्रधानमंत्राी डा।मनमोहन सिंह लालकिले की प्राचीर से गरीबों के विकास के दावे कर रहे थे, ठीक उसी समय राजधानी में यमुना के खादर में बसे उस्मानपुर गांव में यमुना के जल सैलाब ने एैसा तांडव किया कि यहां बसें दो हजार से अधिक लोग बेघर हो गये। किसी ने किनारों की ओर भाग कर जान बचाई तो और जो भाग नहीं सकते थे उन्होंने छतों पर चढ़कर जान बचाई। आज छह दिन बाद यमुना के जल स्तर में मामूली कमी तो आई है लेकिन यह गांव अभी भी जलमग्न है और गांवों में छतों पर बैठे बच्चे, महिलाएं व वृद्ध चारो तरफ मदद के लिए देख रहे है। राष्ट्रीय सहारा ने आज नौका से इस गांव में हुई तबाही का जायजा लिया तो पूरा गांव जलमग्न दिखाई दिया। न तो गांव तक पहुंचने का कोई रास्ता था और न ही इन्हें मदद पहुंचाने के लिए कोई सरकारी हाथ वहां दिखाई दिया। छतो ंपर बैठे लोग बेघर होकर अपनी बरबादी का मंजर देख रहे थे और मदद की गुहार करते दिखाई दे रहे थे। कुछ परिवार अभी भी पानी में तैर रहे अपने सामान को समेटने का प्रयास कर रहे थे। अपने घरों की छतो ंपर बैठे लोगों का वहां से किनारे तक आना आज भी नामुमकिन था। कोई प्यास बुझाने के लिए पानी मांगता दिखाई दिया तो कोई पेट की आग बुझाने के लिए रोटी मांग रहा था। बाढ़ बचाव दल की आधा दर्जन नोकाएं पीड़ितों तक कोई मदद पहुंचाने के बजाय वहां मौज मस्ती का साधन दिखाई दी, कुछ प्रभावी लोग इन नौकाओं पर बैठकर नौकायन का आनंद ले रहे थे। गांव की ही एक छत से आवाज लगाकर मुखराम ने बताया कि उसके परिवार की एक महिला बिरजेश तीन दिन से बीमार है और दवा के अभाव में वह लगातार तड़प रही है। आरएमएल में कार्यरत श्रीपाल ने बताया कि उसके घर का सभी सामान पानी में बह गया है, और परिवार की महिलाएं व बच्चे छत पर हैं।ला लोगांे में राहत कार्यो को लेकर रोष था। उन्होंने बताया कि राहत के नाम पर केवल यमुना के किनारे कुछ टैण्ट लगा दिये गये हैं जिनमें कुछ झुग्गी वासियों ने डेरा डाल लिया है जबकि आज भी पानी के बीच फंसे लोगों के पास न तो खाद्य सामग्री पहुंचाई जा रही है और न ही कोई अन्य मदद की जा रही है।
रविवार, 10 अगस्त 2008
आजादी के त्यौहार पर आतंक का साया
स्वतंत्राता दिवस समारोह की सुरक्षा बनी बड़ी चुनौती
आतंकी वारदात का खौफ सुरक्षा एजेंसियों पर
लालकिले को आम नागरिकों के लिए किया बंद
खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों ने लिया लालकिले की आंतरिक व बाहय सुरक्षा का जायजा
सुरक्षा में होंगे 5 से 7 हजार जवान तैनात
ध्वजारोहण स्थल पर होगा प्रधानमंत्राी का विशेष सुरक्षा दस्ता
किसी अनहोनी से निपटने के लिए शार्ट शूटर रहेंगे तैनात
दिल्ली पुलिस के साथ एसपीजी, सीआईएसएफ, महिला कमांडो तथा रेपिड एक्शन फोर्स के जवान संभालेगे सुरक्षा की कमान
तीन दर्जन स्थानों पर मचान से रखी जायेगी समूचे क्षेत्रा पर नजर
बड़े जूम कैमरों की निगाह होगी दूर तक
जगह जगह लगे सीसीटीवी कैमरों की निगाह में होंगा पूरा समारोह
एक विशेष नियंत्राण कक्ष से लिया जायेगा सुरक्षा का जायजा
दिल्ली पुलिस ने पांच प्रमुख आतंकवादियों का पोस्टर जारी किया
लगभग आधा दर्जन आतंकवादी संगठनों से है खतरा
संजय टुटेजा
अहमदाबाद एवं बैंगलूरु में हुए बम विस्फोटों के बाद सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के लिए आगामी स्वतंत्राता दिवस समारोह की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन गई है। आतंकवादी आजादी के पर्व पर राजधानी दिल्ली में भी अहमदाबाद या बैंगलूरु की पुनरावृत्ति कर सकते हैं, इसे देखते हुए खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां न केवल सतर्क हैं बल्कि दिल्ली को बचाने के लिए मजबूत किलेबंदी की जा रही है। लालकिले पर होने वाले मुख्य समारोह की सुरक्षा हो या फिर राजधानी के अन्य संवेदनशील स्थान सभी स्थानों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के साथ साथ संदिग्ध लोगों पर नजर रखने के लिए बड़े जूम कैमरे लगाये जा रहे है। सुरक्षा की दृष्टि से लालकिले को भी कल से आम नागरिकों के लिए बंद किया जा रहा है। देश की प्रमुख सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को राजधानी दिल्ली में भी आतंक की आहट सुनाई दे रही है। हाॅल ही में बैंगलुरू व अहमदाबाद में हुए सीरियल बम विस्फोटों ने जिस प्रकार खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्राणाली पर सवालिया निशान लगाया है उसे देखते हुए 15 अगस्त को देश भर में मनाये जाने वाले स्वतंत्राता दिवस पर भी आतंकी कार्रवाई का खंतरा मंडरा रहा है। इस खतरे से सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भी वाकिफ हैं और सरकार भी, यही कारण है कि इस बार हर वर्ष की तरह लालकिले पर होने वाले स्वतंत्राता दिवस समारोह की सुरक्षा को लेकर भी विशेष एहतियात बरती जा रही है तथा आतंकी वारदातों को रोकने के लिए व्यापक इंतजाम किए जा रहे हैं। स्वतंत्राता दिवस पर 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर पर ध्वजारोहण के बाद प्रधानमंत्राी देश को संबोधित करेंगे। इस समारोह में देश विदेश के तमाम प्रमुख लोग उपस्थित रहते हैं, एैसे में लालकिले और उसके आस पास के क्षेत्रा की सुरक्षा के लिए विशेष रणनीति बनाई गई है और लालकिले के चारो ओर बेरिकेटिंग लगाने के साथ साथ कल से लालकिले को आम नागरिकों के लिए भी बंद किया जा रहा है। सुरक्षा को लेकर आपसी तालमेल का अभाव न रहे इसके लिए सभी सुरक्षा एजेंसियों व खुफिया एजेंसियों के अधिकारी लगातार बैठकें कर सुरक्षा की रणनीति बनाने के साथ साथ सभी संवेदनशील स्थलों का दौरा कर स्वयं सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले रहे हैं। राजधानी के सभी बस अड्डो, रेलवे स्टेशनों व मैट्रो की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के साथ साथ लालकिले पर होने वाले समारोह की सुरक्षा के लिए ही 5 से 7 हजार जवानों को तैनात करने की योजना बनाई गई है। यहां शार्प शूटर भी तैनात होंगे जो प्रतिकूल स्थिति में तत्काल गोली चलाकर अनहोनी को टाल देंगे। लालकिले के चारों ओर लगभग एक दर्जन स्थानों पर बड़े जूम कैमरे लगाये जा रहे हैं जो दूर तक निगाह रखेंगे। इसके अलावा तीन दर्जन मचान बनाई जा रही हैं जिन पर दूरबीन के साथ सुरक्षाकर्मी तैनात रहेंगे। सभी प्रमुख स्थानों, समारोह के प्रवेश द्वारों तथा आस पास के क्षेत्रों पर सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रखी जायेगी। लालकिले में ही एक नियंत्राण कक्ष बनाया जा रहा है जहां सुरक्षा एजेंसियों के आला अधिकारी मौजूद रहकर प्रत्येक क्षेत्रा की सुरक्षा पर स्वयं नजर रखेंगे। किसी भी संदिग्ध गतिविधि से निपटने के लिए भी सुरक्षाकर्मियों को विशेष निर्देश दिये गये हैं ताकि समारोह स्थल पर कोई अव्यवस्था न हो। विभिन्न बाजारों व सार्वजनिक भीड़भाड़ वाले स्थानों की सुरक्षा को देखते हुए वहां बैरिकेटिंग लगाने के साथ साथ चेकिंग प्वाइंट बढ़ा दिये गये हैं।
आधा दर्जन आतंकवादी संगठनों से है खतरा
खुफिया एजेंसियों का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिद्दीन व हरकत उल अंसार जैसे लगभग आधा दर्जन संगठन स्वतंत्राता दिवस पर राजधानी में कोई बड़ी वारदात कर सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने एैसे पांच खुंखार आतंकवादियों के पोस्टर भी जारी किए हैं जिनसे स्वतंत्राता दिवस पर राजधानी की सुरक्षा को खतरा है। इन खुंखार आतंकवादियों में पाकिस्तान निवासी अबु शोकर, अनंतनाग निवासी तारिक अहमद, श्रीनगर निवासी अबु हैदर, तथा पाकिस्तान निवासी अबु शाद एवं रोहिल शेख शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने आम जनता से सतर्क रहने तथा यह आतंकवादी कहीं दिखाई देने पर पुलिस को सूचना देने की अपील की है।
आतंकी वारदात का खौफ सुरक्षा एजेंसियों पर
लालकिले को आम नागरिकों के लिए किया बंद
खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों ने लिया लालकिले की आंतरिक व बाहय सुरक्षा का जायजा
सुरक्षा में होंगे 5 से 7 हजार जवान तैनात
ध्वजारोहण स्थल पर होगा प्रधानमंत्राी का विशेष सुरक्षा दस्ता
किसी अनहोनी से निपटने के लिए शार्ट शूटर रहेंगे तैनात
दिल्ली पुलिस के साथ एसपीजी, सीआईएसएफ, महिला कमांडो तथा रेपिड एक्शन फोर्स के जवान संभालेगे सुरक्षा की कमान
तीन दर्जन स्थानों पर मचान से रखी जायेगी समूचे क्षेत्रा पर नजर
बड़े जूम कैमरों की निगाह होगी दूर तक
जगह जगह लगे सीसीटीवी कैमरों की निगाह में होंगा पूरा समारोह
एक विशेष नियंत्राण कक्ष से लिया जायेगा सुरक्षा का जायजा
दिल्ली पुलिस ने पांच प्रमुख आतंकवादियों का पोस्टर जारी किया
लगभग आधा दर्जन आतंकवादी संगठनों से है खतरा
संजय टुटेजा
अहमदाबाद एवं बैंगलूरु में हुए बम विस्फोटों के बाद सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के लिए आगामी स्वतंत्राता दिवस समारोह की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती बन गई है। आतंकवादी आजादी के पर्व पर राजधानी दिल्ली में भी अहमदाबाद या बैंगलूरु की पुनरावृत्ति कर सकते हैं, इसे देखते हुए खुफिया व सुरक्षा एजेंसियां न केवल सतर्क हैं बल्कि दिल्ली को बचाने के लिए मजबूत किलेबंदी की जा रही है। लालकिले पर होने वाले मुख्य समारोह की सुरक्षा हो या फिर राजधानी के अन्य संवेदनशील स्थान सभी स्थानों पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम करने के साथ साथ संदिग्ध लोगों पर नजर रखने के लिए बड़े जूम कैमरे लगाये जा रहे है। सुरक्षा की दृष्टि से लालकिले को भी कल से आम नागरिकों के लिए बंद किया जा रहा है। देश की प्रमुख सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को राजधानी दिल्ली में भी आतंक की आहट सुनाई दे रही है। हाॅल ही में बैंगलुरू व अहमदाबाद में हुए सीरियल बम विस्फोटों ने जिस प्रकार खुफिया व सुरक्षा एजेंसियों की कार्यप्राणाली पर सवालिया निशान लगाया है उसे देखते हुए 15 अगस्त को देश भर में मनाये जाने वाले स्वतंत्राता दिवस पर भी आतंकी कार्रवाई का खंतरा मंडरा रहा है। इस खतरे से सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों के अधिकारी भी वाकिफ हैं और सरकार भी, यही कारण है कि इस बार हर वर्ष की तरह लालकिले पर होने वाले स्वतंत्राता दिवस समारोह की सुरक्षा को लेकर भी विशेष एहतियात बरती जा रही है तथा आतंकी वारदातों को रोकने के लिए व्यापक इंतजाम किए जा रहे हैं। स्वतंत्राता दिवस पर 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर पर ध्वजारोहण के बाद प्रधानमंत्राी देश को संबोधित करेंगे। इस समारोह में देश विदेश के तमाम प्रमुख लोग उपस्थित रहते हैं, एैसे में लालकिले और उसके आस पास के क्षेत्रा की सुरक्षा के लिए विशेष रणनीति बनाई गई है और लालकिले के चारो ओर बेरिकेटिंग लगाने के साथ साथ कल से लालकिले को आम नागरिकों के लिए भी बंद किया जा रहा है। सुरक्षा को लेकर आपसी तालमेल का अभाव न रहे इसके लिए सभी सुरक्षा एजेंसियों व खुफिया एजेंसियों के अधिकारी लगातार बैठकें कर सुरक्षा की रणनीति बनाने के साथ साथ सभी संवेदनशील स्थलों का दौरा कर स्वयं सुरक्षा व्यवस्था का जायजा ले रहे हैं। राजधानी के सभी बस अड्डो, रेलवे स्टेशनों व मैट्रो की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के साथ साथ लालकिले पर होने वाले समारोह की सुरक्षा के लिए ही 5 से 7 हजार जवानों को तैनात करने की योजना बनाई गई है। यहां शार्प शूटर भी तैनात होंगे जो प्रतिकूल स्थिति में तत्काल गोली चलाकर अनहोनी को टाल देंगे। लालकिले के चारों ओर लगभग एक दर्जन स्थानों पर बड़े जूम कैमरे लगाये जा रहे हैं जो दूर तक निगाह रखेंगे। इसके अलावा तीन दर्जन मचान बनाई जा रही हैं जिन पर दूरबीन के साथ सुरक्षाकर्मी तैनात रहेंगे। सभी प्रमुख स्थानों, समारोह के प्रवेश द्वारों तथा आस पास के क्षेत्रों पर सीसीटीवी कैमरों से भी नजर रखी जायेगी। लालकिले में ही एक नियंत्राण कक्ष बनाया जा रहा है जहां सुरक्षा एजेंसियों के आला अधिकारी मौजूद रहकर प्रत्येक क्षेत्रा की सुरक्षा पर स्वयं नजर रखेंगे। किसी भी संदिग्ध गतिविधि से निपटने के लिए भी सुरक्षाकर्मियों को विशेष निर्देश दिये गये हैं ताकि समारोह स्थल पर कोई अव्यवस्था न हो। विभिन्न बाजारों व सार्वजनिक भीड़भाड़ वाले स्थानों की सुरक्षा को देखते हुए वहां बैरिकेटिंग लगाने के साथ साथ चेकिंग प्वाइंट बढ़ा दिये गये हैं।
आधा दर्जन आतंकवादी संगठनों से है खतरा
खुफिया एजेंसियों का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा, इंडियन मुजाहिद्दीन व हरकत उल अंसार जैसे लगभग आधा दर्जन संगठन स्वतंत्राता दिवस पर राजधानी में कोई बड़ी वारदात कर सकते हैं। दिल्ली पुलिस ने एैसे पांच खुंखार आतंकवादियों के पोस्टर भी जारी किए हैं जिनसे स्वतंत्राता दिवस पर राजधानी की सुरक्षा को खतरा है। इन खुंखार आतंकवादियों में पाकिस्तान निवासी अबु शोकर, अनंतनाग निवासी तारिक अहमद, श्रीनगर निवासी अबु हैदर, तथा पाकिस्तान निवासी अबु शाद एवं रोहिल शेख शामिल हैं। दिल्ली पुलिस ने आम जनता से सतर्क रहने तथा यह आतंकवादी कहीं दिखाई देने पर पुलिस को सूचना देने की अपील की है।
नई बसों की खरीद में डीटीसी को करोड़ो का चूना लगाने की तैयारी
सांठ गांठ से हो गई लोफ्लोर की दरों में 14 लाख की बढ़ोत्तरी
निगम के एक पूर्व अधिकारी कंपनियों से कर रहे हैं दलाली
दिल्ली परिवहन निगम के लिए एक हजार साधारण बसों तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में निगम को करोड़ों का चूना लगाने की तैयारी हो गई है। इस सौदे में भारी दलाली के साथ साथ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाई गई है और निगम के एक पूर्व अधिकारी इस दलाली में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। इसी रणनीति के तहत एक कम्पनी से महंगी दरों पर साधारण बसें तथा दूसरी कम्पनी से महंगी दरों पर लोफ्लोर बसें खरीदने की रणनीति बनाई गई है। निगम के एक पूर्व अधिकारी व एक मौजुदा अधिकारी इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, यही कारण है कि इस सौदे में बस निर्माता कंपनिया भी आपसी प्रतिस्पर्धा के बजाय एक दूसरे की मदद करती दिखाई दे रही हैं। दिल्ली परिवहन निगम के लिए जल्द ही एक हजार साधारण बसें तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसे खरीदी जानी हैं और दोनों ही सौंदों के लिए निविदा प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई है। यूं तो इन बसों की खरीद के लिए निगम बोर्ड बस निर्माता कम्पनियों से सौदेबाजी करता दिखाई दे रहा है लेकिन इस सौदेबाजी के पीछे असली खेल निगम के कुछ अधिकारी तथा एक पूर्व अधिकारी खेल रहे हैं। इस पूर्व अधिकारी ने हाॅल ही में निगम से त्यागपत्रा दिया है, बावजूद इसके वह इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। बताया जाता है कि 29 जुलाई को साधारण बसों की खरीद पर निर्णय लेने के लिए हुई निगम बोर्ड की बैठक से एक दिन पूर्व यह अधिकारी एक कम्पनी से दलाली के लिए चेन्नई में गये थे और कम्पनी अधिकारियों के साथ ही यहां लौटे। लोफ्लोर एवं साधारण बसों की आपूर्ति के लिए टाटा तथा अशोक लीलेैण्ड दो कम्पनीयां ही मैदान में हैं और रणनीति इस तरह की बनाई गई है साधारण बसें अशोक लीलेण्ड से खरीद ली जायें और लोफ्लोर बसें टाटा कम्पनी से खरीदी जायें। सूत्रों के अनुसार सौदे में सक्रिय अधिकारियों ने इसके लिए कम्पनियों से सांठ कर उन्हें इस प्रतिस्पर्धा के चक्कर में पड़ने के बजाय मनमानी दरो ंपर कोई एक सौदा लेने के लिए राजी भी कर लिया है। यही कारण है कि साधारण बसों के लिए टाटा ने प्रतिस्पर्धा न कर अपनी अधिकतम दरें दी हैं तथा लोफ्लोर के लिए अशोक लीलेंड भी अधिकतम दरों के साथ प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। एक हजार साधारण बसों की खरीद के लिए दी गई निविदा में टाटा कम्पनी ने 33 लाख रुपये प्रति बस तथा अशोक लीलेण्ड कम्पनी ने लगभग 27 लाख प्रति बस की दर दी है। अब से पहले भी डीटीसी ने अशोक लीलेंड से ही साधारण बसें खरीदी थी जिनकी औसत कीमत लगभग साढ़े पन्द्रह लाख थी लेकिन वर्तमान में डीटीसी ने साधारण बसों के लिए जो औसत मूल्य तय किया है वह लगभग 20 लाख है। एैसे में टाटा कम्पनी की 33 लाख कीमत से स्पष्ट है कि सांठ गांठ के तहत सौदेबाजी का नाटक कर अशोक लीलैण्ड को ही साधारण बसों का आर्डर दे दिया जायेगा। डीटीसी बोर्ड की 29 जुलाई को हुई बैठक में अशोक लीलेण्ड कम्पनी को अपनी दरें कम करने के लिए दो दिन का समय दिया गया। माना जा रहा है कि बोर्ड की आगामी बैठक में दरों में थोड़े फेरबदल के साथ अशोक लीलेण्ड को आर्डर देने पर मुहर लग जायेगी। यही रणनीति ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में बनाई गई है। यह विडंबना ही है कि जो लोफ्लोर बसें एक वर्ष पूर्व 41 लाख में खरीदी गई थी उन्हीं लोफ्लोर बसों के लिए टाटा ने लगभग 14 लाख की बढ़ोत्तरी के साथ लगभग 55 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है। अशोक लीलेंड ने लोफ्लोर के लिए लगभग 63 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है, अशोक लीलेण्ड की दरों से स्पष्ट है कि यह कम्पनी लोफ्लोर के लिए प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। अब ढाई हजार बसें खरीदी जानी हैं, और 14 लाख रुपये प्रति बस की कीमत अधिक देकर बसें खरीदी गई तो सरकार व निगम को 300 करोड़ से अधिक का चूना लगेगाा। दिल्ली परिवहन मजदूर संघ ने बसों की सौदेबाजी के पीछे हो रहे इस खेल की जांच कराने की मांग की है। निगम चेयरमैन रमेश नेगी ने किसी अधिकारी को सौदेबाजी के लिए चेन्नई भेजे जाने से इन्कार किया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई पूर्व अधिकारी अपने निजी काम से गया है तो उसकी उन्हें जानकारी नहीं है।
निगम के एक पूर्व अधिकारी कंपनियों से कर रहे हैं दलाली
दिल्ली परिवहन निगम के लिए एक हजार साधारण बसों तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में निगम को करोड़ों का चूना लगाने की तैयारी हो गई है। इस सौदे में भारी दलाली के साथ साथ कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए सुनियोजित रणनीति बनाई गई है और निगम के एक पूर्व अधिकारी इस दलाली में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। इसी रणनीति के तहत एक कम्पनी से महंगी दरों पर साधारण बसें तथा दूसरी कम्पनी से महंगी दरों पर लोफ्लोर बसें खरीदने की रणनीति बनाई गई है। निगम के एक पूर्व अधिकारी व एक मौजुदा अधिकारी इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, यही कारण है कि इस सौदे में बस निर्माता कंपनिया भी आपसी प्रतिस्पर्धा के बजाय एक दूसरे की मदद करती दिखाई दे रही हैं। दिल्ली परिवहन निगम के लिए जल्द ही एक हजार साधारण बसें तथा ढाई हजार लोफ्लोर बसे खरीदी जानी हैं और दोनों ही सौंदों के लिए निविदा प्रक्रिया भी शुरु कर दी गई है। यूं तो इन बसों की खरीद के लिए निगम बोर्ड बस निर्माता कम्पनियों से सौदेबाजी करता दिखाई दे रहा है लेकिन इस सौदेबाजी के पीछे असली खेल निगम के कुछ अधिकारी तथा एक पूर्व अधिकारी खेल रहे हैं। इस पूर्व अधिकारी ने हाॅल ही में निगम से त्यागपत्रा दिया है, बावजूद इसके वह इस सौदे में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं। बताया जाता है कि 29 जुलाई को साधारण बसों की खरीद पर निर्णय लेने के लिए हुई निगम बोर्ड की बैठक से एक दिन पूर्व यह अधिकारी एक कम्पनी से दलाली के लिए चेन्नई में गये थे और कम्पनी अधिकारियों के साथ ही यहां लौटे। लोफ्लोर एवं साधारण बसों की आपूर्ति के लिए टाटा तथा अशोक लीलेैण्ड दो कम्पनीयां ही मैदान में हैं और रणनीति इस तरह की बनाई गई है साधारण बसें अशोक लीलेण्ड से खरीद ली जायें और लोफ्लोर बसें टाटा कम्पनी से खरीदी जायें। सूत्रों के अनुसार सौदे में सक्रिय अधिकारियों ने इसके लिए कम्पनियों से सांठ कर उन्हें इस प्रतिस्पर्धा के चक्कर में पड़ने के बजाय मनमानी दरो ंपर कोई एक सौदा लेने के लिए राजी भी कर लिया है। यही कारण है कि साधारण बसों के लिए टाटा ने प्रतिस्पर्धा न कर अपनी अधिकतम दरें दी हैं तथा लोफ्लोर के लिए अशोक लीलेंड भी अधिकतम दरों के साथ प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। एक हजार साधारण बसों की खरीद के लिए दी गई निविदा में टाटा कम्पनी ने 33 लाख रुपये प्रति बस तथा अशोक लीलेण्ड कम्पनी ने लगभग 27 लाख प्रति बस की दर दी है। अब से पहले भी डीटीसी ने अशोक लीलेंड से ही साधारण बसें खरीदी थी जिनकी औसत कीमत लगभग साढ़े पन्द्रह लाख थी लेकिन वर्तमान में डीटीसी ने साधारण बसों के लिए जो औसत मूल्य तय किया है वह लगभग 20 लाख है। एैसे में टाटा कम्पनी की 33 लाख कीमत से स्पष्ट है कि सांठ गांठ के तहत सौदेबाजी का नाटक कर अशोक लीलैण्ड को ही साधारण बसों का आर्डर दे दिया जायेगा। डीटीसी बोर्ड की 29 जुलाई को हुई बैठक में अशोक लीलेण्ड कम्पनी को अपनी दरें कम करने के लिए दो दिन का समय दिया गया। माना जा रहा है कि बोर्ड की आगामी बैठक में दरों में थोड़े फेरबदल के साथ अशोक लीलेण्ड को आर्डर देने पर मुहर लग जायेगी। यही रणनीति ढाई हजार लोफ्लोर बसों की खरीद में बनाई गई है। यह विडंबना ही है कि जो लोफ्लोर बसें एक वर्ष पूर्व 41 लाख में खरीदी गई थी उन्हीं लोफ्लोर बसों के लिए टाटा ने लगभग 14 लाख की बढ़ोत्तरी के साथ लगभग 55 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है। अशोक लीलेंड ने लोफ्लोर के लिए लगभग 63 लाख रुपये प्रति बस की दर दी है, अशोक लीलेण्ड की दरों से स्पष्ट है कि यह कम्पनी लोफ्लोर के लिए प्रतिस्पर्धा करती दिखाई नहीं दे रही है। अब ढाई हजार बसें खरीदी जानी हैं, और 14 लाख रुपये प्रति बस की कीमत अधिक देकर बसें खरीदी गई तो सरकार व निगम को 300 करोड़ से अधिक का चूना लगेगाा। दिल्ली परिवहन मजदूर संघ ने बसों की सौदेबाजी के पीछे हो रहे इस खेल की जांच कराने की मांग की है। निगम चेयरमैन रमेश नेगी ने किसी अधिकारी को सौदेबाजी के लिए चेन्नई भेजे जाने से इन्कार किया है। उन्होंने कहा कि यदि कोई पूर्व अधिकारी अपने निजी काम से गया है तो उसकी उन्हें जानकारी नहीं है।
इस माह शुरु होगा हवाई अड्डे के तीसरे रनवे का ट्रायल
तीसरे रनवे के बाद एयरपोर्ट की क्षमता में होगी वृद्धि
घरेलू उड़ानों पर 16 मिलियन यात्राी हैं प्रति वर्ष
घरेलू टर्मिनल की मौजुदा क्षमता है 8 मिलियन यात्राी प्रति वर्ष
इस वर्ष के अंत तक घरेलू टर्मिनल की क्षमता 18 मिलियन करने की तैयारी
वर्ष के अंत तक तैयार होगा नया घरेलू टर्मिनल 1-डी
इस टर्मिनल की क्षमता होगी 10 मिलियन यात्राी प्रति वर्षवर्ष 2010 तक हवाई अड्डे की क्षमता होगी 60 मिलियन यात्राी प्रति वर्ष
4430 मीटर लंबा और 60 मीटर चैड़ा है तीसरा रनवे
इस रनवे पर बड़े विमान पर उतर सकेंगे आसानी से
रनवे पर इलैक्ट्रानिक उपकरणों का काम बाकी
डीजीसीए ने दिये काम पूरा करने के निर्देश
आकाश पर विमानों का दबाव होगा कम
प्रतिदिन औसतन 660 विमानों का होता है आवागमन
व्यस्त समय के दौरान प्रति मिनट में एक विमान का होता है आवागमन
औसतन ढाई से तीन मिनट में एक विमान का होता है आवागमन
एक वर्ष में हुई 231200 उड़ानों का हुआ आवागमन
लेण्डिंग के लिए घंटो आकाश में चमारीक्कर लगाने से मिलेगी मुक्ति
सवेरे 7 से 10 तथा शाम 6 से 9 बजे तक रहती है मारा
राजधानी के इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे के तीसरे रनवे पर उतरने के लिए विमानो ंको अभी इंतजार करना होगा। हालांकि रनवे बनकर तैयार हो चुका है लेकिन सिग्नल व्यवस्था एवं इलैक्ट्रानिक उपकरणों का काम अभी बाकी है। डीजीसीए ने रनवे का काम जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिये हैं बावजूद इसके सितंबर माह से पूर्व रनवे शुरु होने की संभावना नहीं है। राजधानी के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर फिलहाल दो ही रनवे है लेकिन हवाई यातायात दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। बढ़ते हवाई यातायात के चलते यहां आने वाले विमानों को रनवे खाली न होने के कारण उतरने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है तथा उड़ान भरने वाले विमानों में भी अक्सर देरी हो जाती है। कई बार तो सवेरे व शाम के दौरान व्यस्त समय में विमानों को रनवे पर उतरने के लिए आकाश पर काफी देर तक चक्कर लगाना पड़ता है। यही नहीं रनवे की चैड़ाई कम होने के कारण इस रनवे पर बड़े विमान भी आसानी से नहीं उतर सकते। हवाई अड्डे पर बढ़ते यातायात को देखते हुए ही एक नये आधुनिक रनवे की आवश्यकता महसूस की गई और हवाई अड्डे को निजी हाथों में सौंपे जाने के बाद दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (डायल) ने हवाई अड्डे के विकास के लिए बनाये गये मास्टर प्लान में तीसरे रनवे के निर्माण को भी शामिल किया। हवाई अड्डे पर मौजुदा रनवे 10/28 की लबाई 3815 मीटर है तथा चैड़ाई 45 मीटर है जबकि दूसरे रनवे 9/27 की लंबाई 2810 मीटर तथा चैड़ाई 45 मीटर है। इन दोनों रनवे की चैड़ाई कम होने के कारण ए380 जैसे बड़े विमानों को यहां उतरने में कठिनाई होती रही है लेकिन डायल द्वारा बनाये जा रहे तीसरे रनवे की लंबाई 4430 मीटर तथा चैड़ाई 60 मीटर है जिससे बड़े विमानों को यहां उतरने में कठिनाई नहीं होगी। यह रनवे कैट थ्री बी सुविधा से सुसज्जित होगा। हाल ही में डीजीसीए ने भी डायल तथा एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया को रनवे का निर्माण जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिये हैं। डायल के असिसटेंट वाइस प्रेसिडेंट अरुण अरोड़ा का कहना है कि डायल ने रनवे तैयार कर दिया है अब कुछ काम अन्य एजेंसियों को करना है। उन्होंने कहा कि अगस्त माह के अंत तक काम पूरा हो जायेगा तथा संभवतः इस रनवे का ट्रायल भी शुरु हो जायेगा। उन्होंने बताया कि ट्रायल के बाद सितंबर में रनवे को विमानों के लिए खोल दिया जायेगा। इसके बाद आकाश पर यातायात का दबाव कम होगा और विमानों को उतरने व उड़ान के लिए इंतजार नही करना पड़ेगा। यातायात के व्यस्त समय में राजधानी में प्रति एक़ मिनट में एक विमान का आवागमन होता है। प्रतिदिन लगभग 660 विमानों का आवागमन राजधानी में होता है औसतन 30 से 40 विमान प्रति घंटा यहां आवागमन करते हैं। तीन वर्ष में इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर आने व जाने वाले विमानों की संख्या में लगभग 65 हजार उड़ानों की वृद्धि हुई है। पिछले पांच वर्ष में हवाई उड़ानों की संख्या दोगुने से भी अधिक हो गई है, यही कारण है कि मौजुदा दोनों रनवे पर विमानों का दबाव रहता है।
घरेलू उड़ानों पर 16 मिलियन यात्राी हैं प्रति वर्ष
घरेलू टर्मिनल की मौजुदा क्षमता है 8 मिलियन यात्राी प्रति वर्ष
इस वर्ष के अंत तक घरेलू टर्मिनल की क्षमता 18 मिलियन करने की तैयारी
वर्ष के अंत तक तैयार होगा नया घरेलू टर्मिनल 1-डी
इस टर्मिनल की क्षमता होगी 10 मिलियन यात्राी प्रति वर्षवर्ष 2010 तक हवाई अड्डे की क्षमता होगी 60 मिलियन यात्राी प्रति वर्ष
4430 मीटर लंबा और 60 मीटर चैड़ा है तीसरा रनवे
इस रनवे पर बड़े विमान पर उतर सकेंगे आसानी से
रनवे पर इलैक्ट्रानिक उपकरणों का काम बाकी
डीजीसीए ने दिये काम पूरा करने के निर्देश
आकाश पर विमानों का दबाव होगा कम
प्रतिदिन औसतन 660 विमानों का होता है आवागमन
व्यस्त समय के दौरान प्रति मिनट में एक विमान का होता है आवागमन
औसतन ढाई से तीन मिनट में एक विमान का होता है आवागमन
एक वर्ष में हुई 231200 उड़ानों का हुआ आवागमन
लेण्डिंग के लिए घंटो आकाश में चमारीक्कर लगाने से मिलेगी मुक्ति
सवेरे 7 से 10 तथा शाम 6 से 9 बजे तक रहती है मारा
राजधानी के इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे के तीसरे रनवे पर उतरने के लिए विमानो ंको अभी इंतजार करना होगा। हालांकि रनवे बनकर तैयार हो चुका है लेकिन सिग्नल व्यवस्था एवं इलैक्ट्रानिक उपकरणों का काम अभी बाकी है। डीजीसीए ने रनवे का काम जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिये हैं बावजूद इसके सितंबर माह से पूर्व रनवे शुरु होने की संभावना नहीं है। राजधानी के इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर फिलहाल दो ही रनवे है लेकिन हवाई यातायात दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है। बढ़ते हवाई यातायात के चलते यहां आने वाले विमानों को रनवे खाली न होने के कारण उतरने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है तथा उड़ान भरने वाले विमानों में भी अक्सर देरी हो जाती है। कई बार तो सवेरे व शाम के दौरान व्यस्त समय में विमानों को रनवे पर उतरने के लिए आकाश पर काफी देर तक चक्कर लगाना पड़ता है। यही नहीं रनवे की चैड़ाई कम होने के कारण इस रनवे पर बड़े विमान भी आसानी से नहीं उतर सकते। हवाई अड्डे पर बढ़ते यातायात को देखते हुए ही एक नये आधुनिक रनवे की आवश्यकता महसूस की गई और हवाई अड्डे को निजी हाथों में सौंपे जाने के बाद दिल्ली इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड (डायल) ने हवाई अड्डे के विकास के लिए बनाये गये मास्टर प्लान में तीसरे रनवे के निर्माण को भी शामिल किया। हवाई अड्डे पर मौजुदा रनवे 10/28 की लबाई 3815 मीटर है तथा चैड़ाई 45 मीटर है जबकि दूसरे रनवे 9/27 की लंबाई 2810 मीटर तथा चैड़ाई 45 मीटर है। इन दोनों रनवे की चैड़ाई कम होने के कारण ए380 जैसे बड़े विमानों को यहां उतरने में कठिनाई होती रही है लेकिन डायल द्वारा बनाये जा रहे तीसरे रनवे की लंबाई 4430 मीटर तथा चैड़ाई 60 मीटर है जिससे बड़े विमानों को यहां उतरने में कठिनाई नहीं होगी। यह रनवे कैट थ्री बी सुविधा से सुसज्जित होगा। हाल ही में डीजीसीए ने भी डायल तथा एयरपोर्ट अथारिटी आफ इंडिया को रनवे का निर्माण जल्द से जल्द पूरा करने के निर्देश दिये हैं। डायल के असिसटेंट वाइस प्रेसिडेंट अरुण अरोड़ा का कहना है कि डायल ने रनवे तैयार कर दिया है अब कुछ काम अन्य एजेंसियों को करना है। उन्होंने कहा कि अगस्त माह के अंत तक काम पूरा हो जायेगा तथा संभवतः इस रनवे का ट्रायल भी शुरु हो जायेगा। उन्होंने बताया कि ट्रायल के बाद सितंबर में रनवे को विमानों के लिए खोल दिया जायेगा। इसके बाद आकाश पर यातायात का दबाव कम होगा और विमानों को उतरने व उड़ान के लिए इंतजार नही करना पड़ेगा। यातायात के व्यस्त समय में राजधानी में प्रति एक़ मिनट में एक विमान का आवागमन होता है। प्रतिदिन लगभग 660 विमानों का आवागमन राजधानी में होता है औसतन 30 से 40 विमान प्रति घंटा यहां आवागमन करते हैं। तीन वर्ष में इंदिरा गांधी हवाई अड्डे पर आने व जाने वाले विमानों की संख्या में लगभग 65 हजार उड़ानों की वृद्धि हुई है। पिछले पांच वर्ष में हवाई उड़ानों की संख्या दोगुने से भी अधिक हो गई है, यही कारण है कि मौजुदा दोनों रनवे पर विमानों का दबाव रहता है।
बढ़ती मांग ने राजधानी में बढाया सीएनजी संकट
- पैट्रोल डीजल की बढ़ती कीमतों से सीएनजी की मांग बढ़ी
दो वर्ष में बढ़ गये 250 प्रतिशत सीएनजी यूजर्स
सीएनजी स्टेशनों पर लगी हैं लंबी कतारें
पिछले एक माह में ही बढ़ी दो लाख किलो सीएनजी की खपत
पैट्रोल,डीजल की कीमतें बढ़ने से सीएनजी कनवर्ट कराने वालों की संख्या बढ़ी
मुरली देवड़ा ने किया आईजीएल के एमडी को तलब
आईजीएल ने बताई समस्याएं
एनसीआर से आने वाले वाहन बने बड़ी समस्या30 प्रतिशत वाहनों का दबाव होता है एनसीआर से
आईजीएल के पास नहीं है सीएनजी की कमी
कम्प्रेशर क्षमता है सीएनजी स्टेशनो पर कतारों का प्रमुख कारण
वाहनों के अनुपात में नहीं बढ़ रहे हैं सीएनजी स्टेशन
भूमि आवंटित न होने के कारण बेबस है आईजीएल
भूमि के लिए 40 आवेदन दबे हैं फाइलों मेंमौजुदा स्टेशनों की क्षमता बढाने की शुरु हुई तैयारी
2.25 लाख प्राइवेट व सार्वजनिक वाहन प्रतिदिन भरवाते हैं सीएनजी
सीएनजी स्टेशनों की संख्या है कुल 163 - आईजीएल के स्टेशन 65पैट्रोल पम्पों पर लगे 75डीटीसी डिपो में लगे स्टेशन 23
13 लाख किलो खपत होती है प्रतिदिन
एक माह में दो लाख किलो सीएनजी की खपत बढ़ी
आईजीएल ने विदेश से मंगाये 54 नये हाईकैपिसिटी कम्परेशर व 120 नये डिस्पेंसर
सीएनजी वाहनों की - संख्यासीएनजी बसें २२५०० आटो रिक्शा ५५००० छोटे माल वाहक वाहन 24500
एनसीआर से प्रतिदिन आने वाले सीएनजी वाहन लगभग 40 हजार
अन्य प्राइवेट वाहन लगभग 1 लाख
पैट्रोलियम पदार्थो की लगातार बढ़ती कीमतों ने राजधानी के सीएनजी स्टेशनों पर वाहनों की कतार लंबी कर दी है। पिछले एक माह में ही जहां सीएनजी की खपत में दो लाख किलो की बढ़ोत्तरी हो गई है वहीं पिछले दो वर्ष में 250 प्रतिशत सीएनजी के उपभोक्ता बढ़ गये है, यही कारण है कि सीएनजी स्टेशनों पर वाहनों की कतार छोटी नहीं हो रही है। इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड के पास पर्याप्त सीएनजी तो है लेकिन पर्याप्त संसाधन व स्टेशनों की कमी होने के कारण यह समस्या विकराल हो रही है। आईजीएल ने दिसंबर तक संसाधनों व स्टेशनों का पूर्ण विस्तार करने की योजना बनाई है। राजधानी में सीएनजी गैस की आपूर्ति की जिम्मेदारी इन्द्रप्रस्थ गैस लिमिटेड (आईजीएल) के पास है लेकिन आईजीएल प्रबंधन के सामने मुख्य समस्या यह है कि समय के साथ साथ राजधानी में सीएनजी उपभोक्ताओं की बढ़ोत्तरी तो हो रही है लेकिन उस अनुपात में आईजीएल के संसाधनों की बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। कहीं स्टेशन के लिए जमीन न मिलने की समस्या है तो कहीं कोई अन्य तकनीकी अड़चन सामने खड़ी है, नतीजतन विस्तार की तमाम योजनाएं अभी तक खटाई में पड़ी रही हैं। पैट्रोल व डीजल के बढ़ते दामों के कारण प्राइवेट वाहन संचालक अब अपने वाहनों में सीएनजी किट लगवाना पसंद कर रहे हैं। औसतन प्रतिदिन 150 से 200 नये वाहनों में सीएनजी किट लगाई जा रही है जिससे आईजीएल के स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है। हाल ही में लगभग 5000 स्कूली वैन भी सीएनजी में परिर्वतित कर दी गई है। इसके अलावा प्रतिदिन अनुमानित 30 से 40 हजार वाहन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रा से दिल्ली में आते हैं और एनसीआर में कहीं सीएनजी स्टेशन न होने के कारण इनका दबाव भी राजधानी के स्टेशनों पर ही रहता है। अक्टूबर 2007 में आईजीएल को नोयडा में स्टेशन लगाने की अनुमति मिली है लेकिन अभी तक नोयडा में एक छोटा स्टेशन स्थापित हो सका है, अन्य स्टेशनों के लिए तकनीकी अड़चने दूर होने व भूमि आवंटित होने का इंतजार आईजीएल कर रही है। सीएनजी स्टेशनों पर बढ़ते दबाव का प्रमुख कारण स्टेशनों की कम्प्रेशर क्षमता में कमी होना, वाहनो ंकी संख्या बढ़ना तथा नये स्टेशनों के खुलने में देरी होना है। आईजीएल प्रबंधक निदेशक ओम नारायण कहते हैं कि वह लंबे समय से नये स्टेशनों के लिए भूमि आवंटित होने का इंतजार कर रहे हैं लेकिन भूमि संबधी लगभग 40 आवेदन डीडीए और एमसीडी की फाइलों में दबे हुए हैं। वह कहते हैं कि वाहनों का दबाव लगातार बढ़ रहा है जिसे देखते हुए 54 नये कम्प्रेशर आयात करने के अलावा 120 सीएनजी डिस्पेंसर मंगाये गये हैं जिनके लगने के बाद सीएनजी कम्प्ररेशर क्षमता में 30 से 40 प्रतिशत की बढोत्तरी हो जायेगी। उन्होंने बताया कि विस्तार की प्रक्रिया शुरु कर दी गई है और दिसंबर तक समस्या का समाधान पूरी तरह हो जायेगा। रसीएनजी के मौजुदा स्टेशनों पर लगी कम्परेशर मशीनें लगातार 18-18 घंटे चलाई जा रही है इसके बावजूद सभी वाहनों को सीएनजी उपलब्ध नहीं हो पाती। लगभग 3 से 4 किलो सीएनजी की कमी रोजाना दिखाई देती है जबकि यह कमी केवल कम्परेशर क्षमता न होने के कारण ही है, वास्तव में आईजीएल के पास सीएनजी की कमी नहीं है। राजधानी में सीएनजी की प्रतिदिन की खपत लगभग 13 लाख किलो है। बीते एक माह में ही दो लाख किलो की मांग बढ़ गई है। हालांकि कम्प्रेशन की मौजुदा क्षमता आईजीएल के पास 21 लाख किलो प्रतिदिन की है लेकिन कम्प्रेशर मशीनें कुल क्षमता का 50 प्रतिशत ही कार्य सुविधाजनक तरीके से करती हैं नतीजतन लगभग 10.5 लाख किलो प्रतिदिन की आपूर्ति तो आराम से हो जाती है लेकिन इससे ऊपर की मांग को पूरा करने के लिए आईजीएल को मशक्कत का सामना करना पड़ता है। पेट्रोलियम मंत्राी ने आईजीएल प्रबंध निदेशक को किया तलब
राजधानी में सीएनजी को लेकर उत्पन्न संकट को देखते हुए केन्द्रीय पैट्रोलियम मंत्राी मुरली देवड़ा ने आज आईजीएल के प्रबंध निदेशक को तलब किया। आईजीएल प्रबंधक निदेशक ओम नारायण ने विभिन्न तकनीकी अड़चनों से मंत्राी को अवगत कराया। राजधानी में सीएनजी स्टेशनों पर लगी लंबी कतारों तथा लोगों को हो रही कठिनाई के मद्देनजर केन्द्रीय पेट्रोलियम मंत्राी मुरली देवड़ा ने आज आईजीएल के प्रबंध निदेशक ओम नारायण को बुलाकर सीएनजी संकट पर चर्चा की। इस दौरान प्रबंध निदेशक ओम नारायण ने उन्हें बताया कि भूमि उपलब्ध न होने के कारण ही नये स्टेशन स्थापित करने में अडचन आ रही है। उन्होने बताया कि स्टेशनों की कम्प्रेशर क्षमता बढ़ाने के लिए 54 हाईकैपिसिटी मशीने आयात की गई हैं। उन्होंने बताया कि नोयडा में एक स्टेशन के लिए 40 करोड़ का निवेश पहले ही किया जा चुका है। उन्होंने मंत्राी के समक्ष स्पष्ट किया सीएनजी की कोई कमी नही, केवल कुछ ढांचागत सुविधाओं की कमी है जिसके चलते थोड़ा दबाव है। उन्होंने कहा कि नोयडा में आवंटित भूमि में अड़चन के कारण काम रुक गया है। उन्होंने बताया कि नोयडा में पाइप लाइन भी बिछा दी है वहां भूमि आवंटन में हो रही अड़चन दूर होती ही स्टेशन काम करने लगेगा। केन्द्रीय मंत्राी मुरली देवड़ा ने तकनीकी समस्याओं के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्राी से बात करने के अलावा उत्तर प्रदेश व हरियाणा सरकार से भी इस संबध में बात करने का आश्वासन दिया है।
शुक्रवार, 18 जुलाई 2008
परमाणु करार पर सोनिया ने दिखाए तीखे तेवर
परमाणु करार व राष्ट्रहित के मुद्दे पर किसी के प्रमाणपत्रा की जरुरत नहीं: सोनिया
समझौते के मूड में नहीं है कांग्रेस,
चुनाव के लिए भी तैयार दिखाई दी सोनिया
संजय टुटेजा
नेल्लूर 17 जुलाई।
परमाणु करार मुद्दे पर संकट में घिरी कांग्रेस कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। यही नहीं पार्टी इस मुद्दे पर जनता के बीच जाने को भी तैयार दिखाई दे रही है। यूपीए चेयरमैन एवं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस परमाणु करार को देश के लिए लाभकारी बताते हुए वामदलों व करार का विरोध कर रहे अन्य दलों के प्रति तीखे तेवर दिखाए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि कांग्रेस को अपनी देशभक्ति, विदेश नीति एवं परमाणु करार के मुद्दे पर किसी से प्रमाणपत्रा की जरूरत नहीं है। यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी ने आज आन्ध्रपदेश के अपने दौरे के दौरान नेल्लूर के एसी सुब्बारेडडी स्टेडियम में कांग्रेस की एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए परमाणु करार मुद्दे पर पार्टी और सरकार का पक्ष रखा साथ ही यह संकेत भी दिये कि किसी भी परिणाम के लिए पार्टी तैयार है और समझौते के कतई मूड में नहीं है। अपने दौरे के दौरान कांग्रेस अध्यक्षा ने यहां प्रदेश के 1.86 करोड बीपीएल कार्ड धारकों के लिए राजीव आरोग्यश्री स्वास्थ्य योजना की शुरुआत की एवं कृष्णापट्टम बंदरगाह का उद्घाटन कर इस बंदरगाह को देश को समर्पित करने के साथ साथ आन्ध्रप्रदेश के प्रमुख नेता दामोदरन संजीवैय्या के नाम पर 800 मेगावाट के दो थर्मल प्वार प्लांट की नींव भी रखी। तपती धूप में स्टेडियम को खचाखच भरा देख कांग्रेस अध्यक्षा उत्साहित थी, जनसैलाब को देखकर उनके तेवर आक्रामक तो दिखाई दिये लेकिन उन्होंने वामदलों के प्रति कठोर शब्दों का प्रयोग करने से परहेज किया। उन्होंने अपने संबोधन में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्राी श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत का भी जिक्र किया और कांग्रेस द्वारा ही देश को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर साख प्रदान किये जाने की बात कही। उन्होने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को परमाणु कार्यक्रम दिया व स्वतंत्रा विदेश नीति दी। उन्होंने कहा कि जिस करार के जरिए हम देश में परमाणु प्लांट लगा सकते हैं और देश में आधुनिक तकनीक ला सकते हैं, उसी करार के मुद्दे पर वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। यह मुद्दा कांग्रेस व सरकार के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, यह सवाल जनता पूछ सकती है, यह करार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश को ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा चाहिए। उन्होंने कहा कि इस करार से देश के किसानों, अस्पतालों, उद्योगों व आम नागरिकों को पर्याप्त बिजली मिल सकेगी। देश में अभी कोयले व पानी से बिजली का उत्पादन हो रहा है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, मांग लगातार बढ रही है, यही कारण है कि आधुनिक परमाणु तकनीक व ईंधन की जरूरत है। जब सरकार यह तकनीक ला रही है तो सरकार को दोषी बताया जा रहा है और देश हित के खिलाफ जाने के आरोप लगाये जा रहे हैं। देश हित, परमाणु करार व स्वतंत्रा विदेश नीति पर न तो यह सरकार कोई समझौता करने वाली है और न ही कांग्रेस एैसा करेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को सर्वशक्तिमान बनाया और अब विदेश नीति, परमाणु करार ओर देश भक्ति पर कांग्रेस को किसी से प्रमाणपत्रा नहीं चाहिए। कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि कांग्रेस भेदभाव फैलानी वाली एवं नफरत फैलाने वाली राजनीति नहीं करती। कांग्रेस सभी को साथ लेकर चलने व देश को जोड़ने वाल राजनीति करती है। आज सबको जोड़ने वाली राजनीति की ही जरूरत है। भाजपा का नाम लिए बगैर भाजपा पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस उन दलों की तरह नहीं है जो नफरत फैलाने और घृणा के जरिए लोगों को बांटने की राजनीति करते हैं। उन्होंने आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्राी वाई एस राजशेखर रेड्डी की पीठ थपथपाते हुए कहा कि चार वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने आन्ध्रप्रदेश को विकास की दृष्टि से देश का नम्बर एक राज्य बना दिया है। यहां श्रमिकों, महिलाओं, किसानों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व दलितों के लिए अनेक योजनाओं की शुरुआत की गई है। उन्होने कहा कि आज देश का किसान निराश है, बेटी की शादी के लिए उसे भूमि गिरवी रखकर कर्ज लेना पडता है, कांग्रेस की इसी हालत को देखते हुए केन्द्र सरकार ने किसानों का 75 हजार करोड कर्ज माफ किया जिसका सबसे बडा लाभ आन्ध्रपदेश के किसानों को मिला। उन्होने कहा कि देश में कृषि ऋण पर ब्याज की दर 7 प्रतिशत है लेकिन आन्ध्रपेदश में यह दर 3 प्रतिशत है जिससे पता चलता है कि कांग्रेस की प्राथमिकता किसानों का हित है। उन्होंने बताया कि अनंतपुरम से शुरु की गई नेशनल रूरल इम्पाइमेंट गारंटी एक्ट की रोजगार योजना को अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने देश में 2000 से ज्यादा आबादी वाले कस्बों एवं गांवों को सडकों के जरिए शहरों से जोडने का निर्णय लिया है। उन्होंने बढती महंगाई का कारण अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल बताया। उन्होंने कहा कि यूपीए कार्यकाल में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें 35 डाल प्रति बैरल से 147 डालर प्रति बैरल होने के बावजूद कांग्रेस ने कैरोसीन की कीमत नहीं बढाई तथा रसोई गैस की दरों में भी राहत दी। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल में कई बार पेट्रोलियम पदार्थो की दरें बढाई।
समझौते के मूड में नहीं है कांग्रेस,
चुनाव के लिए भी तैयार दिखाई दी सोनिया
संजय टुटेजा
नेल्लूर 17 जुलाई।
परमाणु करार मुद्दे पर संकट में घिरी कांग्रेस कोई समझौता करने के मूड में नहीं है। यही नहीं पार्टी इस मुद्दे पर जनता के बीच जाने को भी तैयार दिखाई दे रही है। यूपीए चेयरमैन एवं कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने इस परमाणु करार को देश के लिए लाभकारी बताते हुए वामदलों व करार का विरोध कर रहे अन्य दलों के प्रति तीखे तेवर दिखाए हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि कांग्रेस को अपनी देशभक्ति, विदेश नीति एवं परमाणु करार के मुद्दे पर किसी से प्रमाणपत्रा की जरूरत नहीं है। यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी ने आज आन्ध्रपदेश के अपने दौरे के दौरान नेल्लूर के एसी सुब्बारेडडी स्टेडियम में कांग्रेस की एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए परमाणु करार मुद्दे पर पार्टी और सरकार का पक्ष रखा साथ ही यह संकेत भी दिये कि किसी भी परिणाम के लिए पार्टी तैयार है और समझौते के कतई मूड में नहीं है। अपने दौरे के दौरान कांग्रेस अध्यक्षा ने यहां प्रदेश के 1.86 करोड बीपीएल कार्ड धारकों के लिए राजीव आरोग्यश्री स्वास्थ्य योजना की शुरुआत की एवं कृष्णापट्टम बंदरगाह का उद्घाटन कर इस बंदरगाह को देश को समर्पित करने के साथ साथ आन्ध्रप्रदेश के प्रमुख नेता दामोदरन संजीवैय्या के नाम पर 800 मेगावाट के दो थर्मल प्वार प्लांट की नींव भी रखी। तपती धूप में स्टेडियम को खचाखच भरा देख कांग्रेस अध्यक्षा उत्साहित थी, जनसैलाब को देखकर उनके तेवर आक्रामक तो दिखाई दिये लेकिन उन्होंने वामदलों के प्रति कठोर शब्दों का प्रयोग करने से परहेज किया। उन्होंने अपने संबोधन में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्राी श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की शहादत का भी जिक्र किया और कांग्रेस द्वारा ही देश को अन्तराष्ट्रीय स्तर पर साख प्रदान किये जाने की बात कही। उन्होने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को परमाणु कार्यक्रम दिया व स्वतंत्रा विदेश नीति दी। उन्होंने कहा कि जिस करार के जरिए हम देश में परमाणु प्लांट लगा सकते हैं और देश में आधुनिक तकनीक ला सकते हैं, उसी करार के मुद्दे पर वामदलों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। यह मुद्दा कांग्रेस व सरकार के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, यह सवाल जनता पूछ सकती है, यह करार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश को ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा चाहिए। उन्होंने कहा कि इस करार से देश के किसानों, अस्पतालों, उद्योगों व आम नागरिकों को पर्याप्त बिजली मिल सकेगी। देश में अभी कोयले व पानी से बिजली का उत्पादन हो रहा है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, मांग लगातार बढ रही है, यही कारण है कि आधुनिक परमाणु तकनीक व ईंधन की जरूरत है। जब सरकार यह तकनीक ला रही है तो सरकार को दोषी बताया जा रहा है और देश हित के खिलाफ जाने के आरोप लगाये जा रहे हैं। देश हित, परमाणु करार व स्वतंत्रा विदेश नीति पर न तो यह सरकार कोई समझौता करने वाली है और न ही कांग्रेस एैसा करेगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने ही देश को सर्वशक्तिमान बनाया और अब विदेश नीति, परमाणु करार ओर देश भक्ति पर कांग्रेस को किसी से प्रमाणपत्रा नहीं चाहिए। कांग्रेस अध्यक्षा ने कहा कि कांग्रेस भेदभाव फैलानी वाली एवं नफरत फैलाने वाली राजनीति नहीं करती। कांग्रेस सभी को साथ लेकर चलने व देश को जोड़ने वाल राजनीति करती है। आज सबको जोड़ने वाली राजनीति की ही जरूरत है। भाजपा का नाम लिए बगैर भाजपा पर हमला करते हुए उन्होंने कहा कि कांग्रेस उन दलों की तरह नहीं है जो नफरत फैलाने और घृणा के जरिए लोगों को बांटने की राजनीति करते हैं। उन्होंने आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्राी वाई एस राजशेखर रेड्डी की पीठ थपथपाते हुए कहा कि चार वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने आन्ध्रप्रदेश को विकास की दृष्टि से देश का नम्बर एक राज्य बना दिया है। यहां श्रमिकों, महिलाओं, किसानों, अल्पसंख्यकों, अनुसूचित जातियों व दलितों के लिए अनेक योजनाओं की शुरुआत की गई है। उन्होने कहा कि आज देश का किसान निराश है, बेटी की शादी के लिए उसे भूमि गिरवी रखकर कर्ज लेना पडता है, कांग्रेस की इसी हालत को देखते हुए केन्द्र सरकार ने किसानों का 75 हजार करोड कर्ज माफ किया जिसका सबसे बडा लाभ आन्ध्रपदेश के किसानों को मिला। उन्होने कहा कि देश में कृषि ऋण पर ब्याज की दर 7 प्रतिशत है लेकिन आन्ध्रपेदश में यह दर 3 प्रतिशत है जिससे पता चलता है कि कांग्रेस की प्राथमिकता किसानों का हित है। उन्होंने बताया कि अनंतपुरम से शुरु की गई नेशनल रूरल इम्पाइमेंट गारंटी एक्ट की रोजगार योजना को अब पूरे देश में लागू किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सरकार ने देश में 2000 से ज्यादा आबादी वाले कस्बों एवं गांवों को सडकों के जरिए शहरों से जोडने का निर्णय लिया है। उन्होंने बढती महंगाई का कारण अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों में उछाल बताया। उन्होंने कहा कि यूपीए कार्यकाल में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें 35 डाल प्रति बैरल से 147 डालर प्रति बैरल होने के बावजूद कांग्रेस ने कैरोसीन की कीमत नहीं बढाई तथा रसोई गैस की दरों में भी राहत दी। उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल में कई बार पेट्रोलियम पदार्थो की दरें बढाई।
गरीबों को महंगे अस्पतालों में मिलेगा निशुल्क उपचार
स्वीडन, यूके एवं यूएसए की तर्ज पर बनी राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना सोनिया ने आन्ध्रप्रदेश के 1।86 करोड़ बीपीएल परिवारों को दिया तोहफा
एक दर्जन राज्यों ने दिखाई इस योजना में रूचि
संजय टुटेजा
नेल्लूर 18 जुलाई।
आन्ध्रप्रदेश के गरीबों के लिए यह सपना नहीं बल्कि हकीकत है। न तो अब उन्हें उपचार के अभाव में तिल तिल मौत के मूंह में जाना पड़ेगा और न ही सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाने होंगे। वह जिस निजी अस्पताल में चाहें, अपना उपचार व बड़े से बड़ा आपरेशन निशुल्क करा सकेंगे। स्वीडन, यूके एवं यूएसए की तर्ज पर इस तरह की योजना भारत में पहली बार आन्ध्रपदेश में लागू की गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस योजना के दूसरे चरण की शुरुआत कर प्रदेश के सभी1.86 करोड़ बीपीएल परिवारों को इस योजना में शामिल कर दिया है। राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की खासियत यह है कि इसमें प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार को अपनी पसंद के निजी अस्पताल में निशुल्क उपचार की सुविधा होगी। यह एक बीमा योजना है जिसका प्रीमियम गरीबों से नहीं लिया जायेगा बल्कि सरकार स्वयं प्रीमियम अदा करेगी। इस योजना में 533 किस्म की आपरेशन संबधी गंभीर व जटिल रोगों को शामिल किया गया है। छोटी से छोटी बीमारी होने पर भी गरीबों को घर बैठे ही प्राथमिक उपचार व एम्बूलेंस सुविधा हासिल हो जाये इसके लिए एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया है। इस नेटवर्क के तहत पीएचसी स्तर पर नियमित शिविर व उपचार से लेकर चिन्हित रोगियों को उनकी पसंद के अस्पतालों में बेहतर उपचार उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। मरीज को घर से अस्पताल तक लाने व उपचार के बाद घर तक छोड़ने का एम्बुलेंस खर्च भी मरीज को अदा नहीं करना पड़ेगा। सभी बीपीएल कार्ड धारकां को सफेद रंग के कार्ड प्रदान किये जा रहे हैं जिन पर उनके परिवार का फोटो व बीपीएल कार्ड का नम्बर अंकित है। यह कार्ड ही उनकी पहचान होगा और इसी कार्ड के आधार पर उन्हें कहीं भी जटिल से जटिल रोग का उपचार कराने की सुविधा होगी। इस योजना के पैनल में 300 से अधिक निजी व बड़े अस्पताल शामिल हैं। उपचार के बाद उपचार का पूरा बिल अस्पताल द्वारा बीमा कंपनी को भेजा जायेगा और रोगी से संतुष्टि के बाद ही बीमा कंपनी संबधित अस्पताल को भुगतान अदा करेगी। आन्ध्रप्रदेश में राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की शुरुआत यूं तो 1 अप्रैल वर्ष 07 में 13 जिलों में लागू की गई थी लेकिन तब यह एक प्रयोग भर था। भ्रष्टाचार की तमाम संभावनाओं को नकारते हुए इस योजना से जब गरीबों को भी निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज मिलने लगा तो इस योजना का विस्तार करने का निर्णय लिया गया। अब तक 3.86 करोड़ बीपीएल आबादी इस योजना का लाभ उठा चुकी है और इस योजना की सफलता से देश भर के लगभग एक दर्जन राज्य भी अब इसका अध्ययन कर इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आन्ध्रपदेश का यह दौरा चुनावी दौरा तो नहीं था अलबत्ता इस दौरे के दौरान प्रदेश के गरीब बीपीएल कार्ड धारक परिवारों को एक एैसी सौगात मिल गई है जो उनके लिए केवल सपना भर थी। इस तोहफे की खासियत यह है कि इसमें भ्रष्टाचार की कोई संभावना नहीं है और प्रदेश का प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार इस योजना का लाभ उठा सकेगा। निश्चित रूप से सोनिया गांधी ने प्रदेश के सभी 23 जनपदों के लिए राजीव गांधी आरोग्यश्री योजना के द्वितीय चरण की शुरुआत कर प्रदेश की गरीब जनता को सुलभ चिकित्सा का तो तोहफा दिया ही है साथ ही अपने दौरे को भी एैतिहासिक बना दिया है।
एक दर्जन राज्यों ने दिखाई इस योजना में रूचि
संजय टुटेजा
नेल्लूर 18 जुलाई।
आन्ध्रप्रदेश के गरीबों के लिए यह सपना नहीं बल्कि हकीकत है। न तो अब उन्हें उपचार के अभाव में तिल तिल मौत के मूंह में जाना पड़ेगा और न ही सरकारी अस्पतालों के चक्कर लगाने होंगे। वह जिस निजी अस्पताल में चाहें, अपना उपचार व बड़े से बड़ा आपरेशन निशुल्क करा सकेंगे। स्वीडन, यूके एवं यूएसए की तर्ज पर इस तरह की योजना भारत में पहली बार आन्ध्रपदेश में लागू की गई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस योजना के दूसरे चरण की शुरुआत कर प्रदेश के सभी1.86 करोड़ बीपीएल परिवारों को इस योजना में शामिल कर दिया है। राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की खासियत यह है कि इसमें प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार को अपनी पसंद के निजी अस्पताल में निशुल्क उपचार की सुविधा होगी। यह एक बीमा योजना है जिसका प्रीमियम गरीबों से नहीं लिया जायेगा बल्कि सरकार स्वयं प्रीमियम अदा करेगी। इस योजना में 533 किस्म की आपरेशन संबधी गंभीर व जटिल रोगों को शामिल किया गया है। छोटी से छोटी बीमारी होने पर भी गरीबों को घर बैठे ही प्राथमिक उपचार व एम्बूलेंस सुविधा हासिल हो जाये इसके लिए एक बड़ा नेटवर्क तैयार किया गया है। इस नेटवर्क के तहत पीएचसी स्तर पर नियमित शिविर व उपचार से लेकर चिन्हित रोगियों को उनकी पसंद के अस्पतालों में बेहतर उपचार उपलब्ध कराने की व्यवस्था है। मरीज को घर से अस्पताल तक लाने व उपचार के बाद घर तक छोड़ने का एम्बुलेंस खर्च भी मरीज को अदा नहीं करना पड़ेगा। सभी बीपीएल कार्ड धारकां को सफेद रंग के कार्ड प्रदान किये जा रहे हैं जिन पर उनके परिवार का फोटो व बीपीएल कार्ड का नम्बर अंकित है। यह कार्ड ही उनकी पहचान होगा और इसी कार्ड के आधार पर उन्हें कहीं भी जटिल से जटिल रोग का उपचार कराने की सुविधा होगी। इस योजना के पैनल में 300 से अधिक निजी व बड़े अस्पताल शामिल हैं। उपचार के बाद उपचार का पूरा बिल अस्पताल द्वारा बीमा कंपनी को भेजा जायेगा और रोगी से संतुष्टि के बाद ही बीमा कंपनी संबधित अस्पताल को भुगतान अदा करेगी। आन्ध्रप्रदेश में राजीवगांधी आरोग्यश्री योजना की शुरुआत यूं तो 1 अप्रैल वर्ष 07 में 13 जिलों में लागू की गई थी लेकिन तब यह एक प्रयोग भर था। भ्रष्टाचार की तमाम संभावनाओं को नकारते हुए इस योजना से जब गरीबों को भी निजी अस्पतालों में निशुल्क इलाज मिलने लगा तो इस योजना का विस्तार करने का निर्णय लिया गया। अब तक 3.86 करोड़ बीपीएल आबादी इस योजना का लाभ उठा चुकी है और इस योजना की सफलता से देश भर के लगभग एक दर्जन राज्य भी अब इसका अध्ययन कर इसे लागू करने पर विचार कर रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का आन्ध्रपदेश का यह दौरा चुनावी दौरा तो नहीं था अलबत्ता इस दौरे के दौरान प्रदेश के गरीब बीपीएल कार्ड धारक परिवारों को एक एैसी सौगात मिल गई है जो उनके लिए केवल सपना भर थी। इस तोहफे की खासियत यह है कि इसमें भ्रष्टाचार की कोई संभावना नहीं है और प्रदेश का प्रत्येक बीपीएल कार्ड धारक परिवार इस योजना का लाभ उठा सकेगा। निश्चित रूप से सोनिया गांधी ने प्रदेश के सभी 23 जनपदों के लिए राजीव गांधी आरोग्यश्री योजना के द्वितीय चरण की शुरुआत कर प्रदेश की गरीब जनता को सुलभ चिकित्सा का तो तोहफा दिया ही है साथ ही अपने दौरे को भी एैतिहासिक बना दिया है।
मंगलवार, 15 जुलाई 2008
अब सिख पंथ के सहारे सरकार बचाने की कोशिश
सिखों के जरिए बादल पर दबाव बनाने में जुटी कांग्रेस
सिख प्रधानमंत्राी के सम्मान के लिए पंजाब में होंगी जनसभायें
संजय टुटेजा
कांग्रेस ने अब सिख पंथ का सहारा लेकर सरकार को बचाने की कोशिश शुरु कर दी है। देश में एक सिख प्रधानमंत्राी की सरकार बचाने तथा पंथ का गौरव बनाये रखने के लिए बादल गुट के सिख सांसदों पर सिख संगत के जरिए दबाव बनाने की का प्रयास हो रहा है। इसके लिए पंजाब के प्रमुख शहरों में जनसभाएं आयोजित कर शिरोमणि अकाली दल के नेता व मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई गई है। संसद में शिरोमणि अकाली दल बादल गुट के 8 सांसद हैं। एनडीए का प्रमुख घटक होने के नाते यह माना जा रहा है कि शिरोमणि अकाली दल के सभी सांसद संसद में विश्वास मत के दौरान सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्राी व प्रमुख अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका दल एनडीए के साथ है और वह एनडीए के निर्णय का पालन करेगें। कांग्रेस को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्राी पद पर सिख समुदाय के डा।मनमोहन सिंह को पद पर बनाये रखने के लिए अकाली दल बादल या तो सरकार के समर्थन में मतदान कर सकता है या फिर अकाली दल के सांसद मतदान के दौरान संसद से अनुपस्थित रहकर सरकार की मदद कर सकते हैं लेकिन मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल के तेवर से कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। प्रकाश सिंह बादल का समर्थन हासिल करने के लिए कांग्रेस ने अब सिख समुदाय के जरिए बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई है। पंथ के सम्मान व पंथ के गौरव के मुद्दे पर बादल को घेरने की रणनीति बनाई गई है। इसके लिए सिख समाज में पार्टी के प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है कि वह बादल से अपील करने के साथ साथ पंथ की बैठकें बुलाकर पंथ को भी इस मुद्दे पर एकजुट करें ताकि बादल पर दबाव बन सके।इसी कड़ी में कल एक बड़ी सभा में कुछ संगठनों द्वारा अमृतसर में बुलाई गई है। अमृतसर की सभा के बाद मोगा व संगरुर में तथा संसद में मतदान से पूर्व चण्डीगढ़ में भी इस तरह की एक सभा बुलाई गई है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि पंजाब में सिख समाज की सिख प्रधानमंत्राी मुद्दे पर एक राय बना ली जाये तो शिरोमणि अकाली दल बादल पर दबाव डाला जा सकता है। इस दबाव में प्रकाश सिंह बादल भले ही कांग्रेस सरकार के पक्ष में मतदान न करें लेकिन यदि बादल अपने सांसदों को विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहने के निर्देश भी दें दें तो यूपीए सरकार की नैया आसानी से पार हो जायेगी।
सिख प्रधानमंत्राी के सम्मान के लिए पंजाब में होंगी जनसभायें
संजय टुटेजा
कांग्रेस ने अब सिख पंथ का सहारा लेकर सरकार को बचाने की कोशिश शुरु कर दी है। देश में एक सिख प्रधानमंत्राी की सरकार बचाने तथा पंथ का गौरव बनाये रखने के लिए बादल गुट के सिख सांसदों पर सिख संगत के जरिए दबाव बनाने की का प्रयास हो रहा है। इसके लिए पंजाब के प्रमुख शहरों में जनसभाएं आयोजित कर शिरोमणि अकाली दल के नेता व मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई गई है। संसद में शिरोमणि अकाली दल बादल गुट के 8 सांसद हैं। एनडीए का प्रमुख घटक होने के नाते यह माना जा रहा है कि शिरोमणि अकाली दल के सभी सांसद संसद में विश्वास मत के दौरान सरकार के खिलाफ मतदान करेंगे। पंजाब के मुख्यमंत्राी व प्रमुख अकाली नेता प्रकाश सिंह बादल भी यह स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका दल एनडीए के साथ है और वह एनडीए के निर्णय का पालन करेगें। कांग्रेस को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्राी पद पर सिख समुदाय के डा।मनमोहन सिंह को पद पर बनाये रखने के लिए अकाली दल बादल या तो सरकार के समर्थन में मतदान कर सकता है या फिर अकाली दल के सांसद मतदान के दौरान संसद से अनुपस्थित रहकर सरकार की मदद कर सकते हैं लेकिन मुख्यमंत्राी प्रकाश सिंह बादल के तेवर से कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिर गया है। प्रकाश सिंह बादल का समर्थन हासिल करने के लिए कांग्रेस ने अब सिख समुदाय के जरिए बादल पर दबाव बनाने की रणनीति बनाई है। पंथ के सम्मान व पंथ के गौरव के मुद्दे पर बादल को घेरने की रणनीति बनाई गई है। इसके लिए सिख समाज में पार्टी के प्रमुख नेताओं को जिम्मेदारी दी गई है कि वह बादल से अपील करने के साथ साथ पंथ की बैठकें बुलाकर पंथ को भी इस मुद्दे पर एकजुट करें ताकि बादल पर दबाव बन सके।इसी कड़ी में कल एक बड़ी सभा में कुछ संगठनों द्वारा अमृतसर में बुलाई गई है। अमृतसर की सभा के बाद मोगा व संगरुर में तथा संसद में मतदान से पूर्व चण्डीगढ़ में भी इस तरह की एक सभा बुलाई गई है। कांग्रेस के रणनीतिकारों का मानना है कि यदि पंजाब में सिख समाज की सिख प्रधानमंत्राी मुद्दे पर एक राय बना ली जाये तो शिरोमणि अकाली दल बादल पर दबाव डाला जा सकता है। इस दबाव में प्रकाश सिंह बादल भले ही कांग्रेस सरकार के पक्ष में मतदान न करें लेकिन यदि बादल अपने सांसदों को विश्वास मत के दौरान अनुपस्थित रहने के निर्देश भी दें दें तो यूपीए सरकार की नैया आसानी से पार हो जायेगी।
सोमवार, 14 जुलाई 2008
अल्पसंख्यक महिलाओं में गुंजा वंदे मातरम
आल्पसंख्यक महिलाओं को वंदे मातरम का मंत्रा दे गये आडवाणी
भीड़ को देख आडवाणी सहित सभी नेता हुए गदगद
भाजपा को अछूत नहीं मानती अल्पसंख्यक महिलाये
महंगाई को लेकर कांग्रेस से दूर होती दिखाई दी
संजय टुटेजा
आज भाजपा के लिए शायद एक सुखद दिन था। अल्पसंख्यक महिलाओं के सम्मेलन में उमड़ी भीड़ ही आश्चर्यजनक नहीं थी, बल्कि पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी के स्वर में स्वर मिलाकर मुस्लिम महिलाओं का ‘भारत माता की जय’ और वंदे मातरम’ के नारे लगाना भी कम आश्चर्यजनक नहीं था। आडवाणी ने इस सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रप्रेम और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष शाहनवाज हुसैन द्वारा यहां मावलंकर सभागार में अल्पसंख्यक महिलाओं का सम्मेलन भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। सम्मेलन में उमड़ी मुस्लिम महिलाओं की भीड़ की को देखकर तो भाजपा के तमाम नेता गदगद थे ही, इस भीड़ के बहाने भाजपा नेताओं को मुसलमानों की दृष्टि में लगा अछूत का दाग मिटाने का मौका भी मिला। तमाम वक्ताओं ने मुस्लिम महिलाओं को यही समझाने का प्रयास किया कि भाजपा उनके लिए अछूत नहीं बल्कि उनकी हितैषी है। सम्मेलन में आई मुस्लिम महिलाएं भाजपा की नीतियों रीतियों से भले ही संतुष्ट हों या न हों लेकिन महिलाओं में बढ़ती महंगाई को लेकर आक्रोश था और यही आक्रोश उन्हें सम्मेलन तक खींच कर भी लाया। भाजपा के प्रति इस लगाव के बारे में जब राष्ट्रीय सहारा ने कुछ महिलाओं को कुरेदा तो रोजी रोटी, गरीबी, महंगाई आदि समस्याओं से जूझ रही इन महिलाओं का आक्रोश फूट पड़ा। बल्ली मारान निवासी रेहाना बोली ‘28 रुपये की आधा किलो दाल हो गई है अब खायें पियें या भूखे मरें, कहां जाये। ओखला निवासी वहीदा का गुस्सा इस तरह दिखाई दिया ‘जहां मर्जी तोड़ फोड़ कर देते है, न रहने देते हैं न खाने देते है, गरीबों की तो जान लेना चाहते हैं ये सरकार वाले। ये भाजपा वाले ही ठीक हैं। सम्मेलन में भाजपा के प्रधानमंत्राी पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी के प्रति महिलाओं में काफी आकर्षण दिखाई दिया। बुरका पहने एक महिला जब आडवाणी से उनका आटोग्राफ लेने बढ़ी तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे पीछे हटाया। आडवाणी ने सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पड़ाया और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। उन्होंने स्वयं महिलाओं से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगवाये। मुस्लिम महिलाओं के मुख से इस तरह के नारे सचमुच आश्चर्यजनक था। सम्मेलन के संयोजकों को भी यह अंदाजा नहीं रहा था कि इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं वहां तक पहुंचेगी इसलिए शायद सम्मेलन को एक सभागार में समेटा गया था लेकिन जितनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं सम्मेलन में पहुंची उससे इस सम्मेलन को एक सभागार में समेटना आयोजकों के लिए भी मुश्किल हो गया। हांलांकि अल्पसंख्यक मोर्चे का यह राष्ट्रीय सम्मेलन था लेकिन इसमें राजधानी दिल्ली की मुस्लिम महिलाओं की संख्या अधिक थी जिन्हें भाजपा के स्थानीय मुस्लिम नेता अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए वहां लाये थे।
भीड़ को देख आडवाणी सहित सभी नेता हुए गदगद
भाजपा को अछूत नहीं मानती अल्पसंख्यक महिलाये
महंगाई को लेकर कांग्रेस से दूर होती दिखाई दी
संजय टुटेजा
आज भाजपा के लिए शायद एक सुखद दिन था। अल्पसंख्यक महिलाओं के सम्मेलन में उमड़ी भीड़ ही आश्चर्यजनक नहीं थी, बल्कि पार्टी के प्रमुख नेता लालकृष्ण आडवाणी के स्वर में स्वर मिलाकर मुस्लिम महिलाओं का ‘भारत माता की जय’ और वंदे मातरम’ के नारे लगाना भी कम आश्चर्यजनक नहीं था। आडवाणी ने इस सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रप्रेम और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। भारतीय जनता पार्टी अल्पसंख्यक मोर्चा अध्यक्ष शाहनवाज हुसैन द्वारा यहां मावलंकर सभागार में अल्पसंख्यक महिलाओं का सम्मेलन भाजपा के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण रहा। सम्मेलन में उमड़ी मुस्लिम महिलाओं की भीड़ की को देखकर तो भाजपा के तमाम नेता गदगद थे ही, इस भीड़ के बहाने भाजपा नेताओं को मुसलमानों की दृष्टि में लगा अछूत का दाग मिटाने का मौका भी मिला। तमाम वक्ताओं ने मुस्लिम महिलाओं को यही समझाने का प्रयास किया कि भाजपा उनके लिए अछूत नहीं बल्कि उनकी हितैषी है। सम्मेलन में आई मुस्लिम महिलाएं भाजपा की नीतियों रीतियों से भले ही संतुष्ट हों या न हों लेकिन महिलाओं में बढ़ती महंगाई को लेकर आक्रोश था और यही आक्रोश उन्हें सम्मेलन तक खींच कर भी लाया। भाजपा के प्रति इस लगाव के बारे में जब राष्ट्रीय सहारा ने कुछ महिलाओं को कुरेदा तो रोजी रोटी, गरीबी, महंगाई आदि समस्याओं से जूझ रही इन महिलाओं का आक्रोश फूट पड़ा। बल्ली मारान निवासी रेहाना बोली ‘28 रुपये की आधा किलो दाल हो गई है अब खायें पियें या भूखे मरें, कहां जाये। ओखला निवासी वहीदा का गुस्सा इस तरह दिखाई दिया ‘जहां मर्जी तोड़ फोड़ कर देते है, न रहने देते हैं न खाने देते है, गरीबों की तो जान लेना चाहते हैं ये सरकार वाले। ये भाजपा वाले ही ठीक हैं। सम्मेलन में भाजपा के प्रधानमंत्राी पद के दावेदार लालकृष्ण आडवाणी के प्रति महिलाओं में काफी आकर्षण दिखाई दिया। बुरका पहने एक महिला जब आडवाणी से उनका आटोग्राफ लेने बढ़ी तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे पीछे हटाया। आडवाणी ने सम्मेलन में महिलाओं को राष्ट्रीयता का पाठ पड़ाया और वंदेमातरम का मंत्रा दिया। उन्होंने स्वयं महिलाओं से वंदे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगवाये। मुस्लिम महिलाओं के मुख से इस तरह के नारे सचमुच आश्चर्यजनक था। सम्मेलन के संयोजकों को भी यह अंदाजा नहीं रहा था कि इतनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं वहां तक पहुंचेगी इसलिए शायद सम्मेलन को एक सभागार में समेटा गया था लेकिन जितनी बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं सम्मेलन में पहुंची उससे इस सम्मेलन को एक सभागार में समेटना आयोजकों के लिए भी मुश्किल हो गया। हांलांकि अल्पसंख्यक मोर्चे का यह राष्ट्रीय सम्मेलन था लेकिन इसमें राजधानी दिल्ली की मुस्लिम महिलाओं की संख्या अधिक थी जिन्हें भाजपा के स्थानीय मुस्लिम नेता अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के लिए वहां लाये थे।
शनिवार, 12 जुलाई 2008
निजीकरण की राह पर दिल्ली परिवहन निगम
आने वाली 2500 अन्य बसों की मरममत भी निजी हाथों में सौंपने की तैयारी
मरम्मत का कार्य निजी हाथों में देने से कर्मचारी हुए बेकार
छह डिपो किये टाटा के हवाले
अब तक खरीदी गई सभी 650 लोफ्लोर व 25 वातानुकूलित बसों के लिए हुआ है एएमसी कान्ट्रेक्ट
छह डिपो के एक हजार से अधिक कर्मचारी हुए प्रभावित
मरम्मत एग्रीमेंट के अनुसार बसों 95 प्रतिशत उपलब्धता देगी कम्पनी
12 वर्ष तक कम्पनी करेगी बसों की मरम्मत
शर्तो का पालन न करने पर है कम्पनी पर जुर्माने का प्रावधान
मरम्मत निजी हाथों में सौंपने से डीटीसी को प्रति बस 15 लाख रुपये की सालाना बचत
डीटीसी वर्कशाप में मरम्मत कराना पड़ता है महंगा
कर्मचारी संगठन हो रहे हैं लामबंद
संजय टुटेजा
दिल्ली परिवहन निगम धीरे धीरे निजीकरण के रास्ते पर बढ़ रहा है। निगम के के लिए खरीदी गई 650 लोफ्लोर बसों व 25 वातानुकूलित बसों की मरम्मत का कार्य भी बस निर्माता कम्पनी टाटा को सौंपे जाने के बाद अब जल्द ही खरीदी जाने वाली अन्य लगभग ढाई हजार बसों की मरम्मत भी इसी तर्ज पर निजी हाथों में सौंपे जाने की तैयारी है। पहली खेप में खरीदी गई बसों की मरम्मत के लिए निगम ने अपने छह डिपो भी टाटा को सौंप दिये हैं जिससे कर्मचारियों में आक्रोश बढ़ रहा है। दिल्ली परिवहन निगम के पास लगभग छह हजार तकनीकी कर्मचारी हैं जो बसों की मरमम्त आदि के लिए निगम की कार्यशालाओं में तैनात हैं। इसके अलावा प्रत्येक कार्यशाला में एक रिकवरी वैन व एक स्टोर वैन भी है। बसों की मरम्मत के लिए पर्याप्त कर्मचारी व तमाम संसाधन होने के बावजूद दिल्ली परिवहन निगम नई आने वाली बसों की मरम्मत का कार्य पूरी तरह निजी हाथों में सौंपने की तैयारी में है। निगम ने पहली खेप के रूप में 525 लोफ्लोर बसों की खरीद का आर्डर दिया था जिसे बढ़ाकर बाद में 650 कर दिया गया। यह सभी बसें टाटा मोटर से खरीदी गई हैं और इसी कम्पनी के साथ ही इन बसों की मरम्मत का भी 12 वर्ष का एग्रीमेंट किया गया है। मरम्मत की राशि प्रति बस प्रति किलोमीटर के हिसाब से निश्चित है। मतलब जितने किलोमीटर बस चलेगी उसी अनुपात में मरम्मत करने वाली कम्पनी की आय भी बढ़ेगी। पहले वर्ष मरम्मत की यह राशि प्रति किलोमीटर 1।60 रुपये है जो प्रत्येक वर्ष बढ़ते हुए 12 वें वर्ष में बढ़कर 12 रुपये प्रति किलोमीटर हो जायेगी। नतीजतन 12 वें वर्ष में निगम की बस के एक किलोमीटर चलने पर 12 रुपये मरम्मत कर्ता कम्पनी को भुगतान मिलेगा। आगामी राष्ट्रकुल खेलों से पूर्व निगम के बेड़े में 2500 अन्य लोफ्लोर व सेमी लोफ्लोर बसें शामिल होनी है। निगम का प्रबंधन निगम के बेड़े में आने वाली सभी बसों की मरम्मत का कार्य निर्माता कम्पनी को ही देने के पक्ष में है और इसकी तैयारी की जा रही है। निगम के इस रूख को देखते हुए कर्मचारी संगठनों में रोष है और कर्मचारी संगठन भी आंदोलन के मूड में हैं। दिल्ली परिवहन मजदूर सेघ के महामंत्राी रामचन्द्र होलम्बी कहते हैं कि सरकार धीरे धीरे निगम को बेच रही है। कर्मचारियों के हितों की उपेक्षा की जा रही है और निजी कंपनियों को काम सौंप कर कर्मचारियों को बेकार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि भविष्य में खरीदी जाने वाली बसों की मरममत की दर भी बढ़ायी जा रही है। उन्होंने कहा कि यदि निगम ने यह रवैया न बदला तो बड़ा आंदोलन होगा।
छह डिपो किये टाटा के हवाले
दिल्ली परिवहन निगम ने निगम के बेड़े में शामिल हो रही नई लोफ्लोर बसों व वातानुकूलित बसों की मरम्मत के लिए अपने छह डिपो अगले 12 वर्ष के लिए टाटा मोटर के हवाले कर दिये हैं। डीटीसी द्वारा पहले चरण में खरीदी गई 650 लोफ्लोर बसों में से अब तक 411 बसें निगम को प्राप्त हो चुकी हैं। इन बसों की मरमम्त के लिए राजधानी के चारो दिशाओं में छह डिपो टाटा को दिये गये हैं। इन डिपो में सुभाष पैलेस डिपेा, हरिनगर नगर द्वितीय डिपो, मायापुरी डिपो, हसनपुर डिपो, सुखदेव विहार डिपो तथा रोहिणी प्रथम डिपो शामिल हैं। इन डिपो में तैयार निगम के तकनीकी कर्मचारियों को वहां से अन्य डिपो में स्थानान्तरित कर दिया है। डीटीसी के पास कुल लगभग 6000 एैसे कर्मचारी हैं जो कार्यशालाओं में तैनात हैं, इनमें से लगभग एक हजार कर्मचारी उन डिपो में कार्यरत थे जो टाटा को दिये गये हैं। भले ही इन सभी कर्मचारियों को अन्य डिपो में भेज दिया गया है लेकिन इनमें अधिकतर खाली हैं क्योंकि सभी डिपो में मरम्मत कर्मचारी पहले से ही तैनात हैं।
मरम्मत निजी हाथों में देने से घाटा होगा कम: नेगी
दिल्ली परिवहन निगम के प्रबंध निदेशक रमेश नेगी का कहना है कि मरम्मत निजी हाथों में देने से निगम को नुकसान नहीं बल्कि फायदा है। निगम के प्रबंध निदेशक श्री नेगी का कहना है कि निगम में तकनीकी कर्मचारियों के वेतन तथा वर्कशाप के अन्य खर्चो को देखा जाये तो प्रति किलोमीटर प्रति बस औसतन 8 रुपये किलोमीटर खर्च आता है लेकिन मरम्मत का कार्य बस आपूर्ति करने वाली कम्पनी को ही देने से यह औसत खर्च 5।45 पैसे प्रति बस प्रति किलोमीटर पड़ेगा। उन्होंने बताया कि इस हिसाब से निगम को एक बस पर लगभग डेढ़ लाख की बचत मरम्मत में प्रति वर्ष होगी और 12 वर्षो में एक बस पर 15 लाख रुपये की मरम्मत खर्च में बचत निगम को होगी। उन्होंने बताया कि निर्माता कम्पनी को ही मरम्मत का कार्य देने से एक फायदा यह होगा कि 95 प्रतिशत बसें हमेशा बिल्कुल ठीक होंगी क्योंकि एग्रीमेंट के अनुसार कम्पनी 95 प्रतिशत बसों की उपलब्धता निगम को देगी, एैसा न करने पर निगम उस कम्पनी पर जुर्माना कर सकता है। उन्होंने बताया कि निगम कर्मचारियों द्वारा मरम्मत होने पर अधिकतर बड़ी संख्या में बसों की मरम्मत समय पर नहीं हो पाती क्योंकि अनेक बार स्टोर में सामान नहीं होता और सामान खरीदने की प्रक्रिया लंबी होने के कारण खरीद में देरी हो जाती है जिससे बसें खराब होकर डिपो में खड़ी रहती हैं।
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